एक मल्टीनेशन कंपनी का सीईओ अपनी नई जगुआर कार पर साइडलेन से गुज़र रहा था...वो पार्क की गई कारों के बीच से निकलते-दौड़ते इक्का-दुक्का बच्चों को देख रहा था...साइडलेन में होने के बावजूद गाड़ी रफ्तार में थी...तभी उसकी कार के एक दरवाज़े पर पत्थर लगने जैसी आवाज़ सुनाई दी...सीईओ ने झट से ब्रेक लगाए...आगबबूला कार से निकला..आसपास देखा...एक बच्चा दिखाई दिया...सीईओ उसे पकड़ कर ज़ोर से डांट पिलाने लगा...जानते हो तुमने क्या किया है...ये कौन सा खेल है...नई कार का सत्यानाश कर दिया... डेंट ठीक कराने में कितने पैसे लगेंगे, कुछ पता भी है...
बच्चे ने दयायाचना के अंदाज़ मे कहा...आई एम रियली सारी सर, लेकिन मैं समझ नहीं पा रहा था कि क्या करूं...मैंने पत्थर इसलिए फेंका क्योंकि कोई रूक नहीं रहा था...ये कहते हुए बच्चे की आंखों के आंसू उसके गालों तक छलक आए थे...
बच्चे ने फिर उंगली से एक पार्क की हुई कार के साइड में इशारा किया...ये मेरा भाई है...पगडंडी से व्हील चेयर का पहिया फिसलने की वजह से नीचे गिर गया है..उसे चोट भी आई है...लेकिन उसका वजन ज़्यादा होने की वजह से मैं उसे उठा नहीं पा रहा...क्या आप उसे व्हील चेयर पर बिठाने में मेरी मदद करेंगे...
सुबकते बच्चे के सामने सीईओ अब निशब्द खड़ा था...उसे अपने गले में कुछ अटका महसूस हुआ..जल्दी ही वो संभला और उसने बच्चे के भाई को व्हील चेयर पर बिठाया...जेब से रूमाल निकाल कर मिट्टी के दागों को साफ़ किया...बच्चे के भाई को कुछ खरोचें ही आई थी...कोई गंभीर बात नहीं थी...बच्चे ने फिर सीईओ को शुक्रिया कहा..,और भाई की व्हीलचेयर को धकेलते हुए पगडंडी पर अपने घर की तरफ़ चल दिया...सीईओ कुछ देर वहीं खड़ा ये दृश्य देखता रहा...फिर वो धीरे कदमों से अपनी कार की तरफ बढ़ा...
कार के दरवाज़े पर अच्छा खासा डेंट पड़ गया था...लेकिन सीईओ ने उस डेंट को कभी सही नहीं कराया...सिर्फ इसलिए कि ये संदेश उसे हमेशा मिलता रहे...अपनी ज़िंदगी में कभी इतनी रफ्तार से नहीं भागो कि दूसरों को तुम्हारा ध्यान खींचने के लिए पत्थर फेंकना पड़ जाए...ऊपर वाला हमारी आत्मा के साथ बुदबुदाता रहता है...हमारे दिल से बात करता है...जब हमारे पास उसे सुनने के लिए वक्त नहीं रहता तो वो किसी पत्थर का सहारा लेता है..अब ये हमारे पर है कि हम उसे सुने या न सुने...
स्लॉग चिंतन-
अगर आप किसी की खुशियों की इबारत लिखने वाली पेंसिल नहीं बन सकते तो दूसरों के दर्द मिटाने वाले रबर बनने की ही कोशिश कीजिए...
जिसके पैर जमीन पर हों, वही दौड़ने का सच्चा अधिकारी है.
जवाब देंहटाएंकोई सहृदय रहा होगा वरना आंसुओं से पिघलने वाले मुश्किल ही होते हैं !
जवाब देंहटाएंअतिसुन्दर !
रफ़्तार .. नियंत्रण से परे न हो
जवाब देंहटाएंअच्छा संदेश है..
जवाब देंहटाएंहमेशा याद रखने लायक बात कही है ।
जवाब देंहटाएंवाह! ज़बरदस्त सन्देश दिया है आपने खुशदीप भाई... बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंसमझदार को इशारा ही काफ़ी है....
जवाब देंहटाएंइसी में सब की भलाई है ....
जवाब देंहटाएंजीवन के कुछ ऐसे ही डेंट हम भी नहीं ठीक करा रहे हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत सन्देश..पर क्या यह सच्ची घटना है ? यदि हाँ तो जानना सुखद होगा कि ऐसा सी ई ओ कौन है.
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्रेरक संदेश। बहुत अच्छी पोस्ट है।
जवाब देंहटाएंअपनी ज़िंदगी में कभी इतनी रफ्तार से नहीं भागो कि दूसरों को तुम्हारा ध्यान खींचने के लिए पत्थर फेंकना पड़ जाए...ऊपर वाला हमारी आत्मा के साथ बुदबुदाता रहता है...हमारे दिल से बात करता है...जब हमारे पास उसे सुनने के लिए वक्त नहीं रहता तो वो किसी पत्थर का सहारा लेता है..अब ये हमारे पर है कि हम उसे सुने या न सुने...
जवाब देंहटाएंअच्छा सन्देश देती पोस्ट .जाके पैर न फटी बिवाई ,वो क्या जाने पीर पराई .
बहुत खूबसूरत सन्देश......
जवाब देंहटाएंप्रेरक
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट के लिये आभार
प्रणाम
बहुत प्रेरक... संदेशपरक प्रसंग...
जवाब देंहटाएंसादर आभार.
अपनी ज़िंदगी में कभी इतनी रफ्तार से नहीं भागो कि दूसरों को तुम्हारा ध्यान खींचने के लिए पत्थर फेंकना पड़ जाए...ऊपर वाला हमारी आत्मा के साथ बुदबुदाता रहता है...हमारे दिल से बात करता है...जब हमारे पास उसे सुनने के लिए वक्त नहीं रहता तो वो किसी पत्थर का सहारा लेता है..अब ये हमारे पर है कि हम उसे सुने या न सुने...
जवाब देंहटाएंप्रेरक पोस्ट …………एक गंभीर संदेश देती हुई।
ऊपर वाला हमारी आत्मा के साथ बुदबुदाता रहता है...हमारे दिल से बात करता है...जब हमारे पास उसे सुनने के लिए वक्त नहीं रहता तो वो किसी पत्थर का सहारा लेता है..अब ये हमारे पर है कि हम उसे सुने या न सुने..
जवाब देंहटाएंउफ्फ्फ......
कितना बड़ा सन्देश है ये .....
शायद वो पत्थर ही था ....!!
अच्छा संदेश
जवाब देंहटाएंबहुत हि सही संदेश दिया है आपने
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