जी हां...आज मैं कुछ नहीं कहूंगा...आज सिर्फ आप सब की सुनुंगा...एक दिन पहले उड़न तश्तरी वाले गुरुदेव ने पेड़, पत्तियों, मौसम, बर्फीली आंधियों को बिम्ब बनाते हुए बड़ी मर्मस्पर्शी पोस्ट लिखी थी-
क्या पता-कल हो न हो!!-एक लघु कथा
http://udantashtari.blogspot.com/2009/11/blog-post_12.html
इस पर मैंने अपनी टिप्पणी भेजी...
कल क्या होगा, किसको पता
अभी ज़िंदगी का ले ले मज़ा...
गुरुदेव, बड़ा गूढ़ दर्शन दे दिया....क्या ये पेड़ उन मां-बाप के बिम्ब नहीं है जिनके बच्चे दूर कहीं बसेरा बना लेते हैं....साल-दो साल में एक बार घर लौटते हैं तो मां-बाप उन पलों को भरपूर जी लेना चाहते हैं...
जय हिंद...
तीन मिनट बाद ही अपनी पोस्ट पर ही समीर लाल समीर जी ने यह टिप्पणी डाली...
Udan Tashtari ने कहा…
बहुत सही पकड़ा खुशदीप...यही तो वजह है कि तुम... :)
इसी पोस्ट पर चार घंटे पचास मिनट बाद अनूप शुक्ल जी ने टिप्पणी भेजी...
अनूप शुक्ल ने कहा…
बहुत सही पकड़ा खुशदीप...यही तो वजह है कि तुम... :) लघु कथा का मामला तो खुशदीप ने पकड़ लिया लेकिन ये यहां पर तुम और स्माइली के बीच क्या है इसे कौन पकड़ेगा?
अनूप जी के मन में ये टिप्पणी भेजते हुए क्या था, मैं नहीं जानता...अगर वो कुछ पूछना चाहते हैं तो खुलकर बताएं...ये छायावाद की भाषा मेरी कम ही समझ में आती है...मैं यथाशक्ति उनकी शंका को दूर करने की कोशिश करूंगा...इसलिए नहीं कि मुझे कोई सफाई देने की जरूरत है...बल्कि इसलिए कि मैं अनूप जी का बहुत सम्मान करता हूं...अगर वो सवाल नहीं भी करते तो कल मैं पोस्ट में अपनी बात रखूंगा...
कल की पोस्ट का इंतज़ार रहेगा
जवाब देंहटाएंहाँ भाई तो फिर कल की पोस्ट या शुकुल जी का जवाब....!!!
जवाब देंहटाएंखुशदीप जी,
जवाब देंहटाएंहम इंतज़ार करेंगे कल के पोस्ट का..
ख़ुदा करे के कल आये
और साथ में क़यामत भी आये...
JAI HIND...
JAI HINDI...
हम इंतज़ार करेंगे .............
जवाब देंहटाएंअरे अरे, भई उ त मजाक किये थे...काहे एतन गंभीर हो गये!!
जवाब देंहटाएंYes, communication must always be clear and direct.
जवाब देंहटाएंजहाँ तक मैं जानता हूँ अनूप सर परसाई जी जी भक्त हैं... यह उनका तेज़ दिमाग ही है जो हर जगह व्यंग खोज लेते हैं... यह उनकी हाजिरजवाबी और मंत्रमुग्ध कर देने वाला सजग मस्तिष्क है... उनके लेख अगर आप पढें या फिर कई ब्लॉग पर कमेंट्स... तो यह आम बात है... अच्छी बात यह होगी की हम इससे आनंद उठायें.. वैसे भी समीर अंकल और अनूप सर दोनों एक दूसरे का टांग बरसों से खीच रहें हैं... मगर दिल में जबरदस्त प्रेम समेटे हुए... शंका का निराकरण समीर अंकल ने कर भी दिया है.... हिंदी - मराठी मानुस वाला लेख अच्छा था... शुक्रिया...
जवाब देंहटाएंसागर सही कह रहे हैं,उनसे बहुत बार बात हुई जिसमे परसाई जी का ज़िक्र वो अक्सर करते रहे हैं।वो अच्छे नही बल्कि बहुत अच्छे इंसान है वे हर बात मे व्यंग खोज लेते हैं।कई बार हम उसे पकड़ पाते हैं और कई बार हम गलतफ़हमी का शिकार भी हो जाते हैं।बाकी आप खुद समझदार हैं।
जवाब देंहटाएंआपको इतना घबराने की कोई जरूरत नहीं है। इन दिग्गजों की रेल-पेल में कोई ऐसी वैसी बात मत कह दीजिएगा, नहीं तो दुनिया मौज लेगी और ये बदस्तूर मुस्कराएंगे। बस बिन्दास लिखते रहिए जो काम आप बखूबी करते हैं।
जवाब देंहटाएंइस मुद्दे पर चुप रहने की पॉलिसी अच्छी है।
खुशदीप जी, यह टिप्पणी मैंने समीरलालजी की टिप्पणी पर की थी। कारण कुछ-कुछ इस चर्चा और इस चर्चा में दिया है! मुझे न इस बारे में कोई शंका है न कोई सवाल। हां आपकी पोस्ट का इंतजार है।
जवाब देंहटाएंआपकी अगली पोस्ट का इंतजार है।
जवाब देंहटाएंखुशदीप भाई, आपकी टिपण्णी पूरी तरह से इमानदार थी. अब समीर जी तो मंजे हुए खिलाडी हैं. इसलिए जो कहना चाह रहे होंगे वो अच्छा ही होगा.
जवाब देंहटाएंचलो आपको एक और पोस्ट के लिये मुद्द मिल गया। इन्तज़ार रहेगा कल का शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंखुशदीप
जवाब देंहटाएंभैया, वो तो स्पष्ट रूप से मजाक दिख रहा है, लेकिन मजाक उड़ना या बनाना नहीं... आप बेवज़ह मामले को तूल दे रहे हैं... आप तो ऐसे ना थे..
जब आप ही ऐसी बातें करेंगें तो हम बुद्धिजीवी ब्लॉगर ढूँढने फिर कहाँ जाएँ??? छोडिये बेवज़ह की बातें, फिर से कोई ऐसा मुद्दा उठाइए की जिससे देश का भला हो, साहित्य का भला हो और हिन्दी का भला हो...
जय हिंद...
स्लाग ओवर होता तो हम भी बुत्ती पकडने की कोशिश करते :)
जवाब देंहटाएंइतनी गहन चर्चा।
जवाब देंहटाएंछायावाद ,रहस्यवाद मे इसी तरह परिवर्तित होता है ।
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