-देव आनंद- -26 सितंबर 1923- 4 दिसंबर 2011- |
पिछली पोस्ट पर ही गाना लगाया...वहां कौन है तेरा, मुसाफ़िर जाएगा कहां...और आज ख़बर मिली देव साहब का लंदन में....... लिखने की हिम्मत नहीं हो रही कि देव साहब नहीं रहे...वो शख्स जो आखिरी दम तक काम को ही पूजा मानता रहा...कभी अपनी किसी तकलीफ़ को दुनिया के सामने नहीं आने दिया...जब भी दुनिया के सामने आया...एक स्टार की तरह ही...हर वक्त सिर्फ आने वाले कल की सोचता हुआ...बीते कल को धुंए में उड़ाता हुआ...
एक लीडिंग स्टार ने कुछ साल पहले कहा था...
फिल्म इंडस्ट्री में सही मायने में देव साहब ही अकेले स्टार हैं...उनकी फिल्में अब आती हैं और पहले ही शो में दम तोड़ देती हैं...इसके बाद भी वो फिल्में बनाते जाते हैं...बनाते जाते हैं...हमारी एक फिल्म पिट जाए तो हमारे पैरों से ज़मीन निकल जाती है....ये सोच कर कांपने लगते हैं कि कहीं इंडस्ट्री से आउट ही न हो जाएं...और ये शख्स है कि सत्तर साल से फिल्मों को जुनून की तरह जीता आ रहा है...
ये सिलसिला शुरू हुआ...सन 1945 में बाइस साल का युवक पुणे में प्रभात स्टूडियो के पाटर्नर बाबूराव पई के दफ्तर में पहुंचा...और उसे स्टूडियो की नई फिल्म में लीडिंग रोल के लिए साइन भी कर लिया गया...ये वही प्रभात स्टूडियो है जहां अब फिल्म एंड टेलीविज़न इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एफटीआईआई) स्थित है...यही वजह है कि जब नब्बे के दशक में इंस्टीट्यूट ने अपनी सिल्वर जुबली मनाई तो देव साहब को ही चीफ़ गेस्ट के तौर पर इन्वाइट किया था...वहां जहां फिल्म से जुड़ी हर विधा की ट्रेनिंग दी जाती है, वहां देव साहब ने 1945 में बिना किसी ट्रेनिंग के शुरुआत की थी और जो कुछ भी उन्होंने हिंदी सिनेमा के लिए किया, वो खुद ही इंस्टीट्यूशन बन गया...इस दौरान कई स्टार आए और अपनी चमक दिखाकर वक्त के थपेड़ों में गुम हो गए...लेकिन सदाबहार देव चलते गए...चलते गए....इस फिक्र को छोड़ कि दुनिया उनके बारे में क्या कह रही है...नए ज़माने में उनकी फिल्मों का क्या हश्र हो रहा है...उनके कर्म किए जा की थ्योरी उन्हें हर वक्त कुछ नया करने की ऊर्जा देती रही...अपनी पुरानी हिट फिल्मों के रीमेक बनाने की बाबत उनसे एक बार सवाल पूछा गया, तो उनका जवाब था...मैं बीते कल की कभी नहीं सोचता, मेरे लिए आने वाला कल ही सब कुछ है...
सत्तर के दशक में आई फिल्म देस परदेस के बाद देव साहब की कोई फिल्म हिट नहीं हुई...नुकसान कितना भी हुआ हो देव साहब ने अपने नवकेतन फिल्म्स के बैनर को हमेशा उठाए रखा...अपने स्टाफ के लिए प्रतिबद्धताओं को निभाने में कहीं कोई चूक नहीं की...फिल्म इंडस्ट्री में न जाने कितनी हस्तियां हैं, जिनकी प्रतिभा को पहचान कर देव साहब ने ही ब्रेक दिया...ऐसा ही एक वादा देव साहब ने कभी गुरुदत्त से किया था...देव साहब के इसी वादे की वजह से फिल्म इंडस्ट्री को गुरुदत्त जैसा महान निर्देशक मिला...
देव साहब और गुरुदत्त की दोस्ती 1946 में शुरू हुई थी...प्रभात स्टूडियो के बैनर तले देव साहब ने अपनी पहली फिल्म हम एक है की शूटिंग शुरू की थी...उधर, गुरुदत्त ने प्रभात स्टूडियो की निर्देशक विश्राम बेडेकर की फिल्म लखारानी में असिस्टेंट डायरेक्टर और कोरियोग्राफर के तौर पर करियर का आगाज़ किया था...देव साहब और गुरुदत्त, प्रभात में दोनों ही नए थे, इसलिए दोनों में जमकर छनने लगी...वहीं दोनों ने वादा किया कि जो भी पहले प्रोड्यूसर बनेगा, वो दूसरे को सही मायने में ब्रेक देगा...1947 में देव साहब को प्रभात की फिल्म आगे बढ़ो में उस वक्त की लीडिंग हीरोइन खुर्शीद के साथ साइन किया गया...फिर देव 1948 में मुंबई लौटे और उस वक्त के सबसे प्रतिष्ठित माने जाने वाले बैनर बॉम्बे टाकीज की फिल्म जिद्दी साइन की....जिद्दी की कामयाबी ने देव साहब को रातों-रात स्टार बना दिया...एक नई फिल्म साइन करने के लिए उन्होंने दस हज़ार रुपए पेशगी ली और अपने बड़े भाई चेतन आनंद को वो रकम देकर 1949 में हाउस प्रोडक्शन नव केतन की शुरूआत की...
1950 में नव केतन की पहली फिल्म अफसर के लिए रूसी सैटायर 'इंस्पेक्टर जनरल' को चुना गया...चेतन आनंद ने अपनी पत्नी उमा के साथ फिल्म की स्क्रिप्ट भी लिखी और फिल्म को डायरेक्ट भी किया...फिल्म में देव साहब के साथ नायिका के तौर पर उस वक्त की सुपरस्टार सुरैया को चुना गया...उसी वक्त देव साहब और सुरैया का प्यार भी परवान चढ़ा...अफसर से ही संगीतकार सचिन देव बर्मन ने हिंदी सिनेमा में अपने करियर की शुरुआत की थी...देव साहब और सचिन देव बर्मन का फिर लंबे समय तक साथ रहा...
1951 में देव आनंद (मध्य) और गुरुदत्त (दाएं) |
अब तक देव साहब पूरी तरह इस्टैब्लिश्ड हो गए थे तो उन्हें गुरुदत्त से किए अपने वादे की याद आई...1951 तक गुरुदत्त असिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर ही काम करते हुए अच्छे ब्रेक का इंतज़ार कर रहे थे...देव साहब ने तब नवकेतन की अगली फिल्म बाज़ी के निर्देशन के लिए गुरुदत्त को न्योता दिया...इस क्राइम थ्रिलर की स्क्रिप्ट बलराज साहनी ने लिखी थी...इसी फिल्म से गीत लिखने के लिए मशहूर शायर साहिर लुधियानवी संगीतकार सचिन देव बर्मन से जुड़े...इसी फिल्म के दौरान गुरुदत्त की पहली बार मुलाकात पार्श्वगायिका गीता रॉय से हुई जो आगे चलकर उनकी पत्नी बनकर गीता दत्त हो गईं...संयोग से देव साहब की इसी फिल्म के दौरान अपनी भावी पत्नी मोना सिंह (कल्पना कार्तिक) से पहली बार मुलाकात हुई थी जो इस फिल्म की दो नायिकाओं में से एक थीं...कॉमेडियन जॉनी वाकर और असिस्टेंट डायरेक्टर राज खोसला ने भी इसी फिल्म से करियर की शुरुआत की...बाज़ी की जबरदस्त कामयाबी ने नवकेतन को अच्छी तरह इस्टेब्लिश करने के साथ फिल्म से जुड़े सभी नए नामों को भी स्टार बना दिया...इस फिल्म के बाद गुरुदत्त ने अपना प्रोडक्शन हाउस शुरू किया लेकिन देव साहब से उनकी दोस्ती पहले की तरह ही बरकरार रही...
नवकेतन ने अपनी अगली फिल्म आंधियां के संगीत के लिए शास्त्रीय संगीत के बहुत बड़े नाम उस्ताद अकबर अली खां को साइन किया...देव, निम्मी और कल्पना कार्तिक के प्रेम त्रिकोण पर बनी इस फिल्म को कैमरामैन जाल मिस्त्री ने बड़ी खूबसूरती के साथ स्क्रीन पर उकेरा था...लेकिन आंधियां और नवकेतन की अगली फिल्म हमसफ़र बॉक्स आफिस पर कुछ कमाल नहीं कर सकीं...उस वक्त देव आनंद के छोटे भाई गोल्डी (विजय आनंद) सेंट ज़वियर्स कालेज मे पढ़ाई कर रहे थे...सांस्कृतिक गतिविधियों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेने वाले विजय आनंद ने नए आइडियों के साथ नवकेतन की अगली फिल्म टैक्सी ड्राइवर की स्क्रिप्ट लिखने में योगदान दिया...देव, कल्पना कार्तिक, शीला रमानी और जॉनी वाकर की अभिनीत ये फिल्म सुपरहिट साबित हुई...इसका एक गाना जाएं तो जाएं कहां, आज तक लोगों की ज़ुबान पर चढ़ा है...इसी फिल्म की शूटिंग के दौरान देव साहब की कल्पना कार्तिक से शादी हुई...इसके बाद नवकेतन ने हाउस नंबर 44 और फंटूश का निर्माण किया...तब तक विजय आनंद ग्रेजुएट हो गए थे...विजय आनंद ने एक दिन बड़े भाई से कहा कि उनके पास स्क्रिप्ट तैयार है, लेकिन उसके निर्देशन की ज़िम्मेदारी उन्हें ही सौंपी जाए...मुंबई से महाबलेश्वर जाते हुए विजय आनंद ने देव साहब को स्क्रिप्ट सुनाई...महाबलेश्वर में फ्रैड्रिक्स होटल देव साहब का छुट्टियों का प्रिय ठिकाना हुआ करता था...होटल पहुंचते ही देव साहब ने मुंबई नवकेतन के दफ्तर में फोन कर कहा कि अगली फिल्म की शूटिंग के लिए तैयारी की जाए..
फ्रैंक केपरा की रचना इट्स हैप्पन्ड वन नाइट से प्रेरित ये रोमांटिक स्टोरी थी नौ दो ग्यारह...1957 में रिलीज़ इस फिल्म की शूटिंग मुंबई से दिल्ली तक फिल्म की यूनिट ने सड़क के रास्ते ड्राइव करते हुए पूरी की...कल्पना कार्तिक की ये आखिरी फिल्म थी...तब तक गुरुदत्त के असिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर शुरुआत करने वाले राज खोसला भी निर्देशक बन गए थे...राज खोसला ने उन्हीं दिनों गुरुदत्त की प्रोड्यूस की फिल्म सीआईडी का निर्देशन किया था...इस फिल्म में देव आनंद की हीरोइन वहीदा रहमान (गुरुदत्त की खोज़) थीं...राज खोसला की प्रतिभा को देखकर ही देव साहब ने नवकेतन की अगली फिल्म काला पानी के निर्देशन की ज़िम्मेदारी उन्हें सौंपी...काला पानी में देव साहब के साथ मधुबाला और नलिनी जयवंत ने अभिनय किया...काला पानी में अभिनय के लिए ही देव आनंद को पहला फिल्मफेयर अवार्ड मिला...इसी दौर में देव आनंद का शुमार दिलीप कुमार और राज कपूर जैसे बड़े नामों के साथ हिंदी सिनेमा की त्रिमूर्ति के तौर पर होने लगा था...
(....जारी है देव आनंद का गोल्डन सफ़रनामा)
चिर युवा सिने अभिनेता देवानन्द जी को श्रद्धांजलि!
जवाब देंहटाएंनमन उन्हें!
जवाब देंहटाएंकिया है मैने ये गुनाह परदे के पीछे से आया था परदे के पीछे चला गया………विनम्र श्रद्धांजलि।
जवाब देंहटाएंदेव साहब बरसों भारतीय जनमानस पर छाये रहे ....
जवाब देंहटाएंकितने उदास चेहरों को उन्होंने हंसाया होगा इसका कोई हिसाब नहीं ....
उन्हें हार्दिक श्रद्धांजलि !
अभी न जाओ छोड़ कर के दिल अभी भरा नहीं ......देव साहेब ..तुम्हारी कमी हमेशा रहेगी ...
जवाब देंहटाएंदेव साहब अपने जैसे अकेले शख्स थे। मुझे एक से अधिक ऐसे मुकदमे लड़ने को मिले जिन में एक पक्षकार का नाम "अअअअ उर्फ देवानंद" था। उन का ये उर्फ केवल देवानंद की स्टाइल को अपनाने के कारण मिला था।
जवाब देंहटाएंहम कल ही याद कर रहे थे, गाइड के संवाद- ये लड़की कौन है, 'रोजी', इसाई है, 'दुखियारी है मां'
जवाब देंहटाएंअंत तक उनके सक्रिय युवा बने रहने की प्रेरणा हमारे साथ रहेगी.
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जवाब देंहटाएंनमन एवं श्रद्धांजलि!....एक युग का अंत!!
जवाब देंहटाएंहिंदी सिनेमा के एक युग का अवसान।
जवाब देंहटाएंश्रध्दांजलि.......
विनम्र श्रद्धांजलि
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