आभार...हिंदुस्तान टाइम्स
ममता दी बंगाल को दी जाने वाली गाड़ियां सिर्फ बंगाल तक ही सीमित नहीं रखना चाहती...वो एक कदम आगे बढ़ाना चाहती हैं...गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के 150वें जयंती वर्ष में ममता उनकी यादों से जुड़ी जगहों का तीर्थ कराने के लिए संस्कृति एक्सप्रेस चलाना चाहती हैं...गुरुदेव ने अपनी ज़िंदगी का एक हिस्सा बांग्लादेश (तब भारत का ही भाग) में बिताया था...ममता भारत के साथ बांग्लादेश में भी उन सभी जगहों तक संस्कृति एक्सप्रेस ले जाना चाहती हैं जहां जहां गुरुदेव के चरणकमल पड़े थे...चलिए मान लीजिए संस्कृति एक्सप्रेस चल भी गई लेकिन बांग्लादेश की ज़मीन पर पाकिस्तान से खाद-पानी लेकर पनप रहे आतंकवादी संगठन कुछ और ही चाहते हैं...वो अपनी आतंक एक्सप्रेस को भारत के हर उस कोने तक ले ले जाना चाहते हैं, जहां वो आतंक की एक से बड़ी एक इबारत लिख सकें...
ये सच है कि ममता अगर संस्कृति एक्सप्रेस की योजना को परवान चढ़ाना चाहती हैं तो उनके जेहन में बांग्लादेश के वो आम नागरिक भी हैं जो गुरुदेव के रवींद्र संगीत और रवींद्र गीति में वैसे ही आनंद का अनुभव करते हैं, जैसा कि पश्चिम बंगाल में किया जाता है...दूसरी ओर बांग्लादेश में सक्रिय आतंकी संगठन हरकत उल जेहाद अल इस्लामी (हूजी) जैसे आतंकी संगठन हर उस आदमी को अपने साथ जोड़ना चाहते हैं जो भारत को दुश्मन नंबर एक मानता है...
ज़ाहिर है हूजी को पाकिस्तान के लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद की शह है...इंडियन मुजाहिदीन के संस्थापक आमिर रज़ा ख़ान ने भी कोलकाता से निकलने के बाद बांग्लादेश का रुख किया था...बाद में पाकिस्तान भाग गया...
पिछले आठ साल में भारत में हुई पचास से ज़्यादा आतंकी वारदातों में हुजी का नाम सामने आया...11 जुलाई 2006 को मुंबई में हुए सीरियल लोकल ट्रेन ब्लास्ट को अंजाम देने के पीछे भी हुजी का हाथ मान जाता रहा है....असम में हिंसा के ज़रिए आंदोलन चलाने वाले संगठन यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) को भी छिपने और घात लगाकर दुश्मन पर हमले की ट्रेनिंग लेने के लिए बांग्लादेश की ज़मीन सबसे ज़्यादा रास आई...उल्फा का प्रभाव बांग्लादेश के छह ज़िलों में है...यहीं नहीं उल्फा का प्रमुख नेता अनूप चेतिया बांग्लादेश में ही कैद है...इन सब संगठनों का पैसा भी बांग्लादेश के बैंकों के ज़रिए ही आता है....ऐसे में क्या गारंटी कि ममता दी जो संस्कृति एक्सप्रेस बांग्लादेश ले जाना चाहती है उसका इस्तेमाल हूजी जैसे संगठन आतंक की आंधी भारत भेजने में नहीं करेंगे...सवाल बड़ा है लेकिन जवाब किसी के पास नहीं है...ममता दी के पास भी नहीं...
स्लॉग गीत
खैर छो़ड़िए ये सब टंटे आप तो एक प्यारा सा लोकगीत सुनिए...इस गीत का लिंक कल पीडी भाई ने टिप्पणी के ज़रिए मेरी पोस्ट पर दिया था...पीडी भाई को यूनुस जी की ओर से उपलब्ध कराया गया ये गीत इतना मस्त है कि न जाने कितनी बार सुन चुका हूं, फिर भी मन नहीं भर रहा...यकीन नहीं आता तो इस पोस्ट पर जाकर आप खुद ही सुन लीजिए...
Mamta di ko mamta ke saath kyun nahi apni ye mamatamayi post padhwaa dete hain...sahayd unke kuch palle pad jaaye...varna ..JAISE THE...
जवाब देंहटाएंgeet abhi sun nahi paaye hain, aap kah rahe hain to pyara hi hoga...
baki, holi ke hamlon ko dekhte hain..:):)
khushdeep ji baat mein dam hai..der na karo..mamta ji ko taar bhej do :))))))
जवाब देंहटाएंaap yahan MAMTA DI...MAMTA DI kar rahe hain aur udhar unka naam JANATA DI ho gaya hai...
जवाब देंहटाएंhaan nahi to ..!!
ab tera kya hoga lamboooo..:):):)
HOLI HAI....:):):)
HA HA HA ...
छडो जी इस ममता जी नूं.... अंजन की सीटी में म्हारो मन डोले
जवाब देंहटाएंचला चला रे डिलैवर गाड़ी हौले हौले ।। बस हमार मन भी आप की इस अंजन की सीटी मै डोलने लगा है, बहुत सुंदर गीत ओर बहुत ही सुंदर आवाज.
धन्यवाद, मै इस गीत की कापी कर के रख रहा हूं
अभी अभी ये लोक गीत सुना.... पता है कितनी हैरानी हुई है सुन कर ...इसी गीत को शायद आज से १५ साल पहले हमने अपनी एक फिल्म में इस्तेमाल किया है...एक बच्चे ने गाया है...१०-१५ minut की हमारी ये फिल्म है, सूरजकुंड के मेले पर ..देखिएगा..पसंद आएगी...चला चला रे सालभर गाडी हौले हौले..इंजन की सीटी में म्हारो मन डोले..
जवाब देंहटाएंlink yahan hai :
http://www.shails.com/video/srijan.html
sorry..
जवाब देंहटाएंचला चला रे डिलैवर गाड़ी हौले हौले ।।
इंजन की सीटी में म्हारो मन डोले..
अब रेल बजट और ममता जी पर तो कोई जोर नहीं..लिंक पर तो चटका लगा ही सकते हैं, वो ही सुनने जा रहे हैं.
जवाब देंहटाएंजिसे पूरी ट्रेन को नक्सलियों के हवाले करने से परहेज़ नहीं..वो आंतकवादियो की क्या परवाह करेगी?...
जवाब देंहटाएंगाना मजेदार रहा
ये है ममता जी की "आल इज भेल भाया"
जवाब देंहटाएंरामराम.
खुशदीप जी, आप ने बहुत सही बात कही है और चेतावनी भी सही है। लेकिन आतंक के भय से खुद को सीमित नहीं किया जा सकता। आतंकवाद का मुकाबला करते हुए भी आगे बढ़ना तो जारी रहना चाहिए।
जवाब देंहटाएंआप ने राजस्थान में भी खास हमारी हाड़ौती बोली का गीत दिया है। यह लोकगीत नहीं है। यहाँ के एक हाड़ौती कवि का लिखा गीत है। उसे वे कविसम्मेलनों के मंच पर भी सुना देते हैं। पर लोकप्रिय बहुत है।
दो दिन से शायद अनुपस्थित रही हूँ क्षमा माँग कर ही संतोष कर लेती हूँ । ैआपने ममता जी की ममता को बहुत अच्छी तरह समझा है। बाकी गीत भी चटका लगा कर सुन लेते हैं । बहुत बहुत शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंअंजन की सीटी में म्हारो दिल डोले, सुनाकर सुबह-सुबह दिल खुश कर दिया। और तो और पतिदेव भी कहने लगे कि कहाँ से आ रहा है यह गीत? वे भी खुश हो गए, पति खुश तो कायनात खुश। वैसे कल से ही इंजन की सीटी सुन रहे हैं और बेचारा उदयपुर तो तरसता ही रह गया उसे तो कुछ नहीं मिला तो हम बेहद खफा है ममता दी से। आपकी तर्ज पर क्या करें यह भूमि प्रताप की हैं यहाँ आतंकवादी तो हैं नहीं जो उन्हें मार्ग सुलभ कराया जाए। खुशदीप भाई बंगलादेश और पाकिस्तान हमें दुश्मन नहीं समझते अपितु चारा समझते हैं। ऐसी जनता कहीं और मिलेगी तो कबूतर की तरह आँखे बन्द किए हो और बिल्ली की म्याऊँ को वाह वाह कह रही हो। वे सपना देख रहे हैं कि कब यह हिन्दुस्थान पाकिस्तान बन जाए। साथ दे रहे हैं हम सब।
जवाब देंहटाएंभाई कमाल का गीत और मधुर आवाज़ ... अब तो होली का मौसम है कौन ममता का रोना रोए ....
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुमधुर गीत है...और संस्कृति एक्सप्रेस बड़ी उलझन भरी....
जवाब देंहटाएं..पर डर कर कहाँ कहाँ तक सिमट कर रह जाएँ
खुशदीप भाई , हम तो दिल्ली वाले हैं और बाहर कम ही निकलते हैं।
जवाब देंहटाएंलेकिन अब तो वो भी सोचना पड़ेगा।
खुशदीप जी , आपसे कुछ सवाल पूछने हैं :
ये चैनल वालों को खबर कैसे हो जाती है ?
उनके कैमरे के सामने वो कैसे तैयार हो जाते हैं , दिखाने के लिए ?
फिर वो साफ़ कैसे बच जाते हैं ?
यही कुछ सवाल ज़हन में उठते हैं , ऐसी खबर देखकर।
बाकि तो भगवान् ही रखवाला है , सबका।
ममता ने तो रेल बजट मे हमेशा की तरह बिहार बंगाल को ही तवज्जों दी है। 20साल से यही हो रहा है। बाकी प्रदेशों की तरफ़ कोई ध्यान नही है। जबकि भारत मे सबसे ज्यादा रेवेन्यु बिलासपुर डिविजन देता है। कुल राजस्व का 12%, इसके बाद भी यहां रेल सुविधाओं का विस्तार न हो्ना दुर्भाग्य जनक है।
जवाब देंहटाएंऔर अंजन की सीटी सुं म्हारो जियों डोले बहुत पुराणा लोकगीत हैं।
Bhadiya post ...aap sach kahate the geet ne dil khush kar diya!
जवाब देंहटाएंbahut bahut dhanywaad!
http://kavyamanjusha.blogspot.com/
लाहोर बस सेवा का प्रभाव देख चुके हैं अब संस्कृति एक्सप्रेस का भी अंजाम देखना है...क्या क्या होता है अपने भारत देश में..
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