फेल छात्रों को डॉक्टर बनाओ...खुशदीप



शीर्षक पढ़ कर आप चौंके होंगे...मैं भी चौंका इस आशय की ख़बर पढ़कर...लखनऊ की छत्रपति शाहूजी महाराज मेडिकल यूनिवर्सिटी ने मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) से कुछ ऐसा ही आग्रह किया है...देश की इस पहली रेसीडेंशियल मेडिकल यूनिवर्सिटी ने एमसीआई को भेजी चिट्ठी में कहा है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (एससी-एसटी) के ऐसे मेडिकल छात्रों को ग्रेजुएशन की डिग्री दे दी जाए जो कई बार प्रयास करने के बाद भी फाइनल एग्ज़ाम्स पास नहीं कर पा रहे हैं...कुछ छात्र तो ऐसे भी हैं जो 1996 से इम्तिहान देते आ रहे हैं लेकिन कामयाबी का मुंह नहीं देख पाए हैं...इससे पहले रिजर्व्ड कैटेगरी के करीब पचास मेडिकल छात्रों ने यूनिवर्सिटी के टीचर्स पर आरोप लगाया था कि उन्हें जानबूझकर ख़राब मार्क्स दिए जाते हैं....



छत्रपति शाहूजी महाराज यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रोफेसर डी के गुप्ता ने ये चिट्ठी एमसीआई को ऐसे वक्त पर लिखी है जब कुछ ही महीनों में उत्तर प्रदेश में चुनाव होने जा रहे हैं...उत्तर प्रदेश में कुल वोटरों में  एससी-एसटी की 18 फीसदी हिस्सेदारी हैं...प्रोफेसर गुप्ता ने चिट्ठी में कहा है...क्योंकि छात्र लगातार कई बार कोशिश करने के बावजूद एग्ज़ाम्स में फेल हो रहे हैं इसलिए उन्हें डिग्री दे दी जाए...प्रो. गुप्ता ने सुझाव दिया है कि रिज़र्व्ड कैटेगरी के छात्रों के लिए अलग पासिंग परसन्टेज़ फिक्स की जानी चाहिए...इसके लिए उनका तर्क है- क्योंकि एमबीबीएस के दाखिले के इम्तिहान में भी क्वालीफाइ करने के लिए रिज़र्व्ड कैटेगरी के छात्रों के लिए कम मार्क्स निर्धारित होते हैं, इसलिए उन्हें एमबीबीएस डिग्री के एग्ज़ाम्स में भी ऐसी ही छूट दी जानी चाहिए...

यूपी के मेडिकल एजुकेशन मंत्री लालजी वर्मा ने प्रोफेसर गुप्ता की चिट्ठी देखने के बाद ही कोई प्रतिक्रिया देने की बात कही है...यूपी में कांग्रेस के प्रवक्ता राम कुमार वर्मा का कहना है कि रिज़र्व्ड कैटेगरी के छात्र क्यों बार बार फेल हो रहे हैं, इसकी समुचित जांच कराई जानी चाहिए...समाजवादी पार्टी के नेता अंबिका चौधरी का कहना है कि वंचित वर्ग के छात्रों को दाखिले के दौरान मौका मिल जाता है तो उन्हें डॉक्टर बनने के लिए खुद को कड़ी मेहनत से तैयार करना चाहिए...

क्या रिज़र्वेशन का लाभ एन्ट्रेंस में मिलने के बाद प्रोफेशनल कोर्सेज़ के एग्ज़ाम्स में भी जारी रखना चाहिए...क्या रिज़र्व्ड कैटेगरी के छात्रों को वाकई जानबूझकर बार बार फेल किया जाता है, इस विषय पर आप सब की क्या राय है....

(स्रोत...हिंदुस्तान टाइम्स)

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17 टिप्पणियाँ
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  1. इन फेल डाक्टरो को पास कर के सारे नेताओं के इलाज के लिये इन्हे ही "आरक्षित" करना चाहीये। पूरा १००% मरीजो का कोटा नेताओ का!

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  2. जिसकी नीव कमज़ोर हो , उस भवन को कौन बचा सकता है ।
    जीरो मार्क्स लेकर भी जब एडमिशन पा जाते हैं तो पास कैसे होंगे । डॉक्टर बना भी दिया तो मारेंगे या बचायेंगे !
    राजनीति का इससे ज्यादा घिनोना रूप और क्या हो सकता है !

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  3. हाय रे भगवान
    इस देश में ही पैदा करना था तो SC या SSC में क्यों नहीं पैदा किया मुझे :)

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  4. अब तो प्रमोशन में भी आरक्षण है. बाद में नौकरी में आनेवाले ही अपने बॉस बन जाते हैं.

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  5. फ़ेल छात्र डाक्टर बनेंगे तो सोच लीजिये कितने मरीज बचेंगे …………आरक्षण का ये मतलब नही होता कि हर जगह बच कर निकल जाओ …………ऐसे तो जो सच मे लायक है उनकी क्या कीमत रह जायेगी ? और इनसे क्या उम्मीद की जाये जो इतने सालो से पास नही हो पा रहे जबकि पढाई तो एक जैसी की है ना सबने फिर कहाँ कमी रह गयी? कमी है तो सिर्फ़ उनकी निष्ठा मे और लगन मे अब निष्ठा और लगन का तो आरक्षण नही किया जा सकता ना…………यदि ऐसे छात्र आ जायेंगे या पास कर दिये जायेंगे तो सोचा जा सकता है आम जनता का भविष्य किसके हाथो मे है और मरीज का क्या होगा भगवान ही मालिक है। एक प्रश्न उठता है कि यूँ तो सरकार झोलाछाप डाक्टरो के खिलाफ़ मोर्चा निकालती है और दूसरी तरफ़ ऐसे फ़ेल छात्रो को यदि डाक्टर बनाती है तो क्या फ़र्क रह गया उनमे और इनमे? फिर तो उन बेचारो की दुकान भी चलती रहनी चाहिये। अगर ऐसी सोच के साथ देश चलेगा और पढाई होगी तो इस देश को गर्त मे जाने से कोई नही रोक सकता । अनूसूचित जाति हो या ओ बी सी सबको समझना होगा आरक्षण का असल मतलब तभी सार्थक है नही तो जनता यमलोक मे और नेता कुर्सी पर …………फ़र्जी डाक्टर करेंगे ऐश …………जय हिंद्।

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  6. जानबूझकर कदापि फेल नहीं किया जाता है। ऐसे छात्रों को जिन्‍हें कुछ नहीं आता, यदि पास भी कर दिया गया तो भी ये जीवन में कुछ नहीं कर पाएंगे। क्‍योंकि नौकरी में भी सलेक्‍शन के लिए परीक्षा पास करनी पड़ेगी और प्राइवेट दुकानदारी चलेगी नहीं। हाँ आशीष जी का सुझाव अच्‍छा है कि इनको राजनेताओं के लिए आरक्षित कर देना चाहिए।

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  7. जी हाँ,ये डाक्टर केवल उन नेताओं के इलाज के लिए ही आरक्षित होने चाहिये जो इनके आरक्षण का समर्थन करें.

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  8. शिक्षा व्यवस्था में सुधार के नाम पर बस यही बाकी बचा था.

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  9. मेरा खुद सीपीएमटी में 85 फीसदी मार्क्स आने पर भी मेडिकल कॉलेज में दाखिला नहीं हो सका था...लेकिन यहां सिक्के के दूसरे पहलू पर भी सोचा जाए...रिज़र्व्ड कैटेगरी के छात्रों का आरोप है कि सवर्ण मानसिकता एंट्रेंस एग्ज़ाम्स में रिज़र्वेशन के ज़रिए उनके दाखिले को पचा नहीं पाती और इसका बदला ग्रेजुएशन की पढ़ाई के दौरान प्रेक्टिक्लस और इम्तिहान में लेती है...सवर्ण और रिज़र्व्ड कैटेगरी के छात्रों के बीच स्पष्ट विभाजन देखा जा सकता है...अलग अलग कैंप बनाकर रहा जाता है...हमारे संविधान निर्माताओं ने वंचितों के उत्थान और सामाजिक समरसता लाने के उद्देश्य से रिज़र्वेशन का प्रावधान किया था...लेकिन सवाल ये है कि इससे समरसता बढ़ी या विभाजन और मुखर हो गया...मुद्दा आरोप-प्रत्यारोप का नहीं, उन समग्र बिंदुओं पर विचार करने का है कि आख़िर हम सब कहां फेल हो गए...

    जय हिंद...

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  10. इन फेल डाक्टरो को पास कर के सारे नेताओं के इलाज के लिये इन्हे ही "आरक्षित" करना चाहीये। पूरा १००% मरीजो का कोटा नेताओ का!
    ham aashish ji ki baat se sahmat hai..

    jai baba banaras..

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  11. सबसे बेहतर सुझाव तो आशीष जी ने दे दिया।

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  12. aarakshan ka pura faida uthao,

    in doctors se ilaaz kon karayega

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  13. अखबारों में छपे इस तरह के खबरों में कितना सच है कितना झूठ और कितना बातो को तोड़ मरोड़ कर कहा जा रहा है कहा नहीं जा सकता है , वैसे ये भी असंभव नहीं है की चुनावों के ठीक पहले इस तरह का काम किया जाये किसी नेता मंत्री के द्वारा | टिपण्णी में आप की कही बात से बिलकुल सहमत हूँ की वास्तव में नंबर देते समय खास कर प्रेक्टिकल परीक्षाओ में ये सब धांधली हमेसा से होती है और हर जगह होती है जात पात धर्म के साथ ही अपने पसंद के छात्रो को ज्यादा नंबर दिलाना और नापसंद के नम्बरों को कम करवाने का काम भी प्रोफ़ेसर टीचर करते है वो भी आप के ही सामने | टीवी पर ही बिहार के एक हास्टल पर रिपोर्ट देखी थी जंहा मेस में हर जाति के लिए अलग चूल्हा और खाने बनाने वाला था | समाज में आज भी जाति को लेकर लोगो के मन में काफी द्वेष भरा है खासकर इस जाति व्यवस्था के सबसे उच्च और निम्न वर्ग के बीच |

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  14. अगर कुछ अनफेयर हुआ लगता है तो जाँच कराई जाएँ और उसके बाद ही कोई निर्णय लिया जाएँ.लेकिन पहले ही केवल आशंका के आधार पर फेल छात्रों को डिग्री देने की बात करना तो निरी मूर्खता है.क्या यहाँ सवर्ण छात्र सब एक ही प्रयास में सफल हो जाते हैं या उनमें कभी कोई असफल ही नहीं होता?और क्या कोई भी अवर्ण छात्रों में से कोई भी कभी पास नही हुआ?
    भेदभाव वाली बात सही हो सकती हैं लेकिन जाँच तो करवाईये.

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