देश आजाद हुए 63 साल होने को आए...क्या कुछ बदला और क्या कुछ नहीं बदला...
9 अगस्त 1925
चलिए पहले ले चलता हूं आज से 85 साल पहले के काल में...देश के आज़ाद होने से भी 22 साल पहले...9 अगस्त 1925 की तारीख...लखनऊ के पास छोटा सा कस्बा काकोरी...शाहजहांपुर से लखनऊ जा रही ट्रेन लूट ली गई...किसी यात्री को बिना नुकसान पहुंचाए ब्रिटिश हुकूमत की ट्रेज़री का पैसा लूट लिया गया...लूट का मकसद था आज़ादी की जंग को धार देने के लिए हथियार खरीदना...ट्रेन लूट की योजना और अमल में लाने का काम किया अशफ़ाकउल्ला खान, राम प्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आज़ाद समेत वतन के दस मतवालों ने...आज़ाद को छोड़ बाकी सब बाद में ब्रिटिश हुकूमत की पकड़ में आ गए...अशफ़ाकउल्ला खान भी पकड़ में नहीं आते लेकिन उनके एक पठान दोस्त ने अंग्रेज़ों के इनाम के चक्कर में गद्दारी की और भारत मां के सपूत को मुखबिरी कर अंग्रेज़ों के हाथों गिरफ्तार करा दिया...
9 अगस्त 2010
अब आइए बीती रात बिहार में हुई एक ट्रेन डकैती पर...बिहार के जमुई ज़िले के समालतुला स्टेशन के पास अमृतसर हावड़ा एक्सप्रेस के यात्रियों को 25 हथियारबंद डकैतों के गिरोह ने लूट लिया...तलवार की नोंक पर महिलाओं के गहने उतरवा लिए गए...मुसाफिरों को बेरहमी से मारा पीटा गया..दो दिन पहले भी जमुई के ही क्यूल स्टेशन पर लालकिला एक्सप्रेस को इसी तरह लूट का शिकार बनाया गया था...यहां लूटने वाले भी भारतीय थे और लुटने वाले भी...लूटने वाले बेखौफ़ थे...लुटने वाले ख़ौफ़जदा...
9 अगस्त 1942
मुंबई में गांधी टोपी लगाए लोगों का सैलाब...लोगों को बेरहमी से दौड़ाते घोड़ों पर चढ़े अंग्रेज़ी हुकूमत के सिपाही...भारत को लूटने वाली अंग्रेज़ी हुकूमत को अल्टीमेटम देते मोहनदास करमचंद गांधी...अंग्रेज़ों भारत छोड़ो...पूर्ण स्वराज के नारे के साथ लोगों को करो या मरो का आह्वान...पांच साल बाद अंग्रेज़ों को भारत छोड़कर जाना पड़ा..
9 अगस्त 2010
संसद में अंग्रेज़ों भारत छोड़ो की 68वीं जयंती पर स्वतंत्रता सेनानियों का नमन...मुंबई में भी अगस्त क्रांति मैदान में समारोह का आयोजन... लेकिन वो तो अंग्रेज़ थे...सोने की चिड़िया (भारत) को दोनों हाथों से लूटना ही उनका मकसद था...लेकिन आज़ादी के 63 साल बाद भी भारत को कौन लूट रहा है...कभी आईपीएल के नाम पर तो कभी कॉमनवेल्थ गेम्स के नाम पर...कभी 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले के नाम पर...देश के गोदामों में लाखों टन अनाज सड़ रहा है....वहीं देश के करोड़ों लोग भूखे पेट सोने को मजबूर है...आज तो हुक्मरान कोई विदेशी नहीं...अपने ही बीच के लोग दिल्ली या सूबे की राजधानियों की गद्दियों पर बैठे हैं...आज हम किसे कहें गद्दी छोड़ो...और हम कहते भी हैं तो सुनता कौन है...अब्राहम लिंकन ने सही कहा था...government of the people, by the people, for the people...
चलिए 1943 में आई फिल्म किस्मत का ये गाना ही सुन लीजिए...
दूर हटो, दूर हटो, ए दुनिया वालो...
आज़ादी से पहले, आज़ादी के बाद...खुशदीप
22
मंगलवार, अगस्त 10, 2010
गोरे अंग्रेज चले गए और काले अंग्रेजों को छोड़ गए
जवाब देंहटाएंकाले अंग्रेज तो गोरे अंग्रेजों से ज्यादा देश को लूट रहे हैं।
जवाब देंहटाएंसत्य वचन !
सटीक ....यह सब पढ़ कर दुःख होता है....
जवाब देंहटाएंसही तुलना की है...क्या कहा जाये!
जवाब देंहटाएंऔऱ दुर्भाग्य इतना ही नहीं देश का.....जमुई देश के पहले राष्ट्रपति का इलाका भी है.....
जवाब देंहटाएंएक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं !
गाने में दुनिया वालो से कहा जा रहा है कि दूर हटो .................यहाँ किस से कहा जाए ??
जवाब देंहटाएंजय हिंद !!
एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं !
इसे चाहे आप देश की नियति कह लो या देश का दुर्भाग्य. वैसे सोचने वाली बात ये है कि छह दशकों से जिसे हम आजादी मान कर बैठे है क्या वो वाकई आजादी है. दो सौ साल तक देश को लुट कर कंगला कर के, जब देश में कुछ नहीं बचा, तो गोरे चले गए और हम इसे गाँधी-नेहरु के तथाकथित बलिदान के द्वारा पाई हुई आजादी मान बैठे. नतीजा भोपाल गैस, कोमंवेल्थ खेल, चीनी घोटाला, चारा घोटाला, अवैध खनन घोटाला, बोफोर्स घोटाला, स्विस बैंक घोटाला, ये घोटाला, वो घोटाला आदि के रूप में आज हम सबके सामने है.
जवाब देंहटाएं9 अगस्त 1925 में हम गुलाम थे इसलिए, सिवाय आतताई शासक के, किसी को नुकसान पहुँचाने की बात सोच ही नहीं सकते थे।
जवाब देंहटाएं9 अगस्त 2010 में हम आजाद हैं इसलिए लूटमार कर के हर किसी को नुकसान पहुँचाने का हमें पूरा पूरा अधिकार है!
स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद हमें जो शिक्षा मिली है उसने हमें किसी भी प्रकार के जायज या नाजायज तरीके से स्वार्थसिद्धि करना ही तो सिखाया है।
अशफ़ाकउल्ला खान, राम प्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आज़ाद को स्मरण रखने के लिए आप धन्यवाद के पात्र हैं! लोगों को आपने याद तो दिलाया कि गाँधी और नेहरू के अलावा भी लोग थे जिन्होंने देश के लिए खुद को कुर्बान किया है।
जी हा सही कहा पहले गैरो ने देश को लुटा फिर आजादी मिली पर असल में आजादी मिली अपनों को की वो देश लुट सके और हम उनको वोट देकर बार बार आजादी देते है इस देश को और लुटाने की |
जवाब देंहटाएंदेख तेरे संसार की हालत क्या हो गयी भगवान्
जवाब देंहटाएंकितना बदल गया इंसान, कितना बदल गया इंसान
सच्ची सटीक पोस्ट...
नीरज
क्या बदला है कुछ भी तो नहीं ...दुखद..
जवाब देंहटाएंखुशदीप जी,
जवाब देंहटाएंयहाँ तो सब जागे हुये हैं अब जागे हुयों को कैसे जगाओगे?
जब खुद ही घर की नींव खोदने लगें तो बाहर वाले का क्या दोष्।
बहुत दर्दनाक अवस्था है ,आजादी से पहले इस देश के इमानदार देशभक्तों को हैवानों की गुलामी करनी पर रही थी अब बेशर्म हैवानों की गुलामी करनी पर रही है बस इतना सा बदलाव आया है आजादी के बाद ...पता नहीं क्या होगा ...
जवाब देंहटाएंसही मायने में अभी आज़ाद हुए ही कहाँ हैं । पहले गुलामी की एक ही ज़ंजीर थी । अब तो अनेकों हैं ।
जवाब देंहटाएंवैसे भी ग़ुलामी की आदत सी पड़ गई है सबको ।
अवधिया भईया की बातों से सहमत हूँ...
जवाब देंहटाएंआज़ादी का अर्थ भारत में होता है मनमानी....:)
बहुत अच्छी प्रस्तुति...हमेशा की तरह..
कोन् करेगा, हमे आजाद इन गुंडो मवालिये चोरो को डेकतो से? कोई साधू? कोई अवतार जन्मेगा? या हम मै से ही कोई क्रांति कारी होगा जोइन की जडो को ही मिटा देगा कोन होगा... क्या यह सब प्यार से मान जायेगे? क्य हमे आजादी भीख मै देगे? बहुत से सवाल है है किसी के पास इन का जबाब....
जवाब देंहटाएंअब तो कहने में भी डर लगता है कि हिंदुस्तान हमारा है......
जवाब देंहटाएंजय हिंद........
यह तुलना ही पर्याप्त है आँख खोलने के लिये। पर जब जन निश्चय कर लें कि हमें बिना हलचल जीवन यात्रा पूरी करनी है तो ईश्वर का ही सहारा है।
जवाब देंहटाएंउम्दा पोस्ट के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंब्लॉग4वार्ता की 150वीं पोस्ट पर आपका स्वागत है
यह बढ़िया है ।
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