जी हां, मुबारक हो दुनिया आगे जा रही है और हमने रिवर्स गियर पकड़ लिया है...ऊपर वाले ने चाहा तो हम जल्दी ही 1947 से पहले के उस दौर में पहुंच जाएंगे जहां अंग्रेजों ने हमें छोड़ा था...सरदार पटेल ने बड़ी मुश्किल से रियासतों में बंटे देश को एकसूत्र में जोड़ा था...हमारे देश के कर्णधारों ने लगता है फिर देश को टुकड़ों में तोड़ने की ठान ली है...
मराठी मानुस की राजनीति करने वाले राज ठाकरे ने बाल ठाकरे की तर्ज पर महाराष्ट्र में प्रांतवाद का जो राग छेड़ा, अब वही तान मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के राज में भी सुनी जा सकती है...मध्य प्रदेश देश का पहला हिंदीभाषी राज है जहां के मुख्यमंत्री ने प्रांतवाद की बोली बोली है...शिवराज ताल ठोक कर कह रहे हैं कि मध्य प्रदेश में नौकरियों पर पहला हक प्रदेश के लोगों का बनता है...यानी साफ है कि उत्तर प्रदेश और बिहार से रोजी रोटी की तलाश में मध्य प्रदेश पहुंचे लोग शिवराज के एजेंडे में कहीं नहीं है....
देश का संविधान बेशक हर नागरिक को देश में किसी भी जगह बसने का अधिकार देता हो, लेकिन वोटों की राजनीति अब अपने नियम-कायदे अलग बनाने लगी है...महाराष्ट्र में बाल ठाकरे हो या राज ठाकरे, दोनों को अपनी राजनीति के लिेए सेना चाहिए...इसलिए बाल ठाकरे की शिवसेना हो या राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना..दोनों की रणनीति यही रही है कि पहले दुश्मन बनाओ, फिर समर्थकों की सेना खुद-ब-खुद पीछे खड़ी हो जाएगी...
साठ के दशक में बाल ठाकरे ने.. बजाओ पुंगी, भगाओ लुंगी... का नारा देकर दक्षिण भारतीयों पर निशाना साधा था...वहीं राज ठाकरे ने सियासत में आगाज़ के लिए उत्तर भारतीयों पर निशाना साधा...निशाना कितना सटीक लगा ये राज ठाकरे ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में 13 सीट जीत कर दिखा भी दिया...मराठी मानुस के लिए सौ फीसदी रोजगार के राज के नारे को थामकर ही शिवराज मध्य प्रदेश के लोगों को रोजगार का झुनझुना दिखाकर अपने लिए राजनीति में स्थायी रोजगार का जुगाड़ करना चाहते हैं...
ये इत्तेफ़ाक ही है कि शिवराज के नाम में शिव भी है और राज भी...अब शायद शिवराज को दरकार है शिवसेना और राज की सेना की तरह अपनी सेना खड़ी करने की...बांटने की ये आग खतरनाक है...और वोटों के खेल में घर का ही कुछ हिस्सा जलता है तो परवाह किसे है...बाकी बचे घर पर तो अपना कब्ज़ा बना रहेगा..लेकिन इस आग की आंच ऐसे ही एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश तक फैलती गई तो पूरा देश इससे झुलसने से नहीं बचेगा...और अब इस आग से बचाने के लिए कोई सरदार पटेल भी नहीं है हमारे पास...
बांटने की यह राजनीति देश को न जाने कहाँ ले जाएगी।
जवाब देंहटाएंवोटों की ये राजनीती देश को गर्त में धकेल के रहेगी...
जवाब देंहटाएंपहले दक्षिण में हिन्दी का विरोध शुरू हुआ..फिर महाराष्ट्र में हिन्दी भाषियों का विरोध... अब मध्य प्रदेश में इसकी चिंगारी...कल को हरियाणा-पँजाब समेत..समूचे देश में यही घिनौना खेल खेला जाने लगे तो कोई आश्चर्य नहीं..
लगने दो रिवर्स गियर .... जाने दो देश को फ़िर १९४७ के पहले वाले दौर में ....... हो सकता है उसी के बाद ही सब की समझ में आये देश और आज़ादी की कीमत क्या होती है ??
जवाब देंहटाएंहम इस दौर में जी रहे है यहाँ युवा लक्ष्य विहीन भटक रहे है .....नहीं जानते कीमत उस आज़ादी की जो विरासत में मिली है और जो हमारे बुजुर्ग है वह लोग सब अब देश से पेंशन मांग रहे है और जो देश ना दे पेंशन तो कहे की टेंशन देश तो बाप का माल है ही बेच खाओ कौन बैठा है यहाँ जो रोक ले ??
इस लिए जाने दो देश को १९४७ वाले दौर में ......... फ़िर से आज़ादी लायेगे हम लोग मिल कर और अब की बार कोई भी 'भूरा साहब' नहीं होगा यह वादा रहा !!
जय हिंद !!
आपकी पोस्ट पढकर पुण्य प्रसुन्न वाजपेयी के एक लेख का स्मरण हो आया...शायद उन्होने कल परसों ही लिखा है ।
जवाब देंहटाएं"..लेकिन इस आग की आंच ऐसे ही एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश तक फैलती गई तो पूरा देश इससे झुलसने से नहीं बचेगा...और अब इस आग से बचाने के लिए कोई सरदार पटेल भी नहीं है हमारे पास..."
जवाब देंहटाएंदेश के हालात बिगाड़ने के लिए राजनेता सबसे अधिक दोषी हैं।
आपकी बात में सत्यता है!
आपने बहुत सही कहा ...देश का संविधान हर इंसान को ऐसी इजाजत देता है ...मुझे लगता है की जब सुदूर देशों में बसने वाले अप्रवासी अपनी जड़ों की और लौटते हुए फिर से इस देश में बसने का सपना संजोयेंगे तब उन्हें ज्यादा पीडा सताएगी ...सात समंदर पार अप्रवासी होने का दुःख तो फिर भी सहन होगा ...कुछ किलोमीटर्स की दूरी पर अप्रवासी हो जाने का ग़म किस तरह सहा जाएगा ...!!
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग पर इस तरह के सवाल बहुत प्रभावित करते हैं ..कुछ प्रतिशत सोयी हुई आत्माएं जाग जाए तो भी आपका प्रयास सफल ही माना जाएगा ...बहुत आभार व शुभकामनायें ...!!
आज स्वार्थी तत्व स्वहित के लिये देश को टुकड़ों में बाँटने का प्रयास कर रहे हैं। ऐसे में आपका ब्लॉग यह सन्देश देकर कि "मराठी, बंगाली, उत्तर भारतीय, दक्षिण भारतीय होने के पहले हम भारतीय हैं" अत्यन्त महत्वपूर्ण और सराहनीय कार्य कर रहा है!
जवाब देंहटाएंइस सन्देश को मात्र हिन्दी ब्लॉगर्स तक ही सीमित न रख कर जन-जन तक पहुँचाने की अत्यन्त आवश्यकता है।
ये रोना है तो सब जगह लेकिन दिखता वंही का है जंहा का रोना भाई लोग दिखाते हैं।क्या असम और पूर्वोत्तर मे हालत महाराष्ट्र के सिर्फ़ मुम्बई से बेहतर है।यंहा छत्तीसगढ मे भी ये ज़हर फ़ैलाने की भरपूर कोशिश की गई है।आदिवासीवाद फ़िर छत्तीसगढिया की बात,अब ये तय कौन करेगा कि कौन बाहरी है और कैन लोकल,क्या वो लोकल जो कभी छत्तीसगढ मे नही रहा और राज्य बनने के बाद आ गया राज करने के लिये वो लोकल है?क्या वो बाहरी जो पैदा ही यंहा हुआ और पढाई-लिखाई से लेकर सारा वक़्त यंहा की सेवा मे लगा दिया वो राज्य बनने के बाद बाहरी हो गया?बहुत सी बाते हैं जिसे नफ़रत फ़ैलाने वालों का प्रमुख हथियार बन चुके इलेक्ट्रानिक भाई लोग दिखाते ही नही।इनकी नज़र मे पोज़िटिव खबरें बिकती नही है इसलिये वे दिखती नही है।शिवराज ने जो कहा उस पर कौन सा आज ही अमल हो रहा था लेकिन नही सबसे पहले ब्रेक करने की हड़बड़ी सारे सिद्धांतो को ही ब्रेक कर दे रही है।ऐसा लगता है कि खबर ब्रेक करने की प्रवृती देश को ब्रेक करने का टूल बनती जा रही है।एक बार फ़िर ये मेरे अपन व्यक्तिगर विचार है,ज़रूरी नही की सभी सहमत हों।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंहकीकत यही है कि हर राज्य की यही स्थिति है और हर राज्य के लोग आये दिन इसी बात का रोना रोते रहते है ! वो तो बीजेपी के जोकरों की मजबूरी है कि वे सर्कस के मंच पर ही पहुँच कर करतब दिखाते है, चुपचाप घर बैठकर नाटक करने में विस्वास ही नहीं रखते या फिर यों कहे कि इन्होने कभी टीवी के कैमरे ही नहीं देखे इसलिए कैमरे पर आने का बहुत शौक रहता है, और अपनी ग्रेट सेकुलर मीडिया के तो क्या कहने, कहीं भी इन्हें कवरेज़ करने से नहीं चूकती !
जवाब देंहटाएंशिवराज ताल ठोक कर कह रहे हैं कि मध्य प्रदेश में नौकरियों पर पहला हक प्रदेश के लोगों का बनता है...यानी साफ है कि उत्तर प्रदेश और बिहार से रोजी रोटी की तलाश में मध्य प्रदेश पहुंचे लोग शिवराज के एजेंडे में कहीं नहीं है....
जवाब देंहटाएंकुल मिला के असम की भी यही स्थिति है ....पर इनसे कोई पूछे ये असम से बाहर जा कर क्यों नौकरियां कर कर रहे हैं .....रहे अपने कुंएं में और टर्राते रहें .....!!
Every Tom, Dick, and Harry in India knows that regionalism and fundamentalism(read fanatism) has no place in our system/constitution but the grey areas in it are being misutilised by some parties for petty electoral gains.It seems they have forgotten history whereby we have been ruled by the foreign elements for centuries just for one simple reason of our divided society based on caste and region.
जवाब देंहटाएंOur constitution propagates democracy and secularism and if lt is the need of the day, I think it should be ammended and equate the separatist leaders falling within the definition of regionalism with those like waging war against the STATE and prosecuted.
Regionalism, I think is like slow poison which will definitely show its evil effects in the future and I think it is very difficult that we will get a person like Sardar Patel in this selfish political era who will stand up and lead the country with his kind of vision. Also, who knows that by that time it will be too late and we may be divided on the similar regional lines, like, in our neighbouring country,Pakistan.
Therefore, we as Indians should realise our responsibility and raise our voice against such leaders who are propagating or promoting regionalism and contribute our bit in securing the future of our generations.
Khusdeep ji, I am really missing your slog over.
"Yeh bhi likhte raho bhai".
खुशदीप भाई, मुबारक हो आपका ये परिवर्तन.
जवाब देंहटाएंबस बनाये रखिये.
इत्तेफाकन, मैं भी पिछले हफ्ते बहुत व्यस्त रहा. इसलिए पोस्ट भी नही लिख पाया.
इस बीच आपने बहुत अच्छे और गहरे मुद्दे उठाने शुरू कर दिए , ये देखकर अच्छा लगा.
आपके द्वारा उठाये गए मुद्दों पर बड़ी गंभीरता से मित्र लोग विचार प्रकट कर रहे है, ये ब्लोगिंग के लिए शुभ संकेत हैं. बधाई
गुज़रा हुआ ज़माना आता नहीं दुबारा
जवाब देंहटाएंहाफ़िज़ खुदा तुम्हारा.......:)
मेरे जीवन मे तो अभी तक नही लौटा है खुशदीप भाइ ..अब का बताई
जवाब देंहटाएं