'भारत माता की जय' तो इस माता की क्यों नहीं...खुशदीप



वो सिर पर लाश ढो रहा था,
और पूरा भारत सो रहा था...



वो कौन?  किसकी लाश? वो दाना मांझी और लाश उसकी पत्नी अमांग की...

ओडिशा के भूख के लिए अभिशप्त कालाहांडी ज़िले के भवानीपटना गांव के रहने वाले दाना मांझी की ये तस्वीर...पत्नी की लाश सिर पर...साथ चलती बिलखती 12 साल की बिटिया चौला...ये तस्वीर तमाचा है भारत के विकास के तमाम दावों पर...गांव से करीब 60 किलोमीटर दूर अस्पताल में मंगलवार रात को टीबी से पीड़ित अमांग की मौत हुई...मौत होते ही अस्पताल वाले दाना मांझी पर दबाव डालने लगे कि लाश को अस्पताल से हटाओ...किसी तरह रात काटी...बुधवार सुबह दाना ने पत्नी की लाश कपड़े में बांधी और पैदल ही घर की ओर चल दिया...


 ये हालत तब है जब दाना मांझी ने अस्पताल को पहले से ही जानकारी दे दी थी कि वो बहुत निर्धन है और उसके पास शव को घर ले जाने के लिए वाहन की व्यवस्था के पैसे नहीं है...है तो दाना मांझी इनसान ही...रास्ते में थका तो लाश उसके हाथों से छूटी भी...किसी तरह सँभाला...मां की लाश और पिता की बेबसी देखकर नन्ही सी जान चौला का रोना तो निकलना ही था...

दाना इसी हाल में 12 किलोमीटर तक चलता रहा...तब कुछ लोगों के हाथ-पैर मारने के बाद एंबुलेंस की व्यवस्था हो सकी...बुधवार शाम को अमांग का अंतिम संस्कार हुआ...मामले ने तूल पकड़ा तो अस्पताल के अधिकारी अपनी खाल बचाने के लिए सफाई देने लगे कि दाना मांझी किसी को बिना बताए ही अस्पताल से पत्नी की लाश ले गया...वाह...इसे कहते हैं चोरी और सीनाजोरी...

कालाहांडी की कलेक्टर वृंदा डी ने बताया कि जब उन्हें इस घटना का पता चला तो उन्होंने अमांग की लाश को एंबुलेस से ले जाने की व्यवस्था की...कलेक्टर के मुताबिक उन्होंने एक योजना से दाना मांझी को दो हज़ार रुपए दिलवाए...रेडक्रॉस से भी दस हज़ार रुपए मिलेंगे...वाह कलेक्टर साहिबा बड़ा एहसान किया आपने...

इस साल के शुरू में भी झारखंड-ओडिशा की सीमा के पास जैतगढ़ के गोधूलि गांव से भी एक ऐसी ही घटना सामने आई थी...वहां सावित्री नाम की महिला को अपने पति के अंतिम संस्कार के लिए पैसे जुटाने को अपने दो बेटों को गिरवी रखना पड़ा था...
 
कालाहांडी से बहुत दूर हम दिल्ली में बैठे सारी सुख सुविधाएं भोगते हुए दाना मांझी के दर्द का रोना रो रहे हैं...सोशल मीडिया पर तस्वीर पर डालकर अपने फ़र्ज़ की रस्म अदायगी कर रहे हैं...यहां सवाल ये भी है कि जो मीडियाकर्मी दाना मांझी की तस्वीरें खींच रहे थे, वीडियो बना रहे थे, उन्होंने क्या किया...बेशक उन्होंने अपनी ड्यूटी पूरी की और इस घटना को दुनिया के सामने लाए...लेकिन वो साथ ही ये भी तो कर सकते थे कि वाहन की व्यवस्था कर अंपाग की लाश को गांव तक छोड़ आते...ये ठीक वैसा ही है जैसे कि आत्मदाह कर रहे किसी इनसान की तस्वीरें खीची जाती रहें, वीडियो बनाए जाते रहें...हालांकि चंद पत्रकारों को साधुवाद भी है जिन्होंने तत्काल हल्ला मचा कर प्रशासन को जगाया और दाना मांझी के लिए 12 किलोमीटर चलने के बाद एंबुलेंस की व्यवस्था हो सकी...सवाल यहां सिस्टम से कि 12 किलोमीटर लाश सिर पर उठा कर चलना भक्या कम बड़ी त्रासदी है...

दाना मांझी और अमांग को लेकर एक सवाल उनसे, जो भारत माता की जय कहते नहीं थकते...जितने खाए-अघाए होते हैं, नारा भी उतनी हो ज़ोर से निकलता है...आख़िर भारत माता है कौनमहज़ ज़मीन का बड़ा टुकड़ा...या इस पर रहने वाले लोग...क्या इन्हीं लोगों में भारत माता की आत्मा नहीं बसती...क्या अमांग एक मां नहीं थी?  क्या वो भारत का हिस्सा नहीं थी? 

भारत का संविधान भी हम भारत के लोग से शुरू होता है...संविधान को सारी शक्ति भी देश के लोगों से ही प्राप्त है...क्या सच में ऐसा हैअगर ऐसा है तो अमांग जैसी माता की जय क्यों नहींजब तक अमांग जैसी एक भी मां को इस हाल में दुनिया से अलविदा कहना पड़ता है, भारत माता की जय सच्चे अर्थों में नहीं हो सकती...

हम को मन की शक्ति देना, मन विजय करे,
दूसरों की जय से पहले, खुद को जय करे...

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1 टिप्पणियाँ
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  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (28-08-2016) को "माता का आराधन" (चर्चा अंक-2448) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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