सपनों की रोटी

सपनों की रोटी
राहुल गांधी एक देश में दो देश के फर्क को मिटाना चाहते हैं। गरीबों को इज्ज़त के साथ जिंदगी का हक़ दिलाना चाहते हैं। जब भी मौका मिलता है दलितों-आदिवासियों-किसानों का हाल जानने के लिए उनके घरों में चले जाते हैं। चुनाव में इस काम में ज़्यादा ही थक गए। सुस्ताने के लिए ज़रूर 19 जून को अपने 39वें जन्मदिन पर लंदन(जी हां लंदन) चले गए थे। दलील ये कि यहां रहते तो कुछ कांग्रेसी जन्मदिन के जोश में आसमां सिर पर उठाए रखते। कौन न मर जाए इस मासूमियत पर।
अब सुनिए बुदेलखंड का हाल, जिसके लिए राहुल गांधी अलग प्राधिकरण बनाना चाहते हैं। वहां पहले से ही हालात बदतर थे। सूखे ने रही सही कसर और पूरी कर दी है। वहां से ऐसी रिपोर्ट भी आईं कि भूख से बिलबिलाते बच्चों को उनकी माएं घास की रोटियां बना-बना कर देती रहीं। अब ज़रा सोचिए, ऐसी हालत में गुज़र करने वालों के ख्वाबों में क्या आता है। सपनों की रोटी। अब गौर कीजिए शहरों में रहने वाले हम और आप ख्वाबों में क्या देखते है। अच्छी नौकरी, गाड़ी, बंगला, समाज में रुतबा। और इन्हीं ख्वाबों को पूरा करने के लिए ता-उम्र रोबोट बने घूमते रहते हैं। लेकिन मृगतृ्ष्णा कभी खत्म नहीं होती। अब हमारे ख्वाबों की सार्थकता है या उस बच्चे की मां की जो गर्मागर्म रोटी का सपना दिखला कर जिगर के टुकड़े को इस गीत से बहला रही है।
 
सूरज ज़रा, आ पास आ
आज सपनों की रोटी पकाएंगे हम
ए आसमां तू बड़ा मेहरबां
आज तुझको भी दावत खिलाएंगे हम
सूरज ज़रा, आ पास आ
 
चूल्हा है ठंडा पड़ा
और पेट में आग़ है
गर्मागर्म रोटियां
कितना हसीं ख्वाब है
सूरज ज़रा, आ पास आ
आज सपनों की रोटी पकाएंगे हम
ए आसमां तू बड़ा मेहरबां
आज तुझको भी दावत खिलाएंगे हम
सूरज ज़रा, आ पास आ

आलू टमाटर का साग
इमली की चटनी बने
रोटी करारी सिके
घी उसमें असली लगे
सूरज ज़रा, आ पास आ
आज सपनों की रोटी पकाएंगे हम
ए आसमां तू बड़ा मेहरबां
आज तुझको भी दावत खिलाएंगे हम
सूरज ज़रा, आ पास आ
 
बैठे कहीं छांव में
आ आज पिकनिक सही
ऐसे ही दिन की सदा
हमको तमन्ना रही
सूरज ज़रा, आ पास आ
आज सपनों की रोटी पकाएंगे हम
ए आसमां तू बड़ा मेहरबां
आज तुझको भी दावत खिलाएंगे हम
सूरज ज़रा, आ पास आ
-शैलेन्द्र
(1959 में आई फिल्म उजाला के इस गीत के दर्द को पूरी तरह महसूस करना है तो इसे मन्ना डे साहब की आवाज़ में सुने। इसके लिए youtube पर जाकर song suraj zara aa paas टाइप करें- )
इस रिपोर्ट को पोस्ट करते वक्त आपको गुदगुदाने वाला स्लॉग ओवर देने का मन नहीं कर रहा। इसके लिए क्षमा चाहता हूं। अगले पोस्ट का इंतज़ार कीजिए। निराश नहीं करूंगा।

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15 टिप्पणियाँ
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  1. यर्थात को चित्रित करती आपकी पोस्ट बहुत गहरे तक छू गयी।आभार।

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  2. कभी कहीं किसी जगह पढ़ा है की अपनी नज़र हमेशा आलोचनात्मक रखिये... आपके ब्लॉग पर देखने को मिलता है... उ. प्र. में कोंग्रेस को एक उम्मीद दिखी है... बिहार थोडा दूर है. पर निशाने पर है... उ. प्र. तुरुप का पत्ता आने वाले समय में साबित होगा... बिहार में दूर का पत्ता खेला है, पर नीतिश जी मौका देने के मूड में नहीं है... लालू ने सही कहा था बिहार में कांग्रेस का अभी कोई वजूद नहीं है... लेकिन होगा... जनता दल से कम ही सही... उ. प्र में ४०.... यह कम नहीं है जनाब... पर्स झुलाती मायावती की मूर्ति ज्यादा दिन काम नहीं आने वाले... हाँ दोनों चक्की में या यों कहें की ३ बड़े चक्की में दलित रग्बी बाल बने हुए हैं...

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  3. गहराई से जोडती आपकी यह रचना ......बहुत ही सरलता और गम्भीर भाव लिये हुये है ........बहुत बहुत बहुत बधाई

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  4. aap jis tarah alag andaaz mein apne soch pesh karte hain woh wakehe kabile tarif hain.....is tez raftar zindagi mein,ur blogs r making a difference and it really does!
    rahi baat aapke gaano ki toh unka toh jawab hi nahi.....

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  5. aap aaye achchha laga ,itne sundar vichar se ru-b-ru karwakar hame dhanya kar diya .ab brabar aane ki koshish karoongi jisse sundar rachna padh pau .

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  6. इतने जोरदार विचार आपके भेजे में आते कहाँ से हैं .इतना ही कहना चाहूंगा, धाँसू लेख है जनाब. हम आपके पंखे हो गए. उम्मीद करते हैं निराश नहीं करेंगे. इसी प्रकार और इसी स्तर का सिलसिला चलता रहेगा .......
    माँ सरस्वती आपकी लेखनी को और समृद्ध करे...इसी कामना के साथ..

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  7. पंखुड़ी, हौसला अफज़ाई के लिए शुक्रिया. आपका ब्लॉग नहीं मिला, नहीं तो उस पर ही अपनी बात कहता. उम्मीद है आगे भी
    पढ़ना-कहना चलता रहेगा.

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  8. बहुत अच्छी सोच है आपकी ऐसे ही बनाये रहे।
    आभार।

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  9. I am getting addicted to your blogs day-by-day. Your writings are one-of-their kinds and present the reality in such a manner that one has to appreciate your views. Thanks for letting open the true window of journalism.

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  10. चूल्हा है ठंडा पड़ा
    और पेट में आग़ है
    गर्मागर्म रोटियां
    कितना हसीं ख्वाब है
    देश के २२% बी पी एल स्तर के लोगों के लिए तो इसी ख्वाब को पूरा करने में जिंदगी बीत जाती है.

    कृषि प्रधान देश में, ये जो नौबत आई है
    हमने अपने हाथों ही बनाई है
    अन्न के भरे पड़े हैं गोदाम
    फिर भी देश में भुखमरी छाई है.

    क्यों ? विचानीय है. विचार करने के लिए आपने सही विषय को छेडा है. बधाई

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  11. दिल की गहराई से लिखी हुई आपकी ये भावपूर्ण रचना बहुत पसंद आया! इस बेहतरीन रचना के लिए ढेर सारी बधाइयाँ !

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  12. डॉक्टर दराल, आप जैसी हस्ती की बधाई मेरे लिए टॉनिक की तरह काम करेगी. आशा है आप मेरी खामियों की ओर भी इंगित करते रहेंगे. रही बात एक देश में दो देश की तो खाद्य सुरक्षा पर दस्तावेज तैयार करने के लिए एसडी तेंदुलकर की एक रिपोर्ट सरकार को मिली है. हालांकि ये रिपोर्ट अभी सार्वजनिक नहीं की गई है. लेकिन इसके अनुसार देश में बीपीएल में 11 करोड़ लोग बढ़ गए हैं. बीपीएल की आबादी का आंकड़ा 38 फ़ीसदी हो गया है. पहली बार बीपीएल के आंकलन के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और साफ़-सफ़ाई जैसे मानकों को भी जोड़ा गया है. ये है देश का सच

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  13. khus rahen wale sahgal saheb
    wah bhahi wah.....aap logo ko sapne bhi nahi dekne dena chaahte ..... er agar garibo ke sapne sarkar ko pata chal gaye to tax lag jayega....

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  14. kamaal ki kaarigari kardee shailendraji ne is rachnaa me........

    karuna aur vednaa ke saath sath abhav me ek maasoom ki bhookh ko roti ki kalpnaa karaate hue unhonne atyant marmsparshi geet diya hai

    aapka dhnyavad is anmol kriti ko padhvane aur sunvane ke liye ..........

    abhinandan aapka !

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