दीवाली का और कोई फायदा हो या न हो, एक फायदा ज़रूर होता है घर हो या दफ्तर, गंदगी और कूड़े-करकट से ज़रूर छुटकारा मिल जाता है...आलस्य और दलिद्र को घर से विदा कर नए जोश के साथ सब अपने-अपने काम में जुट जाते हैं...
प्रकृति का भी नियम है जिस चीज की अति हो जाती है, उसका अंत भी सुनिश्चित हो जाता है...डार्विन का प्राकृतिक चयन का सिद्धांत भी यही कहता है...इस सिद्धांत को ऐसे समझा जा सकता है जब हज़ारों हज़ार साल पहले डॉयनासोर धरती पर सब पर भारी पड़ने लगे तो फिर उनकी एकाएक धरती से विदाई पर भी मुहर लग गई...
ऐसा ही कुछ पिछले कई अरसे से ब्लॉगिंग जगत में भी हो रहा था...जिन्होंने पूरे माहौल को कलुषित कर रखा था, वो अब हाशिए पर होते जा रहे हैं...ज़रूरत है बस अब उन्हें हमेशा-हमेशा के लिए तड़ी पार करने की...भौतिकी का एक बड़ा सरल सा नियम है गेंद को जितना ज़ोर से ज़मीन पर मारो...वो उतना ही सिर पर चढ़कर उछलती है...ज़रूरत है नफ़रत के ज़हर से भरी इन गेंदों को बस यूहीं ज़मीन पर पड़े रहने देने की...बस वहीं से धीरे-धीरे पैर की ठोकर से घर से बाहर कर देने की...आखिर एक-दूसरे को लड़वाने वालों की ब्लॉगिंग में ज़रूरत ही क्या है...
धर्म के नाम पर इंसान से इंसान को लड़ाने के लिए तो हमारी राजनीति ही काफी है...जब ऐसी राजनीति भी देश में बार-बार मुंह की खा रही है...फिर ब्लॉगिंग को इसके वायरस से क्यों ग्रस्त होने दिया जाए...
राजनीति में भी देखा जाता है कि चाहे कोई कितना भी बड़ा बाहुबली चुनाव में खड़ा हो जाए...लेकिन अगर जनता उसे हराने की ठान ले तो पैसा, हथियार, लालच, धमकियां कोई आड़े नहीं आ सकती.. ऐसे ही ब्लॉग जगत में अब घर को साफ करने की हवा चल निकली है...आवश्यकता है इसे अब बस आंधी बनाने की...जो बचे-खुचे कीड़े-मकोड़ों को भी उड़ा कर ले जाए...इंसान को इंसान समझने वाले बस हाथ से हाथ पकड़ कर कतार बनाते चलें...कारवां अपने आप बढ़ता चलेगा...आखिर में बस इतना ही कहूंगा...कोई काला टीका तो लाओ...ब्लॉगिंग के इस नए दौर को बुरी नज़र से बचाओ...
स्लॉग ओवर
मक्खनी सहेली से...अपने पति मक्खन की क्या बताऊं, वो ओलम्पिक लव पर यकीन करते हैं...
सहेली....तू तो बड़ी खुशकिस्मत है, तेरे पति तुझे ओलम्पिक जैसा विशाल प्यार करते हैं...
मक्खनी....खाक किस्मत है...ये प्यार ओलम्पिक की तरह ही चार साल में एक बार आता है...और उसमें भी प्रदर्शन भारत की तरह ही रहता है...
च..च..टचवुड .......
जवाब देंहटाएंसाथी हाथ बढाना...
जवाब देंहटाएंसाथी हाथ बढाना...
एक अकेला थक जाएगा
मिलकर ब्लॉगजगत चलाना
आपने सही कहा...ऐसे विघटनकारी तत्वों से तो दूरी ही भली है
उत्तम विचार ....... १०० % सत्य वचन , महाराज !!
जवाब देंहटाएंहम भी साथ है !
जय हिंद !
खुशदीप भाई हमने तो आपकी सलाह मान ली अब बाल को पटकेंगे नही धीरे-धीरे लात मारकर किनारे कर देंगे।वैसे काला टीका तो आपके ब्लाग को भी लगाना चाहिये,नज़र न लगे किसी की।बहुत बढिया लिखते हैं आप्।
जवाब देंहटाएंAaj ke lekhan me wo Khushdeep bhai dikhai diye jinhe kab se talash raha tha. gambheer vishay par likhne se bhale hi tippani na milen lekin ek na ek din aata hai jab logon ko yah ahsas hota hai ki yah kadwi baat kahne wala hazaron meethe bloggers se achchha hai.
जवाब देंहटाएंbadhai...
दरकिनार करना ही सही हल है.
जवाब देंहटाएंमजेदार स्लागओवर
बहुत बढ़िया लिखते हैं खुशदीप आप. अब अपने ब्लौग का टेम्पलेट काला कर लें और उसपर काले से लिखें, नज़र नहीं लगेगी.:)
जवाब देंहटाएंक्या बात है मख्खनी ने मेरी ओलम्पिक वाली पोस्ट पढ़ ली क्या ?
जवाब देंहटाएंआज कल लोग इतने व्यस्त हो रहे है की दीवाली से पहले उन्हे फ़ुर्सत नही की कुछ बढ़िया सफाई करें घर का नियमित हल्का फुल्का सफाई अभियान छोड़ कर..तभी तो दीवाली सफाई का त्योहार भी बन गया है अब..और हाँ भाई ये ओलंपिक प्यार तो पहली बार सुना..मजेदार..धन्यवाद
जवाब देंहटाएंयह तो प्रकृति का नियम है। जो श्रेष्ठ होगा वही ठहरेगा। बाकी नष्ट हो जाएगा। पर जीवन में अपशिष्ट का उत्पादन तो निरंतर होता रहता है।
जवाब देंहटाएंसही कहा भाई खुशरहो मखनी को खुश रखो बस ये सिलसिला यूँ ही चलता रहे और खुशदीप के स्लागओवर भी । जलने वाले जलते रहेंगे क्या जाता है अपना शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंप्रकृति का नियम तो कोई बदल ही नहीं सकता।
जवाब देंहटाएंऔर उम्मीद है कि भारत का प्रदर्शन सुधरेगा। :)
बहुत सुन्दर विचार! दिवाली तो आती ही है सफाई के लिए। दिवाली के बाद भी घर में कूड़ा करकट रहे तो दिवाली का क्या फायदा?
जवाब देंहटाएंकुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
जवाब देंहटाएंसदियों रहा है दुश्मन दौरे जहाँ हमारा
खुशदीप जी,
ये मुट्ठी भर लोग हमारा क्या बिगाड़ लेंगे...फिर भी बीमारी से बचने के लिए सफाई ज़रूरी है...
और हां...हमेशा कि तरह मखनी कि बातें प्यारी लगीं....शुक्र है ओलंपिक में बात सलट गयी कहीं जो पंचवर्षीय योजना से या फिर कुम्भ के मेले जैसा प्रेम होता तो क्या होता....!!! ha ha ha
सार्थक लिखा है ......... ऐसे ब्लोगेर्स बस अब ख़त्म होने को ही हैं ...........
जवाब देंहटाएंस्लौग ओवर - शुक्र है प्यार ओलम्पिक की तरह विशाल नहीं है जिसमे जो आये वो समा जाए ....
'आवश्यकता है इसे अब बस आंधी बनाने की...जो बचे-खुचे कीड़े-मकोड़ों को भी उड़ा कर ले जाए...इंसान को इंसान समझने वाले बस हाथ से हाथ पकड़ कर कतार बनाते चलें...कारवां अपने आप बढ़ता चलेगा'
जवाब देंहटाएंwaah ! kya baat kahi hai!
touch wood!
लाइए काला टीका और लगाइए जहां जहां नजर लगने की संभावना है, खासकर ब्लागिंग को वायरस से मुक्त कराइए
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर बात कही आप ने, हम भी आप के संग है, वेसे हम ने तो काफ़ी समय से काला टीका अपने चारो दरवाजो( ब्लांग) पर लगा रखा है.
जवाब देंहटाएंमकखनी बेचारी....
धन्यवाद
सचमुच दिल खुश हो गया खुशदीप जी
जवाब देंहटाएंहमारी शुभकामनाएं
हमारी एकता ही सबसे बड़ा काला टीका होगी
काला टीका...अजी हमारी तस्वीर लगा कर रखो..मजाल है जो नजर लगे. :)
जवाब देंहटाएंस्लॉग ओवर मस्त रहा.
आप की अपने ब्लॉग पर टिप्पणी देख यहाँ आया।
जवाब देंहटाएंकाला टीका नहीं करिखही हाँड़ी फेंकिए चन्द बदमिजाजों पर जो ब्लॉग जगत में गन्दगी फैलाते घूम रहे हैं।
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चार साल के बाद जोश आया तो भी वही काम!
अब समझ में आया कि हमलोग ओलम्पिक में फिसड्डी क्यों रह जाते हैं :)