ई है मुंबई नगरिया तू देख बबुआ...
पिछले हफ्ते मायानगरी से एक साथ दो खबरें आईं...मुझे इनमें गज़ब का कंट्रास्ट दिखा...आप भी देखिए...
एंटिला
भारत के सबसे ज़्यादा और दुनिया के चौथे नंबर के अमीर शख्स मुकेश अंबानी ने पिछले हफ्ते मुंबई में अपने नए घर एंटिला में रहना शुरू कर दिया...
बेबीलोन के हैंगिंग गार्डन्स से प्रेरित होकर मुंबई के अल्टामाउंट रोड पर बनाया गया 27 मंजिला ये घर दुनिया का सबसे कीमती घर है...कुल 43 अरब डॉलर संपत्ति के मालिक मुकेश अंबानी के इस घर पर दो अरब डॉलर यानि नब्बे अरब रूपये से ज़्यादा का खर्च आया है...570 फुट ऊंची इस इमारत में तीन हेलीपैड, नौ लिफ्ट, एक सिनेमा हॉल, एक हेल्थ क्लब, 168 कारों की पार्किंग के लिए जगह है...पूरे घर में चार लाख वर्ग फुट स्पेस है...घर में मुकेश अंबानी, उनकी पत्नी नीता, मां कोकिला बेन और तीन बच्चे यानि कुल छह सदस्य रहेंगे...इन छह सदस्यों के लिए 600 लोगों का स्टॉफ भी घर में मौजूद रहेगा...इस घर को बनने में सात साल लगे...कीमत के मामले में दुनिया में और कोई भी घर एंटिला के सामने दूर-दूर तक कहीं नहीं टिकता...सबसे नज़दीकी की बात करें तो वो न्यूयॉर्क के पियरे होटल में 70 करोड़ डॉलर का ट्रिप्लेक्स पैंटहाउस है...
धारावी
पिछले हफ्ते ही मुंबई से एक और ख़बर आई कि महानगर की 1.43 करोड़ आबादी में से 90 लाख लोग यानि 62 फीसदी मलीन बस्तियों (स्लम्स) में रह रहे हैं...पिछले एक दशक में ही मुंबई के स्लम में रहने वाले लोगों की तादाद 60 लाख से 90 लाख पहुंच गई है...यानि 50 फीसदी का इज़ाफ़ा...दुनिया के सबसे बड़े स्लम्स में एक धारावी भी इसी मुंबई में है...
यहां एक वर्ग किलोमीटर के इलाके में ही 60 से 80 लाख लोग रहते हैं...यानि 225 वर्ग फुट में ही 15-15 लोगों को रहना पड़ता है... यहां औसतन 1440 लोगों के लिए एक शौचालय है...
स्लॉग ओवर
मक्खन तबीयत सही महसूस नहीं कर रहा था...डॉक्टर के पास पहुंच गया...डॉक्टर के सामने बैठा तो डाक्टर ने पूछा कि आपका पैट (पालतू पशु) कहां हैं...
मक्खन...पैट का नहीं अपना ही इलाज कराने आया हूं...
डॉक्टर...अरे भाई, फिर आप गलत जगह आ गए हो...मैं इनसानों का नहीं पशुओं का डॉक्टर यानि वेटेनरी स्पेशलिस्ट हूं...
मक्खन...मैं सुबह उठने के बाद घोड़े की तरह दौड़ना शुरू करता हूं...दिन भर गधे की तरह काम में जुटा रहता हूं...गैराज में अपने स्टॉफ पर कुत्ते की तरह भौंकता रहता हूं...घर आता हूं तो बच्चों के सामने बंदर की तरह नाचता हूं...किचन से शेरनी की दहाड़ सुनता रहता हूं...क्या आप ये सुनने के बाद भी यही कहेंगे कि मैं गलत जगह आया हूं...
मुंबई एक, चेहरे दो...खुशदीप
26
गुरुवार, अक्टूबर 28, 2010
मुंबई का बेहतरीन कंट्रास्ट सामने रखा। स्लॉगओवर हमेशा की तरह जानदार।
जवाब देंहटाएंजै हो...
पशुवत जीने वाले पशु से कम नहीं
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएं:-)
जवाब देंहटाएंइन के बंगला मेरे पैसे से बना है. उननचास रुपये जो मेरे खाते से काट लिया जबरदस्ती कालर ट्यून चेंप के.
जवाब देंहटाएंयही है समाजवादी देश में पूंजीवाद की चमक का मजा और आपका चुटकुला तो सोने पर सुहागा !
जवाब देंहटाएंधारावी में तो ये हालत है कि लोग घर में शिफ़्टों में रहते हैं, सोते हैं, नहाते हैं, मजबूरी जो न कराये वो कम है और बात करें शौचालयों की तो स्थिती वाकई बहुत खराब है।
जवाब देंहटाएंस्लाग ओवर के दस मे से दस नम्बर। इस मुम्बई के कन्ट्रास्ट को देख कर आँखें नम है और सिर शर्म से झुक गया है आदमी कितना स्वार्थी हो जाता है कई बार। अगर यही अम्बानी इस बिल्डिन्घ की के दो मंजिलें कम बना लेता तो एक बस्ती के लिये सुविधायें तो जुटा ही सकता था। शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंजिस शहर में आप सरकारी जमीन पर गैर क़ानूनी तरीके से झोपड़े बनाये और कुछ सालो बाद फिर आप को वोट देने के बदले बाकायदा २५० स्कवायर फिट का अच्छा खासा फ़्लैट दे कर क़ानूनी बना दिया जाये तो आप को क्या लगता है की वहा पर स्लम नहीं तो और क्या पढ़ेगा | सरकार के मिले फ़्लैट को ये या तो किराये पर दे या बेच कर वापस कही और झोपड़ा बना कर रहने लगते है एक और फ़्लैट की आस में ये झोपड़े भी बिकते है और इनकी कीमत भी लाखो में होती है लोग खरीदते भी इस आस में की एक दिन इसके बदले उनको अच्छा मकर सरकार दे दगी और तब तक के लिए इसे किराये पर दे देते है |
जवाब देंहटाएंचुटकला पसंद आया, ऊपर वाली खबर... हक मार कर करोडो का लोग केसे शान से जीते हे, यह भी देख लिया
जवाब देंहटाएं@अंशुमाला जी,
जवाब देंहटाएंवाकई स्लम्स में रहने वाले इन लोगों को जीने का कोई अधिकार नहीं...क्यों नहीं ये चांदी का चम्मच मुंह में लेकर पैदा हुए...अब पढ़े लिखे नहीं तो इसमें हमारा या सरकार का क्या कसूर...दुनिया में ये मुंहमांगी दुआ के ज़रिए कोई आए हैं, ये तो अनसुनी फरियाद हैं...आप ठीक कह रही हैं कि ये बड़े लालची होते हैं...उन वीवीआईपी से भी ज़्यादा जो कोलाबा जैसे इलाके में शहीदों की विधवाओं के नाम पर ली गई ज़मीन पर आदर्श हाउसिंग सोसायटी की इमारत में कौड़ियों के दाम पर फ्लैट्स ले लेते हैं...इन स्लम वाले अवांछित लोगों के नाम पर सरकार और भू-माफिया फ्लैट्स बनाने वाले करोड़ों के वारे-न्यारे कर लेते हैं तो ये तो कौन सा गुनाह कर लेते है...वो तो उनका जन्मसिद्ध अधिकार है...१९७१ में इंदिरा गांधी ने नारा दिया था- गरीबी हटाओ...आज मनमोहनी इकनोमिक्स को नारा देना चाहिए-गरीब हटाओ...
आपसे अनुरोध मेरी बात को मतभेद की तरह ही लें, मनभेद की तरह नहीं...
जय हिंद...
स्लम और गरीबी को जिन्दा रखना इन स्वार्थी नेताओं और पूंजीपतियों के लिए जरूरी है ...ये जिसदिन ख़त्म हो जायेंगे उस दिन स्वार्थी नेता और पूंजीपति भी कब्र में दफ़न हो जायेंगे...
जवाब देंहटाएंएंटिला एक प्रतीक है इंसानियत की कब्र पे बनी एक शानदार ईमारत की .....इंसानियत को कब्र में दफनाये वगैर किसी की मजाल नहीं की ऐसी ईमारत बना ले.....मुकेश अम्बानी को बधाई देनी होगी और कांग्रेस की सरकार की सराहना करनी होगी की इन दोनों के गठजोड़ ने इंसानियत को पूरी तरह दफ़न करने में कोई कसर बांकी नहीं रखा है ....
bahut dard hai jamane main kis kis ka baya karu.
जवाब देंहटाएंReal contrast of india for indian thinkers.
Think it or forget it.
अपनी भ्रष्टाचार और काली कमाई का प्रदर्शन करना शर्मनाक और समाज के आदर्शों को तोडने वाला है। कुछ लोग देश बनाने के लिए अपना सबकुछ त्याग कर देते हैं और ये अपना सबकुछ बनाने के लिए देश तक का त्याग कर देते हैं। ना धारावी का मानसिकता सही है और ना मुकेश अम्बानी की।
जवाब देंहटाएंउफ़ बेचारा मक्खन ..सच ही तो कह रहा है.
जवाब देंहटाएंऔर ये दो रूप मुंबई के ही नहीं हमारे समाज के भी हैं .
ये आर्थिक विषमता धीरे धीरे बढ़ ही रही है .... और वो दिन दूर नहीं जब आर्थिक सामर्थ्य ही जीने का आधार होगा !
जवाब देंहटाएंसोचनीय पोस्ट !
@खुशदीप जी
जवाब देंहटाएंमैंने लेख मै बस इतना ही पढ़ा की स्लम बढ़ रहा है और कितना बढ़ रहा है उसमे रहने वालो के जीवन या किसी अन्य बात का जिक्र नहीं है इस लिए मैंने टिप्पणी भी वही तक सिमित रखी कि स्लम के बढ़ने का क्या कारण है | मैंने ये भी नहीं लिखा कि स्लम के बढ़ने का एक मात्र कारण यही है और ये भी लिखा है की कुछ लोग इसमे रहते नहीं है बस खरीद कर किराये पर दे देते है वो पैसे वाले ही है | जो मैंने लिखा है उसमे कितनी जमीनी सच्चाई है वो आप पता कर सकते है |
कुछ चीजे स्पष्ट कर करना चाहती हु खुशदीप जी | अभी हाल ही में मैंने मुस्लिमो के लिए एक लेख लिखा तो मुझे हिन्दू विरोधी बना दिया गया | मुझे याद है मैंने आप के एक लेख पर लिखा था की "अमीर होना गुनाह मत बनाइये" तो शायद ये मान लिया गया की मै गरीब विरोधी हु | जी नहीं मै सभी को समान रूप से देखे जाने का पक्ष लेती हु कोई अमीर है तो ख़राब ही होगा दूसरो का पैसा ले ले कर ही अमीर हुआ होगा अत्याचारी होगा या कोई गरीब है तो बड़ा बेचारा है लाचार है दुनिया का सताया है उस पर दया करो और उसके सारी गलती माफ़ करो वाला मेरा नजरिया नहीं है | अन्याय किसी के साथ भी हो सकता है सबको बराबर न्याय मिलाना चाहिए और लालची और बेईमान होने की खूबी पर अकेले अमीरों का हक़ नहीं है इस मामले में सब बराबर है फर्क बस मौका मिलने का है किसी को मौका ज्यादा मिलता है तो किसी को कम |
मै बस सिक्के का वही पहलू नहीं देखती जो दिखाया जा रहा है वो भी देखती हु जो नहीं दिखाया जा रहा है | अभी आप ने ही तो कल कहा है लिक से जरा हट कर सोचने को मै हमेसा वही करती हु | विषय से हट कर कहने और लम्बी टिप्पणी के लिए माफ़ी चाहती हु | आप चाहे तो इसे हटा दीजियेगा वरना यहाँ से भी पोस्ट तोडू का तमगा मिल जायेगा |
ये दो चहरे किस नगर - शहर के नहिं है, फ़िर बदनाम मुंबई ही क्यों।
जवाब देंहटाएंyeh mumbai hee nahi, is mulk ke har chote bade saharo kee kahani hai,
जवाब देंहटाएंaap chahe delhi , calcutta, chennai, ko dekhiye
ya phir lucknow patna, bhopal ko,
ya phir chote sahar khandwa(mp), badaun(up), darbhanga(bihar)
sahar ke size ke hisab se slum hai,
iske jimmedar bhi sarkar ke saath hum hai,
.
जवाब देंहटाएं.
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खुशदीप जी,
गजब का कंट्रास्ट तो है... पर उम्मीद करता हूँ कि आप यह तो नहीं ही कह रहे होंगे कि मुंबई के स्लम एंटिला या उसमें रहने वालों के कारण बढ़ रहे हैं।
अंशुमाला जी जब यह कहती हैं कि:-
"लालची और बेईमान होने की खूबी पर अकेले अमीरों का हक़ नहीं है इस मामले में सब बराबर है फर्क बस मौका मिलने का है किसी को मौका ज्यादा मिलता है तो किसी को कम |"
तो उनसे सहमत होने के लिये कोई ज्यादा प्रयास नहीं करना पड़ता... ईमानदारी एक जीवन मूल्य के तौर पर चलन में नहीं रही है हमारे देश में... कड़वा तो है पर यही सत्य है!
आभार!
...
कहीं धूप तो कहीं छाँह।
जवाब देंहटाएंमुंबई के दोनों चेहरे दिखाने का धन्यवाद् .पसंद आया अंदाज़
जवाब देंहटाएं@अंशुमाला जी,
जवाब देंहटाएंकम से कम इतना भरोसा तो मेरे पर रखिए कि कभी मैं किसी की टिप्पणी को डिलीट नहीं करूंगा...मैं तो आपके विचारों का सम्मान करता हूं...पहले भी कह चुका हूं कि यही सही ब्लॉगिंग है...खुल कर हम सब अपने विचार रखें...सिर्फ प्रशंसा मात्र से ब्लॉगिंग का उद्देश्य पूरा नहीं होता...आप ये तो मानेंगी कि जैसे आपको अपनी सोच रखने का हक़ है, वैसे ही मुझे भी है...
मैंने ये कहीं नहीं कहा कि स्लम बढ़ने के लिए अमीर ज़िम्मेदार हैं...मेरा ये कहना है स्लम बसाने के लिए भी राजनीति ज़िम्मेदार है और स्लम को हटाकर लोगों को अन्यत्र बसाने के पीछे होने वाले खेल के लिए भी राजनीति और भू-माफियाओं का गठजोड़ ज़िम्मेदार है...देश में अमीर और गरीब के बीच जो खाई चौड़ी होती जा रही है...तो इसके लिए भी वही राजनीति ज़िम्मेदार है जो आम आदमी के हितैषी होने का सबसे ज़्यादा दंभ भरती है...मेरी आशंका यही है कि इसी तरह स्लम बढ़ते रहे और दूसरी तरफ दुनिया के सबसे कीमती आशियाने भी साथ ही बनते रहे तो एक दिन ऐसा भी आएगा जिस दिन देश में अराजकता का भयंकर विस्फोट होगा...जितने ज़्यादा मॉल देश में बनेंगे उतना ही छोटी रिटेल दुकानों और ठेलों पर सब्जी बनाने वालों का धंधा चौपट होगा...फिर वो क्या करेंगे...घरवालों का पेट कैसे भरेंगे...या तो खुदकुशी कर लेंगे या फिर अपराध के रास्ते पर चल पड़ेंगे...अगर कॉमनवेल्थ गेम्स में भ्रष्टाचार की जो पैसा चढ़ा है, उसी को बचा कर स्लम की हालत सुधारने पर लगा दिया जाता तो कम से कम एक शहर का तो उद्धार हो ही जाता...मैं ये नहीं कह रहा कि कॉमनवेल्थ गेम्स नहीं कराए जाने चाहिए था...मेरा ये कहना है कि गेम्स को सादगी और ईमानदारी के साथ कराना चाहिए था...ऐसा नहीं कि देश में ईमानदार बचे ही नहीं...मेट्रोमैन ई श्रीधरन इसकी जीती जागती मिसाल है...आज़ादी के बाद देश में सबसे बड़ा विकास का काम मेरी नज़र में दिल्ली मेट्रो है...मेट्रो की सफलता पूरे देश के लिए मिसाल बननी चाहिए...
हां, एक बात और इस कंट्रास्ट को किसी शहर विशेष से जोड़ना सयास नहीं है...ये सिर्फ इसलिए कि मुंबई देश की कारोबारी राजधानी है...पूरी दुनिया में भारत की पहचान है...इसलिए यहां का कंट्रास्ट ही डैनी बॉयल जैसों को स्लमडॉग मिलियनेयर्स से पैसा कूटने के लिए भारत ले आता है...
आशा है अब मैं अपनी बात को स्पष्ट कर पाया हूंगा...
जय हिंद...
स्लोग ओवर अच्छा लगा..
जवाब देंहटाएंस्लाग ओवर ...
जवाब देंहटाएंबेचारा ..!
स्पलिट पर्सनालिटी का शिकार है....उसे दूसरे डोक्टर की ज़रुरत है...:):)
आज इस ब्लॉग पर आकर लग रहा है कि सही जगह पर आ गया हूँ । यही ज़रूरत है उसकी जिसे हम वर्ग संघर्ष कहते है
जवाब देंहटाएं