मुंबई का भीखू म्हात्रे कौन...खुशदीप

आपने राम गोपाल वर्मा की फिल्म सत्या देखी होगी...अगर हां, तो आपको मनोज वाजपेयी का निभाया भीखू म्हात्रे का किरदार भी याद होगा...भीखू म्हात्रे फिल्म के एक दृश्य में चट्टान पर चढ़कर चिल्लाता है मुंबई का किंग कौन....है कोई भीखू म्हात्रे का मुकाबला करने वाला...कोई नहीं साला...ये एक फिल्म की बात थी...लेकिन आज एक उम्रदराज़ शेर इसी अंदाज में ये सवाल दाग रहा है...शेर में इतनी ताकत बची नहीं कि चट्टान पर चढ़ कर दहाड़ सके...इसलिए वो अखबारनुमा अपने चिट्ठे सामना से ही दिल की भड़ास निकाल कर खुद को तसल्ली दे रहा है...


माई नेम इज़ ठाकरे

ये शख्स कहना चाह रहा है माई नेम इज़ ठाकरे...बाल ठाकरे....कुछ कुछ वैसे ही अंदाज़ में जैसे शाहरुख़ ख़ान 12 फरवरी को अपनी रिलीज होने वाली फिल्म में कहने जा रहे हैं...माई नेम इज़ ख़ान...शाहरुख ने पिछले साल अगस्त में अमेरिका के नेवार्क हवाई अड्डे पर तलाशी के दौरान भी कहा था...माई नेम इज़ ख़ान...बॉलीवुड के बादशाह की इस तरह तलाशी पर बवंडर आ गया था...शाहरुख के परम सखा राजीव शुक्ला ने तत्काल शाहरुख की इस व्यथा को अपने चैनल के माध्यम से देशवासियों तक पहुंचा दिया था...लोगों को पता चल गया था कि शाहरुख की कोई फिल्म आने वाली है....माई नेम इज़ ख़ान...


माई नेम इज़ ख़ान

अब फिल्म की रिलीज से ठीक पहले शाहरुख ने एक और बयान क्या दिया...शिवसैनिक कमर कस कर शाहरुख के खिलाफ सड़कों पर उतर आए...ठाणे में माई नेम इज़ ख़ान के पोस्टर तक फाड़ डाले...शाहरुख ने दरअसल आईपीएल (भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड का ट्वंटी ट्वंटी का तमाशा) में शाहिद आफरीदी समेत पाकिस्तान के कुछ खिलाड़ियों को बोली में कोई भाव न मिलने पर अफसोस जताया था...

शाहरुख़ ख़ान आईपीएल में कोलकाता की टीम कोलकाता नाइट राइडर्स के मालिकों में से एक हैं....शाहरुख के मुताबिक "आईपीएल के तीसरे सीज़न के लिए पाकिस्तानी खिलाड़ियों को चुना जाना चाहिए था...पाकिस्तानी खिलाड़ी टी-20 के चैम्पियन हैं...हमें सबको बुलाना चाहिए...अगर कुछ मुद्दे थे, तो उन्हें पहले ही सामने लाना चाहिए था. सब कुछ सम्मानपूर्ण तरीक़े से हल हो सकता था.... हर दिन हम पाकिस्तान पर आरोप लगाते हैं और पाकिस्तान हम पर... ये एक मुद्दा तो है ही..."

दरअसल शाहरुख को पाकिस्तान और अरब वर्ल्ड में भी दीवानगी की हद तक चाहने वाले बहुत हैं...और अब बॉलीवु़ड की फिल्मों का बाज़ार भी सिर्फ भारत तक ही सीमित नहीं है...शाहरुख की फिल्मों को ओवरसीज़ भी वैसा ही रिस्पांस मिलता है जैसे भारत में...शाहरुख हो या आमिर आजकल अभिनय, फिल्म निर्माण के साथ मार्केटिंग के फंडे भी खूब जानते हैं...आईपीएल के नाम पर पाकिस्तानी खिलाड़ियों के लिए हमदर्दी जताकर पाकिस्तान में शाहरुख ने अपने मुरीदों की तादाद और बढ़ा लीं...अब भारत के भीतर और बाहर शाहरुख के प्रशंसक उन्हें परदे पर ये कहता देखने के लिए बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं...माई नेम इज़ ख़ान...

लेकिन शाहरुख मार्केटिंग में फायदे ढूंढ रहे थे तो मातोश्री में बैठे उम्रदराज़ शेर बाल ठाकरे को शाहरुख पर निशाना साधने में शिवसेना के लिए एक और संजीवनी बूटी नज़र आई...शिवसेना के प्रवक्ता संजय राउत ने मुंबई में बाला साहेब के आशीर्वाद से बयान दागा, "अगर शाहरुख़ ख़ान चाहते हैं कि पाकिस्तानी खिलाड़ी यहाँ खेलें, तो उन्हें इस्लामाबाद या कराची में जाकर मैच खेलना चाहिए...अगर वे अपनी टीम में पाकिस्तानी खिलाड़ियों को शामिल करते हैं, तो उन्हें इसका नतीजा भुगतने के लिए भी तैयार रहना चाहिए...वो ऐसी टीम लाकर देखें, फिर शिवसेना बताएगी कि वो क्या करती है...

दरअसल बाल ठाकरे जानते हैं कि उद्धव ठाकरे तेवरों के मामले में राज ठाकरे से उन्नीस साबित हो रहे हैं...इसलिए बाल ठाकरे के पास एक ही चारा बचा है कि वो खुद ही पुरानी फॉर्म में लौटें...भिवंडी विधानसभा सीट के लिए उपचुनाव में जीत से शिवसैनिकों में जागे उत्साह को वो जिलाए रखना चाहते हैं...महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनाव होने वाले हैं...और बाल ठाकरे अब भतीजे राज ठाकरे से हर उस मुद्दे में आगे रहना चाहते हैं जो मराठी माणुस की ज़मीन से किसी न किसी रूप में ताल्लुक रखता हो...

और बाल ठाकरे को मौके भी मिल रहे हैं...अब क्या ज़रूरत थी रिलायंस इंडस्ट्री के सर्वेसर्वा मुकेश अंबानी को ये कहने की कि मुंबई हो दिल्ली, कोलकाता हो या चेन्नई, सब पर सभी भारतीयों का हक है...हर बात से ऊपर है कि हम भारतीय हैं...लंदन में एक किताब की लॉन्चिंग के मौके पर मुकेश अंबानी ने ये बात क्या कही कि मुंबई में जलजला आ गया...बाल ठाकरे ने लिखा है कि "मराठी लोगों का मुंबई पर उतना ही अधिकार है, जितना मुकेश अंबानी का रिलायंस कंपनी पर...मुंबई महाराष्ट्र की राजधानी है और उसकी राजधानी रहेगी.. मुंबई और मराठी माणुस की राह में दखल मत दो... जब पंडित मुकेश अंबानी कहते हैं कि मुंबई, चेन्नई और दिल्ली सभी भारतीयों की है तो वह अहमदाबाद, जामनगर और राजकोट जैसे शहरों को क्यों छोड़ देते हैं...मैं मुकेश अंबानी को एक सच्चा मुंबईकर मानता था... उनके पिता और मेरे मित्र दिवंगत धीरूभाई मुंबई के प्रति वफादार थे...अंबानी अपना औद्योगिक साम्राज्य मुंबई और महाराष्ट्र की वजह से इतना फैला पाए...धीरूभाई हमेशा जानते थे कि वह मुंबई के कर्जदार हैं...तब मुकेश ने क्यों अलग रास्ता अपनाया..."

ठाकरे ने यह चेतावनी भी दी कि अंबानी को महाराष्ट्र के लोगों को भड़काए बिना अपना काम करना चाहिए...

ये इत्तेफ़ाक ही है कि इधर बाल ठाकरे मुकेश अंबानी को हड़का रहे थे और अमेरिका में फोर्ब्स मैगजीन मुकेश अंबानी़ को सबसे अमीर भारतीय के साथ दुनिया के ताकतवर अरबपतियों में आठवें नंबर पर शुमार कर रही थी...मुकेश की कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज़ की हैसियत 73 अरब डॉलर आंकी गई है... फोर्ब्स के अनुसार अकेले मुकेश के पास ही 32 अरब डॉलर हैं...


माई नेम इज़ अंबानी

मुकेश अंबानी से पहले बीते साल नवंबर में शिवसेना प्रमुख इसी मुद्दे पर सचिन तेंदुलकर को राजनीति से दूर रहने का परामर्श दे चुके हैं... ठाकरे ने तब कहा था कि सचिन को खुद को क्रिकेट तक सीमित रखना चाहिए और राजनीति की पिच पर दखल नहीं देना चाहिए... सचिन तेंदुलकर ने भी कहा था कि मुंबई सभी के लिए है... ठाकरे ने इसकी आलोचना करते हुए कहा था कि सचिन को राजनीति की पिच पर आकर मराठी माणुस को आहत करने की कोई जरूरत नहीं है... ऐसी टिप्पणियां करके सचिन मराठी मानस की पिच पर रन आउट हो गए हैं... आप तब पैदा भी नहीं हुए थे जब मराठी मानस को मुंबई मिली और 105 मराठी लोगों ने मुंबई के लिए अपनी जान की कुर्बानी दी...


माई नेम इज़ तेंदुलकर

बाल ठाकरे जानते हैं कि शाहरुख, मुकेश अंबानी और सचिन तेंदुलकर तीनों अपने-अपने फील्ड के बादशाह हैं...इसलिए उन्हें चुनौती देंगे तो उनके वोट बैंक में ये संदेश जाएगा कि शेर बूढ़ा हो गया तो क्या हुआ है तो शेर ही...और वो बड़े से बड़े दिग्गज को आज भी ललकारने का माद्दा रखता है...लेकिन क्या कोई बाल ठाकरे से ये पूछेगा कि शाहरुख जिस बॉलीवुड का प्रतिनिधित्व करते है, वो मुंबई से बाहर चला जाए, मुकेश अंबानी जो भारतीय उद्योग के सबसे चमकते सितारे हैं, वो अपना हेडक्वार्टर मुंबई से बाहर ले जाएं या मराठी माणुसों में से ही एक सचिन तेंदुलकर जिस क्रिकेट के भीष्म पितामह कहलाए जाते हैं, उस क्रिकेट (बीसीसीआई) का मुख्यालय ही मुंबई से बाहर चला जाए तो मुंबई या मराठी माणुस का कौन सा भला होगा...इस सवाल का जवाब ठाकरे सामना में नहीं देना चाहेंगे...क्योंकि अगर वो ऐसा करेंगे तो फिर ये कैसे कह पाएंगे...मुंबई का किंग कौन....

स्लॉग ओवर


बड़े बुज़ुर्ग बच्चों से कहते हैं...दिल लगाके पढ़ो...
...
...
...
...
...
बच्चों का जवाब...अगर दिल लगा लेंगे तो पढ़ाई फिर ख़ाक़ करेंगे...

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22 टिप्पणियाँ
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  1. सब बिखरते वोटों को समेटने की खातिर हो रहा है ....इसी तरह अगर सब कुछ चलता रहा तो अलगाव की इस आँधी में एक दिन ये देश टूट के बिखर जाएगा। इसी के विरोध में मैंने तात्कालिक गुस्से और क्षोभ के चलते एक कविता भी लिखी थी...
    माना कि...
    अपनों के बीच... अपने शहर में
    चलती तेरी बड़ी ही धाक है
    सही में...
    विरोधियों के राज में भी तू. ..
    गुंडो का सबसे बडा सरताज है ...
    हाँ सच!...
    तू तो अपने ठाकरे का ही 'राज' है...
    सुना है!...
    समूची मुम्बई पे चलता तेरा ही राज है
    अरे!...
    अपनी गली में तो कुता भी शेर होता है...
    आ के देख मैदान ए जंग में...
    देखें कौन. ..कहाँ... कैसे ढेर होता है
    सुन!...
    सही है...सलामत है...चूँकि मुम्बई में है...
    आ यहाँ दिल्ली में...
    बताएँ तुझे ...
    निबटने की तुझसे कितनी हम में खाज है
    हाँ! ...
    निबटने की तुझसे कितनी हम में खाज है


    जय हिन्द

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  2. क्या कोई बाल ठाकरे से ये पूछेगा कि शाहरुख जिस बॉलीवुड का प्रतिनिधित्व करते है, वो मुंबई से बाहर चला जाए, मुकेश अंबानी जो भारतीय उद्योग के सबसे चमकते सितारे हैं, वो अपना हेडक्वार्टर मुंबई से बाहर ले जाएं या मराठी माणुसों में से ही एक सचिन तेंदुलकर जिस क्रिकेट के भीष्म पितामह कहलाए जाते हैं, उस क्रिकेट (बीसीसीआई) का मुख्यालय ही मुंबई से बाहर चला जाए तो मुंबई या मराठी माणुस का कौन सा भला होगा..

    वैसे तो यह सवाल बूढ़े शेर के बगलें झांकने के लिए काफी है.....
    काफी विस्तृत और गहन रिपोर्ट लगी आपकी....देश के तीन दिग्गजों की उपलब्धियों और उनके importance की बात की है यह सच है की आज अगर ये तीओं अपना बोरिया-बिस्तर उठा कर मुम्बई से निकल जायेंगे.....तो मुंबई शायद यह नुक्सान झेल नहीं पाएगी.....हमेशा की तरह लाजवाब...
    शुक्रिया...

    स्लोग ओवर...
    आपने तो हमेशा ही बुजुर्गों की बात मानी है ..मुझे मालूम है ..:):)

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  3. छूटी हुई कारतूसें हैं. बेवजह आदतन आवाज कर रहे हैं.


    स्लॉग ओवर मस्त!!

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  4. ये पुराना शगल है उनका. कुछ तो नया शोशा चाहिये. बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  5. बहुत सही आकलन है आपका ...अब तो मुंबई में बसे उद्योगपतियों को... जो गैरमराठी है ....इन लोगो को इनका रुतबा दिखा ही देना चाहिए ...ये वही लोग है जो आतंकवादी हमलों के समय मुंह छुपाये बैठे थे ...मुंबई और मराठियों की इतनी चिंता करने वाली उनके लिए मर मिल्टने वाले तब कहाँ थे ...तब मुम्बई वासियों की जान बचने वालों की लम्बी फेहरिस्त में ज्यादा नाम गैर मराठी ही थे ....

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  6. अपने स्कूल और कॉलेज के जमाने में बहुत फिल्में देखा करता था पर अब बहुत ही कम फिल्में देख पाता हूँ इसलिये सत्या नहीं देख पाया। आज की राजनीति(?) की भी कुछ विशेष समझ नहीं है। इसलिये टिप्पणी में सिर्फ इतना ही कह सकता हूँ कि स्लॉग ओवर जोरदार लगा।

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  7. सब अपना अपना स्वार्थ पूरा करने में लगे हैं।
    हमें तो ये पता है की दिल्ली में एक साल तक कोई क्रिकेट का मैच नहीं होने वाला।
    वैसे बात तो हम भी अपने स्वार्थ की ही कर रहे हैं।
    दिल लगाकर नहीं तो दिल के ही बारे में ही पढो यार।

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  8. सब कुछ बस चर्चा में रहने के लिए किया जाता है यदि ऐसे लोग मुंबई छोड़ दे क्या बचेगा वहाँ...कुछ भी नही...और कौन है इनके मुकाबले ..मगर सब राजनीति है जो इतनी आवाज़ें उठती रहती है...बढ़िया प्रसंग भाई

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  9. बोली लगाते समय शाहरुख खान को पाकिस्तानी खिलाड़ियों को खरीदने से किसने रोका था? क्या वे उस समय सो रहे थे? मूल मुद्दे से ध्यान भटकाने में मीडिया वाले निपुण होते हैं और वही इस मामले में हो रहा है… शाहरुख के मुद्दे के साथ तेंडुलकर के मुद्दे को जोड़ दिया गया है और ठाकरे की आलोचना के लिये इसे "मराठी"-अमराठी मुद्दा बनाया जा रहा है, जबकि असली प्रश्न यह है कि शाहरुख, टाइम्स और हमारे इलेक्ट्रानिक मीडिया को अचानक पाकिस्तान प्रेम क्यों आ रहा है? क्या मीडिया ने शाहरुख से उनकी फ़िल्म हिट करवाने के लिये पैसा खाया है? या मीडिया, ठाकरे परिवार से इसलिये खफ़ा है क्योंकि इन्होंने जब-तब इनकी ठुकाई की है?
    इसलिये प्लीज़ दो मुद्दों का घालमेल मत कीजिये… व्यक्तिगत रूप से मैं ठाकरे परिवार के मराठी-अमराठी मुद्दे का विरोध करता हूं, लेकिन शाहरुख मामले पर समर्थन करता हूं…। अब तो IPL मे पाकिस्तानी खिलाड़ियों को लेना "थूक कर चाटने" जैसा होगा… आप भी स्पष्ट मत व्यक्त कीजिये कि शाहरुख द्वारा लिये इस स्टैण्ड पर आपका क्या विचार है?

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  10. बाकी की राजनैतिक पार्टियाँ तो मुँह में दही जमाकर बैठी हैं, अकेली शिवसेना शाहरुख का विरोध कर रही है… जबकि टाइम्स-जंग की नौटंकी "अमन की आशा" पर भी अभी तक किसी ने उंगली नहीं उठाई है, जबकि वह भी शुद्ध रूप से "धंधेबाजी" के लिये किया जा रहा जतन है…। शाहरुख को भी पाकिस्तान में अपनी फ़िल्म के होने वाले धंधे की चिन्ता सता रही है…। शिवसेना मराठी के संकीर्ण मुद्दे की बजाय पाकिस्तान पर बोल रही है तब भी मीडिया को तकलीफ़ हो रही है? इसे सेकुलरिज़्म कहा जाये या कुछ और…

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  11. मुझे कल रात ही लगा था आपका पोस्ट इसी मुद्दे पर होगा..

    हमारे गाँव में कहावत है... "पहलवान को झगडा नहीं मिलता है तो वो रगडा करने पर उतर आता है"... खली बैठने से इनका देह दर्द करते रहता है... इसलिए...
    यह ऐसे कीचड़ है जिनपर पत्थर ना भी मारो तो... आपपर लग ही जाते हैं...

    कोई निरमा का एड सुना दे इनको .)

    स्लोग ओवर
    अदा जी की बात पर दे ताली ! इस मुआमले में हम भी बुजुर्गों के आज्ञाकारी हैं .).).)

    जवाब देंहटाएं
  12. @ सुरेश चिपलूनकर जी,
    पहली बात तो मेरी बधाई स्वीकार कीजिए वो इसलिए कि आप मराठी-गैर मराठी के मुद्दे का विरोध करते हैं यानि आप राष्ट्रवादी हैं...

    दूसरी बात, अगर आप मेरी पोस्ट को गौर से पढ़िए तो मैंने शाहरुख के बयानों की सटीक टाइमिंग का स्पष्ट उल्लेख किया है, उन्हें अपनी फिल्म हिट करानी है...शाहरुख का फलसफा है, वो गाना गाते हैं कि... बस इतना सा ख्वाब है कि चांद तारे मैं तोड़ लाऊं, सारी दुनिया पर छा जाऊं...शाहरुख विशुद्ध कारोबारी है...आप भी कारोबारी हैं...जिस तरह आपको अपना कारोबार उज्जैन या मुंबई या देश के किसी भी कोने में करने का हक है...वैसे ही शाहरुख को भी है...
    जिस तरह आप पर कोई उंगली नहीं उठा सकता...इसी तरह शाहरुख के फिल्म प्रमोशन के अपने हित हो, ये कोई नहीं कह सकता कि मुंबई से बाहर चले जाएं....हां, शाहरुख कोई देशद्रोही या देश के कानून को तोड़ने वाला काम करते हैं तो मुंबई की पुलिस या कानून को उन्हें मुंबई से तड़ीपार करने का हक है...लेकिन सिर्फ कानून को...न कि
    बाल ठाकरे या राज ठाकरे को...और शाहरुख अकेले आईपीएल में पाकिस्तानी खिलाड़ियों के खेलने की अनुमति देने के हक में नहीं है...अमिताभ बच्चन और देश के खेल मंत्री मनोहर सिंह गिल भी शाहरुख जैसे ही बयान दे चुके हैं...

    जय हिंद...

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  13. सुरेश चिपलूनकर जी,
    एक बात और, ये कांग्रेस और एनसीपी छुप कर उसी खेल को खेलने में विश्वास रखती हैं जो शिवसेना और एमएनएस खुल कर खेलती हैं...टैक्सी चलाने के लिए मराठी आने या १५ साल मुंबई में रहने की बाध्यता की बाते कांग्रेस-एनसीपी की सरकार ही कर रही है...मराठी माणुस की ज़मीन पर ये दोनों पार्टियां भी अपनी फसल लहलहाते देखना चाहती है, इसीलिए बीच-बीच में खाद-पानी देती रहती हैं...

    आप को सचिन तेंदुलकर का मुद्दा साथ जोड़ने पर ऐतराज़ हुआ लेकिन मुकेश अंबानी के नाम को लेकर नहीं हुआ...जबकि दोनों ने बिल्कुल एक सी बात कही है कि मुंबई पर सभी भारतीयों का हक है...मुकेश अंबानी ने सावधानी बरतते हुए चेन्नई, कोलकाता और दिल्ली के भी नाम साथ में जोड़ दिए हैं...मुझे ये समझ में नहीं आता कि किसी भी शख्स के ये कहते ही कि मुंबई भारत में है और इस नाते उस पर सभी भारतीयों का हक है, बाल ठाकरे या राज ठाकरे की भौंहें क्यों तन जाती हैं...

    पाकिस्तान तो कब का देश से अलग हो चुका...इसलिए अगर वो 26/11 जैसे हमले करता है तो फौरन भारत सरकार को इस्राइल की तर्ज पर उसे सबक सिखा देना चाहिए था...अगर नहीं सिखाया और सरकार सिर्फ अमेरिका का मुंह देखती रही तो ये उसकी नामर्दी है....लेकिन यहां एक बात और सभी पाकिस्तानी भी आतंकवादी नहीं है...जिस तरह प्यार, अमन की बात करने वाले हमारे देश में है, उसी तरह की बोली बोलने वाले पाकिस्तान के आम लोगों में भी कम नहीं है...भूख, बेरोज़गारी जैसे मुद्दों से उन्हें भी वैसे ही दो-चार होना पड़ रहा है जैसे हमारे देश के 77 फीसदी लोगों को....राजनेता जैसे हमें काठ का उल्लू समझते हैं, ऐसे ही पाकिस्तान में होता है...

    आतंकवादी, आतंकवादी होते हैं, उनका कोई मज़हब, कोई राष्ट्रीयता नहीं होती...ये जहां भी हो, बिना वक्त गंवाए उड़ा दिए जाने चाहिए...और अगर इस रास्ते में पाकिस्तान सरकार या फौज आड़े आती है तो उसका भी वही हाल करना चाहिए...हमें वाशिंगटन के
    हुक्मों का इंतज़ार नहीं करना चाहिए...

    एक सवाल और जब मुंबई को पाकिस्तान से आए हुए सिर्फ दस आतंकवादियों ने बंधक बनाया हुआ था, बाल ठाकरे या राज ठाकरे के जांबाज़ सिपाही किन बिलों में जाकर दुबक गए थे...उस वक्त
    जिन कमाडों ने जान पर खेल कर मुंबई को मुक्त कराया, वो कमाडों उत्तर भारत से ही गए थे....वही उत्तर भारत, जहां से दो पैसे कमाने की चाह में कोई युवक मुंबई में जाकर टैक्सी चलाता है तो उसे ठाकरों के सिपाही सड़क पर कूट कर मर्दानगी दिखाते हैं...

    जय हिंद...

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  14. .... प्रभावशाली अभिव्यक्ति .... सच कहा जाये तो मुंबई पर बहस बेवजह की बहस है जो बीच-बीच मे बिना आग के ही सुलगने लगती है ....मेरा मानना तो ये है कि ठाकरे जी को इन छोटी-मोटी बातों पर ध्यान ही नही देना चाहिये... अपने देश मे मुद्दों की कमी नही है जिन पर कुछ किया जा सकता है !!!!!

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  15. यह ठाकरे भी बम्बई के कहां है ? अगर ठाकरे मे हिम्मत है तो घर से बाहर निकल कर देखे . मेरा एक पालतू कुत्ता जब घर के अन्दर होता है तो शेर हो जाता है अगर बाहर निकल जाये तो दुम दबाकर वापिस आ जाता है .
    जितनी आग ठाकरे मुम्बई मे उगलते है अगर उसकी प्रतिक्रिया हो गई तो हमारे यहां के मराठीयो का क्या होगा .

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  16. थक गयी हूँ यह सब देख-सुन-पढ़ कर....न्यूज़ में रहने के बहाने ढूंढते रहते हैं...और कुछ नहीं.... आज फिल्म के पोस्टर फाड़ दिए...कल अमिताभ बच्चन से माफ़ी मंगवाई,जया बच्चन के बयान पर...कभी गुलाम अली के प्रोग्राम में तोड़ फोड़ की...दूर रहने वाले ये सब समाचार देख परेशान होते रहते हैं..टी.वी. वाले भी सौ बार एक ही खबर दिखते रहते हैं...मुंबई में आम ज़िन्दगी वैसे ही चलती रहती है....बिना किसी असर के

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  17. खुशदीप जी आजकल बहुत सीरियस होते जा रहे हैं क्या बात है ? वैसे सब ने इस पर बहुत कुछ कह दिया मेरे कहने को क्या रहा वैसे आपका ये सवाल बिलकुल सही है
    एक सवाल और जब मुंबई को पाकिस्तान से आए हुए सिर्फ दस आतंकवादियों ने बंधक बनाया हुआ था, बाल ठाकरे या राज ठाकरे के जांबाज़ सिपाही किन बिलों में जाकर दुबक गए थे...उस वक्त
    जिन कमाडों ने जान पर खेल कर मुंबई को मुक्त कराया, वो कमाडों उत्तर भारत से ही गए थे....वही उत्तर भारत, जहां से दो पैसे कमाने की चाह में कोई युवक मुंबई में जाकर टैक्सी चलाता है तो उसे ठाकरों के सिपाही सड़क पर कूट कर मर्दानगी दिखाते हैं...
    अगर इस बात का कहीं से जवाब मिले तो मुझे जरूर बतायें। ये ठाकरे परिवार महाराष्ट्र को ठीकरा बना कर छोडेगा। बहुत अच्छी लगी आपकी खरी खरी बातें । शुभकामनायें । अब कोई हल्की फुल्की पोस्ट लगायें मेरे जैसे नासमझों को कमेन्ट देना मुश्किल हो जाता है गम्भीर बातों पर शुभकामनायें

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  18. ये ठाकरे परिवार को इतनी सी बात क्यों समझ नहीं आती कि "मेरा भारत महान".............

    और

    इनके दिल में "आई लव माई इंड़िया" वाली भावना को क्यूं नहीं जोर मारती?

    जय हिंद

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  19. अपन तो चुप ही रहेंगे अपने को तो मुंबई में ही रहना है, अगर कुछ लिख दिया तो अपन मुकेश अंबानी तो हैं नहीं कि मुंबई से बाहर न कर पायें, एक अदने से ब्लॉगर हैं, कहीं ब्लॉग से पढ़ कर आ गये तो ये शेर पार्टी वाले, बस लगता है यह भी ज्यादा बोल दिया है, कम बोले को ज्यादा समझना।

    वैसे हमने कभी बुजुर्गों की बात नहीं मानी।

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