नौकरशाहों की सियासत...खुशदीप


(हरियाणा के वरिष्ठ पत्रकार पवन बंसल से मिले इनपुट के आधार पर)

करीब छह महीने पहले तक देश के गृह सचिव रहे आर के सिंह अब एक राष्ट्रीय पार्टी के नेता हैं...उन्होंने देश के गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे पर सनसनीखेज़ आरोप लगाए हैं...मसलन शिंदे ने देश के दुश्मन नंबर वन दाऊद इब्राहिम के एक करीबी बिजनेसमैन को दिल्ली पुलिस से बचाया था...पुलिस के काम में दखलअंदाज़ी के आरोपों के अलावा आर के सिंह ने शिंदे के इस बयान की भी हवा निकाल दी कि दाऊद को अमेरिकी खुफ़िया एजेंसी एफबीआई की मदद से भारत लाने की कोशिश की जा रही है...


शिंदे का गृह मंत्री के तौर पर कामकाज कैसा रहा है, सब जानते हैं...कभी बॉलीवुड में म्यूज़िक रिलीज पार्टी में शिरकत करना और कभी कांग्रेसी नेता होने के बावजूद शरद पवार को प्रधानमंत्री बनता देखने की इच्छा जताना...शिंदे इस तरह के आचरण से ज़्यादा सुर्खियों में रहे हैं बनिस्बत गृह मंत्री के तौर पर अपने प्रदर्शन की वजह से...

शिंदे तो खैर शिंदे हैं...लेकिन यहां मेरा सवाल दूसरा है...ये नौकरशाहों से संबंधित हैं...ये नौकरशाह जब पद पर होते हैं तो क्यों मंत्रियों की गलत हरकतों का विरोध नहीं कर पाते...पद छोड़ने के बाद ही उन्हें ये सब क्यों याद आता है...सवाल ये भी है कि नौकरशाहों को रिटायर होने के बाद कॉरपोरेट घरानों की नौकरी या राजनीतिक दलों का सदस्य बनने की इजाज़त क्यों दी जाती है...क्या गोपनीयता के नियम इन पर लागू नहीं होते...क्या पद पर रहते हुए मिली जानकारियों का रिटायर होने के बाद गलत उपयोग नहीं हो सकता...

लोकसभा चुनाव आने वाले हैं...ऐसे में नौकरशाहों, पुलिस अफसरों का राजनीतिक दलों का दामन थामने का सिलसिला शुरू हो चुका है...सूत्रों के मुताबिक हरियाणा के पूर्व महानिदेशक (सीआईडी) परमवीर राठी सोनीपत लोकसभा सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार होंगे...राठी अभी मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के सलाहकार हैं...ऐसी जानकारी है कि राठी ने सरकारी पद पर रहते हुए अपना प्रचार भी शुरू कर दिया है...राठी अपने पुलिस कार्यकाल के दौरान हुड्डा सरकार के सबसे ताकतवर अफसर माने जाते थे...हुड्डा से उनकी नज़दीकी का ही नतीजा है कि बाद में उनकी सलाहकार के तौर पर भी सेवाएं ली जाती रहीं...राठी पर सलाहकार के नाते पुलिस विभाग को रिमोट कंट्रोल से चलाने के आरोप भी लगते रहे हैं...

पुलिस अफसरों को रिटायर होने के बाद सत्ता का चस्का लगना नई बात नहीं है...हरियाणा कैडर के वी एन राय और रणबीर शर्मा आम आदमी पार्टी में शामिल हो चुके हैं...दोनों की नज़र करनाल लोकसभा सीट से आप का उम्मीदवार बनने पर हैं...हरियाणा के पूर्व पुलिस महानिदेशक अजीत सिंह भाटोटिया भी आप के दरवाजे पर खड़े हैंउनका भी दावा है कि वे जनता की सेवा करना चाहते हैं...ये नौकरशाह सत्ता में आने के बाद अपने लिए कौन सा मेवा चाहते हैं, इस पर अपनी ज़ुबान सिले ही रखते हैं...लेकिन साहब ये जो पब्लिक है, सब जानती है...

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8 टिप्पणियाँ
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  1. अभी उन्हें जरूरत हैं भाई , भविष्य का सवाल है !!

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    1. यानि रिटायरमेंट के बाद भी भविष्य सुधारने की चिंता...

      जय हिंद...

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  2. जानती है पर करते समय उधर को ही चली जाती है :)

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    1. इस देश में जब तक हर बच्चे को समान और गुणवत्ता वाली शिक्षा नहीं मिलेगी तब तक राजनीति का चोला ओढ़ कर ठग उन्हें ठगते रहेंगे...पश्चिमी देशों की तरह यहां भी साक्षरता शत प्रतिशत हो जाए, तभी सही मायने में देश में लोकतंत्र का मार्ग प्रशस्त होगा...

      जय हिंद...

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  3. मुझे एक सीधी सपाट सी बात बताइए ? अपने अधिकारियों , प्रशासन के खिलाफ़ सीधे सीधे सब कुछ बोल कर अपनी नौकरी से हाथ धो बैठने की हिमाकत कितने लोग कर सकते हैं खासकर उस स्थिति में जबकि सर्वोच्च न्यायालय के पीठासीन न्यायमूर्ति भी पद पर रहते हुए ये नहीं कर पाए , फ़िर हम आप जैसे आम नौकरीपेशा लोगों की हैसियत ही क्या । और हां ये बात सिर्फ़ नौकरशाहों नहीं मीडियाकर्मी से लेकर मजदूर तक पर लागू होती है । पेट और परिवार की चिंता से मुक्त करके देखिए , कितना बारूद भर के बैठे हैं लोग बाग । सवाल नीयत का है जिस पर इतनी जल्दी संदेह करना जल्दबाज़ी सी लगती है

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    1. अजय भाई, एक नौकरशाह भारत सरकार की नौकरी करता है...गैस बेसिन के लिए रिपोर्ट तैयार करता है कि क्षेत्र बेकार है और यहां गैस निकलने की कोई संभावना नहीं है...फिर वही बेसिन किसी प्राइवेट कंपनी को दे दिया जाता है...फिर अचानक वहां से गैस निकल आती है...प्राइवेट कंपनी अथाह पैसा कूटने लगती है...नौकरशाह रिटायर होने के बाद उसी कंपनी में बहुत मोटी तनख्वाह पर नौकरी करने लगते हैं...इसे क्या कहेंगे आप ?

      जय हिंद...

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  4. राजनीति में जाने का अधिकार तो सबका है बस जनता को ही तय करना चाहिए कि इस अधिकारी ने जनता की सेवा अपने कार्यकाल में किस प्रकार की थी। कुर्सी पर रहते विरोध करने में हिम्‍मत चाहिए जो हर किसी में नहीं होती। खेमका का हश्र देख ही रहे हैं सबलोग।

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  5. हम क्या जाने राजनीति की घातें और प्रतिघातें।

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