वहम से हारा हकीम लुकमान...खुशदीप




मैं जब मेरठ में प्रिंट मीडिया में था तो मेरे साथ एक सज्जन काम करते थे...अच्छे रिपोर्टर-पत्रकार थे...लेकिन उनके अंदर न जाने कैसे ये वहम बैठ गया कि ऑफिस में हर शख्स उनके खिलाफ साज़िश में लगा हुआ है...उनकी योग्यता से जलता है, इसलिए उन्हें आगे न बढ़ने देने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाए जा रहे हैं...अब उन जनाब को कौन समझाता, काम के दौरान हर एक की जान को इतने टंटे रहते हैं कि वो उन्हें भुगताए या किसी दूसरे की सोचता रहे...लेकिन नहीं साहब...वो कहते हैं न वहम का इलाज हकीम लुकमान के पास भी नहीं होता...यही हालत उन जनाब की थी...

कोई उन्हें कभी नेक सलाह देने की कोशिश भी करता तो उन्हें उसमें भी चाल नज़र आती...धीरे-धीरे वो जनाब अपनी ही दुनिया में ही सिमटते चले गए...हर कोई उनसे कतराने लगा...ये उनके लिए और भी घातक साबित हुआ...अब वो आफिस से बचने के लिए तरह-तरह के बहाने बना कर छुट्टी लेने लगे...जाहिर है इस सबसे उनके काम पर असर पड़ा...प्रोग्रेस रिपोर्ट खराब गई तो बुज़ुर्ग बास से खफ़ा हो गए कि जानबूझ कर उन्हें निशाना बनाया गया...

एक अच्छे खासे शख्स ने खुद को तमाशा बना लिया...हर जगह मुफ्त का तमाशा देखने वाले कुछ तमाशबीन भी होते हैं...ये तमाशबीन हमेशा उस बेचारे को ताड़ पर चढ़ाते रहते कि उसके जैसी कॉपी तो कोई लिख ही नहीं सकता...उसके जैसी नॉलेज किसी के पास नहीं है...धीरे-धीरे ये सारी परिस्थितियां इतनी हावी हो गई कि उन्होंने इस्तीफ़ा देने की ठान ली...बॉस समझदार थे, उन्होंने एडजस्ट करने की पूरी कोशिश की...यहां तक कहा कि इस्तीफा मत दो, चाहो तो लंबी छुट्टी पर चले जाओ...लेकिन वो कहां मानने वाले...इस्तीफा दे ही दिया...छोटा शहर था, उनके किस्से दूसरे अखबारों तक पहुंच गए थे...इसलिए जहां भी नौकरी के लिए गए, वहां ही हाथ जोड़ दिए गए...

हमारे बॉस ने उन्हें संदेश भी भिजवाया, लेकिन उन्होंने वापस आना हेकड़ी के खिलाफ समझा...इस बीच मैं भी मेरठ छोड़कर नोएडा सैटल हो गया...बाद में पता चला कि वो जनाब अपने मूल शहर लौट गए थे और अपने पुश्तैनी धंधे में ही घरवालों का हाथ बंटाने लगे ....लेकिन उनके इस एपिसोड से सीखने को बहुत मिला...

1. Respect yourself but never fall in love with you...

2. जिसे हम सही समझते है, हमेशा वही सही नहीं होता...

3. ताड़ पर चढ़ाने वाले प्रशंसकों से कहीं बेहतर हैं आइना दिखाने वाले आलोचक...

4. त्वरित प्रतिक्रिया से बचना चाहिए और बिना परखे किसी के बारे में धारणा नहीं बना लेनी चाहिए...

5. बुज़ुर्ग बॉस ने अपने बाल यूहीं धूप में सफेद नहीं किए थे...

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16 टिप्पणियाँ
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  1. बहुत पते की बात बताई है आपने खुशदीप भाई.
    बार बार मनन कर रहा हूँ.

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  2. बात पुरानी है, पर कई लोगों को कभी समझ नहीं आती।

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  3. अच्‍छी सीख मिली आपकी इस पोस्‍ट से।
    आभार.............

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  4. @ Respect yourself but never fall in love with you...

    इस बीमारी से बचना बड़ा मुश्किल है खुशदीप भाई !

    सर्वश्रेष्ठ होने का भ्रम पाले हम लोग अक्सर अपने प्यारो तक से उलझते नज़र आते हैं !

    आसपास के बाकी लोग कीड़े मकोड़े नज़र आते हैं जो इधर उधर रेंगते हुए महायोगी के ध्यान को भंग करने का प्रयत्न करते रहते हैं ! इन कीड़े मकोड़ों पर बहुत गुस्सा आता है !

    क्या मैं गलत कह रहा हूँ ??

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  5. @ जिसे हम सही समझते है, हमेशा वही सही नहीं होता...

    हमें लगता है कि दुनियां के बारे में हमारी जानकारी और स्वभाव पढने, भांपने की क्षमता ,का आकलन कम बुद्धि वाले लोगों द्वारा नहीं करना चाहिए !

    आंकने का काम वही कर सकते हैं जो मुझसे अधिक विद्वान् हों !

    कौन हैं यहाँ ?

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  6. @ताड़ पर चढ़ाने वाले प्रशंसकों से कहीं बेहतर हैं आइना दिखाने वाले आलोचक...


    वाह खुशदीप जी ,
    इसका मतलब तो यह हुआ कि जो विद्वान् हैं उन्हें छोड़ कर, मैं मूर्खों से राय लूं जो मेरी क्षमता जानते ही नहीं ??

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  7. @ त्वरित प्रतिक्रिया से बचना चाहिए और बिना परखे किसी के बारे में धारणा नहीं बना लेनी चाहिए...

    विद्वानों को सोंचने का समय नहीं होता आप समझ नहीं पायेंगे कि...

    सारे जहां का दर्द हमारे जिगर में है ....बहुत काम करना है !

    हो सकता है कहीं भूल हो गयी हो मगर फर्क इतना ही होगा कि नाली के कीड़े को सीवर का कीड़ा बता दिया होगा ...

    इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ता , बहरहाल खेद व्यक्त कर देते हैं आप उस कीड़े को बता दें !

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  8. खुशदीप भाई --

    सीख उसको दीजिये , जाको सीख सुहाय
    सीख दी थी बांद्रा , घर बैया का जाय .

    दुनिया मे बहुत लोग है जो खुद को बहुत ज्ञानी समझते हैं लेकिन होते नहीं .
    आस पास के चाटुकार/ तथाकथित हितैषी/ तमाशबीन उन्हें समझने भी नहीं देते .
    अहंकार मनुष्य का सबसे बड़ा दुश्मन होता है . यह तो रावण को भी ले डूबा था .

    इस पोस्ट से किस किस्म की गंध आ रही है , यह तो ज्ञानी लोग ही बता सकते हैं .

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  9. यह जीवन का सत्‍य है। ना यह समाप्‍त होगा और ना ही घटेगा बस यदि विवेक साथ है तो हम जरूर बच सकते हैं।

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  10. आपसे पूरी तरह से सहमत।

    jai baba banaras...

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  11. बहुत अच्छी पोस्ट के साथ
    सार्थक है पांच सूत्र !

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  12. अब हम का कहिं? सभी विद्वानों की बातें विचारणीय हैं. इस पोस्ट से ऐसा लगता है कि आपको भी हिट लिस्ट में शामिल होने की शुभेच्छा होने लगी है. वैसे मज़े उन बंदरों के ही हैं जो ऐसे मौकों पर रोटी पर नज़र गढ़ाकर बैठ जाते हैं.

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  13. बहुत ही सीख और समझ देने वाली पोस्ट और अनुभव बयां किया आपने खुशदीप भाई । ..सच जीवन बहुत कुछ सिखाता है बस असल बात ये है कि हम उसे सीखते कैसे हैं , शुक्रिया और शुभकामनाएं

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