टंकी पर श्री श्री ब्लॉग शिरोमणि...खुशदीप

आज महेंद्र मिश्र जी ने समय चक्र में एक पोस्ट डाली-आख़िर जा टंकी का है भला ?.... महेंद्र जी ने बड़े दिलचस्प और रोचक ढंग से ब्लॉगर नगर और उसकी टंकी का ज़िक्र किया...मैंने तब ही टिप्पणी में वादा किया था कि रात को टंकी की महिमा पर कुछ लिखूंगा ज़रूर...अब उसी वादे को पूरा कर रहा हूं...वैसे भी पिछले तीन-चार दिन से कुछ सीरियस मुद्दों पर ही लिखे जा रहा था...इसलिए आज आपके साथ-साथ अपना भी ज़ायका बदलना चाहता था...महेंद्र जी का शुक्रिया...उन्होंने मुझे ये मौका दिया...

हां तो जनाब आते हैं ब्लॉगर नगर और उसकी अद्भुत टंकी पर...महेंद्र जी ने ब्लॉगर नगर के बाशिंदों की तादाद 1760 बताई है...इस टंकी की महिमा का बखान करना इसलिए ज़रूरी है कि कोई भी इस टंकी की चोटी को फतेह किए बिना ब्लॉगर-ए-आज़म के तख्त पर नहीं बैठ सकता...जिस तरह बादशाह अकबर की सेकुलर छवि पर कोई उंगली नहीं उठा सकता...इसलिए ब्लॉगर-ए-आज़म के ख़िताब को विवादों से परे रखने के लिए हिंदी उपनाम श्री श्री ब्लॉग शिरोमणि से विभूषित करने की  भी साथ ही घोषणा की गई...

शार्ट में महेंद्र जी के बड्डे और छोटे ने टंकी पर किसी के चढ़ने के तरीके बताए थे...उसका लब्बो-लुआब ये निकला था...

पहला-कोई अच्छा लिखता दिखे तो उसे ताड़ के पेड़ पर चढाने की जगह टंकी पर चढ़ा दो और जब उससे खुद उतरते न बने तो हंसी-ठिठोली के ज़रिए नीचे उतार दो...


दूसरा- इतनी उंगली करो (माफ़ कीजिएगा, इससे सटीक खांटी शब्द कोई मिल नहीं पाया) कि वो अक्ल का मारा परेशान होकर खुद ही स्पाइडरमैन की तरह टंकी पर सरपट चढ़ता चला जाए..


तीसरा- टंकी पर चढ़ने की इस रफ़्तार को देखकर कोई और भोला भी वैसे ही नक्शे-कदम पर चलते हुए पीछे-पीछे टंकी पर चढ़ने लगे...

ये सब चल ही रहा था...कि ब्लॉगर नगर के बड़े-बुजुर्गों ने सोचा कि ये ब्लॉगिंग है पिछले साल के लोकसभा चुनाव वाली बीजेपी नहीं...जिसे देखो खुद को फन्नेखां समझते हुए अनुशासन हाथ में ले रहा है...इसलिए अनुशासन बनाए रखने के लिए महापंचायत बुलाई गई...एजेंडे में सिर्फ एक सूत्र पर ही विचार किया गया...कैसे किसी को टंकी पर चढ़ाया और उतारा जाए ?...सबसे पहले टंकी का मुआयना किया गया...अरे ये क्या टंकी में ऊपर चढ़ने के लिए सीढ़ियां तो बनी ही नहीं थीं...

दिमाग के काफ़ी घोड़े दौड़ाने के बाद तय हुआ कि जिस तरह दही की हांडी तोड़ने के लिए एक के ऊपर एक चढ़ कर रास्ता बनाया जाता है...ऐसे ही सर्वाधिक सम्मानित ब्लॉगर को टंकी पर चढ़ाने के लिए सभी ब्लॉगर अपने कंधों का योगदान देंगे...टंकी पर सम्मानित ब्लॉगर कब पहला कदम रखेगा, इसका भी शुभ मुहूर्त निकलवाया गया...ठीक उतने बजे ही सम्मानित ब्लॉगर टंकी पर पदार्पित होंगे...सम्मानित ब्लॉगर को टंकी पर चढ़ाने वाला दिन भी आ गया....बाजे-गाजे के साथ सभी ब्लॉगर बारातियों की तरह सज-धज कर आ पहुंचे...सम्मानित ब्लॉगर को एक के ऊपर एक कंधा देते हुए टंकी के शिखर की ओर चढ़ाया जाने लगा...लेकिन विधि का विधान देखिए...जैसे ही मुहूर्त का वक्त आया, सम्मानित ब्लॉगर महोदय मुहूर्त का टाइम भूल गए...उन्होंने नीचे वाले से पूछा...नीचे वाला भी ठहरा ब्लॉगर, सिर्फ अपने अलावा उसे दूसरे की पोस्ट क्यों याद रहे, वो भी मुहूर्त का टाइम भूल गया...इस तरह सबसे नीचे वाले तक का नंबर आ गया...याद तो उसे भी नहीं था लेकिन वो बाकी ब्लॉगर से ज़्यादा समझदार था...उसने अपने ऊपर वाले से कहा...तू यही ठहर... मैं अंदर कंट्रोल रूम में सारी व्यवस्था पर थर्ड रेफ्री की तरह नज़र रख रहे सबसे बुज़ुर्ग ब्लॉगर से मुहूर्त का टाइम पूछ कर आता हूं...जैसे ही मुहूर्त का सही टाइम हुआ, सबसे नीचे वाला ब्लॉगर ठीक उसी टाइम निकल कर कंट्रोल रूम की ओर चल दिया...अब उसके निकल जाने के बाद सर्वाधिक सम्मानित ब्लॉगर समेत बाकी ब्लॉगर महानुभावों का क्या हाल हुआ....उस पर सोचना मना है....

(डिस्क्लेमर...इस लेख को सिर्फ निर्मल हास्य की तरह लें...और कोई निहितार्थ मत ढूंढिएगा प्लीज़...)

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33 टिप्पणियाँ
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  1. हा हा हा बहुत मज़ेदार खुशदीप भाई। गज़ब रही टंकी महिमा।

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  2. ऎसी बाली ब्लॅगिया पढ़ाय दे
    फिर वो लँगड़ी उछाल देख ले
    कोई हम्मैं भी टँकी चढ़ाय दे
    फिर मेरा खस्ता हाल देख ले

    शर्त यह कि दिलीप की धन्नो न सही, धर्मेन्द्र की मौसी भी चलेगी

    कोई इनका ओऽ ओऽ ओऽऽ
    कोई इनका जुगाड़ लगाय दे
    फिर मेरा हाले-बवाल देख ले

    धत्त नामुराद टँकी कहीं की !

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  3. सही खिंचाई कर रहे हैं आप ब्लॉगर जमात की...

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  4. अच्छा है कि सिर्फ निर्मल हास्य़ के लिए लिखा है..और कोई निहितार्थ दूंढना मना है.वरना तो गजब हो जाता....हा हा!!

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  5. अरे कोई निहितार्थ नही खुशदीप जी ये तो बहुत मजेदार लेख है क्या शानदार नुक्से बताएँ है आपने...बहुत बढ़िया..

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  6. चलो सोने जाते जाते यह भी सही। पर हमें तो टंकी पर चढ़ते अब झाँई आने लगी है। कसम खा ली है नहीं चढ़ेंगे।

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  7. भईया बहुत खुब लिखा है, सुना है टंकियां ज्यादा बन गई है ओर लोग चढ नही रहे सर्दी के डर से, लेकिन अब आप बाजे गाजे के संग चढाऎगे तो शायद बात बन जाये:)
    बहुत सुंदर लेख जी

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  8. हम तो सोच रहे हैं ऐसी जितनी भी टंकी हैं सबको निपटवा दें, मतलब फ़ोड़वा दें न रहेगी टंकी न चढ़ेगा ब्लॉगर।

    वैसे भी हमने मतलब समझना बंद कर दिया है...

    रेंचो स्टाईल में - Aaal is welll (ऑ...ल इस वै...ल)

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  9. अब हम क्या कहें इसमें...
    इसी लिए तो हम हमेशा मौसी के साथ नीचे खड़े होते हैं...:):)
    पदवी भी श्री श्री ब्लॉग शिरोमणि का है ...सुश्री, श्रीमती ब्लॉगर तो टंकी से दूर ही रहेंगे....:):)

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  10. फ़ैशन के युग में निर्मल हास्य . पब्लिक है यह सब जानती है .

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  11. बहुते नाइंसाफ़ी है जी, जाईये आप तो आमिर खान हो गए , इडियट कहीं के, सब कुछो हमरे नाम पर ठेले हैं , और क्रेडिटवा दे दिए हैं , हमरे दोस्त निर्मल को , अरे मुस्काईये नहीं हमरा एक ठो दोस्त है निर्मल , मिलवाएंगे कभी आपको । अब तो एक ठो दूसरा हडताल शुरू करना पडेगा , हमरे दल में पहले से ही फ़ाईव प्वाइंट समवन का लेखक , अरे का तो नाम है उसका , ऊ पहिले ही शामिल है जी ,हमको टंकी पर चढा के मंकी बना दिए हैं आप लोग , क्या पता ऊपर से नीचे हनुमान बन के उतरें , लंका दहन के लिए , लंका कहा है , ध्यान रखिएगा ...
    अजय कुमार झा

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  12. अथ श्री टंकी टंकाय चर्चाये नमः
    प्रवाचको श्री खुशदीप शर्माः !

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  13. झा जी उतर आईन टंकी से,खुशदीपजी होई मनोरथ पुर्ण
    दु दिन भुख हड़ताल होईगे, अब ले भी आओ आटा चून।
    अब ले भी आओ आटा चून,बने गरमा-गरम लिटी चोखा।
    ई अतवार हो जाय पिकनिक,हंडी चढ जाय चिट्ठा चालिसा।
    कह रहे भैया"ललित"कविराय,सुनो बात हमारी धियान से।
    तबहिं हम चढे रहे पीछे पीछे,झा जी उतर आईन टंकी से।


    खुशदीप भाई टंकी पुराण जोरदार रहा
    पर मौसी नही आई
    बसंती को भी नही देखा
    कहीं किडनेप तो नही....

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  14. मतलब का मतबल
    वोट का बल
    निर्बल बने सबल
    दलदल मिले तो
    सब बल घटे
    दलदल घटे तो
    सबल पटे
    ब्‍लॉगर सबही रहे
    आपस में सटे सटे।

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  15. अंत वैसा ही था, जैसा मैं सोचता आ रहा था। लंगड़े बांदर वाला किस्सा याद आ गया। उसके बाद तो......धडम्म धडम्म... धडम्म धडम्म... धडम्म धडम्म... धडम्म धडम्म...हुई हो गई, लेकिन हॉस्पिटल कौन सा है।

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  16. बहुत अच्छा है मगर वो क्या है न * कोई सागर दिल को बहलाता नही बेखुदी----- इस लिये क्या कहूँ आशीर्वाद्

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  17. येल्लो, हिन्दी ब्लॉग लेखन न हुई बसन्ती हो गई जो उसके लिये टंकी पर चढ़ना पड़े!

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  18. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  19. बेहतरीन, डिस्क्लेमर देदिये..ये समझदारी का काम किया वर्ना तो ततैये के छत्ते मे हाथ डाल दिया था आज.:)

    रामराम

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  20. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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  21. आपने वादा निभाया उसके लिए आभारी हूँ .
    बहुत ही रोचक और जोरदार भाई खुशदीप जी . भाई पढ़कर आनंद आ गया . भाई माहौल को खुशनुमा बनाने के लिए बहुत बढ़िया ...मौज लेने वाले दुविधा में है कायसे सब यहाँ हा हा ठीठी कर रहे है मजे कर रहे है ...... चलिए एकाध दिन एक मीटिंग कर लें सुनिश्चित कर ले की किसको चढ़ाना है ... हा हा हा

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  22. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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  23. भैय्या यहाँ ब्लागिंग में बसंती न कहना किसी को ... वरना नोटिस मिल जायेगा.... ये समझ लीजिये ब्लागर नगर की टंकी पे जो चढ़ गया यहाँ उसे बिना बसंती के नीचे उतरना पड़ता है ...... इस टंकी के नीचे बसंती नहीं बसंता बहुत से मिलेंगे महादेव हा हा हा हा .

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  24. हम तो आदि-टंकीआरोही सागर भाई का स्‍मरण कर निर्मल हास्‍यगति को प्राप्‍त हो रहे हैं बस :)

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  25. ब्रेकिंग न्यूज़...
    ब्रेकिंग न्यूज...
    ब्रेकिंग न्यूज़....

    बेहद विश्वसनीय सूत्रों से पता चला है कि ब्लॉगिंग के जितने भी टंकी-आरोहक थे उन्होने अभिनव बिंद्रा से संपर्क किया है और उन्हें अपने अखिल भारतीय टंकी आरोहक संघ का चीफ़ पैट्रन बना लिया है...अभिनव ने बड़े दिल का परिचय देते हुए सभी टंकी-आरोहकों को फ्री में शूटिंग की ट्रेनिंग भी देना शुरू कर दिया है...इसलिए अब टंकी आरोहकों को कमज़ोर दिल वाले कहने वाले आइंदा ऐसी गुस्ताखी करने से पहले सौ बार सोच लें...कहीं 'हनुमान' और 'शेरसिंह'
    का भेजा घूम गया और अभिनव की ट्रेनिंग को उन्होंने सच में ही आजमाने की ठान ली तो कैसा महाभारत होगा, आप खुद ही अंदाज़ लगा लें...(निर्मल हास्य)

    जय हिंद...

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  26. न टंकी, न तख़्त न ताज रहेगा
    जब गूगल ही न रहेगा।

    भैया , ये तो निवेदन की घडी है।

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  27. ये टंकी आख्यान आपने अच्छा रचा...और उस पर यह ब्रेकिंग न्यूज़...वाह वाह ...:)

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  28. उंगली कर के पछताना कैसा
    तीर कमान से निकल चुका है

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