सरहद से बंटने का दर्द...खुशदीप

कल आप से वादा किया था कि आपको भारत-पाकिस्तान सरहद के कुछ अनछुए पहलुओं से रू-ब-रू कराऊंगा...63 साल पहले सरहद नाम की आभासी लकीर ने दोनों तरफ़ के इनसानों को बांटा और वो एक-दूसरे के लिए परदेसी हो गए...दोनों तरफ़ के बाशिंदों को लगता है कि सरहद के उस पार न जाने कौन सी दुनिया बसती है... हैं सब एक ही ज़मीन, एक ही मातृभूमि के बेटे...लेकिन मज़हबी सियासत और सत्ता की बिसात ने उन्हें आपस में दुश्मन बना दिया... कहा जाता है कि ऐसा कोई मसला नहीं होता जिसका बातचीत से हल न निकले...लेकिन दोनों ओर के हुक्मरान बातचीत तो छह दशक से करते आ रहे हैं... उससे क्या मिला...बल्कि मर्ज़ बढ़ता गया, जैसे जैसे दवा की... सरहद एक ख़ौफ़ की लकीर बनती गई...




क्या है इस सरहद का सच...

आज़ादी से पहले पार्टिशन काउंसिल ने दोनों देशों का जो ख़ाका ज़ेहन में खींचा था, उसमें यही था कि देश चाहें दो बन जाएं लेकिन सरहद पर दोनों तरफ़ के लोगों की आवाजाही में कोई बंदिशें नहीं रहेंगी...15 अगस्त 1947 के बाद भी करीब एक साल तक वाकई बिना किसी रोक-टोक के लोग इधर से उधर, उधर से इधर आते रहे... पहली बार सरहद पर भारत सरकार ने 14 जुलाई 1948 को इमरजेंसी परमिट सिस्टम की शुरुआत की... असल में उत्तर भारत से जो मुसलमान विभाजन के वक्त पाकिस्तान गए थे, उनमें से कुछ का चंद महीनों में ही पाकिस्तान के माहौल से मोहभंग हो गया... उन्होंने भारत अपने पुश्तैनी घरों की ओर लौटना शुरू कर दिया...पाकिस्तान में मुहाज़िर कहे जाने वाले ये मुसलमान भारत लौट कर फिर नागरिकता पर दावा करते तो भारत सरकार के लिए कई तरह की तकनीकी दिक्कतें खड़ी हो जातीं...

भारत के इमरजेंसी सिस्टम के दो महीने बाद ही यानि सितंबर 1948 में पाकिस्तान ने समानांतर परमिट सिस्टम लागू किया...इसका मकसद भारत से पाकिस्तान आने वाले मुसलमानों को रोकना था... 1952 में पाकिस्तान ने पासपोर्ट सिस्टम शुरू करने के साथ ही साफ कर दिया कि उसके लिए भारत में रहने वाले मुसलमान विदेशी ही होंगे... यानि दोनों देशों के लोगों के लिए सरहद से आवाजाही मुश्किल से मुश्किल ही होती गई... मसलन तीन शहरों के लिए ही वीज़ा... पहुंचने के 24 घंटे में ही थाने में रिपोर्ट करने की बाध्यता... सरहद के दूसरी ओर जाना है तो वहां के किसी बंदे का आपके लिए न्योता होना चाहिए... यानि टूरिस्ट की तरह कोई एक-दूसरे के देश में जाना चाहे तो उसे पहले काफ़ी पापड़ बेलने होंगे... ऐसे मुश्किल हालात की वजह से ही शायद जिस पीढ़ी ने विभाजन का दौर देखा, उसके लिए सरहद हमेशा भावनाओं से जु़ड़ा मुद्दा ही रही... लेकिन 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद सरहद के दोनों ओर जो पीढ़ियां जवान हुईं, उनका नज़रिया बिल्कुल ही बदल गया... अब सरहद पार के लोग भावना के आइने में नहीं कट्टर दुश्मन के खांचे में गिने जाने लगे... ऐसे में दोनों देशों की कूटनीति भी बदली...

1970 तक जहां सवाल महज़ सरहद पार आवाजाही का था, वहीं पाकिस्तान ने 1971 के बाद कश्मीर को सरहद से जोड़कर संघर्ष और आंतक का एक नया चेहरा दोनों देशों के संबंधों को दे दिया... इसलिए अब दोनों देशों के बीच बात आतंक से शुरू होती है जो सरहद या एलओसी के संकट को समेटती हुई कश्मीर को भी अपनी जद में ले लेती है...जिसका फायदा सिर्फ और सिर्फ आतंकवाद उठाता है और आपसी बातचीत अंतरराष्ट्रीय ज़रूरत में तब्दील हो जाती है...

चलते चलते सरहद से बंटने का दर्द शाहरुख़ ख़ान की आवाज़ में वीर-ज़ारा के ज़रिए ज़रूर सुन लीजिए...

एक टिप्पणी भेजें

21 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.
  1. यह विभाजन ही बहुत बड़ा नासूर बन गया है दोनो देशों के लिये। अच्छी प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
  2. सितंबर 1948 में पाकिस्तान ने समानांतर परमिट सिस्टम लागू किया...इसका मकसद भारत से पाकिस्तान आने वाले मुसलमानों को रोकना था...

    @ फिर भी भारतीय मुसलमानों के मन में पाकिस्तान के प्रति प्यार देखते ही बनता है

    जवाब देंहटाएं
  3. तथ्यात्मक जानकारी से कुछ लोगो की आँखें खुल सके ...!
    विभाजन का दर्द कितना भयावह रहा होगा , औ रजो लोग बिना विभाजन के विस्थापितों सा जीवन बीता रहे हैं , उनके दर्द का क्या बया किया जा सकता है !

    जवाब देंहटाएं
  4. खुशदीप भाई, बढ़िया प्रस्तुति पर क्या यह सरहद या यह नफरत कभी खत्म हो पाएगी ?

    जवाब देंहटाएं
  5. आपने अच्छी और नई जानकारी दी है ।
    विभाजन का दुःख दर्द वही जान सकते हैं जो इस दौर से गुज़र चुके हैं ।

    वीर ज़ारा के वीडियो ने पोस्ट की सार्थकता को और भी बढ़ा दिया है ।

    जवाब देंहटाएं
  6. @शिवम भाई,
    सही कह रहे हो, अगर राजनीति और कूटनीति के भरोसे रहे तो आगे भी हालात बद से बदतर ही होंगे...हां, अगर तस्वीर बदलेगी तो वो हम-आप जैसों और पाकिस्तान के आम लोगों की मदद से ही बदलेगी... वरना सरकार पाकिस्तान से हाफ़िज़ सईद को मांगती रहेगी...और पाकिस्तान कहता रहेगा कि हाफ़िज़ सईद के खिलाफ सबूत ही कहां हैं, वो तो स्कूल, अस्पताल चलाने वाला नेक इनसान है...यानि आतंकवाद की जो परिभाषा हमारे लिए उसके मायने सरहद के उस ओर बिल्कुल उलट जाते हैं...हां, अगर ऐसी चीज़ें ज़्यादा से ज़्यादा हों कि पाकिस्तान का कोई बच्चा दिल में छेद की वजह से भारत आए और डॉ देवी शेट्टी जैसे काबिल सर्जन उसका ऑपरेशन कर ठीक कर दें। या फिर पाकिस्तान में जेल में सड़ते रहने वाले कश्मीर सिंह के लिए कोई अंसार बर्नी लड़ाई लड़े और कश्मीर सिंह को रिहा कर भारत भेज कर ही दम ले...एक-दूसरे लोगों के हम जितना ज़्यादा पास आएंगे, पता चलेगा कि अरे इनका खाना, पीना, रहना, उठना, खेत-खलिहान, सब कुछ हमारे जैसा ही है...दोनों देशों के लोगों को सरहद की निगहेबानी पर अरबों रुपये फूंकने से अच्छा है कि इस पैसे का इस्तेमाल गरीब-गुरबों की हालत सुधारने पर किया जाए...बिजली यहां भी नहीं आती, पाकिस्तान में भी नहीं आती...दाल-आटा यहां भी गरीब आदमी की पहुंच से बाहर हो रहा है...पाकिस्तान में भी हो रहा है...बस ज़रूरत है लोग ठंडे दिमाग से इस तरफ़ भी सोचें...पाकिस्तान के लोग खास तौर पर ध्यान दें कि आतंकवाद और आईएसआई के गठजोड़ ने पाकिस्तान को किस कगार पर पहुंचा दिया है...वो खुद ही आतंकवादियों और कट्टरवादियों को समर्थन के रास्ते बंद कर दें तो खुद उनका और पाकिस्तान का फायदा ही होगा...मैं जानता हूं कि जो लिख रहा हूं, सब बातें हैं बातों का क्या...लेकिन चलो इसी बहाने लोग इस पर एक बार सोचें तो सही...

    जय हिंद...

    जवाब देंहटाएं
  7. भई आज तो बहुत गम्भीर विषय है। आज शायद गम्भी बातों का ही दिन है सुबह से ऐसे ही लग रहा है। बाद मे आती हूँ। मै तो कोई मूड बदलने की बात सुनने आयी थी क्यों कि वो यहीं होती है।। फिर आती हूँ। आराम से पढने\शुभकामनायें

    जवाब देंहटाएं
  8. तथ्यात्मक लेखन....विचारणीय पोस्ट ...तालियाँ

    जवाब देंहटाएं
  9. हजारों सालों की परतन्त्रता से भी बड़ा देश का दुर्भाग्य विभाजन का होना था जो कि गांधी तथा कांग्रेस के तुष्टिकरण नीति का परिणाम था। इस विभाजन ने लोगों को नफ़रत और सिर्फ नफ़रत ही दिया, और कुछ भी नहीं।

    जवाब देंहटाएं
  10. .
    .
    .
    आदरणीय खुशदीप जी,

    आप भी...वही 'अमन की आशा' सा हकीकत को नकारता सेंटिमेंटल भाई-भाई का सरहद की वजह से एक दूसरे से दूर हो जाने का आलाप-विलाप...???

    पर आज की ठोस सच्चाई है कि पाकिस्तान भारत-विरोध की बुनियाद पर खड़ा देश है... यदि भारत-विरोध न हो तो ऐसी कोई चीज नहीं जो एक रख पाये पाकिस्तान को...

    जितनी जल्दी हम सब यह जानेंगे कि वह एक शत्रु देश है उतना ही बेहतर होगा हमारे लिये...

    भूल जाइये यह सब... विभाजन एक हकीकत है और पाकिस्तान भी... सरहद रहेगी...इसी में हम सब का हित व सुरक्षा है!

    आभार!

    जवाब देंहटाएं
  11. इस अग्रेजी सरकार के बोये बीजो को अब हमारे नेताओ ने खुब सींचा है ओर यह नफ़रत का पोधा पेड बन गया है जिसे आम जनता ही काट सकती है, आज आप का लेख बहुत अच्छा लगा. धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  12. .....भारत सरकार ने 14 जुलाई 1948 को इमरजेंसी परमिट सिस्टम की शुरुआत की.....

    औऱ क्या करती। देश बांटने वालों को आंखों पर बैठाती। जब देश का विभाजन किया तो भोगो।

    पाकिस्तान सुधर जाए ऐसी आशा करना व्यर्थ है। जहां पूरा सिस्टम ही भारत विरोध की नींव पर टिका हो वहां से अमन का उम्मीद करना व्यर्थ है। पाकिस्तानी सेना पाकिस्तान की नकेल अपने ही हाथ में रखेगी।

    एक दो बच्चों के ऑपरेशन से कोई रिश्ता नहीं सुधरेगा। ..वैसे भी मैं इस बात के सख्त खिलाफ हूं। ये सब देश के मुंह पर करारा तमाचा है।
    जिस देश में लाखो लोग पैसों के अभाव में सिसक सिसक कर रोज मर मर क जी रहे हों..वहां ऐसी चीजें चोचली बाजी से ज्यादा कुछ नहीं।

    जरा अपने देश की तरफ भी देखें ऐसे डॉक्टर। हर 100 किलोंमीटर पर स्वास्थय की पूरी बेहतर सेवा देने की क्षमता ऱखने वाले देश में सैकड़ों किलोमीटर तक सुविधा का अभाव है।

    जवाब देंहटाएं
  13. सॉरी सर पहली बार आपसे पचास फीसदी सहमत नहीं हूं।

    जवाब देंहटाएं
  14. बटवारे के जख्म आज तक लोगों के दिल और जिस्म में हरे हैं।

    जिनका परिवार बिछुड़ा,जिनके माँ-बाप,बेटा-बेटी बिछड़े वे कैसे भूल सकते हैं उस मनहूस घड़ी को।

    मैने तो देखा नहीं वह समय लेकिन उन दुश्वारियों का अहसास कर सकता हूँ कि कितनी विषम परिस्थितियाँ रही होगीं।

    जवाब देंहटाएं
  15. इस विभाजन की पीड़ा से जो गुजरे हैं...उनका जख्म तो शायद पीढ़ियों तक ना भर पाए....हमलोग तो इसके बारे में पढ़कर ही इतने दुखी हो जाते हैं..
    बहुत सारी जानकारी मिली...

    जवाब देंहटाएं
  16. अच्छा लेख
    बहुत दर्द है
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  17. इस बारे में सोचता हूं तो मन परेशान हो जाता है। आज जी के अवधिया जी ने भी उसी दौर के बारे में लिखा है।

    जवाब देंहटाएं