देश एक, प्रधानमंत्री अनेक...खुशदीप

सरकार ने टीम अन्ना के जनलोकपाल बिल की ये कह कर घिच्ची घोप दी कि सिविल सोसायटी देश की संसदीय परंपरा और संविधान से ऊपर नहीं हो सकती...सीपीआई जैसे इक्का दुक्का दलों को छो़ड़ कर देश की तमाम सियासी पार्टियों ने भी सरकार के ही सुर में सुर मिलाया...मुख्य विपक्षी दल बीजेपी का रवैया तो सबसे विचित्र रहा...अन्ना हज़ारे से बीजेपी का पूरा कुनबा मिला...लेकिन सरकार की बुलाई सर्वदलीय बैठक में बीजेपी ने ही सवाल दागा कि आखिर सिविल सोसायटी को सरकार ने इतना भाव ही क्यों दिया था...सरकार ने पहले राजनीतिक दलों से ही राय ले ली होती तो सिविल सोसायटी का गुब्बारा फूलने से पहले ही पंचर हो जाता...खैर छोड़िए ये सब....क्या सरकार और क्या दूसरे राजनीतिक दल अपने हर काम को जायज़ ठहराने के लिए संसद और संविधान की दुहाई देते हैं...चलिए मान लेते हैं इनकी बात...लेकिन संविधान ये भी तो कहता है कि मंत्रियों को चुनने का विशेषाधिकार सिर्फ प्रधानमंत्री के पास ही होता है...लेकिन क्या हमारे देश के मौजूदा प्रधानमंत्री के विवेक से ही मंत्री बन रहे हैं और हट रहे हैं...या देश में कुछ 'सुपर प्रधानमंत्री' भी हैं जिनके आगे प्रधानमंत्री भी लेमडक (लुंजपुंज) हो जाते हैं...



सोनिया गांधी के हाथ में पीएम का रिमोट कंट्रोल होने का रोना तो विपक्षी दल रोज़ ही रोते रहते हैं...सोनिया के सुपर होने की बात से पीएम भी इनकार नहीं करते...2009 में यूपीए की दूसरी पारी शुरू हुई तो नीरा राडिया टेपकांड के ज़रिए सच सामने आया कि ए राजा को किस तरह मंत्री की कुर्सी मिली...राजा के नाम पर प्रधानमंत्री ने करुणानिधि से खुले तौर पर नाराज़गी भी जताई लेकिन करुणानिधि ने उन्हें वीटो कर राजा को ही मंत्री बनाया...यानि यहां 'सुपर प्रधानमंत्री' करुणानिधि साबित हुए...

लेकिन इस बार जो हुआ, वो तो पहले इस देश में कभी नहीं हुआ था...एक अदना से मंत्री ने प्रधानमंत्री को ही अंगूठा दिखा दिया...रविवार को यूपी के मलवां और असम के रांगिया में एक ही दिन में दो ट्रेन हादसे हुए...प्रधानमंत्री ने रेल राज्य मंत्री मुकुल राय (नए फेरबदल में सिर्फ शिपिंग राज्य मंत्री) को पहले निर्देश दिया कि मलवां में राहत कार्यों में कोई कसर न छोड़ी जाए...मुकुल राय के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी..जबकि रेल राज्य मंत्री के नाते उत्तर प्रदेश उन्हीं के कार्यक्षेत्र में आता था...प्रधानमंत्री को झक मार के दूसरे रेल राज्य मंत्री मुनियप्पा को मलवां भेजना पड़ा...प्रधानमंत्री ने फिर मुकुल राय से असम के रांगिया जाने के लिए कहा तो भी उन्होंने कोई तवज्जो नहीं दी...किसी पत्रकार ने सवाल पूछा तो कार का दरवाज़ा ये कहते पटक कर आगे बढ़ गए...रेल मंत्री मैं नहीं प्रधानमंत्री खुद हैं...

ममता बनर्जी के पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बनने के बाद से रेल मंत्रालय का पदभार प्रधानमंत्री के पास ही था...प्रधानमंत्री असम से ही राज्यसभा सांसद हैं...इसी वजह से भी वो मुकुल राय को असम भेजना चाहते थे...लेकिन मुकुल राय ने रविवार को कोलकाता जाकर अपनी आका ममता बनर्जी के साथ जंगलमहाल क्षेत्र के दौरे को तरजीह दी...प्रधानमंत्री को ये ठगा सा जवाब दे दिया कि मैंने नार्थईस्ट फ्रंटियर रेलवे के जनरल मैनेजर से बात कर ली है वहां सब ठीकठाक है, कुछ लोग मामूली तौर पर घायल हुए हैं, इसलिए वहां मेरे जाने की ज़रूरत नहीं है...मुकुल राय ने एक बात और कही कि वो हावड़ा स्टेशन पर आने वाले घायलों की खोजखबर ले रहे थे...यानि हावड़ा से आगे उन्हें कुछ और नज़र आता ही नहीं...मुकुल राय ने जिस तरह प्रधानमंत्री के कद को बौना किया उससे यही लगता है कि उनकी नज़र में सिर्फ एक ही 'सुपर प्रधानमंत्री' हैं- ममता बनर्जी...इस मामले में ममता बनर्जी ने भी प्रधानमंत्री की गरिमा का ध्यान रखने की जगह जिस तरह मुकुल राय का बचाव किया वो दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा...तृणमूल कांग्रेस ने आधिकारिक बयान में कहा कि रांगिया में राहत कार्य पूरा हो गया था, इसलिए मुकुल राय वहां नहीं गए...इतना सब होने के बावजूद प्रधानमंत्री की हिम्मत नहीं हुई कि रेल मंत्रालय की ज़िम्मेदारी कैबिनेट मंत्री के नाते किसी कांग्रेसी नेता को सौंप सकें...तृणमूल के दिनेश त्रिवेदी को ही रेल मंत्रालय सौंपा गया..

डीएमके के 'सुपर प्रधानमंत्री' करुणानिधि बेटी कनिमोझी के जेल जाने को लेकर इतने नाराज हैं कि उन्होंने ये बताना ही मुनासिब नहीं समझा कि डीएमके से किन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया जाए...राजा और दयानिधि मारन की छुट्टी के बाद खाली हुए मंत्रालयों को भरने की भी हिम्मत प्रधानमंत्री की नहीं हुई...प्रधानमंत्री का कहना है कि डीएमके के लिए दो कैबिनेट पद रिक्त रखे जा रहे हैं...राजा और मारन ने भी तभी इस्तीफा दिया था जब चेन्नई से करुणानिधि ने उन्हें ऐसा करने के लिए कहा था...ऐसे ही अगर एनसीपी के मंत्रियों या सांसदों का भी मामला होगा तो उनके लिए शरद पवार का हुक्म ही पत्थर की लकीर होगा न कि प्रधानमंत्री का...चलो ये तो रहे सहयोगी दल...कांग्रेस को केंद्र में सरकार चलाने के लिए समर्थन देने के बदले आंखें तरेर सकते हैं...लेकिन मंत्रिमंडल में मंगलवार को फेरबदल के बाद कांग्रेस के ही श्रीकांत जेना, गुरुदास कामत, वीरप्पा मोइली ने जिस तरह बगावती तेवर दिखाए हैं, उनसे तो यही लगता है कि अपनी पार्टी में भी प्रधानमंत्री की बात को काटने वालों की कमी नहीं है...क्या अब भी प्रधानमंत्री कहेंगे कि मैं मजबूर नहीं मज़बूत प्रधानमंत्री हूं...

स्लॉग ओवर

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह दांत दुखने पर डेंटिस्ट के पास गए...

डेंटिस्ट ने मुआयने के लिए प्रधानमंत्री से मुंह खोलने के लिए कहा...

प्रधानमंत्री वैसे ही बैठे रहे...अब डेंटिस्ट एक्ज़ामिन कैसे करे...

थोड़ी देर इंतज़ार करने के बाद डेंटिस्ट हार कर बोला...सर, कम से कम यहां तो अपना मुंह खोल दीजिए...

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13 टिप्पणियाँ
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  1. आदत भला कैसे छोड़ दें...भले ही डेन्टिस्ट के सामने ही क्यूँ न हो!!! :)

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  3. इस कमजोर प्रधानमंत्री पर कमेन्ट करना प्रधानमंत्री पद की गरिमा घटाना होगा इसलिए राजनीतिज्ञों के उलट नो कमेन्ट !!

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  4. व्यक्ति की वजाय पद की गरिमा आवश्यक है .....शुभकामनायें आपको !

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  5. लो जी मुह खोला.
    मैं कमजोर प्रधानमंत्री नहीं.
    मेरे मुहँ में भी पूरे दांत हैं.
    आप अपनी कहते रहें,मुझे तो कान बंद करके रखने की आदत है.

    आप मेरे ब्लॉग पर अभी तक नहीं आये.

    'ये अच्छी बात नहीं है'

    यह मैं नहीं कह रहा,अटल जी की टेप की हुई आवाज सुनाई पड़ रही है.

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  6. समसामयिक विषयों पर आपकी पकड़ बहुत बढ़िया है...

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  7. खुशदीप भाई, असल में सुपर प्रधानमंत्री का हक केवल और केवल जनता को है, और यही लोकतंत्र की खूबी है... लेकिन जनता खुद सोई हुई है तो किसी को क्या जगाएगी? सरकार भी तो जनता का ही आइना होती है... जैसा समाज वैसी सरकार....

    आज हमें अपने वोट की कीमत को समझने की ज़रूरत है, केवल भावनाओं में बहकर वोट देने का ज़माना जल्द से जल्द नहीं गया, तो कोई बदलाव नहीं आने वाला...

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  8. जहाँ गठबंधन से सरकार बनेगी, वहां देश का नहीं, नेता खुद अपने विकास पर ही ज्यादा ध्यान देंगे.. और ऐसी लुंजपुंज सरकार और प्रधानमन्त्री के होने से तो बेहतर है कि वो हो ही न.. पर फिर और कौन होगा? बी.जे.पी?? हाहाहा..

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  9. मनमोहन सिंह के ईमानदार होने की चाहे जितने भी गुब्बारे फुलाए जाये किन्तु उन्होंने इस पद की गरिमा को और गिराया ही है अपने ही दल के लोगो के आगे उनकी कुछ नहीं चलती है तो दूसरो को क्या कहेंगे | जब व्यक्ति खुद दूसरो के आगे नतमस्तक हो तो कोई उसको क्या सम्मान देगा वो इतने भी राजनीति के कम जानकार नहीं है की सोनिया के बिना पूछे कुछ कर ही ना सके पर असल में कांग्रेसियों के रगों ही चमचागिरी दौड़ती है उन्हें कितना भी बड़ा पद दे दिया जाये वो आलाकमान के आगे कठपुतली ही बन जाते है |

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  10. व्यक्ति की वजाय पद की गरिमा आवश्यक है .....शुभकामनायें आपको !

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  11. मैडम से पूछना पड़ेगा मुह खोले या पचा ले जाये..
    समय की बर्बादी है मौन भाई पर कुछ लिखना ..

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