इस पोस्ट को न पढ़ें...खुशदीप

अगर आप चटखारे वाला कुछ पढ़ना चाहते हैं तो इस पोस्ट को न पढ़ें...ये पोस्ट जिन दो लोगों के बारे में हैं उनके कोई मायने नहीं हैं...न सरकार के लिए, न समाज के लिए...उनके दुनिया में होने न होने से कोई फर्क नहीं पड़ता...लेकिन और किसी को फर्क पड़े न पड़े उन दोनों को एक-दूसरे के दर्द से पड़ता है...

मैं जिन दो लोगों की बात कर रहा हूं न तो वो किसी महानगर से हैं...न ही उनके चिकने-चुपड़े चेहरे हैं...फिर उनकी दास्तान खबर बने भी तो क्यों बने...उनकी कहानी से आपका कोई वास्ता बेशक हो न हो लेकिन वो किसी दूसरी दुनिया से नहीं है...हमारे जैसे ही हाड-मांस के बने इंसान है...मैं बात कर रहा हूं महावीर और जानकी की...उत्तर प्रदेश के सीतापुर ज़िले के सकारन गांव में रहने वाले 22 वर्षीय महावीर ने 60 साल की विधवा जानकी देवी की मांग में सिंदूर भरा है...बाकायदा अपनी पत्नी मान लिया है...दादी की उम्र वाली पत्नी...महावीर ने ये दौलत-जायदाद के लालच में नहीं किया है...न ही जानकी देवी पर लट्टू हो कर मुहब्ब्त वाला कोई किस्सा है...फिर उम्र के इतने फर्क के बावजूद शादी का फैसला क्यों...महावीर ने जानकी देवी की मांग में सिंदूर भर कर पत्नी तब बनाया जब जानकी देवी को उनके बेटों ने घर के बाहर निकाल दिया...

जानकी देवी के पति की तीन साल पहले मौत हो गई थी...तभी से वो अपने बेटों के साथ रह रही थीं...लेकिन बेटों ने जानकी को साफ कर दिया था कि उसे खुद काम करके अपना पेट पालना होगा...जानकी देवी को इस उम्र में मजदूरी कर दो जून की रोटी का इंतज़ाम करना पड़ता था...महावीर से उनकी मुलाकात भी एक इमारत के लिए मजदूरी करने के दौरान ही हुई...जानकी देवी ने काम के दौरान ही महावीर को बताया कि घर पर अपने कैसा बुरा बर्ताव करते है...नरम दिल महावीर को जानकी देवी का दुखड़ा सुनकर हमदर्दी हो गई...

महावीर से जो थोड़ा बहुत बन पाता था पैसे से कभी कभी जानकी देवी की मदद कर देता था...लेकिन एक दिन साइकिल से महावीर जानकी देवी को उनके घर छोड़ने के लिए पहुंचा तो वहां का नजारा देखकर दंग रह गया...जानकी देवी के बेटों ने बुरा-भला कहते हुए घर में घुसने नहीं दिया...साथ ही अपने लिए रहने का कहीं और ठिकाना ढूंढने का फरमान सुना दिया...

महावीर ने उसी वक्त जानकी देवी को पत्नी बनाने का फैसला कर लिया...जानकी देवी की मांग में महावीर के सिंदूर भरने के बाद तो जैसे पूरे गांव में ही तूफान आ गया...नैतिकता की दुहाई देते हुए हर कोई महावीर और जानकी देवी का दुश्मन बन गया...जान से मारने की धमकियां दी जाने लगीं तो दोनों ने पुलिस का दरवाजा खटखटाया...

महावीर और जानकी देवी दोनों बालिग है और कानूनन उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नही की जा सकती...इलाके के थानेदार का कहना है कि महावीर और जानकी देवी की शादी से सबसे ज़्यादा परेशानी उनके घर वालों को है...दोनों की जान को खतरा देखते हुए पुलिस ने हर मुमकिन मदद का वादा किया है...लेकिन पुलिस क्या 24 घंटे सुरक्षा दे पाएगी...ये अपने आप में बड़ा सवाल है...

(स्कैनिंग की सुविधा न होने की वजह से मैं महावीर का जानकी देवी की मांग में सिंदूर भरने वाला फोटो लोड नहीं कर पा रहा हूं...)

स्लॉग ओवर
एक डॉक्टर के क्लीनिक पर एक सज्ज्न पुरुष शाम को पहुंचे...एक घंटा क्लीनिक के रिसेप्शन पर बैठ कर वापस चले गए...यही सिलसिला चार-पांच दिन तक चलता रहा...न वो डॉक्टर को दिखाते और न ही रिसेप्शनिस्ट से एपांइटमेंट के लिए कोई बात करते...एक दिन रिसेप्शनिस्ट से रहा नहीं गया और उसने डॉक्टर से शिकायत कर दी...डॉक्टर ने कहा कि अब जो वो कभी आए तो मुझे बताना...

सज्जन पुरुष फिर पहुंचे तो डॉक्टर ने रिसेप्शनिस्ट से अपने केबिन में भेजने के लिए कहा....डॉक्टर ने पूछा कहिए मिस्टर क्या परेशानी है......रोज आते हो एक घंटा बैठकर चले जाते हो, ...क्या किसी को दिखाना है...

सज्जन पुरुष बोले...नहीं डॉक्टर साहब, मैं दिखाने नहीं मैं तो खुद देखने आता हूं...आप ही ने बाहर बोर्ड लगा रखा है न...महिलाओं को देखने का समय...शाम 5 से 6 बजे तक...

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37 टिप्पणियाँ
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  1. Khushdeep bhai, aaj aapne jo likha hai uske liye main aapa bahut bahut aabhari hoon, jansewa se bada koi sadkarm nahin... bhagwanse dua karoonga ki aapki post jyada se jyda log padhen aur unme sekoi aisa ho jo oonchi pahunch rakhte hue janki devi aur Mahaveer ki madad kar saken....
    media ko to samay nahin hoga aisi cheezen cover karne ka aurkarenge bhi to samvedansheel hoke nahin balki chatkhare le ke...

    Jai Hind

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  2. खुशदीप जी,
    यूँ तो ऐसी बातें होती हीं रहती हैं, कोई बड़ी बात नहीं है....खास करके विदेशों में...हम आम देखते हैं ऐसी घटनाएं ...जो अब घटना नहीं होकर आम सी बात हो गयी है....शायद सामाजिक स्वरुप ही बदल रहा है...विवाह अब शायद सही मायने में सामाजिक रीति हो रही है.....महावीर का यह कदम लोगों को अटपटा लगे लेकिन उस युवक की दिलेरी और त्याग की सीमा को मापना संभव नहीं होगा...जिसने अपने सभी सपनो को तिलांजलि देकर किसी को जीवन दे दिया....प्रेम की पराकाष्ठा के आगे मैं नत मस्तक हूँ..
    और आपकी आभारी...
    जय हिंद....

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  3. Khushdeep Sir......... pehle to deri se aane ke liye maafi chahta hoon..... subah aaya tha.... par jaise hi kuch likhta ki hamaare Gomtinagar ki lite chali gayi.... waise Gomtinagar ke baare mein yeh mashhoor hai ki yahan lite nahi jaati.... par yahan ab sabka bhaukal kam ho gaya ho gaya hai.... jabse Mayawati Ambedkar Park ka case kya haar gayi.... tabse saaara gussa gomtinagar walon pe hi nikaalti hai... qki writ gomtinagar welfare society ne hi daali thi.... ab wo gussa yahan lite kaat kar dikhaya ja raha hai..... isliye subah aapki post par nahi aa paya... aur phir tabiyat khraab ....upar se daant ka dard alag pareshan kiye huye hai....

    bas isi aapa-dhaapi mein so gaya.... to seedha shaam mein hi utha.... hoon.... utha to ek post likhi..... usey dekhiyega plz.... phir dawa khai.... ab doctor kah raha hai ki mera molar daant nikaalega.... main waise bhi bahut darta hoon daant nikalwaane se aur khoon khinchwaane se.... ek baar ek dost bola ki uske kisi relative ko khoon ki zaroorat hai..... chalo de do.... wo le gaya doctor ke paas mera khoon khinchwaane... to main bahut dar gaya tha.... wo to nurse achchci thi .... jisne aise khoon kheencha ki pata hi nahi chala..... do minute mein do botal kheench liya usne.... aur pata bhi nahi chala....

    mahaveer aur jaanki ki foto yahan akhbaar mein nikli thi..... aur abhi yahan lucknow mein bahut charcha thi is news ki.... yahan lucknow ke log ab apne buzurgon se achcha vyavahar karne kage hain.... khaaskar Gomtinagar ke sambhraant log....ab sitapur yahan se koi door to hai nahi.... ek dhela phekenge to seedha sitapur mein ja ke girega.... thik waise hi jaise yeh ghatna to sitapur mein hui par sabse zyada asar lucknow mein hua.....

    ab dekhiye police kahan tak inko suraksha deti hai.... waise gaanvwalon ke aage ....saari force boforce ho jaati hai.... bofors ki tarah zaroorat pe kaam hi nahi karti (police).....

    aaj ka slog over bahut achcha tha....

    JAI HIND

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  4. इस खबर तो खैर पहले भी पढ लिया था ...फिर से पढवाने के लिए धन्यवाद...

    महावीर की हिम्मत और त्याग की दाद देनी होगी जिसने किसी की परवाह ना करते हुए एक औरत को आसरा दिया..

    स्लॉग ओवर बढिया रहा

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  5. महावीर ने उस के बेटो के मुंह पर तमाचा मारा है, काश ऎसे कमीने बच्चे ओर बेटे भगवान किसी को ना दे, खुश दीप जी अब मेने खुद अपनी आंखॊ से देखा है कि एक मां की कितनी इज्जत होती है, एक मां जो आपना सब कुछ बच्चो को दे देती है... बही बच्चे इस उम्र मै मां के संग यह व्यावाहर करते है...
    महावीर ने शादी सेक्स के लिये नही की बल्कि उस ओरत को बचाने के लिये की है, ओर अब जो लोग अब .नैतिकता की दुहाई दे रहे है जरा उन्हे आईना दिखाओ....केसी नेतिकता... केसे संस्कार....लानत है ऎसे ो गले लोगो पर.
    यह दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है......
    ओर यह ५-६ वाला भी मजे दार है जी

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  6. पता नहीं किस मानसिक स्थिति में यह शादी हुई होगी. कहीं न कहीं असुरक्षा और दया की भावना रही होगी. मेरी नज़र मे यह भी हमारी सामाजिक व्यवस्था के मुँह पर एक तमाचा है.

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  7. महावीर और जानकी के बारे में सुनकर कतई आश्चर्य नहीं हुआ. निश्चित ही जानकी देवी को एक सहारा मिला है.

    दुआएँ हैं लोग भावनाओं को समझे और उनका आगामी जीवन सुखद एवं सुरक्षित बीते.

    स्लॉग ओवर बढ़िया है.

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  8. खुशदीप जी,
    आपकी पोस्ट को पढ़ कर मन कुछ अजीब सा हो गया....ये खबर मन में बहुत देर तक उमड़ती-घुमड़ती रही..और साथ ही मेरी टिपण्णी भी...हालाँकि मैं अपनी उस टिपण्णी से मुकर नहीं रही हूँ लेकिन एक पहलू और भी हो सकता है....महावीर बहुत ही कम उम्र का युवक है...और यह भी हो सकता है उसने यह फैसला भावावेश में आकर लिया हो..इस उम्र में भावुकता चरम पर होती है....लेकिन जानकी अगर सचमुच महावीर का भला चाहती तो इस कदम को उठाने ने उसे रोक सकती थी.....ऐसा नहीं करने में उसका स्वार्थ अवश्य ही निहित होगा.....उसे एक ठिकाना और प्रश्रय चाहिए था......मेरा सोचना है की भविष्य में यह संबध समस्याएं ही देगा......समाज से कम लिकं आपस में ज्यादा जटिलताएं आएँगी......फिर भी फिलहाल तो महावीर का यह कदम तारीफ के लायक तो है ही....

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  9. अब का कहेगे खुशदीप भाई ....समाज का रूप बदल रहा है

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  10. अब कहाँ है परिवारवाद की दुहाई देने वाले, नैतिकता की दुहाई देने वाले आखिरकार जिन्होंने निकाला उसमें बेटों के साथ उनकी औरतें भी शामिल होंगी

    दरअसल शाश्वत सत्य तो यही है - "एक औरत ही दूसरी औरत के ऊपर जुल्म ढ़ाती है" पर सार्वजनिक मंच पर औरत कभी भी यह स्वीकार नहीं करेगी अगर समाज में कहीं भी झांक कर देख लें तो यही मिलेगा।

    पुरुषों के पीछे पड़ी रहती हैं, क्योंकि उनको झंडाबरदार बनना है, इन सब परिस्थितियों के पीछे औरत का ही हाथ रहता है, अगर घर की औरत न माने तो कोई काम कर के देख लो। पर क्या है कि सारा दोष तो पुरुषों पर ही मड़े जाने की प्रथा है।

    क्योंकि यहाँ अपनाने वाला पुरुष है और उसे किसी स्त्री ने नहीं समझाया है कि तुम इससे शादी कर लो, पर स्त्री के बेटे के घर में जरुर स्त्रियाँ हैं।

    ब्लॉग ओवर की बात याद रखते हुए अब हमें भी डॉक्टर के यहाँ समय का ध्यान रखना पड़ेगा। :)

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  11. ह्म्म्म..अब आयी जान में जान ...अदा की पहली टिपण्णी पढ़कर मैं सोच में पड़ गयी थी ...जितना उसे जानती हूँ ....टिपण्णी मेल नहीं खा रही थी..
    अब ठीक है ...
    सचमुच यह भावुकता में लिया गया फैसला ही है ...इसका अंजाम सुखद होना नामुमकिन तो नहीं ...बहुत मुश्किल है ..
    हमारी सामजिक व्यवस्था का यह पहलू मेरी समझ से बाहर है ...क्या दुखी. प्रताडित, अनाथ, उम्रदराज स्त्रियों की मदद उनसे विवाह कर के ही की जा सकती है ... ??
    उनका उद्धार करने वाले युवक को शादी करना अनिवार्य होगा ..??
    सहायता करने के बहुत सारे विकल्प और भी होते हैं विवाह के अतिरिक्त भी ..
    इस घटना का ऐसा महिमामंडन मुझे उचित नहीं लग रहा ...!!

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  12. भारतीय समाज में बेटे बटियों द्वारा मां को निकाल बाहर फ़ेंकने की परंपरा तो शुरू हो चुकी है और समाज उसका अभ्यस्त भी हो चुका है ...मगर महावीर जैसे कदमों का नहीं....मैं सिर्फ़ एक बात सोच रहा हूं कि एक बाईस वर्ष के युवक ने एक साठ वर्षीय महिला के लिये यही विकल्प क्यों लिया...वो उन्हें, अपनी माता, या बिना किसी संबोधन के ही क्यों नहीं मदद दे पाया।
    वैसे महावीर ने अपने नाम के अनुरूप ही महा वीरता वाला काम किया है
    रही जानकी की बात तो वो न राम राज्य में सुरक्षित थी...और अब तो कलियुग है ...देखें आगे क्या होता है

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  13. अदा जी की दूसरी टिप्पणी से सहमत।

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  14. वाणी गीत जी,

    सच को पचाना हमेशा मुश्किल होता है...ये किसी घटना का महिमामंडन नहीं है, सिर्फ एक कोशिश है ये बताने की कि अशिक्षा और गरीबी के बीच ज़िंदगी का वजूद बचाए रखने के लिए किस तरह जंग लड़नी पड़ती है....ये जिस परिवेश की घटना है वो लिव इन रिलेशन वाले खाते-पीते माहौल की नहीं है...न ही उस महानगर वाले लाइफस्टाल की है कि पड़ोस के घर में क्या हो रहा है, किसी को कोई सरोकार नहीं...ये उस परिवेश की कड़वी सच्चाई है जहां औरत और मर्द के आपस में बात करने को भी सेक्स के नजरिए से ही देखा जाता है...महावीर ने जो कदम उठाया वो भावना के अतिरेक में उठाया...अगर महावीर शादी न करता तो समाज के ठेकेदार महावीर और जानकी पर माहौल को कलुषित करने के ताने देते हुए शायद जिंदा ही ज़मीन में गाड़ देते...
    चलिए महावीर और जानकी जिस परिवेश से है वहां बहस की गुंजाइश नहीं होती वहां सिर्फ पंचायतों के तुगलकी फरमान सुनाए जाते हैं...लेकिन हमारे कथित आधुनिक समाज में भी इतना आडम्बर क्यों....हम सब अंदर से चाहे कुछ भी हो लेकिन ऊपर से नैतिकतावादी का चोला ओढ़े रखना चाहते हैं...एक बुजुर्ग किसी जवान महिला के साथ संबंध बनाना है तो इतना हाय-हल्ला नहीं मचता लेकिन एक महिला अगर ऐसा करती है तो दोनों जहां का पहाड़ टूट पड़ता है...जानकी ने चाहे स्वार्थवश महावीर से शादी का फैसला किया, लेकिन सड़क पर घुट-घुट कर मर जाने से क्या ये फैसला बेहतर नहीं है...

    वाणी गीत जी, ये सिर्फ विमर्श है, मेरी इस टिप्पणी को अ्न्य़था मत लीजिएगा..मैं चाहता हूं और सुधी पाठक भी इस बहस को आगे बढ़ाएं...

    जय हिंद...

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  15. महावीर का कदम, जानकी के बेटों के मुहँ पर तमाचा तो है. लेकिन तमाचों के सहारे जिंदगी नहीं चला करती.
    मैं अदा जी की दूसरी टिपण्णी से सहमत हूँ की ये नादानी में उठाया गया कदम है. महावीर अगर मदद करना चाहता था तो उसे एक माँ के रूप में भी स्वीकार कर सकता था.
    एक अच्छा उदाहरण नहीं है.

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  16. खुशदीप जी आप शादी की खुशी मे पोस्ट लिखने मे मात खा गये। क्या एक बेसहारा औरत को सहारा केवल पति बन कर ही दिया जा सकता है क्या वो बेटा बन कर ये उपकार नहीं कर सकता था मगर उस बेचारी को अपनी इस त्रास्दी की कीमत भी अपना श्रीर सौंप कर ही चुकानी पडी। अब मज़दूरी करने वाले को क्या चाहिये र्ह पता नहीं उसकी भी कही शादी न हो रही हो और उसे एक कमाऊ बीवी भी मिल गयी। अगर सच मे उसमे दया भाव होता तो वो और बडी तरह से उसकी सहायता कर सकता था। बहुत दुखदाई घटना है कि इस कुकृ्त्य को कई पुरुष बहुत महान काम कह कर अपनी पीठ ठोक रहे हैं कि वो ये कह कर श्र्म महसूस नहीं कर रहे कि दादी की उम्र की औरत को आश्रय लेने के लिये अपना शरीर सौंप कर कीमत चुकानी पडी। आपने शायद इस मामले की गंभीरता को नज़र अन्दाज लर दिया। ़क्षामा चाहती हूँ अपनी बेबाक टोप्पणी के लिये। शुभकामनायें

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  17. महावीर ने बहुत सराहनीय कार्य किया है बधाई.

    रामराम.

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  18. उम्र के इस अंतर को देख यह शादी आलोचना का विषय हो सकती है लेकिन खुद बेटे बहू एक मानवीय रिश्ते को नाम देने लगें तो उसे वैधता देने के खयाल से यह प्रतिक्रिया थी। समाज के फोड़ों से बह रहा मवाद इतना अधिक हो गया है कि शायद उस में से इसी तरह तैर कर निकला जा सकता है।

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  19. अदा जी की टिप्पणी को पढ़ कर लगा कि ब्लॉग जगत में ऐसे भी लोग हैं, जो अपनी राय क्षणों में बदल लेते हैं... वैसे हिंदुस्तान का समाज बड़ा जटिल है इसे आसानी से नहीं समझा जा सकता....

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  20. मेरा प्रश्न केवल इतना हैं की अगर एक २२ साल की युवती एक ६० साल के पुरूष से शादी करती हैं तो समाज मुह दबा कर यही कहता हैं " पैसे के लिये कर ली " तो यहाँ भी वही बात होगी । बिना पूरे तथ्य जाने कैसे पता चले । हो सकता हैं अब उस महिला की सारी जायदाद का कानूनी हक़ उसके पति का हैं सो अब ये ही पति उसके बेटो को बेदखल कर के अपनी जिन्दगी सवारे ।

    बात नारी सशक्तिकरण की होनी चाहिये ताकि नारियां अपनी जिन्दगी मे किसी पर भी निर्भर ना रहे । शादी को इतना महत्व दे कर स्त्री को बधन मे रखने से ऊपर शादी को स्त्री पुरूष के संबंधो मे मधुरता और मानव जाति की प्रजनन प्रक्रिया के लिये ही रहना होगा ।

    शादी का कोई भी लेना देना अगर "औरत की सुरक्षा " से होता तो आज " जानकी " का दूसरा विवाह ही क्यूँ होता ?? वो तो पहले ही विवाहित थी सो उसकी सुरक्षा तो पहले ही समाज ने "निश्चित कर ही दी थी

    ये बार बार की शादी क्या सुरक्षा बार बार मिले !!!!!!! आप मे से कोई भी गारंटी ले सकता हैं

    एक बेहद गलत फैसला , ऐसी महिलाओ के लिये ही सरकारी सुरक्षा कीबात होनी जरुरी हैं शादी से कोई फरक नहीं पडेगा

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  21. निसंदेह महावीर ने यह कदम भावावेश में ही आकर लिया है....कई जगहों पर यह पढ़कर भी अजीब लग रहा है की ...महावीर ने इस कदम को उठा कर समाज के सड़ी-गली व्ययवस्था पर प्रहार किया है....अगर वो जानकी को मत्रितुल्य स्वीकारता तो क्या यह प्रहार कम होता क्या ?? जितना भी सोचती हूँ उतनी और दृढ होती हूँ की यह फैसला सर्वथा गलत है.....इसकी पेचीदगियां बहुत जल्द सामने आएँगी.....जानकी किसी भी हाल में महावीर को संतान सुख नहीं दे पाएगी.....और यह कमी बहुत जल्द प्रभावी होगी......चाहे कुछ भी हो एक ग्लानी हर पल जानकी को सालता रहेगा की वो उम्र में 'बहुत' बड़ी है, १०-१२ साल का फर्क फिर भी झेला जा सकता है लेकिन ४० वर्ष का फर्क पूरी पीढ़ी का फर्क होता है..... शरीर की सीमाओं को हावी होने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा......और जब महावीर भी जानकी को छोड़ देगा तो क्या होगा ??????

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  22. भारतीय समाज के साथ एक बहुत बड़ी तक़लीफ़ ये है कि वो मुसीबत मे फ़ंसे लोगो की मदद करने मे सक्षम नही है या यूं कह लिजिये करता नही और दूसरा कोई मदद करे ये भी उसे बर्दाश्त नही है।

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  23. मेरा मत इन बिन्दुओं में है-
    १-महावीर एक ऐसे युवा वर्ग का प्रतिनिधित्व कर रहा है जिस में संवेदनाएं और सामाजिक जिम्मेदारियों का अहसास अभी बाकि हैं.उसके कदम की सराहना की जानी चाहिये.
    लेकिन यह ऐसा कदम भी नहीं जिसे अनुसरणीय कहा जा सके.क्योंकि भारतीय कानून में इस प्रकार के केसों में स्त्रियों को न्याय दिलाने की व्यवस्था है.शादी करने के स्थान पर यहाँ सामाजिक sanstha /NGO की madad ली जा सकती थी.जब तक न्याय मिलता तब तक वह उन्हें aashry दे सकता था.
    शादी के बाद भी वह सुरक्षित रह सकेगी..कोई गारंटी नहीं.

    २-यह दुर्भाग्य की बात है की भारतीय समाज में अभी भी शादी को स्त्री की सामाजिक /आर्थिक सुरक्षा का पर्याय माना जाता है.समाज के इस दृष्टिकोण को बदलने की आवश्यकता है.
    ३-नारी को समाज में सुरक्षित रहने के लिए जब तक पुरुष की आवश्यकता रहेगी -किसी भी रूप में --बेटे/भाई/पति/साथी --तब तक नारी मुक्ति की बात करना ही व्यर्थ है.

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  24. रामकुमार अंकुश जी,
    मैं वास्तव में शर्मिंदा हूँ, ब्लाग जगत का बे-पेंदी का लोटा बनी.....आपसे क्षमा चाहती हूँ....
    लेकिन इसका कारण भी जरूर बताना चाहूंगी...
    मैं कनाडा में रहती हूँ और ऐसी खबरें रेवड़ियों में बिकती हैं.....उनको हम वैसे ही आत्मसात कर लेते हैं जैसे एक ग्लास पानी पीना.....मुझे खुद को कनाडा में बैठ कर भारत की परिवेश में लाने में थोडी सी देर हो गयी और ...इसी में चूक भी हुई.....जहाँ तक हिन्दुस्तानी समाज की जटिलता का प्रश्न है...... तो जटिलताएं कहाँ नहीं हैं.....परन्तु कितना भी जटिल समाज क्यूँ न हो कुछ सामाजिक मूल्य जटिलताओं में भी बरकरार हैं और उनकी गरिमा बची रहनी ही चाहिए.....

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  25. Dear Khushdeep ji,
    The story that you have narrated today is theoratically inspiring but I fail to understand why Mahavir chose to marry Janaki whereas he could have easily supported her as a mother.
    Although,it can be said as setting example for the society but at the same time it also reflects the truth that a 22 year old marrying a lady of the age of his grandmother may not be acceptable to us if seen at the personal level happening in our lives.
    Any comments after self introspection???????????
    As usual slog over was very interesting.

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  26. कुछ महिलाओं की बात भी सही है कि महावीर यदि चाहता तो जानकी को अपने घर लाकर उसका दत्तक पुत्र बन सकता था, या फ़िर ऐसे ही सहारा दे देता तो भी कुछ बिगड़ने वाला नहीं था, शादी करने का औचित्य तो सिद्ध नहीं होता… निश्चित रूप से भावुक निर्णय है या कोई अन्य बात है…

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  27. जहाँ तक मेरी समझ है... ना यह खबर लगती है... न भावुकता में उठाया गया कदम (ये तो समझदार मस्तिस्क बोलती है, एकबारगी मैं भी सोचा था) उम्र ज्यादा है इसलिए उसे मां बनाकर रख लेना चाहिए या फिर दत्तक पुत्र जैसा रिश्ता... बात जमती नहीं... हम इससे आगे कुछ नहीं सोच सकते क्या ? शरद कोकाश जी की कमी लग रही है यहाँ वो कुछ बेहतर प्रकाश डाल सकें यहाँ...

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  28. ये न्युज शायद नेट प्रेस पर मै चार दिन पहले पढ आया था,मैने वहां टिप्पणी भी की है, खुशदीप जी "मुण्डेर्मुण्डे मतिर्भिन्ना" ये एक सुक्ति है, सभी अपने-अपने हिसाब से कयास ही लगा रहे है, अगर उस परिस्थिति की कल्पना करें, जहां पर ये निर्णय लिया गया है तो यही उभर कर सामने आता है कि ये बेमेल विवाह का निर्णय भावावेश मे ही लिया गया है, मै निर्मला जी के कथन से सहमत हुं कि अगर सहारा ही देना है तो हमारे समाज मे अन्य भी सम्बन्धों का निर्माण हुआ है जिसे हम अन्य नामों से पुकारते हैं, पति होना कोई जरुरी नही है, और इस तरह के सम्बन्धों की समाज इजाजत भी नही देता-अस्तु

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  29. बात कड़वी है लेकिन यथार्थ के धरातल पर अल्पना जी और रचना जी की बात सही है !
    हालांकि निर्मला जी की बात आदर्शवाद और मानवीय पहलू के आधार पर दिल को छूती है - अगर सरक्षण ही देना था बेटा बनकर सरक्षण नहीं दे सकता था ?

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  30. न पढ़ा और न टिप्‍पणी पढ़ी सिर्फ टिप्‍पणी करी। इस सुविधा के लिए धन्‍यवाद। पर हमारी पोस्‍टें अवश्‍य पढ़ें पसंद भी चटकायें समय भी गंवायें।

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  31. समाज इस तरह बदल चुका हैं कि जवान बच्चों के होते हुए भी एक मॉं को दाने दाने के लिए मुहताज होना पडे , मॉं चाहे शहरी हो या ग्रामीण ,मॉं तो मॉं ही होती है । मैं पाश्चात्य सभ्यता की बातें नहीं करूंगा ,जहॉं पारिवारिक रिस्ते तो भोग विलास पर टिका हुआ है ... अपवाद हर जगह हो सकता है ।

    भारतीय संस्कृति कभी माता –पिता का अपमान करना नहीं सिखाता है ,इस देश में आज भी सेवा का मिशाल मिल किसी न किसी रूप मे ,कहीं न कहीं हमें देखने ओर अनुभव करने को मिलता रहता है ।
    22 varsh के महावरी ने yadi 60 varsh की विधवा जानकी देवी की दू:ख से दू:खी होकर विवाह जैसे सामाजिक रीति का निर्वाहन किया हैं और नि:स्वार्थ भाव से त्याग किया है तो हमें कुछ विशेश तथ्यों पर गौर करना होगा कि क्या परिस्थिति ऐसी थी जिसके चलते विवाह अतिरेक रास्ता नहीं था ?

    बेमेल विवाह की बातें तो गले से नहीं उतरती ,दूसरी ओर भारतीय संस्कृति इस तरह की विवाह को मान्यता नहीं देती हैं । कानून कुछ भी कहें पर समाज कानून से ही नहीं चलती ,अनेक स्थानों पर सामाजिक कानून कल्याणकारी साबित हुए है।

    वर्तमान सामाजिक व्यवस्था ही कुछ इस तरह बन चुकी है कि पडौसी के घर में क्या कुछ हो रहा हैं उसे सुनने और देखने का हमें फूर्सत ही नहीं हैं ,देखा तो यहॉं तक गया हैं कि पडौसी का मृत्यु हो चुकने के बाद भी जब तक लाश से बदबू न निकले तबतक लोगों को पता ही नहीं चलता ,इस तरह की घटना से हमें कुछ सीख लेने की आवश्यकता हैं और सामाजिक व्यवस्था का पूनर्मूल्यांकण करते हुए महावीर और जानकी देवी की स्थिति आगे और निर्मित न हो, जिसके चलते हमें ‘ार्मसार होना पडें, ऐसी व्यवस्था बनाने में हमें सहयोग देना चाहिए जिससे कि समाज में जागरूकता आ सके ,यदि घटना स्थल के लोग और जानकी देवी शिक्षित होते तो shaasan से भी मद्द मिल सकता था ,कानूनी रूप से भरण पोशण की दावा भी बच्चों पर किया जा सकता था ,कुल मिला कर अशिक्षित समाज ,जागरूकता की कमी और स्वार्थी लोगों के कारण इस तरह की ‘ार्मनाक घटना से हमें भी मस्तक झुकाने को मजबूर होना पडता हैं ।
    पडे , मॉं चाहे शहरी हो या ग्रामीण ,मॉं तो मॉं ही होती है । मैं पाश्चात्य सभ्यता की बातें नहीं करूंगा जहॉं पारिवारिक रिस्ते तो भोग विलास पर टिका हुआ है ... अपवाद हर जगह हो सकता है ।

    भारतीय संस्कृति कभी माता –पिता का अपमान करना नहीं सिखाता है ,इस देश में आज भी सेवा का मिशाल मिल किसी न किसी रूप मे ,कहीं न कहीं हमें देखने ओर अनुभव करने को मिलता रहता है ।
    22 varsh के महावरी ने यदि 60 वशZ की विधवा जानकी देवी की दू:ख से दू:खी होकर विवाह जैसे सामाजिक रीति का निर्वाहन किया हैं और नि:स्वार्थ भाव से त्याग किया है तो हमें कुछ विशेश तथ्यों पर गौर करना होगा कि क्या परिस्थिति ऐसी थी जिसके चलते विवाह अतिरेक रास्ता नहीं था र्षोर्षो

    बेमेल विवाह की बातें तो गले से नहीं उतरती ,दूसरी ओर भारतीय संस्कृति इस तरह की विवाह को मान्यता नहीं देती हैं । कानून कुछ भी कहें पर समाज कानून से ही नहीं चलती ,अनेक स्थानों पर सामाजिक कानून कल्याणकारी साबित हुए है।

    वर्तमान सामाजिक व्यवस्था ही कुछ इस तरह बन चुकी हैै कि पडौसी के घर में क्या कुछ हो रहा हैं उसे सुनने और देखने का हमेंं फूर्सत ही नहीं हैं ,देखा तो यहॉं तक गया हैं कि पडौसी का मृत्यु हो चुकने के बाद भी जब तक लाश से बदबू न निकले तबतक लोगों को पता ही नहीं चलता ,इस तरह की घटना से हमें कुछ सीख लेने की आवश्यकता हैं और सामाजिक व्यवस्था का पूनर्मूल्यांकण करते हुए महावीर और जानकी देवी की स्थिति आगे और निर्मित न हो, जिसके चलते हमें ‘ार्मसार होना पडें, ऐसी व्यवस्था बनाने में हमें सहयोग देना चाहिए जिससे कि समाज में जागरूकता आ सके ,यदि घटना स्थल के लोग और जानकी देवी शिक्षित होते तो ‘ाासन से भी मद्द मिल सकता था ,कानूनी रूप से भरण पोशण की दावा भी बच्चों पर किया जा सकता था ,कुल मिला कर अशिक्षित समाज ,जागरूकता की कमी और स्वार्थी लोगों के कारण इस तरह की ‘ार्मनाक घटना से हमें भी मस्तक झुकाने को मजबूर होना पडता हैं ।

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  32. सही कहा यह ऐसा कदम तो नहीं जिसे अनुसरणीय कहा जा सके !
    मेरा प्रश्न केवल इतना हैं की अगर महावीर जानकी को माता तुल्य स्वीकारता - जैसे कि कुछ सुधि पाठको ने कहा, तो क्या यह समाज मुह दबा कर यह नहीं कह सकता था कि " पैसे के लिये कर ली "? या बिना किसी संबोधन के मदद देता तो भी कहने के लिये कुछ तो कहता ही !

    मुझे तो अनिल पुसादकर जी की बात बहुत जची:
    "भारतीय समाज के साथ एक बहुत बड़ी तक़लीफ़ ये है कि वो मुसीबत मे फ़ंसे लोगो की मदद करने मे सक्षम नही है या यूं कह लिजिये करता नही और दूसरा कोई मदद करे ये भी उसे बर्दाश्त नही है।"

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  33. स्लॉग ओवर - "...आप ही ने बाहर बोर्ड लगा रखा है न...महिलाओं को देखने का समय...शाम 5 से 6 बजे तक..."

    हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा...........

    जय हिंद !

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  34. बहुत बिलम्ब से आया। PD की पोस्ट से लिंक पकड़ कर। इस तरह की घटनाएं aberration जैसी सही लेकिन समाज को चुपके से एक रास्ता दिखा जाती हैं। ..
    हाँ इसे संवेदनशीलता के साथ एक ब्लॉगर ही दिखा सकता था । सनसनी तो और माध्यमों के लिए है ही... जाने क्यों इसके साथ स्लॉग ओवर रखना नहीं जँचा।

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  35. आज 10 साल बाद इस पोस्ट को पढ़ा,जाने अब क्या हालात हो,लेकिन ब्लॉगिंग का सुखद पल फिर से जिया, पोस्ट के साथ स्लॉग ओवर में सिर्फ इतना समझ कि आज भी महिलाओं के लिए अलग समय लिखा जाता होगा,इन 10 सालों में कुछ न बदला

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