​​ ​समाजवाद तो धीरे-धीरे आई बबुआ...खुशदीप




यूपी में माया गईं...मुलायम आ गए...राहुल गांधी आस्तीनें ही चढ़ाते रह गए...बीजेपी को न सत्ता मिली, न राम...आखिर साइकिल इतनी रफ्तार से क्यों दौड़ी...हाथी चारों खाने चित...हाथ खाली...कमल मुरझाया का मुरझाया...इस चुनाव में मतदाताओं के सामने सीधा सवाल था....मायाराज से छुटकारा पाने के बाद यूपी की अगुआई करने लायक नेता किस पार्टी के पास है...

राहुल ने यूपी में कांग्रेस के प्रचार की अगुआई की तो 2012 के सीएम नहीं 2014 में केंद्र में पीएम के तौर पर...बीजेपी के पास तो सीएम के 55 स्वयंभू दावेदार थे (बकौल वरुण गांधी)...इसलिए वोटरों को मज़बूत विकल्प सिर्फ समाजवादी पार्टी में ही दिखा...अब वो चाहें मुलायम हों या अखिलेश...वोटरों को खुद के भरोसे से इंसाफ़ करने लायक माद्दा इस बाप-बेटे की जोड़ी में ही दिखा...

समाजवादी पार्टी इस चुनाव से बहुत पहले ही अपने चाल, चरित्र और दिशा को बदलने के लिए मेहनत करती भी दिखी...समाजवादी पार्टी के चुनाव प्रचार में इस बार न तो बॉलीवुड के सितारों का ग्लैमर देखने को मिला और न ही कॉरपोरेट स्टाइल तड़क-भड़क... अगर कुछ दिखा तो वो था कुछ साल पहले छोटे लोहिया दिवंगत जनेश्वर मिश्र की दी नसीहत का असर...

जनेश्वर बाबू ने जब समाजवादी पार्टी पर पूरी तरह अमर सिंह कल्चर हावी थी, तब बिना किसी लाग-लपेट कहा था...मुलायम जब तक जहाज़ से उतर कर सड़क पर संघर्ष नहीं करेंगे, ज़मीन के लोगों से दोबारा नहीं जुड़ सकेंगे...मुलायम ने संदेश को समझा और खुद के साथ पार्टी को भी बदलना शुरू किया...सबसे भरोसेमंद साथ मुलायम को अखिलेश के तौर पर घर पर ही मिला...मुलायम ने आज़म ख़ान जैसे रुठे सिपहसालारों को दोबारा पार्टी से जोड़ने का काम किया तो अखिलेश ने मायाजाल को तोड़ने के लिए सड़कों को नापना शुरू किया...

अखिलेश से युवाओं ने खुद को जोड़ा तो अखिलेश बुज़ुर्गों को भी चचा-ताऊ के संबोधन से पूरा मान देते और आशीर्वाद लेते दिखे...यहां अखिलेश के सामने कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी बेहद कमज़ोर साबित हुए...राहुल गांधी तमाम रोड शो, भट्टा परसौल में अल सुबह बाइक की सवारी, दलितों के घर में में खाना, 222 जनसभाएँ करने के बाद भी खुद को वोटरों से नहीं जोड़ सके...सिक्योरिटी में घिरे राहुल लोगों को आसमान से उतरे राजकुमार ही नज़र आए, अपने बीच का शख्स नहीं...​
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​लोगों की इसी नब्ज़ को पकड़ते हुए अखिलेश अपनी ऐसी छवि गढ़ते चले गए कि ये नौजवान कुछ करके दिखा सकता है...आज के युवा की ज़रूरतों को समझते हुए अंग्रेज़ी और कंप्यूटर के मामले में पिता मुलायम की पहले की घोषित लाइन से अलग लाइन पकड़ी...अखिलेश ने समाजवादी पार्टी के घोषणापत्र में जुड़वाया कि सत्ता में आने पर बारहवीं पास छात्रों को लैपटाप और दसवीं पास छात्रों को टैबलेट मुफ्त दिया जाएगा...ऐसे ही वादों पर निशाना साधते हुए राहुल ने एक रैली में मंच से कागज़ को फाड़ा तो कांग्रेस की यूपी में इस चुनाव में बचीखुची संभावनाओं को भी फाड़ डाला...इस पर अखिलेश ने चुटकी भी ली थी कि इस बार राहुल ने कागज़ फाड़ा है अगली बार कहीं मंच से ही न कूद जाएं...​​​

समाजवादी पार्टी की साइकिल को सरपट दौड़ाने में इस बार मुस्लिम मतदाताओं की भी खासी भूमिका रही...2009 लोकसभा चुनाव की गलती को इस बार मुलायम दूर कर चुके थे...उस चुनाव से पहले मुलायम ने कल्याण सिंह से हाथ मिलाकर बड़ी राजनीतिक भूल की थी...उसी का गुस्सा था कि लोकसभा चुनाव में यूपी में   मुस्लिम  वोट छिटक कर कांग्रेस के पास गया और कांग्रेस को 21  सीटें हाथ लग गई थीं...लेकिन इस विधानसभा चुनाव में मुस्लिम मतदाताओं ने मुलायम की उस गलती को मुआफ़ कर दिया और थोक के हिसाब से वोट दिया...​
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​समाजवादी पार्टी के 2007 में सत्ता से बाहर होने के लिए सबसे बड़ी वजह बनी थी, गुंडाराज की छवि...ऊपर से अमिताभ का ये विज्ञापन और ज़ख्मों पर नमक छिड़कता था कि यूपी में बहुत दम है क्योंकि यहां जुर्म बहुत कम है...इस बार इस छवि को बदलने के लिए अखिलेश ने खास तौर पर काफ़ी मेहनत की...मुलायम के छोटे भाई शिवपाल यादव ने मायावती के खासमखास नसीमुद्दीन सिद्दीकी के छोटे भाई हसीमुद्दीन की सपा में एंट्री कराई हो या आज़म ख़ान ने बाहुबली डी पी यादव की...दोनों बार अखिलेश ने ये कह कर वीटो लगा दिया कि कुख्यात लोगों के लिए पार्टी में कोई जगह नहीं है...

अखिलेश ने ऐसा कर लोगों में यही संदेश दिया कि समाजवादी पार्टी अपने पुराने सारे दाग़ों को धो डालना चाहती है...लोगों ने भरोसा किया और ऐसा जनादेश दिया कि समाजवादी पार्टी को कांग्रेस, आरएलडी तो क्या निर्दलीयों की बैसाखी का सहारा लेने की ज़रूरत न पड़े...अब इतना कुछ मिला है तो समाजवादी पार्टी  को भी आवाम की उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए कोई कसर नहीं छोड़नी चाहिए...वो गलती न दोहराएं जो मायावती ने 2007 में स्पष्ट बहुमत मिलने के बाद की...

ये साफ़ है कि जो लोगों के लिए काम करेगा, उसे ही जनता दोबारा सत्ता का प्रसाद देगी...नीतीश कुमार इसकी अच्छी मिसाल हैं....लेकिन नतीजे वाले दिन ही यूपी में जिस तरह जीत के जोश में समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने उत्पात मचाया, उस पर मुलायम-अखिलेश को सख्ती से अंकुश लगाने की ज़रूरत है...संभल में जीत के जुलूस के दौरान फायरिंग में सात साल के बच्चे की मौत हो या झांसी में पत्रकारों की पिटाई या फिर  आरा और फिरोज़ाबाद में टकराव की घटनाएं...ये सब संदेह जगाती हैं कि कहीं समाजवादी पार्टी के राज में फिर दबंगई और गुंडई शुरू न हो जाएं...इनसे आयरन हैंड से निपटने की आवश्यकता है...ज़ाहिर है बदलने में कुछ वक्त लगता है...लेकिन यहां ये कहावत नहीं चलेगी....समाजवाद तो धीरे-धीरे आई बबुआ... ​

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    12 टिप्पणियाँ
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    1. संभल में जीत के जुलूस के दौरान फायरिंग में सात साल के बच्चे की मौत हो या झांसी में पत्रकारों की पिटाई या फिर आरा और फिरोज़ाबाद में टकराव की घटनाएं.
      देखिये समय बतायेगा..

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    2. काफी अच्छा लगा यह विश्लेषण . चुनाव परिणाम आने के पहले मिडिया में अखिलेश की खबर तो थोड़ी सी ही थी, राहुल और मायावती की ही ख़बरें होती थी खास कर बीबीसी और इंग्लिश मीडिया में.
      खैर शुभकामनायें कि नई सरकार UP की प्रतिष्ठा पुनर्स्थापित करे.

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    3. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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    4. सुन्दर प्रस्तुति!
      --
      रंगों की बहार!
      छींटे और बौछार!!
      फुहार ही फुहार!!!
      रंगों के पर्व होलिकोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ!!!!
      नमस्कार!

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    5. भाई बहुत जटिल मामला है। भारत में पूंजीपती वर्ग का राज्य है। जोजनता का हित साधे वह सत्ताधारी वर्ग को नहीं सुहाता। और जो सत्ताधारी वर्ग का साथ दो तो जनहित नहीं सधता। इस अंतर्विरोध को कैसे हल करता है समाजवादी दल? भविष्य इसी पर निर्भर करता है।

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    6. यु पी चुनाव के नतीजों का बहुत बढ़िया विश्लेषण किया है . निसंदेह इस जीत में अखिलेश की अहम भूमिका रही है . आशा है की अब भविष्य में भी वे इसी साहस और बुद्धिमानी का परिचय देते हुए यु पी की इमेज सुधारेंगे .

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    7. उठते हुए सूरज को सभी नमस्कार करते हैं... दर-असल उत्तर प्रदेश की जनता का दुर्भाग्य यह की की यहाँ राष्ट्रीय दल अपनी पहचान और प्रासंगिकता खो चुके हैं... समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने चुनाव जीतने के तुरंत बाद ही जिस दबंगई का परिचय दिया है वह इस बात की और इशारा करता है की यह ढोंग केवल चुनाव जीतने के लिए हुआ है...
      अब सांप और नाग के बीच उत्तर प्रदेश की जनता फंसी है.. डर इसी बात का है की उत्तर प्रदेश की दशा दिशा लालू के बिहार जैसी न हो जाए...

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    8. ५५ उम्मीदवार बताने वालो को तो उतनी सिट भी न मिली और हारने के बाद भी दुखी होने की जगह बीजेपी वाले इस बात पर ज्यादा खुश है की राहुल और कांग्रेस भी नहीं जीती, दुसरे कांग्रेस वाले भी है की अपनी हार पर चिंतन करने की जगह अभी भी जबान चला रहे है और कह रहे है की काम हमने किया मुस्लिमो के लिए और वोट वो ले गए और अन्ना को याद कर रहे है , पता नहीं कब होश में आयेंगी और सुधरेंगी ये दोनों राष्ट्रिय पार्टिया । क्षेत्रीय पार्टियों की बढ़ती ताकत और राष्ट्रिय पार्टियों की ये हालत केंद्र की सरकारों को और मजबूर करने का काम करेंगी अभी भी और 20१४ में भी । इन चुनावों में मिडिया ने कांग्रेस में हवा भरने का काम कुछ ज्यादा ही किया जिससे वो अति आत्मविश्वास में आ गई जब वो सरकार तक बनाने के सपने देखने लगी जबकि सपा मिडिया के बिना ही अपना काम जमीनी रूप से करती रही। लोगो ने एक पार्टी को बहुमत दे कर अच्छा काम किया है अब किसी भी कार्य के लिए ये दूसरो को दोष नहीं देंगी और अपनी जिम्मेदारी को समझेंगी । जब पहली बार अखिलेश संसद में आये थे तो सभी पार्टियों के बड़े नेताओ का पैर छू कर आशीर्वाद लिया था तब लगा की ये विनम्रता बनी रहेगी या युवराज की गद्दी पर बैठते है वही अकड़ आ जाएगी किन्तु कल राहुल और मायावती की मूर्तियों के लिए उनके बयानों को सुन कर अच्छा लगा उम्मीद है की वो अपने कार्यकर्ताओ को भी संभाल लेंगे और अपने कार्यकर्ताओ की छवि भी ठीक करेंगे ।

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    9. देखते हैं ...क्या और कैसे ?
      होली का पर्व मुबारक हो !
      शुभकामनाएँ!

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