कल बात की थी इंटरनेशनल दिल्ली ब्लॉगर्स मीट तक पहुंचने की...बैठक की बेटवींस द लाइंस की...हां इस मीट में पुराने अजीज तो मिले ही मिले, कई नए दोस्तों से भी पहली बार रू-ब-रू हुआ...इन सभी दोस्तों का कल अपनी पोस्ट में यथा स्मरण शक्ति ज़रूर ज़िक्र करने की कोशिश करूंगा...आज बात सिर्फ शेर सिंह की...यानि ललित शर्मा की...
कल मैंने आपसे वादा किया था कि आज की पोस्ट में बतलाऊंगा कि शेर सिंह से मैंने किस तरह बदला लिया...हां तो जनाब ब्लॉगर्स मीट खत्म हो गई...सब जाट धर्मशाला के बाहर एक दूसरे से विदा लेने लगे...इस विदा की बेला में ही शेर सिंह जी ने बड़ी मासूमियत से मुझसे कहा...आस पास कोई होटल बता दो, जहां रहने का इंतज़ाम हो सके...मेरे मुंह से निकला, अजी क्या होटल-वोटल, चलिए न मेरे साथ ही नोएडा...मेरे घर पर ही ठहरिए...शेर सिंह जी तैयार हो गए...लेकिन अब मैं सोचने लगा कि शेर सिंह जी को तैयार तो कर लिया, लेकिन घर पर तो किसी को कहा ही नहीं...अरे एक तो मेरा एक हज़ार फुट का घर, ऊपर से मेरे लिए बनने वाला स्पेशल घासफूस वाला खाना (जिसे आप हरी सब्ज़ियां कहते हैं)...अब शेर सिंह जी साथ है तो घर इन्फॉर्म कर कुछ तो फॉर्मेल्टी पूरी करनी ही थी न...मैंने पत्नीश्री को बताया...साथ ही कहा कि मैं और शेर सिंह जी मॉल में खाना खाने के बाद ही घर पहुंचेंगे...लेकिन पत्नीश्री ने भरोसा दिलाया कि चिंता की कोई बात नहीं, खाना घर आकर ही खाना...तो चलिए एक तरफ से बेफिक्र हुआ...
अब एक और फिक्र थी...मुझे अच्छी तरह याद था कि मैं और इरफ़ान भाई नोएडा से किस तरह चार-चार मेट्रो बदल कर नागंलोई पहुंचे थे...तो क्या अब वापसी में शेर सिंह जी को साथ लेकर नोएडा पहुंचने के लिए वही क्रम दोहराना होगा...ऊपर से रात भी होने को आ रही थी...वो तो भला हो शेर सिंह जी के एक दोस्त पंकज (अगर मेरी याद्दाश्त सही है तो) ने अपनी नई नकोर गाड़ी से हमें कीर्ति नगर स्टेशन तक छोड़ दिया...वहां से हम तीनों (मैं, इरफ़ान भाई, शेर सिंह) ने मेट्रो पकड़ ली...ये भी नहीं देखा कि वो मेट्रो नोएडा जा रही है या आनंद विहार...बस तीनों देश के मसलों को चुटकियों में सुलझाते जा रहे थे कि बातों में कोई सुध ही नहीं रही...ये तो यमुना बैंक स्टेशन जाकर इरफ़ान भाई को इल्म हुआ, अरे ये मेट्रो नोएडा नहीं आनंद विहार जा रही है...कूदते-फांदते किसी तरह मेट्रो के डब्बे से बाहर निकले...इरफ़ान भाई सही वक्त पर न चेताते तो तीनों आनंद विहार पहुंच जाते...
अब यमुना बैंक से नोएडा के लिए मेट्रो पकड़ी...इरफ़ान भाई का घर रास्ते में मयूर विहार में आता है तो वो मयूर विहार स्टेशन पर उतर गए...मैं और शेर सिंह जी नोएडा के सेक्टर 18 स्टेशन पर उतरे...मैंने दिमाग चलाया कि पत्नीश्री ने खाने में सब कुछ बना ही लिया होगा, मैं शाही पनीर और लेता चलूं...सेक्टर 18 स्टेशन के नीचे ही एक सरदार जी का गुलाटीस के नाम से माडर्न ढाबा है...वहीं से शाही पनीर पैक कराया...मैंने अपना चेतक (राणा प्रताप वाला घोड़ा नहीं बजाज का स्कूटर) सेक्टर 18 में ही पार्क किया हुआ था...हम स्कूटर की ओर बढ़ रहे थे कि रास्ते में लोअर और शार्टस (नेकर) वगैरहा बिक रहे थे...अचानक शेर सिंह के दिमाग की बत्ती जली...बोले अरे मैं अपना लोअर तो पिछली रात गुड़गांव में जहां ठहरा था वहीं भूल आया हूं...शेर सिंह जी ने वहीं लोअर खरीदने की इच्छा जताई...मैंने सलाह दी, यहां क्वालिटी सही नहीं मिलेगी और दाम भी ज़्यादा देने पड़ जाएंगे...अभी घर पर सामान रखकर ग्रेट इंडिया प्लेस मॉल चलते हैं, वहीं बिग बाज़ार से लोअर भी खरीद लेंगे...
खैर घर पहुंचकर सामान रखा...पत्नीश्री से कहा...खाना तैयार रखो...हम अभी आते हैं...पत्नीश्री और बच्चों के संडे को पूरी तरह कुर्बान कर अब भी बाहर जाने की बात कर रहा था...खैर फ्रेश होकर मैं और शेरसिंह जी मॉल पहुंचे...वहां आधुनिकता की बयार देखकर शेरसिंह जी की हैरत को दूर करते हुए मैंने कहा कि अब पहनावे के मामले में पश्चिमी देशों में और नोएडा जैसे आधुनिक शहरों में कोई फर्क नहीं रहा...शेर सिंह जी को लेकर सबसे पहले बिग बाज़ार ही गया...वहां XXL लोअर ढूंढने में थोड़ी मशक्कत करनी पड़ी...पूरा मॉल नापने के बाद दोनों ने आइसक्रीम के कोन लिए और वही बेंच पर बैठकर चट करने लगे...तभी शेर सिंह जी ने इस पल को कैद करने के लिए कैमरा निकाला...मैं तो खैर आइसक्रीम के चटखारे लेने में पूरी तरह व्यस्त था...शेर सिंह जी खुद ही कैमरे से फोटो लेने की कोशिश करने लगे...कभी फोटो में हमारी मुंडी कट जाती तो कभी आइसक्रीम...कभी दोनों के आधे-आधे चेहरे ही आ पाते...बड़ी मशक्कत के बाद शेरसिंह जी को ये मनमुआफिक फोटो मिल सकी...
मॉल से घर लौटने के बाद खाना खाया...मेरे से भी ज़्यादा जल्दी लैपटॉप तक पहुंचने की शेर सिंह जी को थी...तब तक ब्लॉगर्स मीट की कुछ फोटो वाली पोस्ट आ चुकी थीं...मैंने शेर सिंह जी से अपनी आदत के मुताबिक कहा, चलिए नीचे टहल कर आते हैं...नीचे टहलने आए तो वाडीलाल से जलजीरा वाली जूसी लेकर फिर चटखारे लेने लगे...लेकिन गर्मी ज़्यादा होने की वजह से शेर सिंह जी की जूसी जल्दी ही बीच से दो टुकड़े हो गई...बड़ी मुश्किल से उन्होंने उसे खत्म किया...
अब घर लौटने लगे तो ये क्या पूरे सेक्टर की बत्ती गुल...मैं समझ गया कि अब ये बत्ती कम से कम एक घंटे से पहले नहीं आने वाली...तब तक बारह बज गए थे...घर के इनवर्टर की बैटरी में इतनी ही जान बची थी कि मुश्किल से आधे घंटे तक ही एक पंखे का ही लोड खींच सके...मैंने कॉलोनी के पार्क के बाहर बेंच पर ही शेर सिंह जी से बैठने का आग्रह किया...मैंने सोचा किसी तरह घंटा यही बिताकर लाइट आने पर ही घर वापस चला जाए...दोनों बातें करना शुरू हुए...ललित भाई ने कुछ तकनीकी बातें बतानी शुरू की...मेरे थके हुए दिमाग के ऊपर से वो बातें ऐसे जा रही थीं जैसे रितिक रोशन की काइट्स...
एक घंटा बीता, डेढ़ घंटा बीता, दो घंटे बीते लेकिन बत्ती आने के कहीं कोई चांस नहीं...मैंने शेर सिंह जी से कहा...कब तक यहां बैठे मच्छरों को फ्री में अपना रक्तदान करते रहेंगे, चलिए घर ही चलते हैं...वहीं बॉलकनी में बैठेंगे...अब बेंच से उठकर घर की बॉलकनी की कुर्सियो पर आ गए...यहां भी एक घंटा बिता दिया...लेकिन निगोड़ी बत्ती फिर भी रूठी रही...रात के ढाई बजने को आ गए...मैंने कहा चलिए शेर सिंह भाई सोने की कोशिश कीजिए, ये बत्ती तो आज आने से रही...अब जनाब सोने के लिए चले गए...हमारे सब्र का पूरी तरह इम्तिहान लेने के बाद बत्ती रानी को भी दया आ ही गई...मैंने चैन की सांस ली...लेकिन तब तक शेर सिंह जी के अच्छी तरह पसीने छूट चुके थे...तो ये था मेरा बदला, जिसके लिए मैंने अपनी तरफ से कोई कोशिश नहीं की सब काम बत्ती रानी ने ही कर दिया...अगले दिन मैंने आठ हज़ार रुपये शहीद कर सबसे पहला काम इन्वर्टर की बैट्री बदलने का किया...वही काम जिसे पत्नी कई दिनों से कहती आ रही थी और मैं आदत के मुताबिक आज-कल, आज-कल करता आ रहा था...
एक बात और शेर सिंह जी के साथ मैं जितनी देर रहा, उनके बारे में यही अंदाज़ लगा सका कि ब्लॉगिंग में उनके प्राण बसे हैं...इंटरनेट के बिना उनकी हालत वैसे ही है जैसे मछली को पानी से बाहर निकाल दिया जाए...
IDBM के बाद शेरसिंह के मैंने पसीने छुड़ाए...खुशदीप
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बुधवार, मई 26, 2010
संजय नहीं
जवाब देंहटाएंपंकज
(अगर पक्का याद है तो)
खैर ...
पुष्टि दृष्टि तो शेरसिंह उर्फ ललित शर्मा
ही डालेंगे बेशर्मा कर
जैसी बेशर्मी खुशदीप दिखला रहे हैं
सरेआम आइसक्रीम रानी का चुंबन लेकर।
इसके बाद दीजिएगा अंक http://taazahavaa.blogspot.com/2010/05/blog-post_25.html मयंक को। फिर थामिएगा जिगर http://jhhakajhhaktimes.blogspot.com/2010/05/blog-post_26.html मजबूत को।
जवाब देंहटाएंchaliye jaan kar tasalli hui ki sher singh bhi paseene paseene ho sakte hain...varna aaj tak to ayhi sunte aaye the ki ser singh ko dekh kar logon ko paseena aata hai....
जवाब देंहटाएंagar jo thodi bhi tasaalli ho to bata dete hain...
CANADA OTTAWA MEIN KAL KA TEMPRATURE THA 38 DEGREE AUR AAJ HAI 40 DEGREE...
YAHKEEN AAYA....ARE BABA JI AANKH BAND KARKE KAR LIJIYE...YAHI SACH HAI...
HAAN NAHI TO....!!
हाय!! शेरसिंग की ये हालत की आपने और बिजली रानी ने मिल कर..बड़ी नाइंसाफी है.
जवाब देंहटाएंवैसे पढ़कर अनऑफिशियली मजा बहुत आया.
अच्छा किया जो शेर सिंह जी को नोएडा का जमीनी पानी नहीं पिलाया, वरना शेरसिंह जी को राजधानी के पास बसे सो कॉल्ड स्बर्ग नोएडा की एक औऱ सच्चाई का पता चल जाता। हीहीहीही
जवाब देंहटाएंभई हमसे पहले बता कर लेते तो मेट्रो की समस्या तो नहीं होती न।
जवाब देंहटाएंबहुत मजेदार
जवाब देंहटाएंशेर सिंह भी याद रखेंगे
वैसे लोगों की प्रतिक्रिया तो यही रही होगी 'देखो दो-दो शेरसिंह साथ-साथ हैं'
शेर को मिल ही गया सवा शेर ...
जवाब देंहटाएंऐसी ही परेशानियाँ भरी मुलाकातें हमेशा याद रहती है |
जवाब देंहटाएंआइसक्रीम खाते हुए इतने घबड़ाए हुए लग रहे हैं कि आइसक्रीम तो खा लिया जेब में पैसा नहीं है देने के लिए...!
जवाब देंहटाएंभई वाह , नांगलोई से नोयडा का सफ़र , फिर नोयडा का अपना suffer
जवाब देंहटाएंशेरसिंह जी तो याद रखेंगे । लेकिन इसमें आपका कोई कसूर नहीं है ।
शेरसिंह जी के पसीने छुड़वाए। लेकिन एक बात है खुशदीप भाई साहब यथा नाम तथा गुण को आपने चरितार्थ कर दिया। घर मे होम मिनिस्ट्री से तो सभी डरते हैं। उनकी स्वीक्रिति लेने की आवश्यकता नही पडी। इसी से लगता है खुशी के दिये से प्रकाशित परिवार। सदैव ऐसा ही प्रेम सभी के बीच बना रहे। शेरसिंह के साथ बिताये लम्हो का रोचक प्रसन्ग की बेह्तरीय प्रस्तुति। बधाई।
जवाब देंहटाएंऐसी ही यादें तो और उमंग बढ़ाती हैं। शेरसिंह जी को तभी तो अनिल भाई ने ठांसा था ब्लॉगिंग और इंटरनेट की लत के कारण।
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया...रोचक प्रस्तुति लेकिन ये मत सोचिएगा कि अकेले आप ही हैं तीसमारखाँ ...अकेले आप ही के यहाँ जा सकती है लाईट ...अरे!...हमरे इहाँ तो पूरे तीन ठौ बार बिजली देवी रूठ गई थी ...अऊर हमरी बेवाकूफी देखिए...एक दिन पहले ही इन्वर्टर से पंगा ले अपने होश गँवा बैठे ...पता नहीं..सुसरा दिमाग किस और लगा था कि गलती से इन्वर्टर की तार मेन स्विच के बजाय वापिस इन्वर्टर में ही लगा बैठे...सुसरा!...एन मौके पे धोखा दे...चला ही नहीं...:-(
जवाब देंहटाएंशेर सिंह बेचारे...थकान के मारे...उन्हें होश कहाँ कि लाईट है या नहीं ...वो तो मज़े से निद्रा देवी के आगोश मे खर्राटे मार सोते रहे
वाह क्या बदला लिया है! शेरसिंह भी खूब याद रखेंगे। शेरसिंह से बदला सिर्फ बिजली रानी ही ले सकती थी और कोई नहीं क्योंकि यहाँ तो बिजली कभी कभार ही जाती है पर इतनी देर तक के लिये नहीं जाती।
जवाब देंहटाएंशेर शर्मा कहिये जनाब
जवाब देंहटाएंये क्या हुआ आज शेरो के पसीने आ रहे हैं
जवाब देंहटाएंगला खराब हो जायेगा,क्यों आइसक्रीम खा रहे हो
खुशदीप जी,
जवाब देंहटाएंउस दिन पता नहीं कैसी मीट की थी, अपने यहां भी शाम नौ बजे से दो बजे तक अन्धेरा कायम रहा था।
शेर सिंह जी की मासूमियत!
जवाब देंहटाएंरितिक रोशन की काइट्स!!
मच्छरों को फ्री में रक्तदान!!!
आठ हज़ार रुपये शहीद!!!!
पसीने पसीने तो मैं हो रहा अब :-)
मुझसे बदला (पंगा) लिया ना तो देख लूँगा
हा हा
ऒए भाजी क्यो गर्मी गर्मी कर के हमे आप सब डरा रहे है जी, जब भी भारत आने का मुड बनता है सभी यही कहते है हाय गर्मी हाय बिजली.... ओर हमारे मुंह से निकलता है हाय दिल्ली हाय दिल्ली... अब जब शेर सिंग के पसीने छुडा दिये तो हमारी क्या मजाल... आप की पोस्ट पढ कर हेरान हुं दो ढाई घंटॆ पार्क मै मच्छरो के बीच...हम तो कब के परलोक सिधार गये होते जी,
जवाब देंहटाएंgarmi rani ke age sher, cheete , haathee sab bekaar :).
जवाब देंहटाएंशेर को मिला सवा शेर
जवाब देंहटाएंहा-हा-हा
अच्छा बदला लिया जी आपने अपनी चमची बत्ती द्वारा
प्रणाम
शेर सिह ने जलजीरा वाली जूसी खाई और आइसक्रीम खाई ..... यकीन नही हो रहा भाई
जवाब देंहटाएंैक्या आप जानते है.
जवाब देंहटाएंकौन सा ऐसा ब्लागर है जो इन दिनों हर ब्लाग पर जाकर बिन मांगी सलाह बांटने का काम कर रहा है।
नहीं जानते न... चलिए मैं थोड़ा क्लू देता हूं. यह ब्लागर हार्लिक्स पीकर होनस्टी तरीके से ही प्रोजक्ट बनाऊंगा बोलता है। हमें यह करना चाहिए.. हमें यह नहीं करना चाहिए.. हम समाज को आगे कैसे ले जाएं.. आप लोगों का प्रयास सार्थक है.. आपकी सोच सकारात्मक है.. क्या आपको नहीं लगता है कि आप लोग ब्लागिंग करने नहीं बल्कि प्रवचन सुनने के लिए ही इस दुनिया में आएं है. ज्यादा नहीं लिखूंगा.. नहीं तो आप लोग बोलोगे कि जलजला पानी का बुलबुला है. पिलपिला है. लाल टी शर्ट है.. काली कार है.. जलजला सामने आओ.. हम लोग शरीफ लोग है जो लोग बगैर नाम के हमसे बात करते हैं हम उनका जवाब नहीं देते. अरे जलजला तो सामने आ ही जाएगा पहले आप लोग अपने भीतर बैठे हुए जलजले से तो मुक्ति पा लो भाइयों....
बुरा मानकर पोस्ट मत लिखने लग जाना. क्या है कि आजकल हर दूसरी पोस्ट में जलजला का जिक्र जरूर रहता है. जरा सोचिए आप लोगों ने जलजला पर कितना वक्त जाया किया है.