अुशदीप रख लूं क्या अपना नाम...खुशदीप
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शनिवार, मई 01, 2010
मरहूम शेक्सपीयर चचा क्या खूब कह गए हैं...नाम में क्या रखा है...वाकई नाम में क्या रखा है...आइडिया का एक एड आता है जिसमें इनसानों को नाम से नहीं बस नंबर से याद किया जाता है...वाकई ऐसा होता तो कितना अच्छा होता...मैं तो कहता हूं दुनिया से आधे झगड़े फसाद ही खत्म हो जाते...दो इनसान मिलते....अपना अपना नंबर बोलते...न जात का पता चलता, न मज़हब का...इशारों में बात करते तो और भी अच्छा होता...बोली न होने से न भाषा का झगड़ा रहता, न प्रांतवाद का...बस एक रंग का चक्कर ज़रूर तब भी रह जाता...लेकिन भारतीय तो ज़्यादातर गेहूंए रंग के ही होते हैं...कम से कम देश के अंदर नस्लभेद या रंगभेद की दिक्कत नहीं आती...
अरे ये क्या मैं तो उपदेश की शैली में आ गया...बात शुरू की थी मरहूम शेक्सपीयर की अमर कृति रोमियो-जूलिएट के कालजयी कोट से- नाम में क्या रखा है...गुलाब का नाम अगर कुछ और होता तो क्या उसकी खूबसूरती या खुशबू कम हो जाती...
वैसे हमारे देश में बच्चे के जन्म लेने के साथ ही नाम चुनने पर बड़ा ज़ोर दिया जाता है...पंडित जी से वर्णमाला से कोई अक्षर निकाला जाता है और फिर शुरू हो जाती है नाम रखने की कवायद...पूरा ज़ोर होता है कि नाम सार्थक हो और बिल्कुल अनयूज़्युल...इस प्रचलन का एक तो फायदा हुआ कि अब बच्चों के शुद्ध हिंदी में एक से बढ़कर एक सुंदर नाम रखे जाने लगे हैं...चलो हिंदी की किसी मामले में तो प्रासंगिकता अब भी बनी हुई है...
अब आता हूं अपने नाम पर...खुशदीप...ओ राम जी, तेरे इस नाम ने बड़ा दुख दीना...दूसरों को बेशक ये नाम पसंद आता हो लेकिन इस नाम की वजह से मैं बचपन से ही विचित्र स्थितियों का सामना करता आ रहा हूं...बचपन में मम्मी-पापा से शिकायत करता था कि इस नाम का बच्चा मुझे और कोई क्यों नहीं मिलता...अब मम्मी-पापा क्या जवाब देते...एक और राज़ की बात बताऊं...बचपन में मेरे बाल मरफी बॉय की तरह लंबे हुआ करते थे...और मम्मी मुझे ऊनी लाल रंग का जम्पर सूट पहना देती थी तो सब मुझे खरगोश बुलाना शुरू कर देते थे...उस खरगोश से ही मेरा निक नेम निकला...खरगोशी...फिर खोशी....घरवाले और सारे करीबी इसी नाम से बुलाते और स्कूल में खुशदीप...
खोशी से तो मुझे कभी दिक्कत नहीं रही लेकिन खुशदीप...उफ तौबा...पहली बार में तो कोई मेरा नाम ठीक से समझता ही नहीं...छूटते ही कहता है कुलदीप....मैं समझाता हूं...नहीं जनाब, खुशदीप...फिर सुनने वाला ऐसा भाव देता है जैसा बोलने पर बड़ा ज़ोर पड़ रहा हो...अच्छा खुशदीप...स्कूल में कोई नई मैडम अटैंडेंस लेती तो रजिस्टर पर नाम पर सरसरी नज़र डालकर ही बुलाती...खुर्शीद....मैं बड़ा हिचकता, डरता उन्हें ठीक कराता...खुर्शीद नहीं खुशदीप...मुझे स्कूल ले जाने वाला रिक्शावाला तो और भी गज़ब ढहाता...सुबह घर आता और हॉर्न के साथ ही ज़ोर से पूरे मोहल्ले को सुनाता हुआ आवाज़ देता...खु...दीप....मैं छोटे से बड़ा हो गया लेकिन मज़ाल है कि उस रिक्शे वाले के मुंह से मेरे खुशदीप का श कभी निकला हो...
कॉलेज आते आते मेरा ये मिशन बन गया कि अपनी नामराशि का कम से कम एक बंदा तो ढ़ूंढ कर ही छोड़ूंगा...साल पर साल बीतते गए लेकिन कामयाबी नहीं मिली...एक दिन अखबार में मैं खुशदीप नाम देखकर उछल पड़ा...अरे नहीं जनाब मैंने कोई तीर नहीं मारा था और न ही मेरा नाम पुलिस की वांटेड लिस्ट में था जो अखबार में आता...मैंने सोचा आज तो मैंने अपने नाम का बंदा ढूंढ ही लिया...लेकिन ख़बर पढ़ी तो वो बंदा नहीं बंदी निकली...खुशदीप कौर...भारतीय हॉकी टीम की प्लेयर...चलो बंदा न सही बंदी ही सही...कोई तो खुशदीप मिला (या मिली)...
नब्बे के दशक के आखिर में इंटरनेट का चमत्कार हुआ तो मेरी कोशिश फिर वही थी कि सर्च पर डालकर देखूं कि दुनिया में और कितने खुशदीप हैं...वहां एक नाम मिला खुशदीप बंसल (कोई मशहूर आर्किटेक्ट हैं), एक डॉक्टर भी हैं...जानकर बड़ी तसल्ली हुई कि कम से कम कुछ और खुशदीप तो हैं जिन्हें नाम को लेकर वैसे ही हालात से गुज़रना पड़ा होगा जैसे कि मैं हमेशा गुज़रता आया हूं...
लेकिन अपने नाम को लेकर सबसे ज़्यादा मज़ा ब्लॉगिंग में आ रहा है...कुलवंत हैप्पी ने कुछ दिन पहले बताया था कि उनके एक पंजाबी उपन्यास के नायक का नाम खुशदीप है...अभी दो दिन पहले मेरी पोस्ट पर वंदना जी ने टिप्पणी भेजी थी, जिसका पहला शब्द था...hushdeep ji (हुशदीप जी)...बस शू.... और आगे जोड़ देतीं तो जीवन का आनंद आ जाता...ऐसे ही एक बार शिखा वार्ष्णेय जी ने मेरा नाम शखुदीप टाइप किया था...सुनने में ही कितना क्यूट लगता है, बिल्कुल मेल शूर्पनखा जैसा....ज़ाहिर है वंदना जी और शिखा जी दोनों ही मेरी वेलविशर्स हैं, टाइपिंग ने धोखा दिया...लेकिन क्या हसीन धोखा था...
अब आता हूं असली बात पर मैं देख रहा हूं ब्लॉगिंग में अ से शुरू होने वाले नाम के जितने भी ब्लॉगर्स हैं सभी बड़ा धाकड़ लिखते हैं...मसलन
डॉ अमर कुमार
अनूप शुक्ल
अनिल पुसदकर
अरविंद मिश्र
अजित व़डनेरकर
अविनाश वाचस्पति
अजित गुप्ता
अवधिया जी
अदा
अजय कुमार झा
अनीता कुमार
डॉ अनुराग
अमरेंद्र त्रिपाठी
आशा जोगलेकर
अर्चना
अमर सिंह
अलबेला खत्री
अपनत्व
अल्पना वर्मा
अन्तर सोहेल
अब मेरा लेखन भी ज़ोरदार हो जाए तो क्या मैं भी अपना नाम खुशदीप से अुशदीप रख लूं...
वैसे मेरे गुरुदेव समीर लाल समीर तो सरस्वतीपुत्र हैं लेकिन अगर उनके नाम पर भी अ वाला फंडा अपनाया जाए तो उनका नाम हो जाएगा अमीर लाल समीर...
लेकिन सबसे क्लासिक नाम चेंज होगा...हरदिलअज़ीज अपने ताऊ का...
आssssssऊ....यानि आऊ (क्या कहा, ये सुनकर किसका नाम याद आ गया, शक्ति कपूर का...आप भी न बस...ताऊ का रामपुरी लठ्ठ देखा है न...हां नहीं तो...)
स्लॉग ओवर
गुल्ली की स्कूल और मोहल्ले से शिकायतें आने का सिलसिला बढ़ता ही जा रहा था...एक दिन पिता मक्खन ने गुल्ली को बुला कर प्यार से समझाया...देखो तुम्हारी जब भी शिकायत आती है मेरे सिर का एक बाल चिंता से सफ़ेद हो जाता है...
गुल्ली...आज समझ आया कि दादा जी के सारे बाल सफ़ेद क्यों हैं ?
ब्लॉगिंग में अ से शुरू होने वाले नाम के जितने भी ब्लॉगर्स हैं सभी
जवाब देंहटाएंबड़ा धाकड़ लिखते हैं
इसके आगे कहा जा सकता है:
लेकिन एक भाई खुशदीप हैं जिनका नाम अ से नहीं शुरू होता लेकिन धांस के लिखते हैं।
इसई लिये कहा जाता है -अपवाद नियम को सिद्ध करते हैं।
khushdeep ji
जवाब देंहटाएंtyping mistake huyi hogi vaise main naam sahi hi likhti hun.....hahahaha...........vaise naam change karne ka achcha chalan hai aajkal change karke dekh lein shayad koi fayada ho jaye kyunki vaise bhi aapki post to blogvani mein sabse upar rahti hai ab kya blogvani ko fadna hai..........hahahaha........just joking.
sach naam mein kya rakha hai soch lijiye achcha sa koi naam magar sochiye baki bhi change karn elage tab kya hoga?
खुशदीप भाई कुछ भी हो पर इस आलेख के बहाने आपके कई नाम पता चल गये ...बड़े बड़े नाम है आपके और बड़े बड़े लोगों ने रखे भी..आप तो बड़े नाम वाले हो गये.....स्लॉग ओवर के क्या कहने शुरू से ही बेहतरीन चल रहे है अब तक बरकरार...धन्यवाद भैया
जवाब देंहटाएंमै पूछती हूँ --- ये धाकड होता क्या है???? जाखड जैसा कुछ !!!!
जवाब देंहटाएंबस ऐसे ही लिखते रहिए
जवाब देंहटाएंनामारुप खुशदिल रह कर खुशियों का दीप जलाते रहिए
नाम का व्यक्ति के जीवन में बहुत महत्व है।
लेकिन इसके साथ विरोधाभास भी जुड़े हैं,
इस पर काका हाथरसी ने काफ़ी अच्छा लिखा था।
शुभकामनाएं
खोशी जी बडा प्यारा लेख लिखा, ओर मकखन का बेटा तो बाप से भी चार काम आगे निकला.:)
जवाब देंहटाएंकाम= कदम
जवाब देंहटाएंकुछ अंकशास्त्री कहते हैं कि अ से शुरू होने वाले नाम वाले लोग दूसरों के लिए अधिक सोंचते हैं .. इसलिए जीवन में खुद कष्ट पाते हैं .. आपका लेखन तो जोरदार है ही .. अब नाम बदलने का झंझट क्यूं ??
जवाब देंहटाएंनेकी और पूछ-पूछ!
जवाब देंहटाएंश्रमिक दिवस से ही रख लीजिए ना!
ओह............. अजित नाम रखा जाना था मेरा पता नही धीरु कहा से आ गया . पहले आप बता देते तो नाम तो बदल देते अब तो जिन्दगी भर धीरु से काम चलाना पडेगा .अ पर उ की मात्रा नही लग पा रही है इसलिये खुशदीप से ही काम चलाये
जवाब देंहटाएंइतना अच्छा लिखकर आप खुद ही अपनी कही बात को झूठा साबित कर रहे हैं
जवाब देंहटाएंधाकड़
दादाजी से हमदर्दी
:-)
जवाब देंहटाएंअक्खन तो बहुत शरारती है जी।
जवाब देंहटाएंआप खुशदीप सहगल ही ठीक हैं, हमारी राय कुछ मायने रखती हो तो।
खुशदीप जी ,
जवाब देंहटाएंअब आप कितना अच्छा लिखेंगे? आपका नाम सार्थक है...खुशियों के दीप जलाते रहें....वैसे वो बात अलग है कि अ से शुरू होने वाले नाम के ब्लोगर बहुत अच्छा लिखते हैं और अच्छे ब्लोगर हैं...
दादाजी का किस्सा भी ज़ोरदार रहा...
अब आता हूं असली बात पर मैं देख रहा हूं ब्लॉगिंग में 'अ' से शुरू होने वाले नाम के जितने भी ब्लॉगर्स हैं सभी बड़ा धाकड़ लिखते हैं...मसलन
जवाब देंहटाएंडॉ अमर कुमार
अनूप शुक्ल
अनिल पुसदकर
अरविंद मिश्र
अजित व़डनेरकर
अविनाश वाचस्पति
अजित गुप्ता
अवधिया जी
अदा
अजय कुमार झा
अनीता कुमार
डॉ अनुराग
अमरेंद्र त्रिपाठी
आशा जोगलेकर
अर्चना
अमर सिंह
अलबेला खत्री
अपनत्व
अल्पना वर्मा
अन्तर सोहेल
अपने खुशदीप सहगल
अपने कुलवंत हैप्पी
अपने शिवम् मिश्रा
नाम बदलने की क्या जरूरत है सब को अपना बना लो !!
है के नहीं ??
गूगल पर खुशदीप नाम तलाशो तो २४७०० पेज खुलते हैं।
जवाब देंहटाएंबड़ा प्यारा नाम है।
खुशियों के दीप जलाते रहो और खुश रहो।
स्लोग ओवर मस्त है।
अपना तो नाम 'सरदार' खूब चलता था। इस के आगे अ लगा दो तो दौड़ने लगता था।
जवाब देंहटाएंमैं स्कूल में था तो मेरा एक टीचर मेरा नाम नहीं पुक़ार पाता था.... वो मुझे मखजू बुलाता था....
जवाब देंहटाएंजय हिंद....
मेरे नाम के बारे में क्या राय है :)
जवाब देंहटाएंबड़ा अजीब लगता है जब लोगों को बताना पढता है कि ये मेरा असली नाम है और माँ बाप ने रखा है
मेरा नाम "वीनस" है "विनय" या "विनाश" नहीं और इसकी
स्पैलिंग सबसे ज्यादा परेशान करती है
कुछ बानगी देखें
vins
vinas
vinaas
venas
vinus
veenas
venas
-- venus kesari
जवाब देंहटाएंIn the blogging arena
there is A khushdeep, who came, he wrote and he won our heart.
Mind you Khushdeep carries A before him, is n't it ?
A single piece blogger, writing down to earth with core of an honest heart.
By the way you have an option to adopt a nickname "Anand Deep", Howzz it ?
खुशदीप के आगे A लगाकर उसे साइलेन्ट कर लो..अंग्रेजी में धक जाता है. :)
जवाब देंहटाएंअमीर लाल -ब्लॉगिंग की जगह कुछ और इतना मन लगा कर चार साल करते तो अब तक हो जाता. :)
गुल्ली ने पुनः होशियारी की बात की बिना नाम के आगे अ हुए.
ओ प्यारो,
जवाब देंहटाएंतुसी की गल कीता?
खुशदीप से खर्शीद तो बड़ा खूबसूरत रूपांतर है। अपन तो वडनेरकर को भटनागर बनने की प्रक्रिया में बड़ानेकर मे तब्दील होता देख चुका हूं !!!!
तब तक बड़ा नेकर के आरएसएस और भाजपा से जुड़े अश्लील अर्थ भी स्पष्ट नहीं हुए थे क्योंकि लोगों ने ही नेकर बड़ी की थी, उम्र तो कमसिनी की थी, ये अलग बात है कि लौण्डों की यही कमसिनी बड़ानेकर जैसे मुहावरे भी ईजाद कराती थी!!!
समझदारों ने भण्डारकर कहना शुरू किया। आज तक गफ़लत में हैं कि असली सरनेम कब लिख पाएंगे, क्योकि उसके भी तीन उच्चारण तो परिनिष्ठित हिन्दी-संस्कृत में हैं-गर्ग, गार्ग्य, गार्गी। आपसे तो कम ही रुसवाई है नाम के संदर्भ में ...
बढ़िया है नाम विश्लेषण ....
जवाब देंहटाएंस्लोग ओवर मस्त है ...चिंता से बाल सफ़ेद हो जाने तक तो ठीक है ...गंजे होने के मुकाबले ....
वाह क्या नाम पर चिंतन किये हैं, एक दम धांसू लिख्खड़ हैं आप तो खुशदीप भाई, बेहतरीन
जवाब देंहटाएंवाह खुशदीप भाई जी आप तो नामी व्यक्ति हैं ही। ब्लाग जगत के। और आपका लेख पढ के दिल खुश हो जाता है। अब कुछ लिख्ना नही जा रहा है लिख देता हूँ नाईस!
जवाब देंहटाएंये क्या विरोधाभास है खुशदीप जी?
जवाब देंहटाएंखुद ही तो कह रहे हैं "नाम में क्या रखा है...गुलाब का नाम अगर कुछ और होता तो क्या उसकी खूबसूरती या खुशबू कम हो जाती..." और खुद ही नाम बदलने के चक्कर में हैं?
काश मेरा नाम भी 'अ' से शुरू होता तो मैं भी कुछ धाकड़ टाईप का लिख पाता :-(
जवाब देंहटाएंकोई नया नाम सुझाएँ ....प्लीज़
बढ़िया...लाजवाब पोस्ट...
नाम में क्या रखा है! (शेक्यपियर कह गए)
जवाब देंहटाएंअब यह अ से शुरू हो या ब से :-)
धाकड़ लिखने वाले तो लिखेंगे ही
वैसे यह हुश्दीप नाम भी बुरा नहीं पंगा लेने के लिए
@पाबला जी,
जवाब देंहटाएंकिसी ने हुश कर देता, नाले दिमाग भन्ना गया ते रेबीज़ दे टीके तुआणु ही लवान पैणगे...
जय हिंद...
कोई चिंता नहीं जी!
जवाब देंहटाएंसाथियों ने इतनी प्यारी बातें कर वैक्सीनेशन तो कर ही दिया है :-)
हा हा हा यार खुशदीप भाई , आप भी न पता नहीं कहां कहां से सोच जाते हो । अमां ये अ के पीछे क्यों पड गए भाई मियां ,वैसे मैं भी अब सोचने लगा हूं कि यदि मेरा नाम चिलगोजी खान होता तो क्या फ़िर भी मेरा नाम आपकी लिस्ट में होता :)
जवाब देंहटाएंवैसे हमारे लिए तो आपका यही नाम बहुत प्यारा है और आप भी ।
Short and sweet-- Deep !
जवाब देंहटाएंखुश दीप जी,आप आप' कुलदीप 'नाम की सरलता से अपने नाम 'खुश दीप' को मत जोडिए ओर न चिंता कीजिये कुल के दीपक तो आसानी से मिल जाते हैं ख़ुशी के दीपक मुश्किल से मिलते हैं.खुशी के अभाव में लोग 'खुशी 'को लिखने में भूल करें तो आश्चर्य क्या ? आप ख़ुशी का दीपक जलाकर रखिये ,.बधाई.
जवाब देंहटाएंतेरे कुढ़न की क्या तारीफ करूँ कुछ कहते हुए भी कुढ़ती हूँ....
जवाब देंहटाएंकहीं भूल से तू न समझ बैठे तेरा नाम कुढ्दीप मैं कहती हूँ....
mera naam 'ada' hai hoy hoy hoy hoy....
ASHUDEEP JI......:):):)
बढ़िया नाम पुराण सुनाया खुशदीप भाई..मेरा नाम भी कई लोग गलत बुलाते हैं...'रेशमी' या 'रसमी ' बचपन में चिढ जाती थी और उन्हें सुधारने की कोशिश करती...पर अब तो ध्यान भी नहीं देती.
जवाब देंहटाएंऔर आपका ये खुशदीप नाम ही हर दिल अजीज़ है....लिखने दीजिये 'अ ' वालों को धाकड़ हम कम धाकड़ ही सही....पर लोग पढ़ते तो हैं...:)
इस नाम की कथा सुनेंगे
जवाब देंहटाएंविनाश वनस्पति
इसमें हंसने की क्या बात है
यह तो सुनने की करामात है
कोई अविनाश एक बार में नहीं सुनता
और वाचस्पति दस बार में भी नहीं
लिखने में कहीं वाचास्पति
कहीं वचासपति
कहीं पूछते हैं किसके पति
अच्छा पचासपति
कोई सुनने से पहले ही
कह देता है
माचिसपति
अंग्रेजी में तो और भी अधिक
Avinash की जगह Abhinash, Abinas
नाम की तो सभी के यही कहानी है
यही कविता है
यही निबंध है
ललित हो या व्यंग्य हो
हास्य हो या तरंग हो
खुशी की उड़ती रहे
सदा पतंग हो
तो इसी प्रकार पोस्टों
और टिप्पणियों की पतंगे
उड़ाते रहिए और
सभी की पोस्ट रूपी पतंगें
और टिप्पणियां काटते रहिए
खुशी सदा सबकी तरह
सबको बांटते रहिए।
बस इंटरनेट पर इसका खूब लाभ है
इस नाम का अभी तक नहीं मिला
कोई और जनाब है
आप यही नाम रख लें
हम खुशदीप रख लेंगे
और आप चाहेंगे तो
बेनामी बनकर भी रह लेंगे।
पर शर्त यही रहेगी
सारी पोस्टें और टिप्पणियां
कविता में कहनी होंगी
लिखनी होंगी।
नाम तो कई छोड़ गए हो
अमिताभ बच्चन
अशोक चक्रधर
आमिर खान
और भी हैं अनेक नेक
देख खुशदीप भाई देख।
खुशदीप भाई..ये संयोग मेरे नाम के साथ भी है,गांव मे अब भी मुझे मेरे कुछ दोस्त 'कमलेश'' की जगह 'कलमेश'' ही कहते हैं..आप जिस मुकाम पर हैं..वहां आप अब ''खुशदीप सहगल'' ही रहेंगे...
जवाब देंहटाएंखुशदीप जी ! आज ही ब्लोगिंग फिर से शुरू की तो आपका ये नाम पुराण पढ़ा अपनी गलती के लिए तो माफ़ी मांग चुकी हूँ पर शेक्सपियर अंकल ठीक ही कह गए हैं नाम में क्या रखा है...खुशियों के दीप जलना हर एक के बस कि बात नहीं आप अपने नाम को पूरी तरह चरितार्थ्र करते हैं वैसे श और ख से शुरू होने वाले नामो को लोग ज्यादा तर बिगाड़ ही देते हैं ही ही ही ..मुझे भी जब लोग " सिखा " कहते हैं बड़ा गुस्सा आता है :) ..
जवाब देंहटाएंहाँ ये अ वाला फंडा ठीक कहा....
खरगोश से खोशी खोशी से खुशदीप ... अरे वा ! अजित वडनेरकर जी को एक पोस्ट का मसाला मिल गया .. बधाई हो ।
जवाब देंहटाएंअ, आ, इ, ई....
जवाब देंहटाएंनाम का ककहरा पढ रहे हैं यहां तो...
मेरे स्कूल में एक बन्दा था जिसका नाम झम्मन लाल था, अब यार मास्टरों नें उसके नाम को ले के जो बैड बजाई थी क्या बताऊं...
मगर साहब आज उसकी खुद की एक फ़ैक्टरी है और हज़ार आदमिओं की कम्पनी चलाता है... और एक हम... सो नाम की चिंता छोडो और.... मस्त रहो यार....
ये है नामपुराण.
जवाब देंहटाएंवाह रुश्दीप भैया वाह !