मोहतर भी छोड़िए, नर्स का काम आजकल पुरुष भी करते हैं...तो क्या उन्हें नर्सा कहना शुरू कर दिया जाएं...आप कहेंगे... आ की मात्रा तो स्त्रीलिंग के साथ ज़्यादातर लगाई जाती है...बकौल मोहतरमा जैसे अदाकारा, शायरा, ब्लॉगरा, चिट्ठाकारा....इस लिहाज से नर्सिंग का काम करने वाले पुरुष को नर्स और महिला को नर्सा कहना चाहिए...खैर, ये तो निश्चित है कि जिसे भी नर्सा कहा जाएगा, उसे बुरा ही लगेगा...
अब हमारे डॉ अरविंद मिश्र जी हैं सीधे इंसान...इसलिए मोहतरमा के चक्कर में पड़ गए...और अदाकारा, शायरा का हवाला देकर ब्लॉगरा, चिट्ठाकारा का सवाल पूछ बैठे...शायरा कहते हैं या नहीं ये तो शायर ही बता सकते हैं...जहां तक अदाकारा का सवाल है तो अंग्रेज़ी में भी आजकल महिला और पुरुष के लिए एक ही शब्द का इस्तेमाल किया जाने लगा है और वो है एक्टर...हमने भी पुरुष अदाकार के लिए एक्टर और महिला अदाकार के लिए एक्ट्रैस शब्द पढ़े थे ....लेकिन नए ज़माने में ये भेद मिट गया है...सब बराबर यानि एक्टर सिर्फ एक्टर...एक्टर ही क्यों...फिल्म निर्देशक भी पुरुष हो या महिला, निर्देशक ही रहता है निर्देशिका नहीं बन जाता...अंग्रेज़ी में भी निर्देशक के लिए एक ही शब्द है- डायरेक्टर....महिला निर्देशकों के लिए डायरेक्ट्रेस नहीं बन जाता...
आपने प्रचलन में तो ये भी देखा होगा...खन्ना की पत्नी को खन्नी, शर्मा की पत्नी को शर्मी कह कर भी बुलाया जाता है...अब ज़रा चड्डा, गुप्ता, मेहरा की पत्नियों को भी इस तरह बुला कर देखिए...क्या निकल कर आता है....भला कोई अपने लिए पसंद करेगा इस तरह के संबोधन को...मैंने डॉक्टर साहब को उनकी पोस्ट पर जो टिप्पणी भेजी थी वहीं यहां दोहरा रहा हूं...
डॉक्टर साहब,
जहां तक मैं जानता हूं अदाकारा, शायरा जैसे शब्दों का भी इस्तेमाल गलत है...महिलाएं भी अदाकार और शायर ही होती हैं....प्रचलन में शिक्षिका, अध्यापिका भी कह दिया जाता है, वो भी गलत है...महिला विधायक को अगर विधायिका कहा जाए तो उसका बिल्कुल अलग ही मतलब है...बाकी अजित वडनेरकर जी की बात को इस विषय पर अंतिम माना जाना चाहिए...
जय हिंद...
शब्दों के असली विद्वान अजित वडनेरकर जी हैं...मैं कल डॉक्टर साहब की पोस्ट पर अजित जी को ही ढूंढता रहा...लेकिन उनकी टिप्पणी नहीं मिली...मैं मानता हूं, इस विषय पर भी वो दूध का दूध और पानी का पानी कर देंगे...आखिर में एक बार फिर कहना चाहूंगा...जो जैसा है, वैसा ही रहने दो...अध्यापक, शिक्षक, विधायक शब्दों को जिस तरह महिला के लिए बिगाड़ दिया जाता है...वैसा ही अनर्थ ब्लॉगर शब्द के साथ न किया जाए...
बाकी जो ब्लॉगिंग के सर्व-परमेश्वरों की राय...
नोट- आज मुझे रुचिका गिरहोत्रा केस में हरियाणा के पूर्व डीजीपी एसपीएस राठौर को सुनाई गई छह महीने की मामूली सज़ा पर गंभीर बातें आपके साथ बांटनी थी लेकिन ब्लॉगर-ब्लॉगरा के चक्कर में ऐसा उलझा कि वो पोस्ट कल तक के लिए टालनी पड़ गई....धन्य हो मोहतरमा...
स्लॉग ओवर
गुल्ली स्कूल से आकर मक्खन से बोला....डैडी जी, डैडी जी स्कूल वाले स्विमिंग पूल के लिए डोनेशन मांग रहे हैं...सुबह क्या ले जाऊं...
मक्खन...डोनेशन देना ज़रूरी है तो एक लोटा पानी ले जाना...
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आज मेरे अंग्रेज़ी ब्लॉग Mr Laughter पर है...
छुट्टी के लिए शमशान जाकर वापस न आना....
बीमार हूं... पूरे संस्थान की आज छुट्टी करो...
सिरदर्द देने वाला स्कूल...
सिरदर्द भी दुखता है...
खुशदीप जी,
जवाब देंहटाएंआप भी किस चक्कर में पड़े हैं...
'अदाकारा' 'शायरा' ये सभी उर्दू शब्द हैं.....
लेकिन 'ब्लोग्गर' अंग्रेजी का शब्द है ...अंगेरजी में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है...
टीचर..
डाक्टर..
इंजिनियर
प्रोफ़ेसर
नर्स
लेक्चरार
डायरेक्टर
ये सभी अंग्रेजी के शब्द हैं....
'ब्लाग्गर' भी इसी श्रेणी का शब्द है लैंगीकरण या लिंगोच्छेदन या लिंगान्वेषण में ये आ ही नहीं सकता....इसलिए ये बहस का मुद्दा ही नहीं है.... समाप्त.
ना ना गुल्ली बेटा....चम्मच में पानी ले जाओ और उनसे कहो ....'आप सब इसमें आप गोता लगा जाइए'...
जवाब देंहटाएंहा हा हा....
मजेदार जी नर्सा ही कहेगे आगे से, वेसे तो नर्स को सिस्टर भी कहते है, अगर नर्सा नही जचता तो सिस्टरा भी बोल सकते है गुल्ली पेसो को बहुत बरवाद कर रहा है, आखिर लोटा पानी का भी कीमत रखता है
जवाब देंहटाएंशुक्र मनाये हम नारियों का ...कैसी विचारोत्तेजक प्रविष्टिया लिखवा रही है ...
जवाब देंहटाएंरुचिका केस भी पीछे छूट गया .....
चम्मच में पानी ले जाने का अदाजी का विकल्प अच्छा रहा ..चम्मच नहीं तो चुल्लू सही ....!!
काफी गहरा चिन्तन कर लिया ब्लॉगर से प्रभावित हो..ठीक है, जय हिन्द.
जवाब देंहटाएंएक लोटा पानी डोनेशन...काफी उदारमना दिखते हैं जब देश बूंद बूंद को तरस रहा है, कोई नेता हैं क्या??
पोस्ट (पद) का लिंगभेद नही होता. वर्ना आजकल हमारे देश मे बहुत फजीहत होती. आजकल यहाँ राष्ट्रपति महिला हैं फिर क्या होता ---?
जवाब देंहटाएंनर्स भी एक पद है अत: ---
यह मेरा तुच्छ ज्ञान है वर्ना चड्ढा की पत्नी को ---- कह लो हमे क्या फर्क पडता है.
डोनेशन में एक लोटा पानी उफ बहुत कंजूस हैं पूरे एक बाल्टी पानी दिजिए. (एक सलाह)
पुरुषों को मोहतरम कहा जाता है भाई...
जवाब देंहटाएंमोहतरम भूत-संहारक जी,
जवाब देंहटाएंजानकारी देने के लिए शुक्रिया...
जय हिंद....
मौज ही तो थी वह खुशदीप जी मगर टिप्पणियाँ बहुत मजेदार आयीं और ज्ञानवर्धक भी ! वैसे मैंने कुछ संबोधन आयी हुयी टिप्पणियों में से ही छांट लिए है कुछेक के लिए -ब्लागरा तो खैर है ही ! जरा ब्लागरीन का व्यावहारिक प्रयोग (थैंक्स कार्तिकेय ) करके तो देखिये !
जवाब देंहटाएंमोहतरमा एक बेहतरीन ब्लागरीन हैं -समां बांध जायेगा ! हा हा
बहुत अच्छी रचना। क्रिसमस पर्व की बहुत-बहुत शुभकामनाएं एवं बधाई।
जवाब देंहटाएंअदा जी से सहमत हू .. कल रुचिका गिरहोत्रा केस के बारे में आपके विचार का इंतजार रहेगा !!
जवाब देंहटाएंआजकल के हिसाब से जिसे जो अच्छा लगे वही शब्द प्रयोग कर सकता है। वैसे भी आजकल हिन्दी ब्लोगों में बहुत से नये नये शब्द पढ़ने के लिये मिल जाते हैं, नये नये प्रयोग हो रहे हैं, अंग्रेजी शब्दों का हिन्दीकरण हो रहा है, हिन्दी में अनेक सरल शब्द होने के बावजूद उन शब्दों के लिये अंग्रेजी शब्द ही प्रयोग किये जा रहे हैं।
जवाब देंहटाएंमुझे याद आ रहा है कि बहुत पहले एक स्कूल के प्रिंसिपल ने एक विद्यार्थी से कहा था, "यदि हम "स्ट्रिक्टता" से पेश आयेंगे तो तुम "निश्चितली" रेस्टिगेट हो जाओगे।"
(यही टिप्पणी मैंने मिश्रा जी के ब्लोग में भी की है।)
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंअमां क्या डॉक्टर ने कहा था , आप ब्लोगरा के चक्कर में पड़ो।
जवाब देंहटाएंहा हा हा !
और ये लोटा लेकर जायेगा तो स्विमिंग पूल में कौन घुसेगा।
व्याकरण भी लचीला होता है सख्त और दृढ़ नहीं। वह किसी भाषा के प्रयोग कर्ताओं के प्रयोगों और अनुप्रयोगों के अनुसार बदलता है। मैं ने अदालती द्स्तावेजों में प्रार्थिनी के स्थान पर प्रार्थी, और इसी तरह के अन्य शब्दों का प्रयोग किया है जो अब प्रचलन में है। भाषा में कोई बदलाव नहीं होता। यदि हर बार किसी पदनाम का जेंडर बदला जाए तो सब से अधिक मुसीबत राष्ट्रपति को हो जानी है।
जवाब देंहटाएंये ऊपर जो एक बेनामी महाराज ने हरकत की है, इनका कोई इलाज हमारे पास है या नहीं...मॉडरेशन लगाने से टिप्पणी देने वाले और पोस्ट लेखक दोनों को असुविधा होती है...लेकिन लगता है कुछ ऐसे गलीज लोग भी हैं जोपहचान बताने का गुर्दा तो रखते नहीं बस गंदगी फैलाना जानते हैं...ये पोस्ट लेखक के विश्वास को तो ठेस पहुंचाता ही है...पढ़ने वालों को भी असहज करता है...अब इन छोटी सोच वालों ने आईडी में ही अभद्र शब्दों का इस्तेमाल शुरू कर दिया है...जिससे कोई टिप्पणी हटा भी दे तो उनकी करतूत दिखती रहे...जैसे इस बेनामी महाराज ने टिप्पणी में तो ऐसा वैसा कुछ नहीं लिखा लेकिन नाम बेहद गंदा रखा हुआ है...टिप्पणी तो हट गई लेकिन नाम अब भी दिख रहा है...अब ब्लॉगर भाइयों को चाहिए कि ऐसा ही कोई इलाज निकाला जाए कि साइबर सेल की मदद से इन गंदगी फैलाने वालों को फौरन पहचान कर ली जाए और ऐसा सबक सिखाया जाए कि दोबारा कभी ऐसा करने की जुर्रत नहीं करें....
जवाब देंहटाएंवैसे पुरुष को मोहतरम कहा जाता है ..पर शेष चीजों से सहमत हूँ ..मुझे इन चीजों में लिंग भेद पसंद नही.
जवाब देंहटाएंअदा जी ठीक ही कह रहीं हैं......
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
भैया.... मोडरेशन हटा दीजिये...... यह ऐसे लोग आते ही रहते हैं...... इन पे हमें ध्यान नहीं देना चाहिए.....
जवाब देंहटाएंमिश्र जी की उठायी गयी चर्चा को खूब आगे बढ़ाया...सब अपनी-अपनी सहजता का प्रश्न है।
जवाब देंहटाएंमैं भी कभी दफा सोच चूका हूं कि प्रतिभा पाटिल को राष्ट्रपत्नि क्यों नहीं कहते। इस अधिकार के लिए महिलाएं क्यों आवाज उठाती।
जवाब देंहटाएंमाँ
खुशदीप, मोडरेशन लगाने का यही फायदा है की कोई भी ऐसी हरकत न कर पाए।
जवाब देंहटाएंफिर भी, मैंने तो कल ही इसे हटाया है।
खुदा खैर करे।
वैसे ऐसे ब्लोग्स को स्पैम में डालने का कोई उपाय होना चाहिए।
खुशदीप , मोडरेशन लगाने का यही फायदा है की ऐसे लोग दूर रखे जा सकें।
जवाब देंहटाएंफिर भी, मैंने तो कल ही इसे हटाया है।
खुदा खैर करे।
इस तरह के ब्लोग्स को स्पैम में डालने का कोई उपाय होना चाहिए।
कहाँ उलझ गए आप भी खुशदीप भाई,...इन सब चर्चा का कोई अर्थ ही नहीं..
जवाब देंहटाएंमक्खन का डोनेशन देने का आइडिया काबिल-ए-तारीफ़ है...:)
डोनेशन देना ज़रूरी है तो एक लोटा पानी ले जाना...
जवाब देंहटाएंयेल्लो भैया आ गये हम भी भटकते भटकते, आज नेटवा फ़ेल हो गया था, चलो एक बार हंसो और एक लोटा पानी ले के लो........... हा हा हा हा हा हा हा
काहे स्त्रीलिंग, पुल्लिंग के चक्कर में पड़ते हैं... हमको तो यह नहीं बुझाता है...
जवाब देंहटाएंहमारे बिहार में तो ट्रेन भी आता है, बस भी आता है, चोट भी लगता है और मौत भी आता है...
हम सबको एक सामान नज़र से देखते है... नो लोचा एन that ... मतलब एक आँख से देखते हैं... ऐसे .)
slog over mast raha hamesha ki tarah .
जवाब देंहटाएंये डाक्टर लोग भी न छूत की बीमारी लगा देते हैं। अब देखिए न डॊ. अरविंद जी को, लगा दिया नाआआआआआआआआआआ :)
जवाब देंहटाएंहमको भी बड़ा दुख होता है जब लोग हमारे बैट्री वाले स्कूटर को 'स्कूटरी' कह के बुलाते हैँ ...स्लॉग ओवर बढिया रहा...
जवाब देंहटाएंअदा जी के विचार से सहमत हूँ।
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
खुशदीप जी आप भी नित नई बात ढूँढ लेते हैं मानना पडेगा कि आप हर ब्लाग ध्यान से ही पढते हैं। वैसे अकेले दीपक मशाल के साथ आप भी आते तो बहुत अच्छा लगता मैने उसे चलने से पहले कहा था कि जब खुशदीप के पास्द जाओ मेरी बात करवा देना कहीं आप इस लिये तो नहीं आये कि मैने खुद अपको नहीं कहा? आप्को तो हमेशा के लिये खुला निमन्त्रण है। आपका अपना घर है जब मर्जी आयें। अब परिवार समेत आपकी प्रती़क्षा करूँगी। धन्यवाद और शुभकामनायें ये इस {ब्लागरी} का अनुरोध है।
जवाब देंहटाएं"अदा"
जवाब देंहटाएंकी
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