ये भी एक दौर है, वो भी एक दौर था...खुशदीप

ये भी एक दौर है, वो भी एक दौर था,
आज जहां है धोनी, वहां कल कोई और था...


पहले जब कभी जीतता था भारत,
देश रहता होली-दीवाली से सराबोर था...




आज क्रिकेट में जीतता है सिर्फ पैसा,
हर तरफ़ आईपीएल की रंगीनियों का शोर सा...





ये भी एक दौर है, वो भी एक दौर था...

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22 टिप्पणियाँ
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  1. आज क्रिकेट में जीतता है सिर्फ पैसा
    ---बात तो सही है लेकिन इससे नए खिलाड़ियों को उभरने का अवसर भी मिला है।

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  2. बेचैन आत्मा जी,

    यही तो मैं कहना चाह रहा हूं कि पहले देश के लिए खेलना हर क्रिकेटर का सपना होता था...आज हर युवा क्रिकेटर का पहला सपना देश नहीं आईपीएल है...रात तीन-चार बजे तक विदेशों से मंगाई मॉ़डल्स के साथ पार्टियों में जश्न और शराब की मस्ती, ये रंग कौन सा भला कर रहे हैं हमारे युवा क्रिकेटरों का...ये सिर्फ उनकी जड़ों में मट्ठा देने के सिवा और कुछ नहीं है...

    जय हिंद...

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  3. आज काम से कम दिखावे में लोग विश्वास रखते है...पैसा कमाना मुख्य उद्देश्य हो गया है..बाकी सब सेकेंडरी उद्देश्य....

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  4. पैसा और चकाचौंध ही आज दुनिया को पसंद आ रहा है !!

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  5. लोगों के टेस्ट बदल गए हैं भाई जी !

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  6. sahi kaha ji
    aaj sirf cricket paisa rah gaya h
    bhawnaaye to gai paani me
    wo bhi din the ki apni team ki haar ke baad khane ko bhi dil nhi karta tha
    aur aaj halaat ye h ki sachin ko balling ishant sharma kar raha h
    kya fark padta h kaun jeet raha h

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  7. खुशदीप भाई!
    क्या यह खेल है? बिलकुल नहीं। यह मनोरंजन उद्योग है जुआ, सट्टा, लाटरी और कैसीनो जैसा।

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  8. बिल्कुल सही कहा………वक्त बहुत तेज़ी से बदलता है मगर इन्सान उसकी गति तो कोई नही जान सकता।
    कभी इंसानियत के लिये सिर कटाते थे लोग
    आज पैसे के लिये काट देते हैं लोग

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  9. सब पैसे का खेल रह गया है।
    लेकिन सभी खुश हैं।

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  10. "पहले जब कभी जीतता था - भारत,
    देश रहता होली-दीवाली-सा, सराबोर था..."

    वो भी एक दौर था......ये भी एक दौर है......


    और इस पर क्या कहेंगे??? ......"मै बारिश कर दूँ पैसे
    की......जो तू हो जाए मेरी...."

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  11. सबसे पहले तो यह शिकायत आपसे की एक संभावित उम्दा पोस्ट का आपने गुड गोबर कर दिया ... यह खेल दिल में मेरे उतर ही नहीं रहा... मैंने इसका आज तक एक भी मैच नहीं देखा है.... यहाँ ज़रूर कोई घालमेल है मुझे लगता है की मीडिया भी शायद पेड़ न्यूज़ दिखा रहा है... पैसे ने अच्छे अछे को खरीद लिया है.. ये कैसा खेल है लगता है हम मुजरा देख रहे है.... लोग बिअर पीते हैं, नाच देखते हैं... खेल होता है... स्क्रीन पर खेल के दौरान विज्ञापन पोप अप हो जाता है...

    मुझे पियूष मिश्र का लिखा याद आता है

    आज के जलसों में गूंगा गा रहा
    और बहरों का रेला नाचता चिल्ला रहा

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  12. हाँ शिकायत तो रह ही गयी... आप बांध कर नहीं लिखे इसलिए ... शायद समय की कमी हो, नेट स्लो हो या जो भी कारण हो ... यहाँ से मुझे ऐसी ही उम्मीदें रहती हैं... पर आप लिखते तो जबरदस्त प्रवाह होता, कुछ जानकारी होती, कुछ राय और बेहतर आ चुके होते.

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  13. यह क्रिकेट है बाबू खेल पैसो का और अब तो ............आनन्दम आनन्दम .
    बहुत साल पहले जब क्रिकेट लोकप्रिय हुआ था तब भी यही कुछ कारण थे याद किजिये बेंसन एंड हेजेज कप जो आस्ट्रेलिया मे हुआ था और सुबह ३ या ४ बजे से टी.वी पर लाइव आता था . तब क्रिकेट से ज्यादा वहा बिकनी पहनी लडकिया दिखती थी और उस समय भारत मे लिरिल का विग्यापन देखने मे भी शर्म आती थी परिवार के साथ बैठ कर .
    अब तो यह सब आम है अब २१ वी सदी मे यह नही होगा तो क्या कयामत के बाद होगा

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  14. बहुत सही कहा है आपने..अब वो चार्म जाता रहा.....पहले वाली बात नहीं रही...इसीलिए नयी पीढ़ी क्रिकेट की बजाय फ़ुटबाल की दीवानी होती जा रही है..MNU..Chelsi..Arsenal.बच्चे बस उसकी ही बातें करते हैं

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  15. वैसे इससे खेल का मजा तो जाता ही रहा है....पर एक बात सच है देखना कई चाहते हैं पर चुपके चुपके..वरना क्या बात थी जो चीर्यस लीडर कहती हैं कि जवान तो छो़ड़िए बच्चे औऱ बूढ़े भी कम बदतमीजी नहीं करते....हमारी फितरत ही कमीनी है....दूसरे देश में आम है. हमारे यहां अश्ललीलता है....पर हमारे समाज के अधिकतर लोगो की कथनी औऱ करनी .....सब जानते हैं.

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  16. क्रिकेट के नाम पर तमाशा ....धन्ना सेठों के मन बहलाव का साधन ...
    ये भी एक दौर है ...

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  17. ऐसे में भी जनता भारत रत्‍न देने की मांग करती है।

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  18. पहले क्रिकेट एक खेल था और अब एक बीमारी....
    और जैसी बीमारी खुशदीप जी दिखा रहे हैं.....कहना पड़ेगा ...जो रोगी को भावे सो वैद्य बतावे....

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  19. ऐसा नहीं है कि आज के क्रिकेटरों में खेल भावना और देश प्रेम नहीं रह गया है आपने शायद क्वार्टर फाइनल में ऑस्ट्रेलिया से जीतने के बाद युवराज का रियेक्शन नहीं देखा...........
    हां ये भी सही है कि पहले के खिलाड़ियों की तुलना में आज के खिलाड़ियों में पैसा और पोजिशन ज्यादा हावी हो गया है लेकिन येसा भी नहीं है कि उनमें खेल के प्रति समर्पण की भावना नहीं बची है..........

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