ये इमोशनल वाला इमोशनल नहीं, इमोसनल वाला इमोसनल अत्याचार ही है...ठीक वैसे ही जैसे पुरानी फिल्म मिलन में सुनील दत्त...सावन का महीना, पवन करे सोर...गाना नूतन को सिखाते हुए कहते है...अरे बाबा शोर नहीं, सोर..सोर...
हां तो मैं बात कर रहा हूं मासूमों पर इमोसनल अत्याचार की...ये मासूम अभी पहला शब्द भी बोलना नहीं सीख पाए हैं...मां की गोद ही इनके लिए सब कुछ होती है...लेकिन ये मासूम भले ही कुछ देर के लिए सही... मां से अलग होते हैं...इन्हें सौंप दिया जाता है ऐसे हाथों में जिन्होंने बच्चे पालना तो दूर शायद ही पहले कभी किसी बच्चे को गोद में खिलाया हो...बच्चे रोते-बिलखते रहते हैं...और उनके नए पालनहार कुड़ते हैं...नाच न आवे, आंगन टेड़ा वाली कहावत को चित्रार्थ करते बस अपनी परेशानियों का रोना रोते रहते है...बच्चों की ये दुर्दशा उनके मां-बाप दूसरे कमरों में बैठ कर देखते रहते हैं...साथ ही पूरा देश मासूमों पर इस इमोसनल अत्याचार का टेलीविजन पर गवाह बन रहा है...जितना ज़्यादा मेलोड्रामा, उतनी ही प्रोग्राम की टीआरपी ऊंची...
अभी तक आप समझ ही गए होंगे, मैं किस ओर इशारा कर रहा हूं...मैं बात कर रहा हूं एनडीटीवी इमेजिन पर शुरू हुए सीरियल...पति, पत्नी और वो की...जिसमें दूधपीते मासूम बच्चों को उनके हाल में नौसिखिया प्रतिभागियों के पास छोड़ दिया जाता है...धन्य हैं इस प्रोग्राम के क्रिएटर्स और धन्य है बच्चों का ऐसा हाल कराने वाले उनके मां-बाप...चलो प्रोग्राम बनाने वालों का तो मकसद है रियल्टी शो के नाम पर ज़्यादा से ज्यादा टीआरपी बटोर कर विज्ञापनों के ज़रिेए मोटी कमाई करना...लेकिन इन मां-बाप के लिए ऐसी कौन सी मजबूरी है जो अपने ही जिगर के टुकड़ों पर ये सितम ढा रहे हैं...क्या वो बच्चों को, जिन्होंने चलना भी नहीं सीखा है, टीवी स्टार बनाना चाहते हैं...या खुद ही चंद चांदी के टुकड़ों के चलते थोड़ी देर के लिए ही सही मगर ममता का गला घोटना सीख लिया है...ताज्जुब है अभी तक न तो बाल कल्याण संस्था चलाने वाले किसी एनजीओ की इस सीरियल पर नज़र पड़ी है और न ही बाल और महिला कल्याण मंत्री की...पशु प्रेमी संगठनों तक को पशुओं पर अत्याचार नज़र आ जाता है...लेकिन यहां तो जीते-जागते हाड-मांस के गुड्डे-गुड्डियां चीखते रहते हैं, बिलखते रहते हैं लेकिन किसी का दिल नहीं पसीजता...कोई आवाज नहीं उठाता कि भई रियल्टी टीवी के नाम पर ये कैसा मनोरंजन है...
अभी तक खाड़ी के देशों से ऐसी रिपोर्ट आती रहती थीं कि ऊंटों की पीठ पर मासूमों को बांध कर दौड़ाया जाता है...बेहद अमानवीय और क्रूर इस खेल में पेट फट जाने के कारण कई मासूमों
की मौत भी हो जाती थी...ये गरीब बच्चे ज़्यादातर भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश से खरीद कर खास तौर पर इसी खेल के लिए मंगाए जाते रहे हैं...इन पर कुछ रिपोर्ट आईं तो देश में बड़ा हो-हल्ला मचा था...चंद धन-कुबेर शेखों की मस्ती के लिए ऐसा घिनौना खेल भी खेला जा सकता है...
अब मैं पूछता हूं कि पति, पत्नी और वो...रियल्टी शो में भले मां-बाप की मर्जी से ही, लेकिन मासूमों पर जो अत्याचार हो रहा है, क्या उसका मोटिव भी खाड़ी में होने वाली ऊंट-दौड़ जैसा नहीं है...बच्चों की पीड़ा पर दर्शक बटोरने का प्रयास नहीं है...महान है वो जिसने इस सीरियल का कॉन्सेप्ट तैयार किया और महान हैं हम... जो सब कुछ देखते हुए भी खामोश हैं...
स्लॉग ओवर
मक्खन एक बार गोवा गया था...वहां पेइंग गेस्ट के तौर पर वो एक मैडम के घर टिकने चला गया...लंबे सफ़र के बाद देर रात वो गोवा पहुंचा था...मैडम ने मक्खन से कहा कि घर में दो ही बेड-रूम हैं...एक में मैडम और उसके मिस्टर सोते हैं...दूसरे बेडरूम में मैडम का छोटा बेबी सोता है...मैडम ने मक्खन से कहा कि वो बेबी वाले रूम मे सो जाए...मक्खन ने सोचा कि एक तो पूरे दिन की थकान, ऊपर से ये बेबी का चक्कर...रात को कहीं परेशान ही न कर दे...मक्खन ने मैडम से कहा कि परेशान न हों...वो ड्राईंग रूम में ही सोफे पर आराम से सो जाएगा...खैर मक्खन ड्राईंग रूम में ही सो गया...सुबह हुई मक्खन मैडम के साथ चाय पी रहा था कि अल्ट्रामॉड मॉडल जैसी एक रूपसी वहां अवतरित हुई...मक्खन ने मैडम से जानना चाहा कि सुंदरी का परिचय क्या है...मैडम बोली...अरे यही तो है अपना छोटा बेबी...मक्खन ने ठंडी सांस लेते हुए कहा कि अगर ये छोटा बेबी है तो मैं उल्लू का चरखा हूं...
tv nahi dekhte islie post samajjh se bahar hai
जवाब देंहटाएंslog over badhiya raha
aaj der kar di ham 12 baje se hi intzaar kar rahe the
हमें इस प्रोग्राम के बारे में ज्ञात नहीं मगर जैसा आप बता रहे हैं वही जान पा रहा हूँ. एन डी टी वी हमारे यहाँ नहीं आता. बात तो गलत मालूम होती है.
जवाब देंहटाएं---
वाकई, उल्लू का चरखा है. :)
इसमें सबसे बड़ा कसूर है उन बच्चों के माँ-बाप का. हम तो अपने बच्चों को एक घंटे के लिए भी दूसरों के हाथों में नहीं सौंपते. बच्चों की अच्छी परवरिश को अंजाम देने के लिए तो पत्नी ने बहुत सारी अच्छी नौकरियां ठुकरा दीं.
जवाब देंहटाएंऐसे माँ-बाप से बच्चे छीन लिए जाने चाहिए.
पैसा...पैसा...हाय पैसा...
जवाब देंहटाएंस्लॉगओवर बहुत ही मज़ेदार रहा
जवाब देंहटाएंअभी तो देखिये ...धन की माया के आगे कैसे कैसे नतमस्तक होते हैं...किसी गरीब द्वारा पैसों के बदले बच्चों को बेचे जाने की घटना पर शोर मचाने वाले इस पर ऐतराज़ नहीं कर रहे ...आश्चर्य ...इस कार्यक्रम में अपने बच्चों को पेश करने वाले माता पिता उनसे किस प्रकार अलग हैं ...गर ऐसे कार्यक्रमों के लिए बच्चे चाहिए थे तो कुछ अनाथालयों की मदद ही ले लेते ...इस बहाने कुछ मासूमों को कुछ समय के लिए ही सही ...झूठा ही सही ..प्यार दुलार मिल जाता !!
जवाब देंहटाएंमैं टीव्ही बहुत कम देखता हूँ पर मुझे पता है कि रियलिटी शो में बहुत पैसा है और पैसे के लिए कुछ भी बेचा जा सकता है ... जजबात, इज्जत, ईमान ... सब कुछ ...
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआज ये तो साबित हो गया कि मक्खन वाकई उल्लू का चरखा है...बताओ छोटा बेबी मिस कर दिया....
जवाब देंहटाएंरही बात रियल्टी शो की ..तो उसके लिये सिर्फ़ इतना कि ये अब तक के सारे शोज में सबसे बेकार कंसेप्ट वाला शो है..और रही सही कसर उन बच्चों के अभिभावकों ने पूरी कर दी है...यदि इस तरह से पिता और माता बनने के सुख और जिम्मेदारी का अनुभव हो सकता तो ........?
बिलकुल अमानवीय अत्याचार है, बच्चों पर. इसीलिए सरकार ने इसे बंद करने का ऑर्डर किया है.
जवाब देंहटाएंमैंने तो एक झलक देखि थी, चैनल सर्फ़ करते हुए, बच्चे के मुहँ में जबरजस्ती चम्मच से खाना ठूँसा जा रहा था. बड़ा रिपल्सिव था. मुझे तो स्वयंबर वाला प्रोग्राम भी नॉन- सेंस लगा था. वैसे तो सारे रियल्टी शो मोस्ट अनरीयल लगते हैं. पता नहीं लोग देखते क्यों हैं.
आप से पूरी तरह सहमत हूँ। शिशुओं के साथ यह अमानवीयता है।
जवाब देंहटाएंChota baby wala kissa achcha laga......... bechara Makhkhan....
जवाब देंहटाएंTV show ke baare isliye kuch nahin kahoonga....kyunki..... yeh show dekha nahi hai...na hi koi jaankari hai....
सब पैसे की मोहमाया है कार्यक्रम जितना चर्चित उतना हिट।
जवाब देंहटाएंउल्लू का चरखा सही लगा।
पैसा ही प्रधान हो गया है उन माँ बाप को देखो जो अपने मासूम को इन्हें सौंप रहे हैं सब पैसे के लिये बहुत शर्मनाक है
जवाब देंहटाएंऔर स्लाग ओवर क्या बात है बहुर बडिया बधाई
बहुत ज़बरदस्त अंदाज़ से बात कही आपने। बहुत ख़ूब।
जवाब देंहटाएंडॉ टी एस दराल के इस कथन सहमत हूँ -
जवाब देंहटाएं"वैसे तो सारे रियल्टी शो मोस्ट अनरीयल लगते हैं. पता नहीं लोग देखते क्यों हैं."
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