अश्वत्थामा के मरने की एक सूचना धर्मराज युधिष्ठर ने गुरु द्रोणाचार्य को दी थी. एक अश्वत्थामा को अब जसवंत सिंह ने मारा. फ़र्क इतना है कि गुरु द्रोणाचार्य ने युधिष्ठर से कुरुक्षेत्र में युद्ध के 15वें दिन अपने बेटे अश्वत्थामा की मौत के बारे में पूछा था. वहीं जसवंत सिंह ने खुद ही मीडिया के सामने अश्वत्थामा को मारा..युद्ध में द्रोणाचार्य के क्रोधित रूप को देखकर श्रीकृष्ण चिंतित थे..वो जानते थे कि पांडवों की विजय के लिए द्रोणाचार्य का मरना आवश्यक है...इसलिए अश्वत्थामा के मरने की ख़बर फैलाना ज़रूरी था..
कृष्ण जानते थे कि द्रोणाचार्य खबर की पुष्टि के लिए युधिष्ठर से ही पूछेंगे क्योंकि वो कभी झूठ नहीं बोलते थे...हुआ भी ऐसा ही द्रोणाचार्य ने जब पूछा तो युधिष्ठर ने कहा....अश्वत्थामा नरोवा कुंजरोवा... यानि हां, अश्वत्थामा मारा गया...वह नर नहीं हाथी था...युधिष्ठर ने अश्वत्थामा मारा गया.. बस इतना कहा ही था कि कृष्ण ने ज़ोर से शंख बजा दिया...जिससे युधिष्ठर का ये कहना कि वह नर नहीं हाथी था...शंख की आवाज़ में ही दब गया..दरअसल युधिष्ठर ने झूठ नहीं बोला था...वो द्रोणाचार्य को उनके पुत्र अश्वत्थामा की मौत की जगह प्रवति के राजा के हाथी अश्वत्थामा की मौत के बारे में बता रहे थे, जिसे भीम ने मार गिराया था...ज़ाहिर है द्रोणाचार्य पुत्र की मौत की बात सुनकर विरक्त हो गए और अस्त्र-शस्त्र फेंक कर रथ पर ही ध्यान लगा कर बैठ गए...धृष्टदयुम्न ने तभी द्रोणाचार्य का सिर धड़ से अलग कर दिया...आप भी कहेंगे मैं आपको जसवंत सिंह के बारे मे बताने चला था, महाभारत का अध्याय विस्तार से क्यों बताने लगा...लेकिन ये बताना ज़रूरी था...क्योंकि जसवंत अपने को इनदिनों धर्मराज युधिष्ठर ही बता रहे हैं...
जसवंत कह रहे हैं कि दिसंबर 1999 के आखिरी हफ्ते में कंधार विमान अपहरण कांड के दौरान आ़डवाणी को इस बात की पूरी जानकारी थी कि 161 भारतीय यात्रियों की जान बचाने के लिए तीन खूंखार आतंकवादियों- मौलाना मसूद अजहर, मुश्ताक ज़रगर और उमर शेख को छोड़ा जा रहा है.. जसवंत अपने साथ ही इन आतंकवादियों को विमान से कंधार ले गए थे...जसवंत का कहना है कि आडवाणी सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी (सीसीएस) की बैठक में भी मौजूद रहे थे. ऐसा था तो मई में संपन्न लोकसभा चुनाव के प्रचार के वक्त जसवंत सिंह ने कंधार प्रकरण को लेकर क्यों आडवाणी को क्लीन चिट दे दी थी..कि आडवाणी को आतंकवादियों को छोड़े जाने के संबंध में जानकारी नहीं थी...जसवंत सिंह के इस विरोधाभास की ओर मीडिया ने ध्यान दिलाया तो उन्होंने कहा कि उनसे कुछ कुछ वैसे ही अंदाज में बुलवाया गया था जैसे कि युधिष्ठर से अश्वत्थामा के मरने की बाबत बुलवाया गया था...
जसवंत सिंह ने आगे सफ़ाई देते हुए कहा कि वो फौज से हैं..उन्हें ट्रेनिंग में सिखाया गया है कि एक फौजी के लिए देश सबसे पहले होता है...उसके बाद दूसरे नंबर पर उसे अपने साथियों का ध्यान रखना होता है...अपना हित सबसे बाद में आता है...आडवाणी के लिए भी उन्होंने साथी-धर्म का पालन किया...जसवंतजी सब जानते हैं कि आपका भाषा पर बड़ा अच्छा अधिकार है...लेकिन बीजेपी से निष्कासित होते ही आपका साथी-धर्म कहां उड़न-छू हो गया...जिस तरह आप रोज़ आडवाणी और बीजेपी के ख़िलाफ़ रोज़ अपने तरकश से एक नया ज़हर-बुझा तीर निकाल रहे हैं, वो उससे मेल नहीं खाता, जिसके लिए आप खुद के धर्मराज युधिष्ठर या फौज की पृष्ठभूमि का दंभ भरते हैं...
जसवंत का कहना है कि पिछले साल 22 जुलाई को संसद में विश्वासमत के दौरान बीजेपी के तीन सांसदों ने जिस तरह नोट लहराए, उस ड्रामे के केंद्रबिंदु आडवाणी ही थे. जसवंत के मुताबिक आडवाणी स्पीकर के कक्ष में भी नोट रखवा सकते थे लेकिन उन्होंने सदन में नोट लहराए जाने को हरी झंडी दी...जसवंतजी ये ठीक है कि बीजेपी को प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरह चलाने वाली मंडली ने आपको दूध की मक्खी की तरह बीजेपी से निकाल बाहर किया...जिन्ना पर आपकी लिखी किताब Jinnah: India-partition-independence को आपके निष्कासन का आधार बनाया गया..जैसा कि आप कह रहे हैं कि किताब को बिना अच्छी तरह पढ़े ही आपको सूली पर चढ़ा दिया गया..हनुमान से रावण बना दिया...
जसवंतजी 1960 में नेशनल डिफेंस एकेडमी (एनडीए) से फौज का आपका सफ़र शुरू हुआ..एक फौजी के तौर पर चीन, पाकिस्तान से यु्द्द के बाद बांग्लादेश बनने की जंग में भी आपने शिरकत की...जब तक फौज में रहे गजब का अनुशासन दिखाया..राजनीति में भी आप एनडीए (संयोग से ये भी एनडीए) सरकार में मंत्री के तौर पर हर मोर्चे पर कामयाब रहे...लेकिन ये भी सच है कि आप अकेले ऐसे शख्स है जिसने जंग में दुश्मन से मोर्चा भी लिया और 1999 में विदेश मंत्री के नाते कंधार विमान अपहरण कांड में तीन आतंकवादियों के सामने हार भी मानी...
जसवंतजी अब जिस तरह आप कमल की एक-एक पंखुड़ी पर निशाना साध रहे हैं, वो आपकी फौजी वाली उस ज़ुबान से मेल नहीं खाता कि आपके लिए खुद से ज्यादा साथियों (पूर्व साथी कहना बेहतर) के हित पहले आते हैं.. जसवंतजी मैं अपनी पहली एक पोस्ट (मार्केटिंग के दो गुरु) में भी आपके मार्केटिंग कौशल का लोहा मान चुका हूं...आप अच्छे फौजी रहे हैं, अच्छे मंत्री रहे हैं, अच्छे राजनेता हैं...अच्छे लेखक हैं...लेकिन मेरी नज़र में खुद को मार्केट करने में आपका कोई जवाब नहीं...किताब के विमोचन के लिए भी आपने बीजेपी की कार्यकारिणी की शिमला बैठक से दो-तीन पहले का दिन चुना...आप जानते थे कि मीडिया की लाइमलाइट बीजेपी पर फोकस होने वाली है...ऐसे में जिन्ना पर लिखी किताब से आप के ऊपर सर्चलाइट आना पक्का था ही...आपकी किताब हॉटकेक की तरह बिक रही है....भारत में भी, भारत से बाहर भी...पाकिस्तान ने तो आपको हीरो मान ही लिया है...वहां पलकें बिछाए आपका इंतजार हो रहा है. सुना है...रमजान के बाद आपने पाकिस्तान जाने की हामी भी भर दी है...तब तक पाकिस्तान में आपके ऊपर कव्वालियां ही बनाकर आपका नाम बुलंद किया जा रहा है...कोई बड़ी बात नहीं कि आपको आगे चलकर पाकिस्तान का सबसे बड़ा सम्मान निशाने- कायदे-आजम ही मिल जाए...आखिर कायदे-आज़म मोहम्मद अली जिन्ना के बारे में जो आपने कहा है, ऐसा तो पाकिस्तान में भी कभी किसी ने शायद ही कहा हो.. अब ये आपका मार्केटिंग फंडा ही है कि आप एक-एक करके बीजेपी (खास तौर पर आडवाणी) पर रोज इस अंदाज से निशाना साध रहे हैं कि गर्मी बने रहे और आपकी किताब का प्रिंट आर्डर हर आने वाले दिन के साथ बढ़ता जाए. मान गए जसवंतजी, ऐसा अनुशासन का डंडा किस्मत वालों पर ही चलता है...फिलहाल तो आप पाकिस्तान का वीज़ा लगवाने की तैयारी में होंगे...मुझे विदा दीजिए...
स्लॉग ओवर
हरियाणा में फिर चौधरी साहब साइकिल को उड़न-खटोला बनाए हुए हवा से बातें कर रहे थे..सामने एक लड़की आ गई..चौधरी से ब्रेक लगा नहीं और साइकिल लड़की के जा दे मारी...लड़की को ताव आ गया...बोली...ताऊ ब्रेक नहीं मार सके से...चौधरी बोला- पूरी की पूरी साइकिल ते दे मारी, अब ब्रेक के कसर रह गए से...
जिन्हें जिन्ना की तारीफ़ करनी हो करें, रावण को क्यों बदनाम कर रहे हैं?
जवाब देंहटाएंसियासत की अपनी एक अलग जुबां होती है
जवाब देंहटाएंलिख्खा जो हो इनकार, तो इकरार पढना...
बढिया विश्लेषण |
जवाब देंहटाएंएक बात समझ मैं नहीं आती है की आखिर जसवंत सिंह जी ने ऐसी क्या घुट्टी पि ली की जिन्ना जैसे लोगों की बडाई करने लगे ?