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मारुति कार की विकास गाथा में 14 दिसंबर 1983 क्यों अहम? कौन था वो खुशकिस्मत शख़्स जिसे इंदिरा गांधी ने सौंपी पहली मारुति 800 की चाबी? मारुति कार से क्या था संजय गांधी कनेक्शन? कैसे साकार हुआ छोटी कार का सपना
देश में चार दशक पहले तक अम्बेसडर और फिएट कारों का ही बोलबाला था. अम्बेसडर को सरकारी अफसरों की गाड़ी और फिएट का इस्तेमाल टैक्सी के लिए अधिक होता था. ऐसे में साठ के दशक में रसूखदार नेहरू-गांधी परिवार के युवा तुर्क ने ऐसी छोटी कार बनाने का सपना देखा जो सस्ती हो और जिसे देश का मिडिल क्लास भी एफोर्ड कर सके. अब ये बात दूसरी है कि छोटी कार के तौर पर मारुति 800 के देश की सड़कों पर आने से तीन साल पहले ही संजय गांधी की 1980 में विमान हादसे में मौत हो गई.
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संजय गांधी की मौत के बाद इंदिरा गांधी चाहती थीं कि बेटे का छोटी कार का सपना जल्दी से जल्दी पूरा हो. तब मारूति उद्योग लिमिटेड कंपनी भारत सरकार और जापान की सुजुकी मोटर कंपनी के बीच एक ज्वाइंट वेंचर के तहत शुरू की गई थी.
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मारुति 800 कार की पहली डिलिवरी दिल्ली के ग्रीन पार्क
इलाके में रहने वाले इंडियन एयरलाइंस के स्टाफर हरपाल सिंह को हुई थी. 14 दिसंबर
1983 को लॉन्चिंग के साथ हरपाल सिंह को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने खुद
मारुति 800 के पहले ग्राहक के तौर पर कार की चाबी सौंपी थीं. उस जमाने में लोगों
में मारुति 800 को लेकर कितना उत्साह था, ये इसी से पता चलता है कि अप्रैल 1983
में बुकिंग खुलने के दो महीने में ही 1.35 लाख कारें बुक हो गई थीं. तब अपनी
प्रोडक्शन कैपेसिटी को देखते हुए मारुति को बुकिंग बंद करनी पड़ी थी. हालत ये हो
गई कि लंबी वेटिंग लिस्ट की वजह से उस वक्त मारुति कार को स्टेट्स सिम्बल माना
जाने लगा था.
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हरपाल सिंह ने तब मारुति 800 कार 52,500 रुपए में खरीदी थी. इसके लिए उन्हें अपनी पुरानी फिएट भी बेचनी पड़ी थी. उस वक्त हरपाल सिंह जहां भी इस गाड़ी को लेकर जाते थे तो देखने वालों की भीड़ लग जाती थी. हरपाल सिंह का निधन 2010 में हुआ लेकिन उससे पहले उन्होंने 27 साल तक उसे चलाया. वो खुद को सौभाग्यशाली मानते थे कि उन्हें पहली मारुति कार मिली, इसलिए उनका इससे बहुत ज्यादा लगाव था.
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हरपाल
सिंह के निधन के बाद से ये गाड़ी सड़क के किनारे ही खड़ी थीं और जंक खा रही थी. इस
कार की तस्वीरें इंटरनेट पर कुछ साल पहले वायरल हुईं तो इसे मारुति के सर्विस
सेंटर ले जाकर अंदर बाहर से रीस्टोर किया गया. इस कार को बहुत लोगों ने खरीदने की
इच्छा जताई लेकिन हरपाल सिंह के परिवार ने पिता से जुड़ी यादगार बताते हुए बेचने
से इनकार कर दिया.