मार्केटिंग के दो गुरु


मार्केटिंग के दो गुरु 
यह आपके मार्केटिंग हुनर का कमाल है कि आप चाहे तो गंजों के घर में कंघे बेच दें , अंधों कि बस्ती में आइने बेच दें. बस आपके चेहरे पर मासूमियत हमेशा टपकती रहनी चाहिए. खुदा ना खास्ता आप पहले से ही नाम वाले हैं तो कहना ही क्या. आप जो कहेंगे- झूठ-सच पत्थर की लकीर माना जाने लगेगा. अब किसी को मिर्ची लगे तो आप क्या करें. नकद-नारायण की कृपा-दृष्टि आप पर बनी रहनी चाहिए. अब शाहरुख़ बेचारे क्या करें, लंदन समेत दुनिया के तमाम बड़े शहरों में आशियाने बनाने का ख़्वाब भारत के दर्शकों के भरोसे बैठे-बैठे ही कोई पूरा हो जाएगा. सुन रहे हो ना अमरीका वालों- .'माई नेम इज़ ख़ान' . अब रही बात जसवंत जी की तो भैया राज्य-सभा में विपक्ष के नेता की कुर्सी तो पहले ही जा चुकी है, व्हिस्की की बोतल पर ख़ुद जसवंत जी लोकसभा में प्रणब बाबू से शिकायत कर चुके हैं कि हज़ार रुपए से कम की नहीं आती. यह कमल-कमंडल वालों के चक्कर में रहते तो भैया कहीं के ना रहते, भला हो जिन्ना का... किताब के ज़रिए बैंक-बैलेंस का तो अच्छा इंतजाम कर दिया है, रही बात राजनीति की तो पिक्चर अभी बाकी है दोस्त. दार्जिलिंग में अपने नए गोरखा दोस्त हैं ना. (बीबीसी ब्लॉग पर मेरी राय) 

जिन्ना का गमला एक बहुत पुराना गीत था मंडुए तले गरीब के दो फूल खिल रहे. ऐसी ही कुछ कहानी जिन्ना के गमले में दो फूल खिलने की है. एक फूल खिलाया था आडवाणी ने 4 जून 2005 को पाकिस्तान में जिन्ना की मजार पर जाकर उन्हें सरोजिनी नायडू के हवाले से हिन्दू-मुस्लिम एकता का महान राजदूत करार देकर. वहीँ दूसरा फूल खिलाया जसवंत सिंह ने 17 अगस्त 2009 को अपनी किताब में जिन्ना के कसीदे पढ़कर. जसवंत के जिन्ना नायक है और नेहरु-पटेल खलनायक. आडवाणी संघ के तीर सहने के बाद भी पार्टी में नंबर एक बने रहे. वहीँ संघ को खुश रखने के लिए जसवंत पर आँख झपकते ही अनुशासन का डंडा चला दिया गया. कभी party with difference का नारा देने वाली बीजेपी आज party with differences बन चुकी है. इन दोहरे मानदंडो में ही बीजेपी की हर समस्या छिपी है या यूं कहिये समाधान भी. (बीबीसी ब्लॉग पर मेरी राय) 

  वाह...छोटे सरदार वाह बोलने की आज़ादी भारतीय लोकतंत्र की पहचान है. यही वो गहना है जिसकी वजह से दुनिया में हमें माना जाता है. वरना हमारी हालत भी पाकिस्तान जैसी होती. संघ को खुश करने के लिए बीजेपी ने जसवंत सिंह को स्ट्म्प किया, वहीं नरेंद्र मोदी ने जसवंत की किताब पर ही रोक लगा दी. भला सरदार पटेल की शान में गुस्ताख़ी कैसे बर्दाश्त होती. अब कोई मोदी से पूछे कि पटेल ने ही पहले गृहमंत्री के नाते संघ पर रोक लगाई थी. मोदी जी अगर रोक ही समाधान होती तो बापू के गुजरात में नशाबंदी के बावजूद ज़हरीली शराब जैसे कांड क्यों होते. (बीबीसी ब्लॉग पर मेरी राय) 

स्लॉग ओवर राहुल गाँधी जब भी एक देश में दो देश का फर्क मिटाने की बात करते हैं, मुझे न जाने क्यों एक पाकिस्तानी पत्रकार दोस्त का सुनाया किस्सा याद आ जाता है. एक बार एक दीन-हीन किसान सूखे की मार से गाँव में परेशान हो गया. खाने तक के लाले हो गए तो किसी सयाने ने शहर जाकर मजदूरी करने की सलाह दी. बेचारा शहर आ गया. शरीर पर पहनने को सिर्फ एक लंगोटी थी. शहर में पहुँचते ही उसने एक बड़ी सी मिल देखी, नाम था अब्दुल्ला राइस मिल. थोडी दूर और चला तो दिखाई दिया अब्दुल्ला कोल्ड स्टोर. फिर आगे चला तो देखा- अब्दुल्ला काम्प्लेक्स. पचास कदम बाद फिर आलीशान कोठी- अब्दुल्ला महल. तब तक चौपला आ गया था. किसान ने वहां ठंडी सी सांस भरी और अपनी लंगोटी भी उतार कर हवा में उछाल दी, साथ ही आसमान में देखते हुए कहा- जब तूने देना ही सब अब्दुल्ला को है, तो यह भी अब्दुल्ला को ही दे दे.    

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7 टिप्पणियाँ
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  1. khusdeep bhai,
    apne blog par aapka comment aaj hi dekha hai. achha laga ye jankar ki aap mujhe padhte rahe hain. aapka blog bhi dekha hai. content lajawab hai. meerut aayen to zaroor milen. 09837279840

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  2. बढ़िया लगा यहां। अच्छा लिखा। आपकी टिप्पणियां गहरी भी हैं और त्वरित भी।
    नियमित लिखें और जमें रहें, वर्ना हम नहीं आएंगे:)

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  3. आपके विश्लेषण में तीक्ष्णता है, और व्यंग्य का छौंक भी...
    अच्छा लगा...

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  4. बढ़िया विश्लेषण! अच्छी लेखनी!

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  5. शानदार लेखन. लौटते रहेंगे यहां.

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  6. कल 18/04/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद !

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