वो पढ़ा तो इसे भी पढ़ लीजिए...खुशदीप

महावीर और जानकी देवी की कहानी पर अलग-अलग तरह की प्रतिक्रिया देखने को मिली...
इस पोस्ट को न पढ़ें...खुशदीप
कुछ ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि महावीर और जानकी देवी को उम्र का फर्क देखते हुए शादी नहीं करनी चाहिए थी...समाज का दस्तूर इसे मान्यता नहीं देता...कुछ ने कहा कि महावीर दत्तक पुत्र बनने जैसा कोई रास्ता निकाल सकता था...एनजीओ की मदद ले सकता था...शासन को शिकायत कर सकता था...कुछ ने महावीर के कदम को सही बताया...कुछ ने कहा जिस परिवेश में महावीर और जानकी देवी रहते हैं उसे समझे बिना कुछ कहना उचित नहीं होगा...कुछ अनिर्णय की स्थिति में दिखे...यानि कह नहीं सकते थे कि 22 साल के महावीर और 60 साल की जानकी देवी ने पति-पत्नी बनकर सही किया या नहीं...एक-आध टिप्पणी तो ऐसी भी आई...पहले महावीर के कदम को सही ठहराया...फिर उसे बदलते हुए महावीर के कदम को अगली टिप्पणी में गलत ठहरा दिया गया...यानि महावीर और जानकी को लेकर बंटी हुई राय सामने आईं...

इन सारी टिप्पणियों को पहली बात विवाद के तौर पर न देखा जाए..मेरी नज़र में ये संवाद है...समाज को उद्वेलित करने वाले मुद्दों पर इसी तरह खुल कर विमर्श होना चाहिए...इसी सिलसिले को आगे बढ़ा रहा हूं......पहली बात तो ये हम सब नेट का इस्तेमाल करते हुए ब्लॉगिंग कर रहे हैं...इसलिए दो जून की रोटी और सिर पर छत का जुगाड़ करना हमारी चिंता नहीं है...हम पढ़े-लिखे हैं...हमारी चिंता बौद्धिक खुराक की है...ज़िंदगी में मिली सभी सुविधाओं के बीच हमारे लिए कोई राय कायम कर लेना आसान है...नैतिकता पर लैक्चर पिला देना आसान है...लेकिन महावीर और जानकी देवी का माहौल हमसे बिल्कुल अलग है...जैसा हम सोच सकते हैं, इस तरह की शिक्षा का सौभाग्य महावीर-जानकी को नहीं मिला है...हम जीने के लिए हर तरह की सुविधाएं चाहते हैं...लेकिन महावीर और जानकी के लिए तो जीना ही सबसे बड़ी सुविधा है...मेरा ये सब लिखने का मकसद महावीर और जानकी की वकालत करना नहीं है...ये भी कहा गया जो भी हो महावीर और जानकी ने जो किया उसे अनुकरणीय नहीं कहा जा सकता...सोलह आने सच बात है...किसी को भी इसका अनुकरण नहीं करना चाहिए...लेकिन कम से कम ये तो सोचा जाए कि किन हालात में जीते हुए आखिरी विकल्प के तौर पर महावीर और जानकी देवी को पति-पत्नी बनने का फैसला लेना पड़ा...जाहिर है हम उस परिवेश में जा नहीं सकते...इसलिए उस मानसिक स्थिति से भी नहीं गुजर सकते जिससे महावीर और जानकी देवी को दो-चार होना पड़ा...
 
मुझे यहां एक बात और खटकी...महावीर और जानकी के रिश्ते को सिर्फ सेक्स के नज़रिए से ही क्यों देखा गया...हाई क्लास सोसायटी में लिव इन रिलेशन को मान्यता मिल सकती है...पेज थ्री पार्टियों की चकाचौंध के पीछे वर्जनाओं के टूटने के अंधेरे का नज़रअंदाज किया जा सकता है...लेकिन समाज में निचली पायदान पर खड़ा कोई महावीर या कोई जानकी इस तरह का कदम उठता है तो हम सबको ये नितांत गलत नज़र आने लगता है...
 
विमर्श जारी रखिए...कल मैं तीन अलग-अलग कालों में उम्र के फर्क की पृष्टभूमि में औरत और मर्द के संबधों को लेकर बनी तीन फिल्मों के ज़रिए इस बहस को निर्णायक मोड़ तक पहुंचाने की कोशिश करूंगा...
 
(इस तरह के विमर्श के साथ स्लॉग ओवर बेमेल नज़र आता है...इसलिए स्लॉग ओवर दो दिन के ब्रेक पर...) 
 

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30 टिप्पणियाँ
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  1. Sir...yahan ek baat kahna chahoonga....ki paise mein bahut taaqat hoti hai..... agar yahi kaam koi paise wala insaan karta to koi nahi bolta..... darasal agar koi religion hai to wo paisa hi hai.... koi bhi insaan kisi bhi dharm ka kyun na ho.... agar wo paise wala hai to koi usey kuch nahi bolne wala hai..... yahan sirf ek cheez hai ki yeh dono paise wale nahin hain.... isiliye sab log bol rahe hain....live in relationship sirf paise walon ka shuggle hai.... isliye wahan koi nahin bolta...... agar koi gareeeb aadmi live in relationship mein jayega to poori duniya bolne ko khadi ho jayegi....

    yahan dono ki age matter nahi karti hai..... kaafi kuch haalaat pe bhi depend karta hai..... dono ke..... ki dono kis mod pe aa kar yeh decision liya .....
    aur agar dono ke beech pyar hai to pyar umr nahin dekhta hai.... waaqai mein nahin dekhta hai..... aur pyar mein sex zaroori nahi hai......kai baar hamen saath bhi bahut achcha lagta hai kisi ka..... lekin yahan sirf soch ka asar hai...... ki log pyar ko sex se jod dete hain.....

    in dono ne jo kiya....koii galat nahi kiya..... agar yahi kaam main karta to shayad koi notice nahin karta ..... log yahi kahte .... sab chalta hai.... aur to aur mere reception mein bhi aate..... lekin yahan ek aise tabke ki baat hai.... jinke saath survival ki hi dikkat hai.... aur usne aisa kiya ..... to bina matlab ke bawaal macha rahe hain.... wo dattak putra nahi ban sakta tha..... qki aise putra kah dene se koi putra nahi ho jata.... adoption policy hi khtarnaak hai yahan to...to dattak putra banne ka sawaal hi nahi uthta.... aur kyun bane putra? NGO ki madad lene jaata.....to bechari jaanki tab tak ke maar di jaati.... yahan NGO's bhi amiron ke liye hi hain..... aur sabse badi baat kaun inko yeh samjhata ki NGO ke paas jao? bechare yeh jaante hi nahi ki NGO kya balaa hai.....?

    agar yeh police ke paas jaate to dono laat maar ke bhaga diye jaate..... police sirf paisewalon ki hi sunti hai.....arey! sorry ...paisewalon ki bhi nahi sunti.... to inki kya sunti.... aur inke do vote se kisi ko koi fayada hota nahi.... to koi kyun aage aata inke....

    kul mila ke gist yeh hai....haalaat wash dono ne bilkul sahi kiya.... wo bhi wahi jo inke samajh mein aaya.... aur inke samajh se inhone sahi kiya....to sahi hi kiya........






    JAI HIND...

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  2. महफूज़ अली जी की बात भी काबिलेगौर है

    बी एस पाबला

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  3. उन के रिश्ते को पहले सेक्स के नजरिए से लोगों ने देखा। उन्हों ने तो उस के प्रतिवाद में यह किया। जो शायद उन के लिए आखिरी विकल्प था।

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  4. वो भी पढ़ा, यह भी पढ़ा। टिप्पणीयां भी पढ़ीं, प्रतिक्रिया भी जानीं।

    आप के आज के लेख के मूल भाव से सहमत हूं। बधाई।

    निर्णायक मोड़ का इन्तजार रहेगा।

    वेसे महफूज़ अली जी की बात में बहुत दम है। गौर करें।

    जय हिंद।

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  5. आप की पोस्ट - इस पोस्ट को न पढ़ें...खुशदीप पर यह कहा गया:
    रचना जी ने कहा
    "बात नारी सशक्तिकरण की होनी चाहिये ताकि नारियां अपनी जिन्दगी मे किसी पर भी निर्भर ना रहे ।"
    अल्पना वर्मा जी ने कहा
    "नारी को समाज में सुरक्षित रहने के लिए जब तक पुरुष की आवश्यकता रहेगी -किसी भी रूप में --बेटे/भाई/पति/साथी --तब तक नारी मुक्ति की बात करना ही व्यर्थ है."

    मुझे लगता है हमारा इस तरह की सोचना भी शायद गलत है और जिम्मेदार है समाज के पतन का, विघटन का ......

    मेरा प्रश्न है:
    बात निर्भरता और आवश्यकता की क्यों? नारी और पुरुष के एक दूसरे का पूरक होने की क्यों नहीं? क्या आप को ऐसा नहीं लगता गाढ़ी के दो पहियों की तरह ही नारी और पुरुष को समाज में एक दूसरे के साथ साथ ही चलना चाहिये?

    जय हिंद।

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  6. हम्म्म्म
    @ महफूज़ जी,
    हम कभी ऐसे सोचे नहीं....
    सोचते हैं...

    जय हिंद !!

    @खुशदीप जी,
    आजा रे ब्लॉग पुकारे
    पोस्टवा तो रो रो हारे

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  7. कल भरपूर नींद ली देर से जागा और आज "वेक अप सिड" देखने चले जाने के कारण् देरी से उपस्थित हुआ तो पता चला कि यहाँ भरपूर विमर्ष हो चुका है ।
    जानकी और महावीर की कथा पढकर मुझे एक मराठी नाटक "कालचक्र" की याद आई जिसमें एक मध्यवर्गीय वृद्ध माता पिता अपने ही दो बेटों और बहुओं की उपेक्षा से त्रस्त होकर विज्ञापन दे देते है कि कोई उन्हे गोद ले ले उनके पास कोई जायदाद भी नही है । एक युवा जोड़ा आता है और उन्हे अपने साथ ले जाता है और उनकी भरपूर सेवा करता है । अब असली बहुओं और बेटों को यह बात अखरती है कि कि उनके माता-पिता दूसरे घर मे जाकर सुखी क्यों हो गये ? वे उस जोड़े को धमकाते हैं उन्हे बुरा भला कहते है क्योंकि समाज में उनकी थू-थू- होने लगती है । अंतत: नाटक का सुखांत होता है और असली बहू-बेटे उन्हे अंतिम समय तक सुखी रखने का वादा कर वापस अपने घर ले आते है यह बात और है कि वे ज़्यादा समय जीवित नहीं रह पाते ।
    यहाँ जानकी के सगे बेटों की नाराज़गी का मुख्य कारण है समाज में उनकी थू-थू होना । भले ही वे अपनी माँ को दुख दें लेकिन वह रहे उनके घर मे ताकि वे सम्मान से सर उठाकर जी सकें । यह झूठा अहं ही उनके रोष का मुख्य कारण है । यह सम्बन्ध किसी भी स्थिति मे हुआ हो इसकी परिणति दुखद ही होगी क्योंकि यह वह समाज है जहाँ आप यह भी स्वीकार नहीं कर सकते कि कोई आपकी माँ को अपनी सगी माँ कहे(माँ जैसा नहीं) पत्नी कहना तो बहुत दूर की बात है । झूठी परम्परा और झूठी शान हर वर्ग में है । हम सिर्फ उम्मीद करें कि ऐसा कुछ दुखद घटित न हो ।

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  8. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  9. कुछ लोगों ने अति उन्मुक्त होने की जो बात की है की नारी पूर्ण समर्थ होनी चाहिए और किसी पर निर्भर नहीं होनी चाहिए जैसे बेटे/भाई/पति/पिता या साथी पर, तो ऐसी स्वतंत्रता की कल्पना करना ही नाजायज़ है क्योंकि जितना एक नारी को इन रिश्तों की जरूरत है उतनी ही एक पुरुष को नारी की बेटी/बहिन/पत्नी/माँ और साथी के रूप में.
    कल से जो जो और जिस तरह से, जितना सारा लिखना चाह रहा था वो सब महफूज़ जी और शरद सर ने लिख दिया है और अब भरोसा भी हो गया है की भले ही हमारे खून के रिश्ते न हों लेकिन सोच ९९ नहीं बल्कि १००% एक जैसी है. और ईश्वर को धन्यवाद् देता हूँ की ब्लॉग कुम्भ रुपी मेले में इस दुनिया में बिखरे, समान सोच वाले भाइयों को मिला दिया.

    जय हिंद...

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  10. खुशदीप जी
    विचारोत्तेजक मुद्दा है. हमारे समाज (देश काल से परे) की संरचना इतनी जटिल है कि इसे समझ पाना असम्भव बेशक न हो पर आसान भी नहीं है. क्या सही क्या गलत है इसका निर्णय भी सापेक्ष है. जो एक जगह आम है वही दूसरी जगह वर्ज्य है. प्रेम विवाह, अंतर्जातीय, अंतर्धार्मिक विवाह आदि के सन्दर्भ में आधुनिक समाज के निर्णय न केवल भारतीय परिवेश में बल्कि वैश्विक स्तर पर जो प्रतिक्रियाएँ देखने को मिली हैं वे चौकाने वाले हैं.
    यह घटना भी प्रचलित से परे है. सेक्स तो यहाँ इंवाल्व होने की सम्भावना नही के बराबर है. शायद दया और ममता और न जाने क्या क्या --- इस विकल्प के रूप मे परिलक्षित हुआ होगा.
    कारणों के भी कारण होते हैं. रिश्ते के क्या स्वरूप हो सकते हैं और क्या हैं यह भी विचारणीय मुद्दा है.
    अस्तु, साधुवाद इस वैचारिक मंथन के लिये.

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  11. जो कहना चाहता हूँ उसे महफूज़ भाई ने और शरद कोकास जी ने पहले ही कह दिया है

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  12. आपकी कल की पोस्ट पर जो विमर्श हुआ उसके बारे में मेरा कहना है ..
    1. स्त्री और पुरुष एक दुसरे के पूरक हैं ...मैं इस विचार से पूरी तरह सहमत हूँ ...और इस तरह की किसी भी शिक्षा की समर्थक नहीं रही हूँ जो स्त्रियों को सिर्फ पुरुषों की विरोधी बनाती हो ...मगर अपनी इस बात पर पूरी तरह दृढ हूँ की एक 22 साल का युवक और 60 साल की वृद्धा पति पत्नी के रूप में एक दुसरे के पूरक नहीं हो सकते ...शारीरिक सम्बन्ध की तो मैं कभी बात की ही नहीं ...सभी समझते है ...इस तरह की शादियों में यह सब गौण होता है ...यहाँ बात मानसिक स्तर की ही है ...
    २. मेरा विरोध इस वाकये को महामंडित किये जाने को लेकर है ...यह स्वस्थ परंपरा तो हरगिज नहीं कही जा सकती है ...विवाह कर एक प्रताडित वृद्धा के सम्मान को बचाए जाने को लेकर जो प्रचार किया जा रहा है ...वह गलत है ...कल रचना जी ने सहायता के बहुत सारे विकल्पों पर ध्यान दिलाया था ...
    3. नैतिक मापदंडों को लेकर भी मेरा कोई विशेष आग्रह नहीं है ...क्योंकि नैतिकता की परिभाषा समाज देश काल परिस्थिति के अनुसार बदलती रहती है ...उम्र के इस फासले को लाँघ कर शादी करना और उसे एक त्याग के रूप में परिभाषित करना ...इसके दुष्प्रभाव ..नारी होने के कारण..जिस तरह हम सोच पा रहे है ...शायद आपकी नजर उधर नहीं है ...आर्थिक दिक्कतों और बहुत सी मजबूरियों के चलते कम उम्र की लड़कियों को उम्रदराज पुरुषों को ब्याह दिए जाने की परंपरा को भी इसी तरह महिमामंडित किया जा सकता है ...
    4. माननीय अरविन्दजी ने अपनी टिपण्णी में लिखा की गांवों में स्थितियां अलग प्रकार की होती है ...अगर युवक शादी किये बिना उसकी मदद करता तो उसे बहुत ताने दिए जाते ...मरवा दिया जाता ...
    क्या अब ये संकट दूर हो गए हैं ..??
    अब उन्हें ताने देकर या भय दिखाकर प्रताडित नहीं किया जाएगा ..??
    5. एक बात और बार बार कही जा रही है ...टिपण्णी को बदलने की ...मुझे समझ नहीं आया इसमें क्या आपत्ति है ...कई बार किसी घटना को लेकर त्वरित टिपण्णी में और बाद में गहराई से सोचने पर की गयी टिपण्णी में अंतर हो सकता है ...और ये हम स्त्रियों की महानता ही है की ..जब हम कही अपने आप को गलत समझते है तो उसे अपने अभिमान का प्रश्न नहीं बना कर अपनी गलती सुधार लेते हैं ...ये जो आप लोग कॉलर ऊँची कर के अपनी सुखी गृहस्थी का ऐलान करते हैं ना ...उसके पीछे नारियों की इसी भावना का हाथ होता है ...मानते हैं ना आप ..

    हमारी खता से ऐसे भी क्या नाराज हुए की स्लोग ओवर तक नहीं लिखा ...इतने गंभीर विमर्श के बाद तो उसकी बहुत आवश्यकता थी ...
    विमर्श की इस स्वस्थ परंपरा के लिए आपका बहुत आभार ...!!

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  13. शरद जी कह गये, महफूज कह गये..हम इन्तजार करते हैं कल का.

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  14. मुद्दा तो विचार करने वाला ही है..पर हो सकता है बात कुछ और हो जो सामने ना आ पा रही हो..

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  15. समाज के ठेकेदारों की मानसिकता इतनी विकृत और घटिया है कि उनको एक ही रिश्ता समझ में आता है, पति-पत्नी का। संभवत: यही वजह है कि जब कोई सच्चा इंसान किसी असहाय की मदद के लिए सामने आता है तो उसे उस अहसाय लड़की को पत्नी बनाना पड़ता है। यह शायद इसलिए है क्योंकि समाज के ठेकेदार रात के अंधेरे में खुद गंदगी करने से बाज नहीं आते हैं, ऐसे में उनको कैसे बाप-बेटी या फिर बहन-भाई या फिर कोई और रिश्ता रास आएगा। इनकी नजरों में किसी रिश्ते की कीमत है ही नहीं। इनके लिए तो स्त्री बस नोचने और खसोटने की वस्तु है।

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  16. गंभीर स्वस्थ विमर्श !खुशदीप -खुश रहिये -आयी मीन लॉन्ग लिव !

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  17. .
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    .
    खुशदीप जी,
    महावीर और जानकी के बीच जो रिश्ता बना न तो वह किसी प्रवृत्ति की ओर ईशारा है और न उसके कोई निहितार्थ हैं... दोनों का अशिक्षित, गरीब और ग्रामीण पृष्ठभुमि का होना भी इन्सिडेन्टल है यहां पर... हकीकत में यह दो व्यक्तियों का पारस्परिक मामला है, उनकी अपनी अपनी समझ पर आधारित... इसमें कोई बहस या गहरे अर्थ तलाशने की कोशिश मुझे तो उचित नहीं लगती...

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  18. "मुझे यहां एक बात और खटकी...महावीर और जानकी के रिश्ते को सिर्फ सेक्स के नज़रिए से ही क्यों देखा गया..."

    अनाचार को रोकने और वंशवृद्धि के लिये ही पति-पत्नी के रिश्ते का विधान है। पति-पत्नी के बीच सेक्स तो विवाहित जीवन का अनिवार्य अंग है नहीं तो वंशवृद्धि कैसे होगी।
    पति-पत्नी के रिश्ते को सिर्फ सेक्स के नज़रिए से देखने में खटकने वाली कोई बात ही नहीं होनी चाहिये।

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  19. मह्पूज अली की बात से पूर्ण सहमत ! साथ ही इस सब का मूल कारण यह है कि सभी कहलाने वाले हम आज भी एक स्त्री को भोग-विलासिता की वस्तु मात्र समझते है !

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  20. मै अपने पुराने कमेण्ट पर कायम हूं समाज किसी की भी मदद करने भी ने मे सक्षम नही है या करता नही है और जो करना चाहता हि उसे कर नही देता।

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  21. वाणी जी,
    बढ़ा अच्छा लगा, आपने मेरे उठाए मुद्दे पर खुल कर अपने विचार रखे...पहली बात तो ये साफ कर दूं मैं किसी मुद्दे पर अपनी राय को रखते हुए दूसरों से भी यही अपेक्षा रखता हूं वो भी बिना किसी लाग लपेट अपने दिल की बात खुल कर कहें...आपने ऐसा ही किया, इसके लिए साधुवाद...मुद्दा या किसी पोस्ट विशेष पर हमारी राय अलग-अलग हो सकती है लेकिन बलॉगर या व्यक्ति के तौर पर आपका जो मैं सम्मान करता हूं...उसमे कभी कोई कमी नहीं आएगी...और जहां तक महावीर और जानकी का सवाल है वो नारी-पुरुष से कहीं ज़्यादा समाज के रिसते मवाद का मुद्दा है...ये मवाद जितना बह जाए उतना ही अच्छा है...अगर ये एकत्र होता रहता है तो कोढ़ बन जाता है...

    जय हिंद...

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  22. महावीर और जानकी का रिश्ता सही है या गलत।यह इस बात पर निर्भर करता है कि परिस्थिति कैसी थी जिस कारण उन्हें यह कदम उठाना पड़ा।इन्सान वही करता है जो उसे सही लगता है....भले ही हम कह देते हैं कि यह मजबूरी के कारण ऐसा करना पड़ा।
    जहा तक समाज की बात है तो समाज परिवार से ही बनता है जब उसे वही से अपमानित किया जाएगा तो इस तरह के फैसले लिए जाते रहेगें। हाँ यह बात जरूर है कि एक बार जो कदम उठा लिआ जाता है उस कदम के दुबारा भी उठाए जानें की संभवानाएं बड़ जाती है।
    यह कदम ऐसी संतानों के लिए एक सबक भी है और चेतावनी भी है। कि हम कैसा समाज चाहते हैं?

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  23. कमाल का लेख.. कल यह सब लिखना चाहता था पर टाइम नहीं था..., आपने दिल की बात कह दी... मैं शरद जी की भी राय जानना चाहता था... आज वो ही आ गए...

    स्लोग ओवर ना डालकर तो और भी अच्छा काम किया... शुक्रिया... ऐसी बहस जरुरी है...

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  24. खुशदीप भाई बहुत बडी पोस्ट लिखी थी मगर काट दी क्या फायदा जब मैं न मानूँ वाली बात ही होनी है
    महफूज़ भाइ ने अभी जीवन की हकीकत नहीं देखी इस लिये किताबी बातें कर रहे हैं mहकीकत मे जीवन क्या है, ये रिश्ते क्या हैं, माँगते हैं मुझे नहीं लगता कि इसका कोई निर्णय हो पायेगा और मैं बहस कर किसी की भावनाओं को चोट नहीं पहुँचाना चाहती मुझे उस लदके की सो काल्द महानता अच्छी नहीं लगी न मेरे संस्कार और न मेरा तज़ुर्बा इस रिश्ते को सही मानता है। बस बाकी वाणी जी ने कह दिया है सहमत हूँ धन्यवाद वैसे आपसे एक बात कहूँ? अओसे रिश्तों पर बहस निरर्थक है । आप बाद मे जरूर बताईघ्गा कि ये रिश्ता कितने दिन चला धन्यवाद्

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  25. स्त्री -पुरुष जीवन की गाडी के दो पहिये हैं.
    दोनों पहियों का एक जैसा होना बेहद ज़रूरी है, तभी गाडी ठीक से चलती है.
    मैं निर्मला जी की बातों से सहमत हूँ.

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  26. @ Nirmala Kapila mom....

    nahiiii ! mom........... mera matlab yahan yeh tha ki ....waqt ke haalaat ke hisaab se dono ne thik kiya hai....

    waise to yeh saamaajik roop se galat to hai hi.... aur mom...main aapse poori tarah sahmat hoon....

    ab yahan kya haalaat hai..... yeh to wahi dono behtar jaante honge na....

    ab kya pata wo mahaveer beta bhi ban kar rehta ..... to bhi .... nuksaan mein rehta..... ya jaanki maa ke role mein aati ....to bhi koi fayada nahi hota..... ya yeh bhi hai ki dono ka aakrosh ho....apne apne pariwar ke prati....

    khair! jo bhi....... ho............mom...


    main aapse aur vani di..... sahmat hoon....


    JAI HIND

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  27. खुशदीप भाई मैने कल भी कहा था की महावीर ने किन परिस्थियों मे ये निर्णय लिया जो जानकी को पत्नी के रुप मे स्वीकार किया, कोई अकारण ही इतना बड़ा निर्णय नही लेता है। अभी कुछ साल पहले मैने पढा था कि एक घटना ऐसी और हुई थी एक 19 साल के लड़के ने 60 से उपर की स्त्री से विवाह किया था, लेकिन बाद मे उसे वृद्धा की जायदाद से जोड़ कर देखा गया की उसके मरने के बाद जायदाद का वारिस वो हो जाये्गा, और पति और पत्नी के रिश्ते को किससे जोड़ कर देखा जाये- जहां ये शब्द आता है वहां प्रथम: सेक्स को ही जोड़ कर देखा जाता है, अन्य संबंधों मे नही, लेकिन ये कार्य सही नही है और बात वहीं पर अटकती है कि जिस समा्ज के बीच मे आप रहते हो क्या वह उसे मान्यता देता है? हमारा समाज स्वयं संतुष्टि वाला समाज नही है। हम यहा पर समाजिक सतुष्टि का ध्यान रखते हैं, अगर हमारे घर में कोई सुअवसर आता है तो समाज के सभी लोगों को आमंत्रित करते हैं, उनकी पसंद एवं व्यवस्था का पुरा ध्यान रखते हैं, खाना भी उनकी पसंद का बनवाते हैं और बीस बार पु्छ्ते हैं कि खाना कैसा बना? कहीं कोई कमी तो नही रह गयी-इत्यादि। ये सब क्यों होता है? हम अपने कार्य के प्रति समाज की मान्यता चाहते है। समाज हमारे कार्य की प्रसंशा करे ये चाहते हैं। हमे कोई उलाहना ना दे,हमारे काम को कोई गलत नही ठहराय-हमेशा ये डर मन मे बना रहता है कि दुनिया-समाज क्या कहेगा?अगर हमे समाज मे न रहना हो तो हम कुछ भी कर सकते हैं और हमारे कृत्य को समाज मान्यता देगा ये सो्चना भी बेमानी है। क्या यही एक तरीका था जानकी के उद्धार का? अन्य कोई रास्ता नही था। बात विवाह की है, जिसे "गुड्डे-गुडियों का खेल नही है कह गया है"। इसका मतलब यही है कि सामाजिक मान्यता से लिया गया एक परिपक्व निर्णय। मेरे हिसाब से ये विवाह गलत है और इसके सुखांत की कितनी ही कामना की जाये-वह होना मुस्किल ही नही,असम्भव है। क्योकि हमे अपना जीवन यापन इसी समाज मे और इसी के भरोसे करना है। मेरी व्यक्तिगत सोच है-इसे किसी से जोड़ कर न देखा जाए। आपके कल का इंतजार है-क्या निर्णय है इसका। अस्तु

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  28. I think I differ from the one school of thought of Khushdeep ji whereby he said that the kind of a society to which the so called couple belonged, and the kind of situation they were in, it was found appropriate to take such a step like solemnising themselves in an institution called "marriage"
    As far as I think, the not so educated and downtrodden class of the society are supposed to be more conservative and probably they would be the first to condemn or criticise such a "situation".
    Therefore, Mahavir and Janaki could have easily lived in a Mother-Child relationship which would have been applauded by everybody.
    I think we cannot equate this situation with the "Modern live-in relationship" arrangements amongst the modern youths which again I feel is a concept of mentally deranged people.
    I think the topic is quite complex and the argument should continue......
    However, this is a commendable effort on the part of Khushdeepji to have started such a debate on his blog.
    Hats off to the great blogger!

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  29. @वाणी,
    जियो जियो...बहुत सही बात कही है ...डंके की चोट पर कही है....
    हमने सेक्स की तो बात ही नहीं की है......संतान की उत्पत्ति में इसका हाथ अवश्य है लेकिन हमारी मंशा सिर्फ सीधे-सीधे वंश को बढ़ाने की बात पर थी....शादी का एक अहम् धेय वंश वृद्धि है...जिसकी ज़रुरत जानकी को न हो क्यूंकि वो भरे पूरे परिवार का सुख-दुःख भोग कर आई है.....महावीर को भी शायद इस समय उसकी ज़रुरत नहीं समझ में आये क्यूंकि वो खुद बच्चा है.....लेकिन एक समय ऐसा आएगा आज से १० वर्षों के बाद जब जानकी ७० की हो जायेगी तब क्या होगा.....साथ ही पति-पत्नी साथ मिलकर ही परिवार चलाते हैं...एक गाडी के दो पहिये...यहाँ एक पहिया तो जेट का लगा है और दूसरा साईकिल का ...कैसे चलेगा भाई.....क्यूंकि यहाँ फर्क एक पीढी का भी नहीं २ पीढी का है......हाँ अगर ये शुद्ध रोमांस है और सामाजिक जिम्मेदारियों वाली बात ही नहीं है...तब बात और है......बाकि आप के निर्णय की प्रतीक्षा है.....

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  30. आपके कहेनुसार पिछली पोस्ट नहीं पढ़ी आज की पढ़ी बात कुछ समझ नहीं आई अगर आप कहे तो पिछली पोस्ट पढू फिर आगे कोई जबाब मिले

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