यहां मिलता है 1 रु. में भरपेट खाना...खुशदीप

कम से कम रुपये में भरपेट खाना कहां खाया जा सकता है, इस पर पूरे देश में बवाल मचा हुआ है...सारे न्यूज चैनल्स के रिपोर्टर खाने-पीने के ठिकानों पर मारे-मारे फिर रहे हैं कि पांच रुपये में खाने को क्या-क्या मिल सकता है...कांग्रेस नेताओं में रशीद मसूद ने 5 रुपये में दिल्ली और राज बब्बर ने 12 रुपये में मुंबई में भरपेट खाना मिलने की बात कह कर अपने सामान्य ज्ञान का क्या परिचय दिया कि हंगामा खड़ा हो गया...फूड सिक्योरिटी बिल को 2014 का चुनाव जीतने का ब्रह्मास्त्र मान बैठी कांग्रेस को भी इन बयानों से किनारा करना पड़ा...अब नया बवाल कपिल सिब्बल और दिग्विजय सिंह की ओर से अपनी ही सरकार के गरीबी के आंकड़ों पर सवाल उठाने से शुरू हुआ है...खैर ये तो राजनीति है, चलती ही रहेगी...

लेकिन मैं आपको देश में एक ऐसी जगह बता सकता हूं, जहां आज भी एक रुपये में भरपेट खाना मिलता है...यकीन नहीं आ रहा ना...खुद ही पढ़ लीजिए...ये पोस्ट मैंने तीन साल पहले लिखी थी...


महंगाई के दौर में एक रुपये में भरपेट बढ़िया खाना...सबक लें महंगाई के नाम पर संसद में हंगामा मचाने वाले नेता...सबक ले लाखों टन अनाज गोदामों में सड़ा देने वाली सरकार...लुधियाना का एक रुपये वाला होटल...एनआरई कर रहे हैं सच्ची देशसेवा...14 साल से निस्वार्थ चल रहा है होटल...

महंगाई के नाम पर सांसद शोर मचाते रहे और देश की जनता तमाशा देखती रही। वो बेचारी और कर भी क्या सकती है। सांसद खाए-पिए-अघाए हैं। सिर्फ नारों में ही दम लगा सकते हैं। यही दम वो वाकई आम आदमी की परेशानियां दूर करने में लगाएं तो देश की तस्वीर ही न पलट जाए। ऐसी कौन सी सुविधा नहीं है जो हमारे माननीय सांसदों को नहीं मिलती । मुफ्त हवाई यात्राएं, ट्रेन के एसी फर्स्ट क्लास में जितना चाहे मुफ्त सफर। संसद चलने पर हाजिरी के रजिस्टर पर दस्तखत कर देने से ही रोज़ का एक हज़ार का भत्ता पक्का। नारे लगाते थक गए और रिलेक्स करने का मूड आ गया तो संसद की हाउस कैंटीन है ही। यहां बढ़िया और लज़ीज़ खाना इतना सस्ता मिलता है कि सस्ते से सस्ता ढाबा भी मात खा जाए। महंगाई के दौर में सांसदों के लिए खाना इतना सस्ता कैसे। अरे भई, हर साल करोड़ों की सब्सिडी जो मिलती है। ये सब्सिडी भी सांसदों के खाते से नहीं, हम और आप टैक्स देने वालों की जेब से ही जाती है। अब महंगाई डायन देश के लोगों को खाय जा रही है तो सांसद महोदयों की भला से। 

कॉमनवेल्थ गेम्स पर सरकार 35,000 करोड़ खर्च कर सकती है लेकिन देश में रोज़ भूखे पेट सोने वाले करोड़ों लोगों को राहत देने के लिए कुछ नहीं कर सकती। दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित गाजेबाजे के साथ 15 रुपये की थाली में लोगों को बढ़िया खाना देने का वादा करती हैं, लेकिन योजना का एक दिन में ही दम निकल जाता है। 

लेकिन सरकार सारा तामझाम होने के बावजूद जो नहीं कर सकती, वो लुधियाना में बिना किसी शोर-शराबे के कुछ लोग करके दिखा रहे हैं। लुधियाना में किसी से पूछो, आपको एक रुपये वाले होटल के नाम से मशहूर ब्रह्म भोग का पता बता देगा। 

महंगाई के इस दौर में भी यहां लोगों को एक रुपये में बढ़िया क्वालिटी का खाना भरपेट खिलाया जाता है। रोटी, चावल, दाल, सब्ज़ी, सलाद सब कुछ एक रुपये में। एक रुपया भी सिर्फ इसलिए लिया जाता है कोई ये महसूस न करे कि वो मुफ्त में खाना खा रहा है। इसीलिए माहौल भी पूरा होटल का ही रखा जाता है। पहली बार में सुनने पर आपको भी यक़ीन नहीं आ रहा होगा। लेकिन ये सोलह आने सच है। दोपहर 12 बजे से 3 बजे तक ये साधना पिछले 14 साल से बिना किसी रुकावट के चलते आ रही है। 

महंगाई कहां की कहां पहुंच गई। लेकिन इस होटल की थाली में न तो खाने की चीज़ कम हुईं और न ही क्वालिटी से कोई समझौता किया गया। और सबसे बड़ी बात किसी को ये भी नहीं पता कि समाज की ऐसी सच्ची सेवा कौन कर रहा है। बरसों से यहां खाना खाने वाले लोगों को भी नहीं पता कि अन्नपूर्णा के नाम को जीवंत करने वाले कौन लोग है। बस इतना ही पता चलता है कि कुछ एनआरआई ड्रीम एंड ब्यूटी चैरिटेबल ट्रस्ट के ज़रिए लुधियाना के कुछ लोगों का ही सहयोग लेकर इस होटल को चला रहे हैं।


कृष्णा लुधियाना की एक फैक्ट्री में नाइट शिफ्ट में काम करता है। कृष्णा के मुताबिक सबसे बड़ी बात है कि यहां पूरी इज्ज़त और आदर भाव के साथ लोगों को खाना खिलाया जाता है। लोगों के लिए बस एक शर्त है कि वो खाना खाने आएं तो उनके नाखून कटे हों और हाथ साफ कर ही वो खाने की टेबल पर बैठें। बर्तनों को साफ़ करने का भी यहां बड़ा हाइजिनिक और आधुनिक इंतज़ाम है।


देश के सांसदों को भी इस होटल में लाकर एक बार सामूहिक भोजन कराया जाना चाहिए...शायद तभी उनकी कुछ गैरत जागे...सांसद इस होटल का प्रबंधन देखकर सोचने को मजबूर हों कि जब ये निस्वार्थ भाव से 14 साल से समाज की सच्ची सेवा कर रहे हैं तो देश की सरकार ऐसा क्यों नहीं कर सकती...देश में क्यों ऐसा सिस्टम है कि लाखों टन अनाज गोदामों में सड़ रहा है और देश के करोड़ों लोगों को रोज़ भूखे पेट सोना पड़ता है...वाकई सांसद महान हैं...मेरा भारत महान है...

एक टिप्पणी भेजें

25 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.
  1. बिल्कुल सही कहा खुशदीप भाई, केवल सोच की जरूरत है ।

    जवाब देंहटाएं

  2. खुशदीप जी बड़ी अच्छी जानकारी दी आपने .सांसदों को एक बार वंहा खाना चाहिए .
    latest post हमारे नेताजी
    latest postअनुभूति : वर्षा ऋतु

    जवाब देंहटाएं
  3. खुशदीप जी,

    पिछले 14 वर्षों से 1 रूपए में खाना परोसा जा रहा है - कमाल है । हृदय से उक्त भोजनालय के संचालकों के प्रति श्रद्धा का भाव उमड़ता है । कई जानी-मानी संस्थाओं का हाल देखा है । पांच सिलाई मशीन मुफ्त में वितरित करने के लिए इतना बड़ा समारोह करवा डालते हैं कि उतने में 25 मशीने और आ जाएं । उन्हें पता है इस सेवा को सादगी से कर देने से मीडिया उन्हें घास नहीं डालेगा और वे इतना तामझाम खुद को प्रचारित करने के लिए करते हैं इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए । यहां मीडिया को थोड़ा चिंतन करना होगा । मीडिया को ऐसे शानो-शोकत वाले स्थानों की जगह उन जगह कलम,कैमरे का मुंह करना होगा जहां मानवता की अलख जगाने वाले चुपचाप अपनी धुन में ही आनंदित हैं । दरअसल ऐसा अनुभव किया जाने लगा है कि मीडिया के पाठकों और दर्शकों की ख़बरों के प्रति रूचि-अभिरूचि में तेजी से बदलाव आ रहा है । उसमें अब रचनात्मक समाचारों की पिपासा जाग उठी है । नेताओं के विवादास्पद बयानों, भ्रष्टाचार और अपराध-जगत पर देखने-सुनने की जगह सुकून और समृद्धि की राह दिखाने वाली सामग्री तलाशने लगा है । ऐसा होना अस्वाभाविक नहीं है क्योंकि कहीं अच्छा हो रहा है तो उस पर प्रभावपूर्ण ढंग से प्रकाश डालने से अन्य लोगों को भी प्रेरणा मिलने की संभावना रहती है । उस दिशा में कुछ नए लोगों का आगे बढ़ना देश की सेहत के लिए अच्छा ही रहता है ।

    जवाब देंहटाएं
  4. भई वाह ..
    आभार इन लोगो का जिन्होंने देश के सामने एक उदाहरण प्रस्तुत किया है ...

    जवाब देंहटाएं
  5. समस्या यह है खुशदीपजी कि हर कोई लुधियाना जाकर खाना नहीं खा सकता और ऐसे दिलवाले हर जगह नहीं हैं.पर ढूँढने पर हमारे देश में हर जगह तो नहीं पर कुछ जगहों पर ऐसे दिलवाले जरूर मिल जाएंगे.मेरे पिताजी ने बताया था कि इलाहाबाद में एक जगह वे खाना खाने जाते थे.एक बार जब वे रात दस बजे के बाद खाने पहुँचे तो वहाँ कहा गया कि खाना खतम हो गया है.पर बाहर तमाम भिखारी पंगत में बैठे हुए थे और उन्हे खाना लाया और खिलाया जा रहा था .मेरे पिताजी ने होटल मालिक से शिकायत की कि खाना होते हुए भी आप कह रहे हैं कि खाना खतम हो गया और बाहर भिखारियों को खाना खिला रहे हैं.इस पर होटल मालिक ने जो जवाब दिया उससे मेरे पिताजी अभिभूत हो गए.उसने कहा कि रात दस बजे के बाद उसके यहाँ जो भी खाना बचता है वह इन भिखारियों का और सिर्फ इनका होता है और किसी का नहीं.इसी तरह अयोध्या के बाल्मीकि आश्रम में रात लगभग आठ बजे घंटा बजा कर खाना बन जाने की सूचना दी जाती रही है और उसकी आवाज सुनकर जो भी वहाँ पहुँचता रहा है उसे खाना दिया जाता रहा है.

    यह तो थी खैरात की बात अब प्योर एकोनॉमिक्स की बात.कोलकाता में मैंने छ: वर्ष पूर्व शाकाहारी भर-पेट खाना सात- आठ रुपए में खाया है और चमत्कृत हुआ हूँ कि इतना सस्ता खाना खिलाने के बाद भी यह होटल वाला कैसे लाभार्जन करके अपना परिवार भी चला रहा है.कोलकाता के इन सस्ते होटल वालों पर हार्वर्ड युनिवर्सिटी के लोगों को वैसे ही रिसर्च करनी चाहिए जैसे वे मुंबई के डब्बे वालों पर कर रहे हैं

    जवाब देंहटाएं
  6. नमन इस श्रद्धा को !
    देश के अन्य भागों में भी इस तरह की व्यवस्था तो नहीं पर जरुरत मंदों को खाना, नाश्ता आदि देते देखा है, जोधपुर में सोजती गेट के आगे सुबह एक नहीं कई व्यक्ति आपको दिख जायेंगे जो अपने अपने घरों से व्यक्तिगत तौर पर खाना बनाकर लाते है और जरुरत मंदों को खिलाते है, कुछ लोग जो घर से बनाकर नहीं ला सकते उन्हें ब्रेड आदि बांटते देखा जा सकता है|
    जोधपुर में एक सी.ए. के घर गये तो देखा घर की चारदीवारी के भीतर एक महिला टेंट में बाजरे की रोटियां बनाने में लगी है, रोटियों का ढेर भी दिखाई दे रहा था, सी.ए. से पूछने पर पता चला कि उसकी बीबी सहित कुछ महिलाओं ने नियमित रोटियां बनाने के लिए ये इंतजाम किया है वे ये रोटियां पहाड़ी में जाकर बंदरों को खिलाती है !

    जवाब देंहटाएं
  7. निरर्थक बहस के बीच सार्थक जानकारी.

    जवाब देंहटाएं
  8. इतनी सुन्दर और कल्याणकारी भावना लेकर चलने वाला क्रम चलता रहे ,कामना बस यही कि कोई इसका दुरुपयोग न करे !

    जवाब देंहटाएं
  9. यह है असली समाज सेवा और दान । आपके इस लेख से बडा अच्छा सकारात्मक अनुभव हुआ ।

    जवाब देंहटाएं
  10. नमन इस श्रद्धा को, जानकारी के लिए आभार आपका।

    जवाब देंहटाएं
  11. अगर ये कभी चुनाव लड़ने का मन बन्ने तो हमारा वो पक्का
    लिखते रहिये ....

    जवाब देंहटाएं
  12. ये बात थोड़ी मुक्तलिफ़ है. एक रुपये में खाना देना उनकी अपनी मर्ज़ी है. वो चाहे तो १०० रुपये में दे या मुफ्त दे. नफा नुक्सान उनका होगा. . ये लोग समर्थ है और अच्छी नियत से काम कर रहें है, ये बात तो है , पर इसे मुद्रा का मापदंड नहीं समझा जा सकता. अगर रूपया इतना मजबूत हो जाए की १ रुपये का मूल्य १ पाउंड के बराबर हो जाए तो बात और है. १ पाउंड में निश्चित तौर पर खासी अच्छी क्वालिटी का खाना मिल सकता है और खिलाने वाले को अपनी जेब से पैसे भी नहीं लगाने पड़ेंगे . ये अलग बात है की इस लोगों का लक्ष्य मुनाफा कमाना नहीं है और ये लोग शौकिया सेवा कर रहे है, पर इससे ये भ्रान्ति फैलती है की १ रुपये में अच्छा खान मिल सकता है ... जो की सही नहीं है.

    बहरहाल साहब आप भी आचे खासे खबरी लाल है. जाने कहाँ कहाँ से खबरे निकाल लाते है !

    जारी रखिये ...

    जवाब देंहटाएं
  13. ये क्या किया आपने , अब तो और सर उठाकर कहेंगे जी हमने गलत थोड़े ना कहा था , एक रूपये में भर पेट खाया जा सकता है !
    मानवता की सेवा करने वाले होटल मालिकों को नमन !

    जवाब देंहटाएं
  14. आज के समय ऐसा भी होता है यह पहली बार ही सुना, वाकई ये सच्ची श्रद्धा के काबिल हैं. ईश्वर करे उनका यह प्रयास निरंतर चलता रहे और इन टुच्चे नेताओं की नजर ना लगे.

    रामराम.

    जवाब देंहटाएं
  15. वाकई ये लोग प्रशंसा के पात्र है !!

    जवाब देंहटाएं
  16. निस्वार्थ भाव सेवा ....नमन!!

    जवाब देंहटाएं
  17. इसे अधिक से अधिक टोकन मूल्य पर मिलने वाला सब्सीडाईज्ड भोजन कह सकते हैं. खाने की कीमत तो वही है, आपसे केवल आंशिक मूल्य लिया जा रहा है, बाकि खर्च कोई और वहन कर रहा है.

    वैसे अंकुरित अनाज एक सम्पूर्ण और स्वास्थ्यवर्धक भोजन है, बिना पकाए इससे 15 रूपए दिन में भूख मिटाने लायक पौष्टिक आहार प्राप्त किया जा सकता है. अगर स्वाद भूल सकें तो, इसीलिए ये ३३ रूपए में दो टाइम खा सकने की बात पूरी तरह गलत नहीं है.

    जवाब देंहटाएं
  18. भारत के नेता लोग एक बात तो भूल गए की यहाँ पर बिना पैसो के भी बहुत आच्छा खाना मिल सकता है .........एक दम से झूट ...नहीं बही एकदम सच कह रहे है ....कैसे.....

    फ्री मैं खाना वह भी एकदम मस्त पुलाव वह भी एकदम मस्त....नाम भी सुन लो कहा मिलता है फ्री का खाना ....खयाली पुलाव ..खयाली पुलाव ...खली पुलाव...

    जय बाबा बनारस...

    जवाब देंहटाएं
  19. भूखे को खिलाये जा प्यार लुटाये जा

    जवाब देंहटाएं
  20. कुछ नहीं ये तो जन्मों जन्मों का फेर है
    बस किसी के राँझा बन आने की देर है ....:))

    खिलाये जा एक रूपए में
    भरपेट भोजन खिलाये जा ...

    जय हिन्द ...!!

    जवाब देंहटाएं
  21. Very nice post. Its surprising to find a place like this exist. I am sure there must be many untold stories of humanity across India which will humble the political class.

    जवाब देंहटाएं