आंध्र प्रदेश विधानसभा में एआईएमआईएम विधायक दल के नेता अक़बरुद्दीन ओवैसी ने 24 दिसंबर 2012 को निर्मल, आदिलाबाद में जो कुछ भी कहा, उसकी वजह से 14 दिन की न्यायिक हिरासत में है...अक़बर ने क्या-क्या कहा, इस पर मैं जाना नहीं चाहता...लेकिन जाने-माने शायर और फिल्म गीतकार निदा फ़ाजली ने एक साहित्यिक पत्रिका को चिट्ठी में जो लिखा है, उसने मुझे ये लेख लिखने पर मजबूर कर दिया...निदा फ़ाज़ली ने मुंबई हमले के गुनाहग़ार मोहम्मद अज़मल आमिर कसाब और बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता अमिताभ बच्चन की बिल्कुल अलग-अलग संदर्भ में तुलना की है...उन्होंने दोनों को किसी और का बनाया हुआ खिलौना बताया है...
अक़बरुद्दीन ओवैसी ने निर्मल में तहरीर के दौरान कसाब और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का एक सांस में ज़िक्र किया था...दोनों को निर्दोष लोगों के क़त्ले-आम का गुनहग़ार बताया था...पूछा था कि कसाब को फांसी दे दी गई, मोदी को कब सज़ा मिलेगी? अक़बरुद्दीन ओवैसी का ये कहने का क्या मकसद था, वही जानें...लेकिन निदा फ़ाज़ली जैसे अज़ीम शायर को अमिताभ और कसाब को एक पलड़े में रखने की ज़रूरत क्यों पड़ी? ये चौंकाने वाला है...निदा फ़ाज़ली अकबरुद्दीन ओवैसी की तरह सियासत से नहीं जु़ड़े हैं...निदा फ़ाज़ली ने अपनी शायरी से देश-विदेश में लोगों के दिलों में मकाम बनाया है...
निदा फ़ाज़ली वहीं है, जिनकी क़लम से निकला है-
घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो, यूँ कर लें,
किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाए...
इसी शेर पर निदा फ़ाज़ली का पाकिस्तान के दौरे पर एक मुशायरे के बाद कट्टरपंथी मुल्लाओं ने घेराव कर ऐतराज़ जताया था...उन्होंने निदा फ़ाज़ली से पूछा था कि क्या वो किसी बच्चे को अल्लाह से बड़ा समझते हैं? निदा ने जवाब दिया कि मैं सिर्फ़ इतना जानता हूँ कि मस्जिद इंसान के हाथ बनाते हैं जबकि बच्चे को अल्लाह अपने हाथों से बनाता है...
अब आते हैं, क्या कहा निदा फ़ाज़ली ने अमिताभ और कसाब के बारे में...साहित्यिक पत्रिका को लिखी चिट्ठी में उन्होंने लिखा, 'एंग्री यंगमैन को 70 के दशक तक ही कैसे सीमित किया जा सकता है...मुझे लगता है कि 70 के दशक से अधिक गुस्सा तो आज की जरूरत है और फिर अमिताभ को एंग्री यंगमैन की उपाधि से क्यों नवाज़ा गया? वह तो केवल अजमल आमिर कसाब की तरह बना हुआ खिलौना हैं...एक को हाफिज सईद ने बनाया था, दूसरे को सलीम जावेद की कलम ने गढ़ा था...खिलौने को फांसी दे दी गई, लेकिन उस खिलौने को बनाने वाले को पाकिस्तान खुलेआम उसकी मौत की नमाज पढऩे के लिए आज़ाद छोड़े हुए है...दूसरे खिलौने की भी प्रशंसा की जा रही है लेकिन खिलौना बनाने वाले को भुला दिया गया...
निदा फ़ाज़ली शायद यही कहना चाहते हैं कि अमिताभ को लोगों ने याद रखा और उन्हें गढ़ने वाले सलीम-जावेद को भुला दिया...ये सकारात्मक संदर्भ में है...वहीं नकारात्मक संदर्भ में निदा फ़ाज़ली का तात्पर्य यही हो सकता है कि कसाब को शैतान के तौर पर हमेशा याद रखा जाएगा लेकिन उसे रिमोट से चलाने वाले हाफ़िज़ सईद को इतिहास शायद भुला देगा...
अमिताभ और कसाब को लेकर निदा फ़ाज़ली के इस बयान पर विवाद छिड़ गया है...कुछ इस तुलना को बिल्कुल ग़ैर-ज़रूरी बता रहे हैं...तो कुछ ऐसे सवाल भी दाग़ने लगे हैं कि अमिताभ को लोगों ने अमिताभ बनाया, इसके बदले उन्होंने देश को क्या दिया? मेरी नज़र में ये बहस बेमानी हैं...अमिताभ एक प्रोफेशनल हैं...अपने सारे असाइनमेंट्स के साथ पूरी ईमानदारी के साथ इंसाफ़ करते हैं...ये कहां लिखा है कि कोई अपनी मेहनत से अथाह पैसा कमाता है, तो उसके लिए ज़रूरी है कि वो चैरिटी के लिए मोटी रकम देता रहे...प्रोफेशनल जो टैक्स देता है, वो भी तो समाज से जुड़ी सरकार की कल्याण योजनाओं पर ही खर्च होता है...
अमिताभ बच्चन के काम के प्रशंसक भी हो सकते है, आलोचक भी...ये बात ठीक है कि अमिताभ के करियर को ऊंचाई देने में सलीम-जावेद के स्क्रीन पर गढ़े किरदार विजय ने सबसे अहम भूमिका निभाई...लेकिन क्या सिर्फ यही वजह है कि अमिताभ आज अमिताभ हैं...मैं अमिताभ का कभी बड़ा प्रशंसक नहीं रहा...मैं हिंदी सिनेमा मे दिलीप कुमार से बड़ा वकार किसी और का नही मानता...लेकिन इसका ये मतलब भी नहीं कि अमिताभ ने अपनी मेहनत के दम पर जो हासिल किया, उसे निदा फ़ाज़ली एक झटके में सलीम-जावेद का बनाया खिलौना बता कर खारिज़ कर दें...निदा साहब, आप से मेरा सवाल है कि सलीम-जावेद ही सब कुछ थे तो वो अमिताभ से पहले या अमिताभ के बाद किसी और अदाकार को अपनी क़लम से अमिताभ क्यों नहीं बना पाए...सलीम का बेटा सलमान ख़ान आज बॉलीवुड पर राज कर रहा है तो ये भी सलीम की लेखनी का कमाल नहीं, बल्कि खुद सलमान की बरसों की मेहनत का नतीजा है...
ये बात सही है कि सत्तर के दशक के मध्य में इंदिरा-संजय गांधी राज के ख़िलाफ़ जनाक्रोश चरम पर था...ख़ास तौर पर युवाओं का आक्रोश...रियल लाइफ़ में इस नब्ज़ को लोकनायक जयप्रकाश नारायण पकड़ कर देश की राजनीति को नई दिशा दे रहे थे...वहीं रील लाइफ़ में एंग्री यंगमैन विजय के ज़रिए सलीम-जावेद एक के बाद एक हिट फिल्में देकर भुना रहे थे...जो युवा जेपी की हुंकार पर कुछ भी करने को तैयार था...वही युवा बड़े परदे पर अमिताभ को सिस्टम से लड़ते देखकर तालियां पीटता था...
निदा फ़ाज़ली का कहना है कि सत्तर के दशक से ज़्यादा गुस्से की आज़ ज़रूरत है, फिर अमिताभ को एंग्री यंगमैन की उपाधि से क्यो नवाजा गया? पिछले साल जनता के इसी गुस्से की लक़ीर पर अन्ना हज़ारे चलते दिखे थे...लेकिन अन्ना जेपी नहीं बन सके...वो अपने ही लोगों की फूट का शिकार हो गए...आज बड़े परदे पर भी कोई विजय नज़र नहीं आता...शायद यही कसक सलीम के दिल मे भी है...उनका बेटा सलमान आज फिल्मों की कामयाबी की गारंटी ज़रूर बन गया है लेकिन सलीम यही कहते हैं कि उसका सर्वश्रेष्ठ बाहर नहीं आ सका है...वैसा ही सर्वश्रेष्ठ जैसा कि सलीम ने जावेद के साथ मिलकर अमिताभ के लिए ज़ंजीर, दीवार, शोले और त्रिशूल मे अपनी क़लम से निकाला था...
आख़िर में निदा फ़ाज़ली साहब से यहीं कहना चाहूंगा कि अगर अमिताभ जैसे खिलौने में प्रतिभा नहीं होती तो क्या सलीम-जावेद उन्हें सदी का महानायक बना सकते थे...या सलमान आज सलीम जैसे पिता की क़लम के कमाल के बिना ही बॉलीवुड का दबंग कैसे बन गया...निदा साहब इन खिलौनों के पचड़ों को छोडिए...चलिए आप ही के शेर के मुताबिक किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए...
इसी मुद्दे पर क्या सटीक है कार्टूनिस्ट इरफ़ान भाई की ये अभिव्यक्ति...
अक़बरुद्दीन ओवैसी ने निर्मल में तहरीर के दौरान कसाब और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का एक सांस में ज़िक्र किया था...दोनों को निर्दोष लोगों के क़त्ले-आम का गुनहग़ार बताया था...पूछा था कि कसाब को फांसी दे दी गई, मोदी को कब सज़ा मिलेगी? अक़बरुद्दीन ओवैसी का ये कहने का क्या मकसद था, वही जानें...लेकिन निदा फ़ाज़ली जैसे अज़ीम शायर को अमिताभ और कसाब को एक पलड़े में रखने की ज़रूरत क्यों पड़ी? ये चौंकाने वाला है...निदा फ़ाज़ली अकबरुद्दीन ओवैसी की तरह सियासत से नहीं जु़ड़े हैं...निदा फ़ाज़ली ने अपनी शायरी से देश-विदेश में लोगों के दिलों में मकाम बनाया है...
निदा फ़ाज़ली वहीं है, जिनकी क़लम से निकला है-
घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो, यूँ कर लें,
किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाए...
इसी शेर पर निदा फ़ाज़ली का पाकिस्तान के दौरे पर एक मुशायरे के बाद कट्टरपंथी मुल्लाओं ने घेराव कर ऐतराज़ जताया था...उन्होंने निदा फ़ाज़ली से पूछा था कि क्या वो किसी बच्चे को अल्लाह से बड़ा समझते हैं? निदा ने जवाब दिया कि मैं सिर्फ़ इतना जानता हूँ कि मस्जिद इंसान के हाथ बनाते हैं जबकि बच्चे को अल्लाह अपने हाथों से बनाता है...
अब आते हैं, क्या कहा निदा फ़ाज़ली ने अमिताभ और कसाब के बारे में...साहित्यिक पत्रिका को लिखी चिट्ठी में उन्होंने लिखा, 'एंग्री यंगमैन को 70 के दशक तक ही कैसे सीमित किया जा सकता है...मुझे लगता है कि 70 के दशक से अधिक गुस्सा तो आज की जरूरत है और फिर अमिताभ को एंग्री यंगमैन की उपाधि से क्यों नवाज़ा गया? वह तो केवल अजमल आमिर कसाब की तरह बना हुआ खिलौना हैं...एक को हाफिज सईद ने बनाया था, दूसरे को सलीम जावेद की कलम ने गढ़ा था...खिलौने को फांसी दे दी गई, लेकिन उस खिलौने को बनाने वाले को पाकिस्तान खुलेआम उसकी मौत की नमाज पढऩे के लिए आज़ाद छोड़े हुए है...दूसरे खिलौने की भी प्रशंसा की जा रही है लेकिन खिलौना बनाने वाले को भुला दिया गया...
निदा फ़ाज़ली शायद यही कहना चाहते हैं कि अमिताभ को लोगों ने याद रखा और उन्हें गढ़ने वाले सलीम-जावेद को भुला दिया...ये सकारात्मक संदर्भ में है...वहीं नकारात्मक संदर्भ में निदा फ़ाज़ली का तात्पर्य यही हो सकता है कि कसाब को शैतान के तौर पर हमेशा याद रखा जाएगा लेकिन उसे रिमोट से चलाने वाले हाफ़िज़ सईद को इतिहास शायद भुला देगा...
अमिताभ और कसाब को लेकर निदा फ़ाज़ली के इस बयान पर विवाद छिड़ गया है...कुछ इस तुलना को बिल्कुल ग़ैर-ज़रूरी बता रहे हैं...तो कुछ ऐसे सवाल भी दाग़ने लगे हैं कि अमिताभ को लोगों ने अमिताभ बनाया, इसके बदले उन्होंने देश को क्या दिया? मेरी नज़र में ये बहस बेमानी हैं...अमिताभ एक प्रोफेशनल हैं...अपने सारे असाइनमेंट्स के साथ पूरी ईमानदारी के साथ इंसाफ़ करते हैं...ये कहां लिखा है कि कोई अपनी मेहनत से अथाह पैसा कमाता है, तो उसके लिए ज़रूरी है कि वो चैरिटी के लिए मोटी रकम देता रहे...प्रोफेशनल जो टैक्स देता है, वो भी तो समाज से जुड़ी सरकार की कल्याण योजनाओं पर ही खर्च होता है...
अमिताभ बच्चन के काम के प्रशंसक भी हो सकते है, आलोचक भी...ये बात ठीक है कि अमिताभ के करियर को ऊंचाई देने में सलीम-जावेद के स्क्रीन पर गढ़े किरदार विजय ने सबसे अहम भूमिका निभाई...लेकिन क्या सिर्फ यही वजह है कि अमिताभ आज अमिताभ हैं...मैं अमिताभ का कभी बड़ा प्रशंसक नहीं रहा...मैं हिंदी सिनेमा मे दिलीप कुमार से बड़ा वकार किसी और का नही मानता...लेकिन इसका ये मतलब भी नहीं कि अमिताभ ने अपनी मेहनत के दम पर जो हासिल किया, उसे निदा फ़ाज़ली एक झटके में सलीम-जावेद का बनाया खिलौना बता कर खारिज़ कर दें...निदा साहब, आप से मेरा सवाल है कि सलीम-जावेद ही सब कुछ थे तो वो अमिताभ से पहले या अमिताभ के बाद किसी और अदाकार को अपनी क़लम से अमिताभ क्यों नहीं बना पाए...सलीम का बेटा सलमान ख़ान आज बॉलीवुड पर राज कर रहा है तो ये भी सलीम की लेखनी का कमाल नहीं, बल्कि खुद सलमान की बरसों की मेहनत का नतीजा है...
ये बात सही है कि सत्तर के दशक के मध्य में इंदिरा-संजय गांधी राज के ख़िलाफ़ जनाक्रोश चरम पर था...ख़ास तौर पर युवाओं का आक्रोश...रियल लाइफ़ में इस नब्ज़ को लोकनायक जयप्रकाश नारायण पकड़ कर देश की राजनीति को नई दिशा दे रहे थे...वहीं रील लाइफ़ में एंग्री यंगमैन विजय के ज़रिए सलीम-जावेद एक के बाद एक हिट फिल्में देकर भुना रहे थे...जो युवा जेपी की हुंकार पर कुछ भी करने को तैयार था...वही युवा बड़े परदे पर अमिताभ को सिस्टम से लड़ते देखकर तालियां पीटता था...
निदा फ़ाज़ली का कहना है कि सत्तर के दशक से ज़्यादा गुस्से की आज़ ज़रूरत है, फिर अमिताभ को एंग्री यंगमैन की उपाधि से क्यो नवाजा गया? पिछले साल जनता के इसी गुस्से की लक़ीर पर अन्ना हज़ारे चलते दिखे थे...लेकिन अन्ना जेपी नहीं बन सके...वो अपने ही लोगों की फूट का शिकार हो गए...आज बड़े परदे पर भी कोई विजय नज़र नहीं आता...शायद यही कसक सलीम के दिल मे भी है...उनका बेटा सलमान आज फिल्मों की कामयाबी की गारंटी ज़रूर बन गया है लेकिन सलीम यही कहते हैं कि उसका सर्वश्रेष्ठ बाहर नहीं आ सका है...वैसा ही सर्वश्रेष्ठ जैसा कि सलीम ने जावेद के साथ मिलकर अमिताभ के लिए ज़ंजीर, दीवार, शोले और त्रिशूल मे अपनी क़लम से निकाला था...
आख़िर में निदा फ़ाज़ली साहब से यहीं कहना चाहूंगा कि अगर अमिताभ जैसे खिलौने में प्रतिभा नहीं होती तो क्या सलीम-जावेद उन्हें सदी का महानायक बना सकते थे...या सलमान आज सलीम जैसे पिता की क़लम के कमाल के बिना ही बॉलीवुड का दबंग कैसे बन गया...निदा साहब इन खिलौनों के पचड़ों को छोडिए...चलिए आप ही के शेर के मुताबिक किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए...
इसी मुद्दे पर क्या सटीक है कार्टूनिस्ट इरफ़ान भाई की ये अभिव्यक्ति...
दो ही मतलब हो सकते हैं इसके..पहला ये कि निदा फाजली कहना जो चाहते थे उसके लिए उदारहण गलत दे दिया है उन्होंने। ऐसा अक्सर होता है।
जवाब देंहटाएंदूसरा कारण ये हो सकता है कि इकबाल की तरह उनका दिमाग खराब हो गया है औऱ वो सही मायने में अब रिटायर हो जाएं। याद होगा सबको कि इकबाल ने सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान लिखा था..फिर दिमाग फिर जाने यानि पागल हो जाने के कारण पाकिस्तान की मांग कर देश के दो टुकड़े कर करोड़ो लोगों का कत्लेआम कराने का सामान किया था।
आजकल तुलनाएं बहुत हो रही हैं।पहले गडकरी ने स्वामी विवेकानंद और दाऊद के आईक्यू की तुलना कर विवाद खडा कर दिया था ।ये तुलना भी बेतुकी हैं ।वैसे आपकी इस बात से मैं सहमत हूँ कि अमिताभ एंग्री यंगमैन को जिस तरह पर्दे पर साकार कर पाए उसमें खुद उनकी प्रतिभा का भी हाथ था।लेकिन ये भी सच है कि अमिताभ ने अपना सर्वश्रेष्ठ तो बहुत बाद में दिया है खासकर पा और ब्लैक जैसी फिल्मों के जरिये।उनकी एंकरिंग तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर की है।
जवाब देंहटाएंभाई, कुछ निदा साहब ने उदाहरण गलत रखा और कुछ लोगों ने उसको गलत समझा... थोड़ी-थोड़ी गलती सभी की है। निदा सा'ब का मंतव्य ज्ञानरंजन जी की तुलना अमिताभ बच्चन से किया जाना गलत बताना था क्योंकि ज्ञानरंजन जी को खुद उनके लिखे साहित्य ने ऊंचाई पर पहुंचाया है जबकि अमिताभ बच्चन अकेले दम पर कभी सुपर स्टार नहीं बन सकते थे। उनको बनाने में उनकी प्रतिभा के अलावा बहुत से लोगों का हाथ है, उनमे सलीम-जावेद की स्क्रिप्ट महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। सही समय पर सही फ़िल्में, सही निर्देशक और कहानी पाना हर स्टार को नसीब नहीं होता यह आप भी मानते होंगे।
जवाब देंहटाएंवैसे आप इस पक्ष को नज़रअंदाज मत करिए कि-
''खिलौने को फांसी दे दी गई, लेकिन उस खिलौने को बनाने वाले को पाकिस्तान खुलेआम उसकी मौत की नमाज पढऩे के लिए आज़ाद छोड़े हुए है...'' यह निदा फाजली सा'ब ने ही पत्र में लिखा है जो आपने भी लगाया है, फिर आप नकारात्मक अर्थ कैसे ले सकते हैं भला?
आपने लिखा कि - ''वहीं नकारात्मक संदर्भ में निदा फ़ाज़ली का तात्पर्य 'यही' हो सकता है कि कसाब को शैतान के तौर पर हमेशा याद रखा जाएगा लेकिन उसे रिमोट से चलाने वाले हाफ़िज़ सईद को इतिहास शायद भुला देगा...'' इसका मतलब यह कोई समझदार इंसान भला कैसे लगा सकता है यह मेरे लिए भी ताज्जुब की बात है, क्योंकि देखा जाए तो इस बात का सीधा अर्थ बनता है कि भारत को हाफ़िज़ सईद जो इस सबका मास्टर माइंड था उसको पकड़ने और सज़ा देने की जरूरत पहले थी, सिर्फ कसाब को फांसी पर लटका देने से बात नहीं बनेगी, जब तक सईद जैसा शैतान जिंदा रहेगा वह कई और कसाब बनाता रहेगा।
मेरी कल ही निदा सा'ब से इ विषय में बात हुई और उनका यही सब कहना है, उनके कहे को गलत ढंग से लिया जा रहा है जो उन्होंने 'पाखी' के सम्पादक को एक दूसरा पत्र लिखकर स्पष्ट भी किया है।
दीपक भाई,
हटाएंनिदा साहब का मेरे दिल में भी बहुत ऐहतराम है...उन्होंने जो नाम कमाया है, वो अपने दम पर कमाया है...उनका खुद का कहना है कि वो सूरदास, कबीर को पढ़ कर ही प्रभावित हुए थे कि कैसे आसान शब्दों से लोगों के दिलों में उतरा जा सकता है...लेकिन जैसा कि आप भी कह रहे हैं कि निदा साहब ने कुछ उदाहरण गलत रखा और कुछ लोगों ने उसे ग़लत समझा...मै भी यही कह रहा हूं कि अमिताभ और कसाब का एक साथ ज़िक्र किया ही नहीं जाना चाहिए था...
रही बात आपके इस सवाल कि...
आपने लिखा कि - ''वहीं नकारात्मक संदर्भ में निदा फ़ाज़ली का तात्पर्य 'यही' हो सकता है कि कसाब को शैतान के तौर पर हमेशा याद रखा जाएगा लेकिन उसे रिमोट से चलाने वाले हाफ़िज़ सईद को इतिहास शायद भुला देगा...'' इसका मतलब यह कोई समझदार इंसान भला कैसे लगा सकता है यह मेरे लिए भी ताज्जुब की बात है, क्योंकि देखा जाए तो इस बात का सीधा अर्थ बनता है कि भारत को हाफ़िज़ सईद जो इस सबका मास्टर माइंड था उसको पकड़ने और सज़ा देने की जरूरत पहले थी, सिर्फ कसाब को फांसी पर लटका देने से बात नहीं बनेगी, जब तक सईद जैसा शैतान जिंदा रहेगा वह कई और कसाब बनाता रहेगा।
यहीं तो मैं भी कहना चाहता हूं कि सलीम-जावेद अगर ज़िंदा हैं (ऊपर वाला उन्हें लंबी उम्र दे),तो क्या वो कई और अमिताभ बना सकते थे...बेशक इनकी जोड़ी टूट गई, तो चलो किसी को आधे-आधे अमिताभ ही बना देते...वैसे ऊपर इसी संदर्भ में भाई राजन की बात भी गौर करने लायक है...
जय हिंद...
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंअमिताभ बच्चन पर निशाना क्यों साधा गया है, यह सभी समझते हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि वे स्वयं निदा फाजली अपनी कट्टरवादी सोच के गिरफ्त में आ गए हैं। ओवेसी मोदी पर सीधे निशाना साध रहे थे और निदा अमिताभ बच्चन के माध्यम से।
जवाब देंहटाएंनिदा फ़ाज़ली साहब की गलती यही है कि उन्होंने कसाब और अमिताभ का नाम एक साथ एक लहजे में लिया। यह कोई तुलना हो ही नहीं सकती। कसाब खिलौना हो सकता है , लेकिन अमिताभ कोई खिलौना नहीं . अपनी मेहनत और लाज़वाब अदाकारी के आधार पर सब के दिलों पर राज कर रहा है। एंग्री यंग मेन एक किरदार की इमेज है, इस की उपाधि भी मिडिया ने ही दी है। वर्ना के बी सी में स्वयं अमिताभ ने कहा है -- अरे भाई हकीकत की दुनिया में मैं तो बड़ा डरपोक आदमी हूँ। असल में हम सभी हैं। लेकिन कला पूजनीय होती है। इसीलिए अमिताभ का कद भी लार्जर देन लाइफ़ है, और रहेगा।
जवाब देंहटाएंतुलना एक ऐसी चीज़ है जो अपने आद्रशों को ऊँचा दिखाने के लिये और दूसरों के आदर्शों को नीचा दिखाने के लिये की जाती है। अमिताभ के प्रति अन्याय में कोई आपत्ति नहीं पर कसाब के प्रति इनका स्नेह संदिग्ध है।
जवाब देंहटाएंबहुत से प्रश्नों के उत्तर मांगती हुई पोस्ट.......
जवाब देंहटाएंकसाब के प्रति इनका स्नेह संदिग्ध है...
जवाब देंहटाएंनिदा फ़ाज़ली से चूक सिर्फ अमिताभ और कसाब का नाम साथ लेने से हुई है...अमिताभ को लेकर उनके आकलन से मेरी राय अलग है...और जहा तक कसाब की बात है तो उसको लेकर निदा फ़ाज़ली जैसे सुलझे इन्सान का कोई स्नेह नहीं हो सकता...वो भी यही चाहते हैं कि कसाब के आका हाफ़िज़ सईद का हश्र भी कसाब जैसा हो और जल्दी हो...लेकिन पाकिस्तान ये होने नहीं देना चाहता...हाफ़िज़ सईद भारत का गुनहग़ार है, इसलिए भारत को ही उसे ठिकाने लगाना चाहिए...लेकिन भारत सॉफ्ट स्टेट की छवि से अलग जाकर ऐसा कोई
जवाब देंहटाएंसख्त कदम उठाएगा, इसमें संदेह है...
जय हिद...
मुझे नहीं पता निदा साहब ने किस तरह यह बात कही, हो सकता है उनकी बात का गलत मतलब निकला गया हो. मैं भी निदा साहब की प्रसंशक हूँ परन्तु मेरे विचार से भी यह तुलना ही गलत थी. किसी भी व्यक्ति की सफलता में घर में काम करने वाले कर्मचारियों से लेकर माता पिता तक, अनगिनत लोगों का हाथ होता है.परन्तु इसका मतलब यह नहीं कि उस व्यक्ति की प्रतिभा और मेहनत को नजरअंदाज कर दिया जाये. फिर तो इसे इस तरह भी दखा जा सकता है कि सलीम जावेद को अमिताभ की अदायगी ने बनाया क्योंकि उनके संवादों को अमिताभ की कुशल अदायगी न मिली होती तो...और भी बहुत से लोगों ने सलीम जावेद की स्क्रिप्ट के साथ काम किया है.और अमिताभ ने उनकी स्क्रिप्ट के बिना भी खुद को साबित कारके दिखाया है.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंकसाब और अमिताभ की तुलना उनकी कुत्सित मानसिकता का प्रचंड उदहारण है . स्वर्ण पात्र में रखने के बाद भी जहर अपना स्वाभाव नहीं बदलता. उन्होंने क्या सोचकर ऐसी तुलना की ये आम जनमानस जानता है उसको तोड़ मरोड़कर सफाई किसी के गले शायद ही उतरे ..जावेद अख्तर के साहब जादे फरहान ने भी कसर थोड़े छोड़ी होगी सुपरस्टार बनने की.
जवाब देंहटाएंकसाब को फ़ान्सी का दर्द भी हो सकता है ।
हटाएंShukriya Khushdeep.
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निदा फाजली साहब ने जो कुछ कहा, उस से असहमत तो हुआ जा सकता है, यह हर किसी का अधिकार है... पर इस बात के लिये उनको कटघरे में ही खड़ा कर देना ???... यह तो अतिवाद ही हुआ...
...
musalmaan pahele kattar musalmaan hai ....baad main aur kuch....
जवाब देंहटाएंhindu pahale insaan hai...aur baad main aur kuch...
jai baba banaras....
अशफ़ाक उल्ला ख़ान, ख़ान अब्दुल गफ्फार ख़ान, अबुल कलाम आज़ाद, डॉ ज़ाकिर हुसैन, कैप्टन शाहनवाज़, कैप्टन अब्दुल हमीद, अब्दुल कलाम, दिलीप कुमार (यूसूफ़ ख़ान),बिस्मिल्लाह ख़ां, जा़किर हुसैन, अमज़द अली ख़ान, असगर अली इंजीनियर, कैफ़ी आज़मी, शबाना आज़मी, जावेद अख़्तर, नवाब पटौदी, नसीरूद्दीन शाह, वहीदा रहमान, शाहरुख़ ख़ान,आमिर ख़ान, सलमान ख़ान....
हटाएंकौशल मिश्रा जी, लिस्ट गिनाना शुरू करूंगा तो बहुत लम्बी हो जाएगी...
इस दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं...अच्छे या बुरे...और दुनिया का कोई भी मज़हब इससे अलग नहीं है...जो इनसान होते हैं, वो दूसरे इनसानों को मज़हब से नहीं, सिर्फ़ इनसानियत के चश्मे से देखते हैं...
जय हिंद...
inkee jadoo main ghus ke dekho tab pata lagaga ki inkee aslee pehchaan kiya hai...suruaat salmaan khan se kar leegeeye...
हटाएंjai baba banaras...
कवि/शायर बहुत सारी उपमायें पेश करते हैं। कोई सटीक होती हैं कुछ इधर-उधर हो जाती हैं। शायर को अपनी बात समझानी पड़ी इसका मतलब वो अपनी बात कायदे से कह नहीं पाया। इस मुद्दे पर इससे ज्यादा सोचना मुझे लगता है फ़ालतू का काम है।
जवाब देंहटाएंANUP JEE SE SAHMAT.....UMDA LEKHNI....
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