ग्लोबेलाइजेशन विद ड्यू रिस्पेक्ट टू प्रिंसेज़ डायना...खुशदीप

ग्लोबेलाइज़ेशन या वैश्वीकरण क्या है...

पिछले दो दशक से हम ग्लोबेलाइज़ेशन की हवा देश में बहते देखते आ रहे हैं...लेकिन मुझे इसकी सही परिभाषा अब जाकर समझ आई है...वो भी ब्रिटेन की मरहूम प्रिंसेज डायना के ज़रिए...प्रिंसेज डायना की मौत में ही छुपी है ग्लोबेलाइजेशन की सही परिभाषा...आप कहेंगे वो कैसे...तो जनाब मैं कहूंगा वो ऐसे...


1 जुलाई 1961 – 31 अगस्त 1997

एक अंग्रेज़ प्रिंसेज अपने इजिप्शियन बॉय फ्रैंड डोडी फयाद के साथ फ्रैंच टनल में हुए हादसे में मारी गईं...हादसे के वक्त वो जर्मन कार पर सवार थीं जिसका इंजन डच था...इस कार को चलाने वाला बेल्जियन ड्राइवर था जो स्कॉटिश विह्स्की के नशे में टुन्न था...कार को अंधाधुंध दौड़ाने की वजह से हादसा हुआ, क्योंकि उसके पीछे जापानी मोटरसाइकलों पर इटालियन पैपारैज़ी (ज़बरदस्ती के फोटोग्राफर) लगे हुए थे...हादसे के बाद गंभीर रूप से घायलों का अमेरिकन डॉक्टर ने ब्राजीली दवाओं से इलाज किया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ और किसी को बचाया नहीं जा सका...

ये संदेश आप तक बिल गेट्स की टैक्नोलॉजी के ज़रिए पहुंच रहा है...आप जिस कंप्यूटर पर इसे पढ़ रहे हैं उसमें चाइनीज़ चिप्स हैं और कोरियन मॉनीटर है, जिसे किसी बांग्लादेशी ने सिंगापुर के प्लांट में असेंबल किया है...इसका ट्रासंपोर्टेशन पाकिस्तानी लॉरी ड्राइवरों ने किया...फिर इंडोनेशियाईयों ने इसे हाईजैक कर लिया और सिसिली के नाविकों ने तट पर उतारा...वहां से मैक्सिको के अवैध रूट से इसे आगे पहुंचाया गया...


आप इसे हिंदी में पढ़ने में समर्थ हैं यानि हो गया न इंडियन कनेक्शन...

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16 टिप्पणियाँ
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  1. कैसे-कैसे स्वार्थ हैं लोगों के ,इंसानियत को जिन्दा करना वाकई बड़ा मुश्किल काम है ,खैर नामुमकिन तो नहीं है ?

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  2. इस ग्लोबलाईज़ेशन का एक और पहलू काबिल-ए-ग़ौर है, कि इतने पुराने वाकये को खुशदीप याद कर कर दुबला हुआ जा रहा है ( डिस्क्लेमर: दुबले होने की ऎसी अनोखी सलाह मैंनें नहीं डॉ. दराल ने दी होगी ...
    ( हमरी न मानों तो खुशदीपवा से पूछो होऽ खुशदीपवा से पूछो.. )

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  3. यानि हो गया न इंडियन कनेक्शन...

    खुशदीप भाई बहुत बढिया सलेक्शन...

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  4. ये इंडियन कनेक्शन
    वैश्वीकरण को आगे लेकर जाएगा.

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  5. बढ़िया कनेक्शन लगाया खुशदीप भाई !!

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  6. बहुत बढिया
    वेरी-वेरी गुड लगी जी यह पोस्ट
    प्रणाम

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  7. hpd
    की भी तो सुनों रे ब्लागरों
    खामख्वाह क्यों हंसते रहते हो तुम और क्यों मुस्कुराहटें लाती पोस्टें लिखते हो

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  8. भाई लूट का वैश्वीकरण हुआ है। लूट को समाप्त करने वाली कौम का हो जाए तो सब झंझट मिटें।

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  9. वाह वाह प्रिंसेज डायना ओर ग्लोबेलाइजेशन विद ड्यू रिस्पेक्ट टू प्रिंसेज़ डायना खुस किता जी अज ते

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  10. इसीलिए ब्रिटेन की प्रिंसेस डायना हमें इन्डियन सी लग रही है ।
    डॉ अमर कुमार की बातों पर मत जाइये , अगर पतला होना है तो ज़रूर होइए ।

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  11. वाह क्या बढ़िया उदहारण दिया है वैश्वीकरण का |

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  12. खुशदीप सर, आज आपसे असहमत हूं। चाहता तो पहले कई बार की तरह बिना कमेंट किये भी जा सकता था, लेकिन आज जा नहीं सका।
    बेशक आपने ड्यू रिस्पेक्ट पहले ही लिख दिया हो, लेकिन किसी की आकस्मित मौत में से भी अपने मतलब की पोस्ट बनाना औरों के लिये शायद ठीक हो, आप जैसे संवेदनशील इंसान के लिये ठीक नहीं लग रहा, कम से कम मेरी नजर में ठीक नहीं है। आशा है, आलोचना सहन कर लेंगे।

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  13. @मो सम कौन,
    मैं कभी इतना आत्ममुग्ध नहीं हुआ कि अपना भला-बुरा ही न सोच सकूं...आलोचना ही लेखन के विकास का औज़ार होती है प्रशंसा नहीं...ग्लोबेलाइज़ेशन पर इस पोस्ट से जो संदेश मैं देना चाहता था, शायद उसके तरीके में प्रिंसेज डायना को रेफर कर मुझसे चूक हुई और तुमने अपनी बात को साफ़ साफ़ कहा, मुझे ये अच्छा लगा...अब मैं सिर्फ तुम्हारे लिए अपनी बात साफ़ करता हूं...कई बार सीधे लिखने की जगह बिटवीन द लाइंस में बात कहने से ज़्यादा असर होता है...मनमोहिनी इकॉनामिक्स के दो दशकों का ही नतीजा है कि मुकेश अंबानी दुनिया के चौथे नंबर के रईस बन गए हैं और देश की अस्सी करोड़ जनता बीस रुपये रोज़ के गुज़र-बसर पर आ गई है...आज हम केएफसी का चिकन, मैक्डॉनल्ड के फिंगर चिप्स, डोमिनोज़-पिज्जा हट के पिज्जा के साथ कोक-पेप्सी के डकार लेते हुए ये चिंता नहीं कर रहे कि ये आर्थिक उपनिवेशवाद हमारे देश के लिए आगे चलकर कितना खतरनाक होने वाला है...एक ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत आकर सदियों तक हमारे पूर्वर्जों को गुलाम बना कर रखा...और अब तो एक ईस्ट इंडिया कंपनी नहीं पूरी एमएनसी की फौज बैक डोर से देश के बाज़ार पर कब्ज़ा जमाती जा रही है...आने वाला कल कितना भयानक होगा, ये मुझे साफ़ नज़र आ रहा है...आज कोई सब्जी वाले से सब्जी नहीं खरीदता, मॉल जाकर सब्जी खरीद कर लाता है...क्योंकि वहां सस्ती होती है...ये अलग बात है कि मॉल की सब्जी महीना-महीना कोल्ड स्टोर में रखी रहती है...मॉल से ली गई कोई भी सब्जी खा लो सबका एक ही बकबका स्वाद होता है...लेकिन नहीं जनाब ठेले पर ताजा सब्जी बेचने वाले से हम सब्जी नहीं लेंगे क्योंकि वो बेचारा आढ़तियों-बिचौलियों को उनके हिस्से की कमीशन देकर खुद ही ऊंची कीमत पर सब्जी लाया है...अब वो बेचारा कहां से मॉल जितनी सस्ती सब्ज़ी आपको बेच दे...आप तो सीधे कह दोगे कि क्यों लूट रहा है...अब वो बेचारा क्या जवाब दे...उसे भी बच्चों का पेट भरना है या नहीं...फिर यही सब्जी वाला या छोटी रिटेल दुकान चलाने वाला मॉल की चकाचौंध आगे खुद का धंधा चौपट होता देख एक दिन मॉल के शीशों पर पत्थर चला देता है तो हम सब उसे गुंडा कहने लगते हैं...ग्लोबेलाइजेशन...जानम समझा करो...

    जय हिंद...

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  14. साहब बहादुर,
    आपका इतना समय मुझ अकेले पर खर्च हुआ, गड़ गया हूं जमीन में आधा।
    मेरी असहमति जिस बात पर थी, सिर्फ़ वही बात कही थी।
    रही बात आपके मुझे बिटवीन द लाईंस का मतलब बताने की, मैं आपको ब्लैक एंड व्हाईट में बताना चाहता हूं कि अड़तीस साल की उम्र तक दिल्ली में रहने के बावजूद आज तक KFC, MCDONALDS, DOMINO'S तो छोड़िये किसी माल से आज तक चार आने की शापिंग नहीं करी है। अपने लिये पड़ौस के हलवाई की पूरी कचौड़ी में जो स्वाद(जीभ का भी और मन का भी) है, वो ये MNCs कभी नहीं उपलब्ध करवा सकते।

    @ जानम समझा करो
    ---------------
    काहे दिल जलाने की बात करते हो जी? समझ ही होती तो........।

    आपका ईमेल एड्रेस गायब है प्रोफ़ाईल से, नहीं तो ये सब वहीं भेजता और वो ड्राफ़्ट भी जो मैंने सुबह आठ बजे लिखा है, शायद उससे मेरा पक्ष कुछ स्पष्ट हो जाता।

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