इक बुत बनाऊंगा तेरा और पूजा करूंगा,
अरे मर जाऊंगा प्यार अगर मैं दूजा करूंगा...
इक बुत बनाऊंगा... (असली नकली, 1962)
किसी पत्थर की मूरत से मुहब्बत का इरादा है,
परस्तिश की तमन्ना है, इबादत का इरादा है,
किसी पत्थर की मूरत से...(हमराज,1967)
ये दोनों गाने आज अचानक लब पर आ गए...क्यों आ गए...ये कोई मुहब्बत वगैरहा का चक्कर नहीं...ये एक इंसान की खुद से दीवानगी की हद तक मुहब्बत का मामला है...कोई बंदा आत्ममुग्ध होकर किस हद तलक जा सकता है...वो चाहता है कि उसके बुत जगह-जगह नज़र आए...यानि अपने कर्म से ज़्यादा बुतों के ज़रिए हमेशा के लिए अमर-अजर हो जाए...और सिर्फ बुत तक ही बात रूक जाती तो गनीमत थी...यहां तो बुतों को स्थापित करने के लिए भी कोई गली मोहल्ले का चौराहा नहीं हज़ारों एकड़ में फैले लंबे चौड़े पार्क चाहिएं...संगमरमर के चमचमाते फर्श चाहिएं...करोड़ों करोड़ के खर्च के बाद बुत विराज भी गए...अब चिंता इनकी हिफ़ाजत की...उसके लिए फिर करोड़ों चाहिएं...आखिर देश में ये कहां हो रहा है...ये हो रहा है देश के सबसे ज़्यादा आबादी वाले और विकास की दृष्टि से आखिरी पायदानों पर खड़े राज्य उत्तर प्रदेश में...
उत्तर प्रदेश की बागडोर बहनजी के हाथ में है...बहनजी यानि मायावती...खुद को जीती-जागती देवी बताने वाली मायावती... जो मायावती ने किया वो देश तो क्या एशिया में भी उसकी मिसाल कहीं नहीं मिलती... मायावती सरकार ने यूपी विधानसभा में एक बिल पेश किया...इस बिल का लब्बोलुआब यही है कि कि लखनऊ के नौ और नोएडा के एक स्मारक की हिफ़ाज़त के लिए स्पेशल फोर्स का गठन किया जाएगा...
शुरुआत में इस फोर्स के लिए 54 करोड़ रुपये का बजट तय किया गया है...फिर हर साल 14 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे...बुतों और स्मारकों की हिफ़ाजत के लिए अगर एक दिन का खर्चा निकाला जाए तो ये पौने चार लाख रुपये बैठता है....दस पार्कों के निर्माण पर 1,213 करोड़ रुपये पहले ही खर्च किए जा चुके हैं...अब सरकारी खज़ाने के पैसे से बुतों और पार्कों की हिफ़ाजत भी होगी...विधानसभा में पेश किए गए बिल के मुताबिक स्पेशल फोर्स के लिए नई बटालियन बनेगी...अफसरों को छोड़कर पूरी फोर्स के लिए सीधी भर्ती होगी...
इन स्मारकों में मायावती के साथ बीएसपी के संस्थापक कांशीराम और देश के संविधान निर्माता डॉ भीमजी राव अंबेडकर के भी बुत शामिल है...ये सही है महापुरुषों को भुलाया नहीं जाना चाहिए...लेकिन याद करने का ये कौन सा तरीका है कि पहले अरबो की लागत से बुत, पार्क, स्मारक बनाएं जाएं और फिर उनकी हिफ़ाजत के लिए भी रोज लाखों खर्च करने पड़े....और ये सब उसी नेता के ज़रिए हो रहा है जो खुद को दलित-पिछड़ों, गरीब-गुरबों की सबसे बड़ी हितैषी होने का दावा करती है...सरकारी खजा़ने से किए जाने वाले इस पैसे और ज़मीन का इस्तेमाल क्या विद्या के मंदिर, अस्पताल आदि खुलवाने में नहीं किया जा सकता....इतने पैसे से न जाने कितने गांवों का उद्दार हो जाता...उन गांवों का जहां विकास की किरण तक नहीं पहुंच पाती...
मायावती जी माफ़ कीजिएगा...दलित चेतना की आप कितनी भी दुहाई देती हों, सर्वजन समाज का नारा देकर सबको साथ लेकर चलने का अलख जगाती हों, लेकिन इससे तस्वीर नहीं बदलेगी...तस्वीर बदल सकती है अगर आप बुतों में अपना अहम तलाशना बंद करें और सही मायने में आखिरी पायदान पर खड़े लोगों की ज़िंदगी में बदलाव लाने की कोशिश करें...ये कोशिश आपकी राजनीति की ज़रूरत नहीं बल्कि दिल से होनी चाहिए...
स्लॉग ओवर
चार लाइना सुना रिया हूं वाले प्रख्यात हास्य कवि सुरेंद्र शर्मा ने एक बार खुद ही कविता के ज़रिए ये किस्सा सुनाया था...सुरेंद्र जी दिल्ली की जिस कॉलोनी में रहते हैं, वहां के निवासियों ने सोचा सुरेंद्र जी ने कॉलोनी का नाम रौशन किया है, इसलिए कॉलोनी वालों का भी कोई फर्ज़ बनता है...सब ने तय किया कि कॉलोनी के बीचोंबीच पार्क के पास एक खाली जगह में सुरेंद्र शर्मा जी का बुत लगवा दिया जाए...बात सुरेंद्र जी तक पहुंची...सुरेंद्र जी ने कॉलोनी के कर्ता-धर्ताओं से पूछा कि बुत पर कितना खर्च आएगा...जवाब मिला...यही ढाई-तीन लाख रुपये...सुरेंद्र जी ने इस पर तपाक से कहा...रे मूर्खों, क्यों इतनी परेशानी ले रिये हो, माल अंटी से मेरे हवाले करयो, मुझे खुद ही सुबह-शाम बुत वाली जगह खड़ा देख लियो...
इक बुत बनाऊंगा ...खुशदीप
25
शुक्रवार, जनवरी 29, 2010
बडे बडे सनकी देखे है .... यह भी एक सनक है, जिन गरीबो के नाम से जीती उन्हे क्या मिला खाने को? क्या वो इन बुतो को चाटेगे?अब भी समझ जाये जनता ओर अगली बार इसे एक भी वोट ना दे...
जवाब देंहटाएंशुरू की सारी पंक्तियाँ पढ़ कर लगा था ..पता नहीं आज क्या होने वाला है...
जवाब देंहटाएंलेकिन ना....आपको तो मायावती से पंगा लेना है ना...:):)
अब ऐसा है...बहिन जी को कौव्वों से बहुत प्रेम है ..अपने जाने के बाद भी उनके आराम का इंतजाम करवा के जा रही हैं...
बाकि रही बात गरीबों की तो.... काहे की चिंता....इतनी हाड़ काँपू ठण्ड और जानलेवा मंहगाई के बाद गरीब रहेंगे ही नहीं....
ना रहेगा बांस और .....ना ही बजायेंगी बंसरी, आपकी ये बहिन जी....
किस किस को गाइए और किस किस को रोइए
आराम बड़ी चीज़ है मुंह ढक के सोइए...
स्लाग ओवर पर हम हँस नहीं पाए हैं...
टिपण्णी चर्चा में २ कमेंट्स देखे मन बस बैठ गया ...
क्या इसे ही ब्लॉग्गिंग कहते हैं..???
मूर्ख, दम्भी, गधे, पाजी से और क्या उम्मीद की जा सकती है...
जवाब देंहटाएंतस्वीर बदल सकती है अगर आप बुतों में अपना अहम तलाशना बंद करें और सही मायने में आखिरी पायदान पर खड़े लोगों की ज़िंदगी में बदलाव लाने की कोशिश करें...ये कोशिश आपकी राजनीति की ज़रूरत नहीं बल्कि दिल से होनी चाहिए...
जवाब देंहटाएं-काश, समझ पाती!!
स्लॉग ओवर मस्त रहा!
किसी पत्थर की मूरत से मुहब्बत का इरादा है ...अजी... उनकी मुहब्बत पर कुर्बान होकर ही तो खुद ही पत्थर में ढले जा रहे हैं ....
जवाब देंहटाएंमायावती जी ऐतिहासिक कार्य करने वालों की लिस्ट में अपना नाम सुनहरे अक्षरों में दर्ज करवाना चाहती हैं ...जीते जी अपनी मूर्ति लगवाकर कर ही लिया है ....
मगर ज्यादा अफ़सोस और आश्चर्य उन लोगो के लिए है जो इन्हें अपने समाज की नेता मानकर उन्हें भरपूर चंदा इनाम देते हैं ..वे लोग भी चुप हैं ....
उनकी गाढ़ी मेहनत की कमाई किस तरह बर्बाद की जा रही है ..उनका दिल जरा भी नहीं दुखता ..??
यह तो आज की जनता जानती है गरीबों के बारे में कितना सोचा जाता है , फिर भी वोट बटोर लेते हैं ऐसे नेता ? आभार !
जवाब देंहटाएंबुत बनाने में जो रकम खर्च की जा रही है उससे कितने ही गरीबों का भला हो सकता है पर नहीं जनाब गरीबों की भलाई करने से कोई याद थोड़े ही करेगा, अमर(?) तो बुत बनाकर ही हुआ जा सकता है।
जवाब देंहटाएंबस एक मूर्ती मंत्रालय की कमी रह गयी है। लेकिन लगता है वो भी जल्दी ही पूरी हो जाएगी।
जवाब देंहटाएंशर्मा ओवर , ओह मांफ कीजिये, स्लोग ओवर बढ़िया रहा।
बुत लगा कर कोई अमर नहीं होता।
जवाब देंहटाएंइस मायावती से बड़ा कोई सनकी नहीं दिखा आज तक...ये ज़बरदस्ती खुद को अमर बनाने की कोशिश कर रही है...अरे!..ऐसे काम करती ही क्यों हो कि हर आने वाला और हर जाने वाला गाली दे के निकले(और इस से ज़्यादा वो कर भी क्या सकता है?)
जवाब देंहटाएंअगर अमर ही होना है तो जीते जी ऐसे काम कर जाओ कि बड़े-बुज़ुर्ग दुआएं दें...जवान सलामी ठोंके और छोटे चरण स्पर्श करें... अच्छे काम करोगी तो अमर अपने आप हो जाओगी
शर्मा जी से कुछ सीख लें
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लेख !आशा बनायें रखे ...कभी तो अच्छा भी होगा .. शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएं.
.
खुशदीप जी,
बहन मायावती जी ऐसा क्यों कर रही हैं इसको समझने के लिये आपको दलित मानस को भी समझना पढ़ेगा, काफी चिंतन-मनन है इस सब के पीछे... अभी बस इतना ही कहूँगा कि यह क्रिया नहीं प्रतिक्रिया है...सदियों से हाशिये पर रखे गये वर्ग जिसने आजादी से न जाने क्या-क्या उम्मीद लगाई हुई थीं...उस वर्ग की उम्मीदें योजनाबद्ध तरीके से तोड़ीं गई... वोट बैंक से ज्यादा कभी कुछ नहीं समझा गया जिनको...उनकी प्रतिक्रिया...ठेंगा दिखाती, मुँह चिड़ाती, अपने जागने, खुद के महत्व को पहचानने का उदघोष करती एक प्रतिक्रिया...मेरे ऊपर के टिप्पणी कारों ने जो कमेंट दिये हैं ऐसे कमेंट मिलेंगे यह पता था उस दलित नेत्री को... जितना ऐसा कहा जायेगा...दलित चेतना उतना ही जागृत होगी...मुद्दों को, असमानता को, भेदभाव को किनारे कर अपने और केवल अपने हित की चिन्ता करते खाते पीते, पेट भरे, लिबराइजेशन और ग्लोबलाइजेशन की गाय को दुहते, अगड़े बुद्धिजीवी वर्ग के सौन्दर्यबोध और कम्फर्ट लेवल को भले ही यह कदम चोट पहुंचाता है...पर यह उठाया भी इसी लिये गया है।
और हाँ, कभी समय मिले तो गिनती करियेगा कि हमारे अघोषित पर निर्विवाद राजवंश के सदस्यों के कितने बुत खड़े हैं देश में, कितना खर्चा हुआ उन पर, कितनी सड़कें, संस्थान, पुल हवाई अड्डे, चौराहे, बाजार आदि आदि हैं उनके नाम पर ?
आभार!
माया की माया दलितों को कहाँ से कहां ले जायेगी
जवाब देंहटाएंउनकी दो वक्त की रोटी से एक नया बुत बनायेगी
हो समाधि मे लीन वो बहिन जी के गुण गायेंगे
जै माया जय माया फिर भूख किसे रह जायेगी
इस बेलगाम बेगैरत दम्भी से कोई जनता को बचाओ
माया मोमो ठगणी है कोई उन्हें समझाओ
खुशदीप जी उसने तो शाहजहाँ के साथ टक्कर लेने के लिये ये डरामा रचा है। अच्छी पोस्ट है । आशीर्वाद्
हम तो बस गीत की चर्चा करेंगे खुशदीप भाई क्योंकि दोनो ही गीत मेरे सर्वकालीन पसंदीदा गाने हैं...
जवाब देंहटाएंदलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित... दलित...
जवाब देंहटाएंयह वही स्वर है jismen mayawati chikhti है... aap bhi naa kisi दलित ko aatmasamman se jeene nahi dena chahte !!!!
@ प्रवीण जी शायद सही कह रहे है !
जवाब देंहटाएंदलितों का तर्क देखिये : अगर मायावती के बुतों से आपको दिक्कत हो रही है तो फिर क्यों ये लालकिले, क़ुतुब मीनार, ताज महल इत्यादि को जीवित रखे हो, और इतने अरबो रूपये हर साल रख-रखाव पर खर्च कर रहे हो ? इनको बनाने में भी तो हजारो निरीह, गरीब मजदूरों का शोषण और बलिदान हुआ था ! कल तुम्ही लोग, तुम्हारी ही सरकारे, मायावती के स्मारकों को भी उसी तरह संजोयेंगी जैसे आज आप लोग लाल किले को संजो के रखे हो !
लेकिन प्रवीण जी एक बात जरूर कहना चाहूंगा कि मायावती का उद्देश्य चाहे जो भी हो, लेकिन मुझे दुःख इस बात का है कि यह सब मेरे पैसे से और मेरे बच्चो का पेट काटकर बनाया जा रहा है इसलिए मैं इसका विरोध कर रहा हूँ ! इज्जत बुत बनाने से नहीं दिलो में जगह बनाने से मिलती है ! आज आप उत्तर प्रदेश के हालात देख रहे है ? फिर भी ये भेड़े बार बार इसी गडरिये को कुर्सी सौंप रही है !
क्या पता भाई मरने के बाद मौका मिले ना मिले? हम तो अभी तमन्ना पूरी करे लेते हैं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
यह कोई नया तो काम नही है सदियो से बुत बनवाये जाते रहे है .बेचारी दौलत माफ़ किजिये दलित की बेटी ने अगर मूर्ति अपनी लगवाली तो क्या गुनाह किया . आप और हम जैसे उच्च मान्सिकता के लोगो को कोइ काम ही नही है इस्के अलावा
जवाब देंहटाएंखुशनसीबी समझ जो तेरी मूरत को दिल में बसाया हमने...
जवाब देंहटाएंवर्ना बुतपरस्ती का हमें कोई शौक नहीं मशाल...
और ये हैं कि जबरदस्ती जगह बनाने में लगे हैं..
जय हिंद...
प्रवीण जी से काफ़ी हद तक सहमत।
जवाब देंहटाएंवह (बहन मायावती जी) अपने मकसद में कामयाब तो हैं।
हम विरोध तो इसलिये भी करते हैं ताकि शायद कभी दलित वर्ग भी इस नजरिये से देखे और सत्य को समझे,क्यों कि इस सब से भला तो उनका भी नहीं न हो रहा है।
जय हिंद्
मायावती जी माफ़ कीजिएगा...दलित चेतना की आप कितनी भी दुहाई देती हों, सर्वजन समाज का नारा देकर सबको साथ लेकर चलने का अलख जगाती हों, लेकिन इससे तस्वीर नहीं बदलेगी...तस्वीर बदल सकती है अगर आप बुतों में अपना अहम तलाशना बंद करें और सही मायने में आखिरी पायदान पर खड़े लोगों की ज़िंदगी में बदलाव लाने की कोशिश करें...ये कोशिश आपकी राजनीति की ज़रूरत नहीं बल्कि दिल से होनी चाहिए...
जवाब देंहटाएंsachi bat
बुत बनेंगे फिर बुतखाने बनेंगे ..बुतपरस्ती के ठिकाने बनेंगे
जवाब देंहटाएंइंसानो की जगह होंगे पत्थर ..हम पत्थरों के दिवाने बनेंगे ।- (शरद कोकास।
@प्रवीण शाह जी
जवाब देंहटाएंबात साफ हो गयी जो आप ने कहा उससे, और ये भी पता हो गया कि इनका विकास क्यों नहीं हो पाया । कैसे पता चलेगा जब तक आप जैसे तुच्ची सोच वाले लोग विराजमान रहेंगे, आप बस बंद आखों से हाँ-हाँ कहिए , जो आपकी बहन मायावती कर रही हैं सब सही है , सब सही है ।
बुतपरस्ती तो है खुशदीप ख़ुदा को भी पसंद,
जवाब देंहटाएंवर्ना क़ाबा न बनाता वो सनमख़ाने में।
हा हा बहुत ही बेहतरीन तंज़।