कौन कहेगा, मां का दूध पिया है...खुशदीप

मां का दूध पिया है तो सामने आ...


छठी का दूध याद न दिला दिया तो मेरा नाम नहीं...


दूध का कर्ज़ कैसे चुकाऊंगा...

ये सारे डॉयलॉग आपने कभी बोले नहीं तो सुने ज़रूर होंगे...आज मदर्स डे पर अमर उजाला में प्रमोद भारद्वाज जी का शानदार लेख पड़ते हुए ये डॉयलॉग खुद-ब-खुद याद आ गए...आज महानगरों का जैसा परिवेश हो चला है...पाश्चात्य आधुनिकता की सिल्वर कोटिंग में युवा पीढ़ी जिस तरह का जीवन जीने की अभ्यस्त होती जा रही है, उसे देखते हुए मुश्किल लगता है कि अब नवजातों को मां का दूध नसीब भी होता होगा...ये नौनिहाल बड़े होकर कैसे सीना ठोक कर कह सकेंगे...मां का दूध पिया है तो सामने आ...



DISC (Double Income Single Child) या DINC (Double Income No Child) कपल्स की ये पीढ़ी जीवन की आपाधापी में इतनी व्यस्त है या व्यस्त होने को मजबूर है कि बच्चों को पालना भी बड़ा बोझ नज़र आने लगा है...हफ्ते में पांच दिन ऑफिस की दौड़...जिम, लंच सब आधुनिक ठंडे ऑफिसों में ही उपलब्ध...बचे दो दिन तो उनमें हफ्ते की सारी थकान उतारने के लिए आउटिंग या जान-पहचान वालों के यहां दारू या टी-पार्टी...अब बच्चों के लिए टाइम लाए तो लाए कहां से...

लिव-इन-रिलेशनशिप का शायद यही सबसे बड़ा फायदा है...शादी नहीं करेंगे तो बच्चे के लिए कोई क्यों पूछेगा कि मुंह मीठा कब करा रहे हो...खैर अब युवा पीढ़ी में सभी ग्रेजुएट या पोस्ट ग्रेजुएट होते हैं...इसलिए महानगरों में अब ये फ़िक्र कोई नहीं करता कि लोग क्या कहेंगे...सवाल लोगों के कहने का नहीं सवाल अपनी सुविधा का है...और इस सुविधा में बच्चे को पालना-परोसना...No way, it's just not suit to us...

तर्क दिया जाएगा, काम पर आपको स्मार्ट दिखना भी ज़रूरी है भई...इसलिए प्रेगनेंसी या नवजात को दूध पिलाने से फिगर खराब हुई तो कहां से उसे ठीक किया जाएगा...वो मुंर्गी वाली बात यहीं बड़ी सटीक बैठती है...जो खुद ही स्टोर पर अंडे खरीदने पहुंच जाती है...सेल्समैन के पूछने पर कहती है कि वो मेरे मुर्गे जी ने कहा है क्या दस-बीस रुपये के पीछे अपनी फिगर खराब करनी, अंडे मार्केट से ही ले आ...(हाई क्लास सोसायटी में खुद को सोशली कॉन्शियस दिखाने के लिए अनाथ बच्चों को गोद लेने के पीछे यही वजह तो नहीं है, सॉरी सुष्मिता सेन)

क्रमश:

इस मुद्दे पर पूरी सीरिज़ लिखने जा रहा हूं...पता नहीं कितनी कड़ियों में खत्म हो...फिलहाल मदर्स डे पर ये प्यारा सा गीत सुनिए...फ़ौजिया रियाज़ ने इसे अपने ब्लॉग पर लगा रखा है...इस वीडियो का तीसरा गाना है, लिंक खुलने पर कृपया सीधे वहीं क्लिक करिएगा...

मां, सुनाओ...मुझे वो कहानी...

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39 टिप्पणियाँ
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  1. मस्त है... पढे लिखे बुधियार लोग...
    आगे की कहानी भी जल्दी सुनाओ खुशदीप भाई.

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  2. वक्त बदल रहा है...समां बदल रहा है ...
    जीने को तो ना जाने कहाँ ढंग जा रहा है
    लेकिन...
    किसे है चिंता?...किसे है फ़िक्र?...
    सब अपने आज की सोच रहे हैं ...कल की चिंता किसी को नहीं है ...
    शायद!...इस सब के पीछे देश की बढ़ती जनसंख्या को नियंत्रण में लाने की सोच काम कर रही हो...:-)
    अगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा

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  3. मेरी ओर से शॉरी एंजेलीना जॉली

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  4. अब क्या कहें , शायद यह विकास है।

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  5. स्त्रियाँ फिगर संवेदन क्यों हो रही हैं? क्या उन्हें मर्द इसी रूप में सब से अधिक देखना चाहते हैं, इस लिए?
    माँ तो अब भी माँ है औऱ सदैव रहेगी।

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  6. मुर्गी वाली बात पर एक बात ओर याद आ गई, हमारे जर्मन मै लोग (मर्द) बहुत कम शादी करना चाहते है, एक बार बात चली तो एक दोस्त ने कहा जब दुध बाजार मै मिल जाता है तो जरुरी है कि गाय खूंटे पर बांधे...... ओर मै उस का मुंह देखता रह गया, लेकिन अब वही बाते हमारे समाज मै भी छा रही है

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  7. पता नहीं,खुशदीप भाई..आप किन औरतों की कहानी कह रहें हैं?...ज्यादातर लोग सुनी सुनाई बातों पर ऐसी बहस शुरू कर देते हैं. मैं पिछले २० साल से महानगर में हूँ और आपको पता है, कि ग्लैमर वर्ल्ड को बहुत पास से देखा है.मल्टीनेशनल फर्म में काम करने वाली लड़कियों को भी देखा है...और मैं शपथ ले कर कह सकती हूँ , कि एक भी ऐसी लड़की नहीं देखी जो फिगर खराब होने के अंदेशे से अपने बच्चे को दुग्धपान ना कराये.
    नौकरी करने वाली लड़कियों की मजबूरियाँ जरूर होती हैं,तीन महीने के बाद उन्हें ऑफिस लौटना होता है और बच्चे को बोतल के दूध की आदत डालनी पड़ती है .ऐसे ही टी.वी. में काम करने वालों को भी दूधमुहें बच्चों को छोड़ कर काम पर लौटना होता है. पर वजह फिगर खराब होने का डर नहीं है.

    सुष्मिता सेन ने एक अनूठा, काम किया है हमें इसकी प्रशंसा करनी चाहिए. ये कभी भी ट्रेंड नहीं बन सकता. हाई क्लास में और कितने लोगों ने माँ बनने से इनकार कर अनाथ बच्चों को गोद लिया है?

    DINC कपल्स में अक्सर देखा है,लडकियां माँ बनने को तरसती हैं पर पति को हज़ार EMI चुकाने होते हैं और बीवी का साल भर के लिए घर बैठना उन्हें गवारा नहीं होता.वे साल दर साल टालते रहते हैं और लड़कियां परिवार वालों के ताने झेलती रहती हैं. कितने रिश्तों में तो इस वजह से गहरी दरार आ गयी है. और ये सब सुनी सुनाई बातें नहीं हैं..ऐसे कपल्स को जानती हूँ.
    (माफ़ कीजियेगा ,शायद टिप्पणी की भाषा जरा तल्ख़ हो गयी..पर थक गयी हूँ लड़कियों पर ऐसे आरोप लगते देख )

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  8. रश्मि बहना,
    एक ही कड़ी में नतीज़ा भी निकाल लिया...थोड़ा सब्र करो...मैंने कहा है कि मैं पूरी सीरीज़ लिखने वाला हूं...अगली कड़ियों का तो इंतज़ार करो...अभी इतना ही कह सकता हूं कि अगर ये सब नहीं हो रहा होता तो तलाक या कपल्स के सेपरेट होने के आंकड़े क्यों दिन-ब-दिन बढ़ते जा रहे हैं...और लड़कियों पर तो आरोप लगाने की बात ही नहीं है...लड़के भी उतने ही बल्कि लड़कियों से कहीं ज़्यादा ज़िम्मेदार हैं...ये खामी है नब्बे के दशक के शुरू से देश में बह रही ग्लोबेलाइज़ेशन की बयार की...हमारी-तुम्हारी पीढ़ी ने ट्रांजिशन का पीरियड पार कर लिया...लेकिन आने वाले कल की सोचो...कल क्या होने जा रहा है...उसी के लिए उलटी गिनती शुरू भी हो चुकी है...

    शांत...बहना...बहना...भाई की पूरी बात सुनकर निष्कर्ष निकालना...

    जय हिंद...

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  9. खुशदीप भाई , डिस्क या डिंक बनने में तो कोई हर्ज़ नहीं है । या यूँ कहिये आज इसी की ज़रुरत है। लेकिन भले ही बच्चा एक ही हो , परन्तु उसे दूध तो मां का ही मिलना चाहिए । वैसे आजकल डॉक्टर्स इस ओर काफी ध्यान दे रहे हैं माओं को यह सिखाने ले लिए ।
    और माएं सीख भी रही हैं । लेकिन आज के कमरतोड़ जीवन में समय की कमी हो सकती है।

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  10. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  11. विषय गंभीर है...लेकिन तलाक के कारण कवक स्त्रियों का अपने बच्चों को दुग्ध पान ना कराना नहीं है....और एक बात कि आज कल सभी लड़कियां पढ़ी लिखी हैं और वो इस बात की जानकारी रखती हैं कि नवजात बच्चे को माँ के दूध से क्या लाभ होता है..और सबसे ज्यादा ये कि प्रसव के २४ घंटों के अंदर ही बच्चा जो माँ का दूध पीता है उससे उस बच्चे को कितनी बीमारियों से लडने की ताकत मिल जाती है...

    हाँ नौकरीपेशा महिलाओं को समयाभाव के कारण ज़रूर ये परेशानी आ सकती है.....
    वैसे आपकी अगली कड़ी का इंतज़ार है
    May 8, 2010 3:36 PM

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  12. डॉ दराल सर,
    आप से अपनी जानकारी के लिए दो सवाल पूछना चाहता हूं...

    पहला-
    शिशु को कितनी उम्र तक मां का दूध हर हाल में मिलना चाहिए...

    दूसरा-
    भारत में डब्बाबंद दूध का प्रचलन कब से शुरू हुआ और कब से इसकी बिक्री में रॉकेट जैसा उछाल आया...

    जय हिंद...

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  13. "वो मुंर्गी वाली बात यहीं बड़ी सटीक बैठती है...जो खुद ही स्टोर पर अंडे खरीदने पहुंच जाती है...सेल्समैन के पूछने पर कहती है कि वो मेरे मुर्गे जी ने कहा है क्या दस-बीस रुपये के पीछे अपनी फिगर खराब करनी, अंडे मार्केट से ही ले आ......"

    क्या बात है बहुत भीगो भीगो के मार रहे हो, खुशदीप भाई ??

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  14. बढ़िया प्रस्तुति!
    अगली कड़ी का इन्तजार!

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  15. यह कि अब हर कोई माँ के दूध का महत्व समझने लगा है , बस बाज़ार को समझाने की ज़रूरत है क्योंकि असली लड़ाई तो उसीके साथ है ।

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  16. खुशदीप , आपके सवालों का ज़वाब :

    केवल स्तन पान( एक्सक्लूजिव ब्रेस्ट फीडिंग )---६ महीने तक ।
    स्तन पान + ठोस आहार ---२ वर्ष या उसे अधिक।
    यानि कम से कम २ वर्ष और यदि संभव हो तो आगे भी कराते रहें , जब तक दूध उतर रहा है या अगली प्रेगनेंसी हो जाती है।

    डिब्बाबंद दूध आम तौर पर रिकमेंड नहीं किया जाता जब तक कि कोई ऐसी परेशानी न हो जिससे स्तन पान में असुविधा होती हो ।
    १९७७ में अमेरिका में नेस्ले का बायकाट किया गया था ताकि स्तन पान को बढ़ावा मिल सके। आज भी फोर्म्युला मिल्क को डिस्करेज किया जाता है , विशेषकर हमारे जैसे देश में जहाँ आधी से ज्यादा जनता गरीब है। इसका कारण यह है कि इस दूध को माएं अत्यधिक पानी मिलाकर पिलाती हैं जिससे बच्चों में कुपोषण होने की सम्भावना बढ़ जाती है। तथा बोतल से पिलाने की वज़ह से संक्रमण भी हो सकता है।
    वैसे सही तौर पर बिक्री के बारे में कहना मुश्किल है। हम तो इसे मना ही करते हैं।

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  17. इस मुर्गी से कहाँ मिले थे खुशदीप भाई ??

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  18. सही ट्रैक पर जा रही है अब यह सीरिज, हम भी साथ हैं आपके ... आपके इस कोशिश को साधुवाद तो दे ही सकता हूँ

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  19. आपकी अगली कड़ी का इंतज़ार है

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  20. अंडे जब बाजार में मिल रहे हो तो
    फ़िगर खराब करना कहां की बुद्धिमानी है?
    मुर्गी से समझदार मुर्गा है:)

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  21. very good ab aap wapas rau me aa gaye lagta hai.. waiting for nextone..

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  22. आयो दिखाएँ तुम्हे अंडे का फंडा.ये नहीं प्यारे कोई मामुल्ली फंडा

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  23. आप सबसे निवेदन है, ये मुद्दा बड़ा गंभीर है...इसे मुर्गी और अंडे के हास्य तक सीमित मत रखिए...ये मुद्दा है आने वाले कल को ध्यान में रखकर आज को सुधारने का...क्या ग्लोबलाइज़ेशन के इस दौर में हमारी अगली पीढ़ी अपने बच्चों को वैसा ही प्यार दे पाएगी जैसा कि हम देते हैं या हमें मिलता रहा है...ये मुद्दा है कि हम बच्चे को जन्म देने के बाद सही परवरिश दे पा रहे हैं...कहीं वो एमएनसी के युग में रोबोट तो नहीं बनता जा रहा...जिस बच्चे को बचपन में सही ढंग से प्यार न मिल पाए, मां का दूध न मिल पाए, क्या वो कल दुनिया को पैसे से हटकर प्यार के चश्मे से देख पाएगा...कहीं हमसे कुछ ऐसी खता तो नहीं हो रही कि आने वाली पीढ़ियों के हम गुनहगार बन जाएं...अगर बच्चे की देखभाल के लिए आप के पास वक्त न हो, योजना न हो, घर में दादा-दादी, नाना-नानी न हो तो बेहतर यही है कि बिना बच्चे के ही अपना जीवन गुज़ारें...

    जय हिंद...

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  24. रोना ...........



    रोज़ सुबह जब

    छः बजे की बस पकड़कर

    काम पर जाती हूँ

    तुम्हारा नन्हा सा मुँह

    अपनी छाती से और

    बंद मुट्ठी से आँचल छुड़ाती हूँ

    तुमसे ज्यादा मैं रोती हूँ

    बिटिया ! मैं बिलकुल सच कहती हूँ ....

    khushdeep bhai.....aasha bhai in panktiyon me chhipee peeda ko samajhenge...jai hind.

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  25. शेफ़ाली बहना,
    मदर्स डे पर तुम्हें सलाम...भावुक कर दिया तुम्हारी पंक्तियों ने...

    मैं जानता हूं सब...खुद नौकरीपेशा हूं...दो बच्चों का बाप हूं...अकेला कमाता हूं...पत्नी एमए बीएड होने के बावजूद नौकरी नहीं करती...क्योंकि होममेकर होना शायद सबसे मुश्किल काम होता है...और वो वही ज़िम्मेदारी निभा रही है...बच्चे बारहवीं कर लें, उसके बाद ही वो जॉब वगैरहा का कुछ सोचेगी...और ये मेरा नहीं उसी का फैसला है...मैं जानता हूं कि तुम्हें किन परिस्थितियों से रोज़ दो-चार होना पड़ता होगा...तुम होममेकर होने के साथ जॉब भी करती हो...डबल ड्यूटी...किस तरह रोज़ बिटिया को छोड़ स्कूल जाना पड़ता होगा, समझ सकता हूं...लेकिन सवाल यहां ये आता है कि घर में बच्ची को देखने वाला कोई बुज़ुर्ग या कोई और रिश्तेदार है या नहीं...शेफाली, तुम हल्द्वानी में रहती हो...छोटे शहरों में अब भी आंख की शर्म होती है...अड़ोसी-पड़ोसी भी मदद देने के लिए तैयार रहते हैं...लेकिन मैं बात कर रहा हूं पश्चिम की हर मामले में नकल करने वाले गुड़गांव, नोएडा जैसे शहरों की...जिस तरह की फास्ट लाइफ जीने के यहां लोग आदि होते जा रहे हैं, वो डिप्रैशन को हर कदम पर दावत देती है...अगली कड़ी में इन्हीं मुद्दों पर आता हूं...फिर कहता हूं मेरी चिंता आज से ज़्यादा आने वाला कल है...

    जय हिंद...

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  26. खुशदीप जी शादीशुदा तो नहीं हूं...पर 1 भतीजे औऱ दो भाजिंयो का पूरा दूध पीने का समय मेरे ही कंधो पर गुजरा है......
    औऱ साथ ही मामला बड़ा ही गंभीर है....सो इस में कूद रहा हूं...आपकी बात सच से दूर नहीं है....नोएडा, गुड़गांव या दिल्ली की बात ही नहीं है.....कानपुर, भोपाल में मेरी ही दो दोस्त हैं आधुनिकता की वजह से काफी सालों तक फीगर को लेकर चिंतित रही औऱ हमेशा कहती रहीं बच्चों को दूध पिलाने से फिगर पर तो असर पड़ेगा ही....जिम मे जाकर फिगर मैनेटेन करती रहीं औऱ कहती देखो हमने तो बच्चों को पाल कर भी फिगर मेनटेह किया हुआ है....अब इस बात को क्या कहें....बच्चे पालना सिर्फ औऱत का काम नहीं है. पर जो कुदरत की जो बच्चों की अमानत है उसे तो उस तक पूरा पहुंचाना चाहिए..

    पर सवाल सिर्फ शहरों का नहीं होना चाहिए....देश की कितनी करोड़ माताएं हैं जिन्हें पोष्टिक खाना मिलता है, जो बच्चों को दूध मिल पाए....बच्चों के कई संस्थाओं से जुड़ा हूं ....हाल में कहीं पड़ा थआ कि किसी एनजीओ के माध्यम से अनाथ बच्चों के लिए मां के दूध का दिन रखा गया था, जब कई मांओं ने आकर अनाथ बच्चों को स्तनपान कराया था....ये हालात देख कर शर्म भी आती है कि भारत भाग्य विधाता, इतना कुपोषित औऱ इतना लाचार क्यों ....फिर भी आंखे भर सी आईं थी कि नहीं कई माताएं हैं जो झिझक को छो़ड़ आगे आईं....इन्हें किसी चैरिटी शो का दिखावा नहीं करना था और न ही किसी ग्लैमर वर्ल्ड की हस्ती ने नाम के लिए इनको रास्ता दिखाया था..शायद इसिलिए हमारी चकाचौंध से जल्दी गायब हो गया था.....

    पर आप सीरिज शुरु कीजिए.क्योंकी अपने आसपास की कुछ नई माताओं को ही आंख खुले..सीरिज लंबी होगी तो कई पहलुओं को भी छुती हुई निकलेगी ही....

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  27. तुम्हारा नन्हा सा मुँह

    अपनी छाती से और

    बंद मुट्ठी से आँचल छुड़ाती हूँ

    तुमसे ज्यादा मैं रोती हूँ
    इसमें ही है हर सवाल का जवाब ...

    मैं रश्मि रविजा से सहमत हूँ मगर उसपर आपका जवाब भी पढ़ चुकी हूँ ...इसलिए सिर्फ इतना कहूँगी की फिगर मेंटेन करने के लिए दूध नहीं पिलाने वाली माँ बहुत कम है ...और जो बहुत कम है उस पर ज्यादा माथापच्ची की कहाँ जरुरत है ...बल्कि ज्यादा जरुरत इस पर ध्यान देने की होनी चाहिए कि अपने बच्चों को दूध पिलाने वाली माओं को कैसे पौष्टिक खाना मिले कि बच्चों का पेट भर सके ...

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  28. मुझे तो एक बात ही समझ में नहीं आई कि बच्चे होने से फिगर भी ख़राब होता है क्या ??
    क्योंकि मैंने ऐसा नहीं देखा...हाँ ब्लॉग्गिंग करने से ज़रूर हो रहा है...
    मैं भी इंतज़ार में हूँ ऐसी लड़की मिले तो सही जिसे अपने फिगर की इतनी फ़िक्र हो ....
    मुझे मेरी बेटी के होने के २८ दिन के बाद ही नौकरी ज्वाइन करनी पड़ी...कारण भारत सरकार तीसरे बच्चे के लिए कोई मतर्निटी लीव नहीं देती और मेरे पास मेरी अपनी सिर्फ २८ दिन की छुट्टी बची थी...नहीं जाती तो without pay होता और service में ब्रेक....seniority में पीछे हो जाती...और मेरे scale पर भी असर होता ...तो बिटिया का दूध छुड़ा कर गयी थी.....जहाँ तक फिगर का सवाल है वो तो घर और नौकरी करते हुए वैसे भी मेंटेन ही रहता है....
    हाँ अब बेशक उम्र का तकाजा और ब्लॉग्गिंग का असर है....
    पोस्ट तो हमेशा की तरह लाजवाब...लेकिन चक्कर क्या है..डाक्टर साहेब से permission डे दिया या कि आदत से मजबूर आप भी हो गए हैं.....!!!
    हाँ नहीं तो...

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  29. @-.पत्नी एमए बीएड होने के बावजूद नौकरी नहीं करती...क्योंकि होममेकर होना शायद सबसे मुश्किल काम होता है...और वो वही ज़िम्मेदारी निभा रही है...बच्चे बारहवीं कर लें, उसके बाद ही वो जॉब वगैरहा का कुछ सोचेगी....

    A woman is 45 by the time her child finishes his/her 12th class. I wonder what job she can get at 45. Moreover a child needs more attention when he is preparing for competitions. Again a woman is supposed to compromise with her ambitions. She then gets busy in looking for her child's marriage. Can she start her career now? No, the next generation has arrived. She is supposed to look after them. By this time a woman is 60. After 65 she lives on medicines and good for telling stories to grandchildren only.

    If a woman doesn't start a career in time, she will end up appeasing herself with trivial jobs.Her own life ends after marriage if she is not in job. She starts living for her family. because she is left with no other option.

    A woman can be happy only when she is in job where her intellect and degrees, she earned has some worth. Otherwise, husband , bacchha, car AC to hai hi.

    More than breast-feed,children need their father's company. But alas! most of the fathers are damn busy . A mother has alternative for breast milk but she doesn't have any substitute for a father's presence in her child's life.

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  30. Happy mother's day to all the wonderful women here in blog-Jagat and everywhere on earth.

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  31. रश्मि जी बात से सहमत हूँ...चंद लोगों के कारण सारी स्त्री जाति पर आरोप आवंछित है...बहरहाल ...मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ !!

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  32. @ zeal

    मुझे खुशी है कि मेरी पत्नी ने बच्चों के बड़े होने तक होममेकर ही बने रहने का फैसला किया...दोनों बच्चों को वो जिस तरह की परवरिश दे रही है, वो उन्हें कुछ भी बनने से पहले इनसान बना रही है, रोबोट नहीं...
    और जहां तक 45 साल की उम्र में जॉब का सवाल है तो जॉब सिर्फ नौकरी ही नहीं होती...आदमी सेल्फ-इम्पलॉयड भी हो सकता है...आदमी करना चाहे तो बहुत कुछ कर सकता है, इसलिए उम्र का कोई बंधन नहीं होना चाहिए...हां, इस बात से मैं आपकी पूरी तरह सहमत हूं कि फैसला कोई भी हो पति-पत्नी के बीच अच्छी अंडरस्टैंडिग ज़रूर होनी चाहिए...

    जय हिंद...

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  33. @-मुझे खुशी है कि मेरी पत्नी ने बच्चों के बड़े होने तक होममेकर ही बने रहने का फैसला किया....

    Women indeed are blessed with big heart. They sacrifice their career for the sake of husband and kids.

    My heart bleeds when i see many educated women are not placed where they deserve to be.

    By the way, working women are also capable of looking after their children properly. Their children are not robots.

    I feel sad for my mum and dad, who took great pains to educate me, but i am simply wasting there efforts by sacrificing my career for family alone....

    More than the family, the society needs my services.

    Women look after the family as a part of their duty assigned by the almighty. But she gains real happiness when her worth is proved in science , technology, lieterature , politics and so on....

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  34. खुशदीप जी ,
    आपका दराल जी से इक सवाल ....शिशु को कितनी उम्र तक मां का दूध हर हाल में मिलना चाहिए...

    मुझे सोचने पर मजबूर कर गया उन स्त्रियों के लिए जिनके स्तनों का दूध कुपोषण की वजह से महीने भर में ही सूख जाता है ....जिन महिलाओं का आपने ज़िक्र किया उनका प्रतिशत कितना हो सकता है ....? पर मध्यवर्गीय और निम्नवर्गीय स्त्रियों की गर्भावस्था में कितनी देखभाल की जाती है ....? ऐसे समय में स्त्री के खान - पान का विशेष ध्यान रखना पड़ता है ...वे फिगर के लिए डिब्बे का दूध नहीं पिलाती बल्कि बच्चे का पेट न भर पाने की वजह से उसे वो दूध पिलाने के लिए बाध्य हो जाती हैं ......मेरे ख्याल से आज की पढ़ी लिखी लडकियां भी इस बात को समझने लगी है कि बच्चा जजने या दूध पिलाने से फिगर खराब नहीं होता ...अपने शरीर की उचित देखभाल न करने से फिगर खराब होता है ....

    रोज़ सुबह जब

    छः बजे की बस पकड़कर

    काम पर जाती हूँ

    तुम्हारा नन्हा सा मुँह

    अपनी छाती से और

    बंद मुट्ठी से आँचल छुड़ाती हूँ

    तुमसे ज्यादा मैं रोती हूँ

    बिटिया ! मैं बिलकुल सच कहती हूँ ....

    शेफाली जी कि टिप्पणी ने सच- मुच भावुक कर दिया .....नमन है ऐसी माँ को .....!!

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  35. खुशदीप जी ! गंभीर पोस्ट है ..लैपटॉप ख़राब था तो काफी देर से देख पाई हूँ ..पर विषय ऐसा है कि कुछ कहे बिना रहा नहीं जा रहा ...शैफाली की टिपण्णी के दर्द को समझना चाहिए ...पर हमारे यहाँ सिर्फ दोष देने का रिवाज़ है समझने का नहीं...कोई नहीं समझता कि एक कामकाजी माँ को किन हालातों में अपने बच्चों को छोड़ कर जाना पड़ता है ..और हर एक पास बुजुर्गों का सहारा नहीं होता ...एक पड़ी लिखी योग्य महिला अगर घर बैठ कर बच्चों को पालती है ...तो भी उसे रोज़ ये ताने सुनने पड़ते हैं....हाँ तुम्हारा क्या है...तुम्हें कौन से पैसे कमाने पड़ते हैं ..घर में बैठती हो आराम से..करती ही क्या? बच्चों को क्या पालना ? ये तो एक नैचुरल प्रोत्सेस है अपने आप ही बड़े हो जाते हैं...और अगर वह काम काजी है तो उस पर ये दोष कि बच्चों की देखभाल ठीक से नहीं करती ...यहाँ पर इस कथन से मेरा मतलब ये नहीं कि सभी ऐसे होते हैं पर इसी तरह कुछ उदाहरण के चलते पूरी नारी जाती पर ये दोष लगाना उचित नहीं..मैं भी एक माँ हूँ और पड़ी लिखी योग्य भी और एक महानगर में ही रहती हूँ . फिर भी घर में बच्चों की परवरिश के चलते सब कुछ छोड़ा हुआ है ....और मेरी जैसी मैं अकेली नहीं.. यहीं छोटे से ब्लॉग जगत में ही बहुत मिल जाएँगी...जहाँ तक तलाक के आंकड़े बढ़ने का सवाल है तो उसका कारण माँ का दूध न पिलाना तो कतई नहीं ...उसका कारण है बदलता वक़्त और परिवेश.
    आपकी पोस्ट काफी संतुलित, और निष्पक्ष विचारों वाली होती हैं...इसलिए अगली कड़ी का इंतज़ार है.उम्मीद है निष्पक्ष तथ्य सामने आयेंगे.

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  36. जागरूक करती ए्क उच्चस्तरीय पोस्ट !
    इस पोस्ट पर मेरी टिप्पणी कैसे रह गयी ?

    ( बच्चा, जहाँ कहीं भी हो..लौट आओ । मैं तुम्हारे पुराने पोस्ट पढ़कर किसी तरह गुज़र बसर कर रहा हूँ )

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  37. ऒये तेरी की, मॉडरेटर भी बैठा दिया ?

    जवाब देंहटाएं