बीबीसी ब्लॉग पर मेरी कुछ राय
बीजेपी के बुरे दिन
जिस तरह बीजेपी ने खुद को बुरे दौर में फंसा लिया है, उस पर हरियाणा का एक किस्सा याद आ रहा है। एक बार एक लड़की छत से गिर गयी, लड़की दर्द से बुरी तरह छटपटा रही थी, उसे कोई घरेलु नुस्खे बता रहा था तो कोई डॉक्टर को बुलाने की सलाह दे रहा था, तभी सरपंच जी भी वहां आ गए. उन्होंने हिंग लगे न फिटकरी वाली तर्ज़ पर सुझाया कि लड़की को दर्द तो हो ही रहा है लगे हाथ इसके नाक-कान भी छिदवा दो, बड़े दर्द में बच्ची को इस दर्द का पता भी नहीं चलेगा, वही हाल बीजेपी का है. चुनाव के बाद से इतने झटके लग रहे है कि इससे ज्यादा बुरे दौर कि और क्या सोची जा सकती है. ऐसे में पार्टी कि शायद यही मानसिकता हो गयी है कि जो भी सितम ढहने है वो अभी ही ढह जायें, कल तो फिर उठना ही उठना है. आखिर उम्मीद पर दुनिया कायम है.
भारत-पाकिस्तान रिश्ते
1.आम भारतीय का दिल शीशे की तरह साफ़ होता है.अगर कोई उसे प्यार से देखता है, वो तपाक से हाथ बढ़ा देता है.अगर कोई हाथ बढ़ाता है, वो उसे गले लगा लेता है.अगर कोई गले लगाता है तो वो उसे दिल में बसा लेता है.इसी आदत की वजह से कभी करगिल तो कभी 26-11 की शक्ल में धोखा खाता है लेकिन जिस तरह संत की प्रकृति होती है, वो तमाम दुष्कारियों के बावजूद परोपकार नहीं छोड़ता, वैसे ही भारत पाकिस्तान से रिश्ते सुधारने की कोशिश नहीं छोड़ेगा.ज़रूरत है पाकिस्तान भी दिल से एक बार इस भावना को तो दिखाए..
2. जहां तक सियासतदानों की बात हैं तो इनकी कोशिश तो बस यही है कि दोनों जगह अवाम की आंखों पर पट्टी बंधी रहे और इनकी हांडी बार-बार पकती रहे। गुरबत, फिरकापरस्ती, भुखमरी, बेरोज़गारी, बे-तालीमी, करप्शन से जंग लड़ने की जगह एक-दूसरे मुल्क को ही दुश्मन नंबर एक बताते हुए लड़ने-मरने की बातें की जाती रहे। बाकी जो इंसान है वो चाहे सरहद के इस पार है या उस पार, वो यही सोचते हैं- पंछी, नदियां, पवन के झोंके, कोई सरहद ना इनको रोके। फिर सोचो तो क्या मिला हमको इंसान होके।
3. ताक़त छीनने के लिए फूट डालना हमेशा बड़ा हथियार रहा है. क्या मुग़ल और क्या ब्रिटिश सिर्फ इसलिए भारत में पैर जमा सके क्योंकि हमारी रियासतें एक दूसरे के खिलाफ़ षडयंत्र में लगी रहती थीं. आज खतरा दूसरा है. शीत-युद्घ के बाद अमेरिका खुद को चुनोती देने वाली कोई सामरिक, बौधिक या आर्थिक शक्ति उभरने नहीं देना चाहता, उसका हित इसी में है कि भारत-पाकिस्तान आपस में लड़ते रहें. गरीबी-कुरीतियों से लडाई की चिंता छोड़ हम घर-फूँक तमाशे की तर्ज़ पर अपने एटमी हथियारों के बढते ज़खीरे पर ही इतराते रहें.हम एक हो गए तो ग्लोबल पुलिस-मेन को पूछेगा कौन. यह हमारी बदकिस्मती है कि हमारे पास जर्मनी की तरह सोचने वाले स्टेटस-मेन नहीं है. बँटवारे ने ना जाने कितने परिवारों को अपनी माटी से उखड़ने को मजबूर कर दिया. अपनी जड़ वाली ज़मीन को मरने से पहले सिर्फ एक बार देखने की हसरत दिल में ही लिए ना जाने कितने बुजुर्ग दुनिया को अलविदा कह गए. लेकिन हम जाग कर भी सोये रहे. क्या कोई ऐसी सूरत नहीं निकल सकती कि... चलो विरासत की ओर,,,के नाम से दोनों मुल्को में ऐसी मुहिम चले जिसमे लोगों को सरहद के इस-उस पार जाकर टूटे धागों को फिर जोड़ने का मौका मिले. यह सिलसिला अगर चल निकले तो दावा है कि एक साल में ही वो सब मुमकिन हो जायेगा जो शर्म-अल-शेख जैसी मुलाकातें सालों-साल तक नहीं कर सकती, बस जरूरत है तबियत से एक पत्थर उछालने की, देखते है आसमान में सूराख कैसे नहीं होता.
अफगानिस्तान का हाल
रेणुजी, आपका लेख पढ़ कर ना जाने क्यों काबुलीवाला फिल्म का गीत याद आ गया- ए मेरे प्यारे वतन, ए मेरे बिछुडे चमन, तुझ पे दिल कुर्बान . आप काबुल में है तो आप खुद ही देख रही होंगी की चमन की क्या हालत हो गयी है. अगर काबुल का यह हाल है तो बाकी अफगानिस्तान का क्या हाल होगा. अमेरिका के भरपूर समर्थन के बावजूद करजई सिर्फ काबुल के ही राष्ट्रपति बन सके, अफगानिस्तान के नहीं. कभी तालिबान को रूस के खिलाफ़ खडा करने वाला अमेरिका नौ साल तक पूरी ताकत झोंकने के बाद भी ओसामा बिन लादेन या मुल्ला उमर की हवा तक भी नहीं पकड़ पाया. अमेरिका खुद ही सोचे कि तालिबान जैसे दरिंदो से मुक्ति पाने के बाद भी आम अफगानी क्यों अमेरिका से खुश नहीं है. ज़ाहिर है गुलामी में महलों में रहने से भी कई बेहतर है झोंपडे में ही आज़ादी की हवा में सांस ली जाए.
मान गए शाहरुख़
मान गए शाहरुख, आपके प्रोफेशनल सेंस को.आपकी फिल्म माई नेम इज़ ख़ान रिलीज़ को तैयार हैऔऱ ख़ान नाम जुड़ा होने की वजह से नेवार्क हवाई अड्डे पर आपकी तलाशी. यानि नस्ली भेदभाव.याद कीजिए बिग ब्रदर का जेड गुडी-शिल्पा शेट्टी विवाद. शाहरुख आप आइकन होने की वजह से नाराज है.आइकन कलाम भी हैं. नियमों को देखते हुए, अपने ही मुल्क में तलाशी होने पर भी कलाम साहब ने हाय-तौबा नहीं मचाई.ठीक भी है कलाम आपकी तरह दुनिया के हर बड़े शहर में अपने मकान का नहीं बल्कि भारत के विकसित होने का सपना देखते हैं. कलाम से सीखो.
बहुत खूब कुलदीप भाई। य़ूं ही लिखते रहिए। ब्लॉग की दुनिया में आपका स्वागत है।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंQuite an interesting and bipartisan analysis on current state of affairs. Keep up the vision. We look forward to more.
जवाब देंहटाएंपंकज भाई, बड़ा खुशकिस्मत हूँ, अपने ब्लॉग पर पहली टिप्पणी आपकी मिली. आपके साथ वैसे तो बहुत कम काम करने का मौका मिला, लेकिन जो भी मिला वो मेरे लिए अनमोल धरोहर के समान है. आशा है आप के अन्दर की ज्वाला आगे भी प्रेरणा देती रहेगी.
जवाब देंहटाएंMindblowing. य़ूं ही लिखते रहिए। शायद इससे हमारी मानसिकता और सोच को चुनोती मिले तबियत से एक पत्थर उछालने की.As you have rightly written आखिर उम्मीद पर दुनिया कायम है.
जवाब देंहटाएंbahut achhe nazeer ke saath likha gaya ek umda aalekh... badhiya hai sahgal sahab
जवाब देंहटाएंराहुल भाई, उम्मीद है ब्लॉग हमसफ़र रहने का यह सिलसिला ता-उम्र चलता रहेगा
जवाब देंहटाएंYun hi likhte rahiye.Shubkamnayen.
जवाब देंहटाएंबहुत सही लिखा है आपने......
जवाब देंहटाएंआपके देशनामा की सफलता की कामना है.....सुन्दर लेखन से समाज के कल्याण को प्रस्तुत हो आपकी लेखनी,यही ईश्वर से प्रार्थना है...
good
जवाब देंहटाएंस्वागत है ब्लागजगत में आपका।
जवाब देंहटाएंआपका ब्लोग पसंद आया। आप अच्छा लिखते हैं।
जवाब देंहटाएंसतिंदरजी, आपके ऐसे बोल मेरे लिए टॉनिक की तरह हैं, आशा है अपने प्यार के साथ मेरी खामियों की और भी इंगित करेंगे.
जवाब देंहटाएंशानदार !!मजा आगया।
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