ब्लॉगिंग की हर शह का इतना ही फ़साना है,
इक पोस्ट का आना है, इक पोस्ट का जाना है...
कहीं टिप्पणियों का टोटा, कहीं खजाना है,
ये राज़ नया ब्लॉगर समझा है न जाना है...
इक सक्रियता के फलक पर टिकी हुई ये दुनिया,
इक क्रम खिसकने से आसमां फट जाना है...
कहीं चैट के पचड़े, कहीं मज़हब के झगड़े,
इस राह में ए ब्लॉगर टकराने का हर मोड़ बहाना है...
हम लोग खिलौने हैं, इक ऐसे गूगल के,
जिसको एड के लिए बरसों हमें तरसाना है...
ब्लॉगिंग की हर शह का इतना ही फ़साना है,
इक पोस्ट का आना है, इक पोस्ट का जाना है...
स्लॉग गीत
बी आर चोपड़ा साहब ने 1973 में फिल्म बनाई थी धुंध...उसी में साहिर लुधियानवी के इस गीत को रवि ने धुन से सजाया था...लीजिए उस गीत की याद ताजा कीजिए...
संसार की हर शह का इतना ही फ़साना है,
इक धुंध से आना है, इक धुंध में जाना है...
ये राह कहां से है, ये राह कहां तक है,
ये राज़ कोई राही समझा है न जाना है...
इक पल की पलक पर है, ठहरी हुई ये दुनिया,
इक पल के झपकने तक हर खेल खिलाना है...
क्या जाने कोई किस पर किस मोड़ पे क्या बीते,
इस राह में ए राही हर मोड़ बहाना है...
हम लोग खिलौने हैं, इक ऐसे खिलाड़ी के,
जिसको अभी सदियों तक ये खेल रचाना है...
संसार की हर शह का इतना ही फ़साना है,
इक धुंध से आना है, इक धुंध में जाना है...
बहुत बढ़िया...ब्लॉग्गिंग के गुण-दोष की व्याख्या करती आपकी ये रचना बहुत पसन्द आई
जवाब देंहटाएंरचना बहुत ही सुंदर हे जी
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जवाब देंहटाएंवर्तमान में हिन्दी ब्लॉगिंग अपना रास्ता इक धुँध में ही तो तलाश रही है ।
सही जा रहे हो, बरखुरदार.. बस चलते जाओ, नाक की सीध में, धुँध के परे दुनिया और भी पेंचींदा है ।
हाहाहाहा पिछली पोस्ट का असर अब तक नही गया क्या। धुंध फिल्म के गाने की पेरोडी बना डाली
जवाब देंहटाएंWah bhaisab sahi bakhana blogging ko :)
जवाब देंहटाएंहाहाहाहा दादा पिछली पोस्ट के असर में आकर आपने इस गाने की बड़ी ही शानदार पैरोडी लिखी है....
जवाब देंहटाएंखुशदीप जी सुबह होने के सूर्योदय के लालिमा से पहले धुंध ही होती है और हाँ ये भी गौर करने वाली बात है की रात का घनघोर अँधेरा छाने से पहले भी धुंध जैसा ही माहौल होता है ...आगे-आगे देखिये सुबह होती है या रात ? वैसे आप जैसे लोगों के सोच को देखकर तो सुबह का एहसास होता है ....
जवाब देंहटाएंआप तो ब्लोगिंग की रग-रग से वाकिफ हैं.
जवाब देंहटाएंइक पल हम फलक पर हैं फिर औंधे नज़र आयें
जवाब देंहटाएंमौके को लपक लेना जब लंघी लगाना है
हाहाहाहा.....
पोस्ट के आने और जाने की प्रक्रिया में लोगों के मन में कुछ पोस्ट घर भी बसा लेती हैं और वह ब्लागर एक नाम कर उभरता है। आप उन्हीं में से एक नाम हो, जिसकी पोस्ट पढने को तलब सी लगी रहती है। बढिया पैरोडी।
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक जमाया...वाह!
जवाब देंहटाएंगीत अपने जमाने का बहुत लोकप्रिय गीत था। सटीक पैरोडी है। मैं कह रहा था न कि आप के कृतित्व का यह पहलू बहुत कम उजागर हुआ है।
जवाब देंहटाएंsundar rachana.
जवाब देंहटाएंअभ्त अच्छी पोस्ट के लिए बधाई |
जवाब देंहटाएंआशा
बिलकुल सही बात कविता रूप में .... एक हकीकत बयां कर दी ...
जवाब देंहटाएंmovie dekhi hai..par gane par gaur aaj kiya hai..!
जवाब देंहटाएंब्लाग कुछ भी नहीं, टिप्पणियों का खज़ाना है :)
जवाब देंहटाएंबहुत खूब खुशदीप भाई .......मस्त पोस्ट है !
जवाब देंहटाएंजय हिंद !
Nice Post...
जवाब देंहटाएंहा हा हा ! आप तो बढ़िया पैरोडी गीतकार बन गए भाई ।
जवाब देंहटाएंपहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ अच्छा लगा बहुत लाजवाब पैरोडी लिखी है
जवाब देंहटाएंकहीं टिप्पणियों का टोटा, कहीं खजाना है,
जवाब देंहटाएंये राज़ नया ब्लॉगर समझा है न जाना है...
अरे क्यों किसी की दुखती रग पर हाथ रखते हो? पैरोडी अच्छी लगी। बधाई। आशीर्वाद।
vaah ji vaah...
जवाब देंहटाएंमजेदार पोस्ट! खुशदीप जी, बस इसी तरह कुछ एकाद ब्लॉग में हमारा आना जाना है
जवाब देंहटाएंखुशदीप जी,
जवाब देंहटाएंपहली बार आना हुआ है लेकिन पैरोडी से दिल खुश हो गया