कटोरे पे कटोरा, बेटा बाप से भी गोरा...खुशदीप


बचपन में ये कहावत सुना करता था...जनलोकपाल या लोकपाल को लेकर देश में जो हाय-तौबा मची है, उसे देखते हुए वो कहावत अचानक फिर याद आ गई...अपना मतलब साफ करूं, उससे पहले एक किस्सा...शायद ये किस्सा पढ़ने के बाद मेरी बात ज़्यादा अच्छी तरह समझ आ सके...

मक्खन जी को शेरो-शायरी की एबीसी नहीं पता...लेकिन एक बार जिद पकड़ ली कि शहर में हो रहा मुशायरा हर हाल में सुनेंगे...बड़ा समझाया कि तुम्हारी सोच का दायरा बड़ा है...ये मुशायरे-वुशायरे उसमें फिट नहीं बैठते...लेकिन मक्खन ने सोच लिया तो सोच लिया...नो इफ़, नो बट...ओनली जट..पहुंच गए जी मुशायरा सुनने...मुशायरे में जैसा होता है नामी-गिरामी शायरों के कलाम से पहले लोकलछाप शायर माइक पर गला साफ कर रहे थे...ऐसे ही एक फन्ने मेरठी ने मोर्चा संभाला और बोलना शुरू किया...

कुर्सी पे बैठा एक कुत्ता....

पूरे हॉल में खामोशी लेकिन अपने मक्खन जी ने दाद दी...वाह, वाह...

आस-प़ड़ोस वालों ने ऐसे देखा जैसे कोई एलियन आसमां से उनके बीच टपक पड़ा हो...उधर फन्ने मेरठी ने अगली लाइन पढ़ी...

कुर्सी पे बैठा कुत्ता, उसके ऊपर एक और कुत्ता...

हाल में अब भी खामोशी थी और लोगों के चेहरे पर झल्लाहट साफ़ नज़र आने लगी...लेकिन मक्खन जी अपनी सीट से खड़े हो चुके थे और कहने लगे...

भई वाह, वाह, वाह क्या बात है, बहुत खूब..

अब तक आस-पास वालों ने मक्खन जी को हिराकत की नज़रों से देखना शुरू कर दिया था...फन्ने मेरठी मंच पर अपनी ही रौ में बके जा रहे थे...

कुर्सी पे कुत्ता, उसके ऊपर कुत्ता, उसके ऊपर एक और कुत्ता...

ये सुनते ही मक्खनजी तो अपनी सीट पर ही खड़े हो गए और उछलते हुए तब तक वाह-वाह करते रहे जब तक साथ वालों ने खींचकर नीचे नहीं पटक दिया...

फन्ने मेरठी का कलाम जारी था..

.कुर्सी पे कुत्ता, उस पर कुत्ता, कुत्ते पर कुत्ता, उसके ऊपर एक और कुत्ता...

अब तक तो मक्खन जी ने फर्श पर लोट लगाना शुरू कर दिया था...इतनी मस्ती कि हाथ-पैर इधर उधर मारना शुरू कर दिया..मुंह से वाह के शब्द बाहर आने भी मुश्किल हो रहे थे...

एक जनाब से आखिर रहा नहीं गया...उन्होंने मक्खन से कड़क अंदाज में कहा...

ये किस बात की वाह-वाह लगा रखी है...मियां ज़रा भी शऊर है शायरी सुनने का या नहीं...इतने वाहिआत शेर पर खुद को हलकान कर रखा है...

मक्खन ने उसी मस्ती में उठ कर बड़ी मुश्किल से कहा...

ओ...तू शेर को मार गोली...बस कुत्तों का बैलेंस देख...



किस्सा सुना दिया...अब आता हूं असली बात पर...एक सीधा सा सवाल है कि अगर लोकपाल या उसके सदस्य भी भ्रष्ट निकल गए तो क्या होगा...टीम अन्ना के जनलोकपाल बिल का कहना है कि लोकपाल पर नज़र रखने के लिए एक और स्वतंत्र संस्था होनी चाहिए...अब मेरा तर्क (या कुतर्क) है कि अगर वो स्वतंत्र संस्था भी भ्रष्ट हो गई तो...तो फिर उसके ऊपर क्या एक और संस्था होगी...इसीलिए कह रहा हूं कि नई संस्था से भी ज़्यादा ज़रूरी है कि मौजूदा क़ानूनों का ही सख्ती, ईमानदार ढंग से पालन किए जाना...सरकार और राजनीतिक दलों पर देश की जनता का इतना प्रैशर रहना चाहिए कि ज़रा सा गलत काम किया नहीं कि गया काम से...पिछली लोकसभा में दस सांसद (राज्यसभा का भी एक सांसद) पैसे लेकर प्रश्न पूछने के मामले में अपनी सदस्यता खो बैठे थे...उनकी सदस्यता किसी लोकपाल ने नहीं संसद की ही एथिक्स कमेटी ने छीनी थी...उसी लोकसभा में बीजेपी का सांसद बाबू भाई कटारा कबूतरबाज़ी में दिल्ली एयरपोर्ट से पकड़ा गया तो पार्टी ने उसे निष्कासित किया...ऐसा ही दबाव हर वक्त हर नेता पर रहना चाहिए...उसे डर रहे कि गलत काम किया तो उसके घर के बाहर ही हज़ारों का हुजूम आकर जमा हो जाएगा...थोड़ा लॉजिकल होइए, जनलोकपाल से इतनी उम्मीदें मत पालिए कि बाद में निराश होना पड़े...

आखिर में ज़िक्र करना चाहूंगा सतीश पंचम जी की एक पोस्ट का...इस पोस्ट में सतीश जी ने दिवंगत शरद जोशी जी के दो दशक पहले लोकायुक्त नाम से लिखे व्यंग्य को उद्धृत किया है...मेरी विनती है इस लेख को सभी को ज़रूर पढ़ना चाहिए...

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Lokpal : where the buck will stop...Khushdeep


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18 टिप्पणियाँ
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  1. जन लोकपाल के लिए आंदोलन ने जनता को जगाया है। अभी जो सैलाब नजर आ रहा है वह बहुत मामूली है। अभी संघर्ष बहुत शेष है। बड़ा सैलाब आना बाकी है।
    संघर्ष उस में शामिल लोगों को तपाता है, निखारता है। जन लोकपाल नहीं, भ्रष्टाचार के विरुद्ध उठ खड़ा हुआ यह सैलाब आशा जगाता है।
    भ्रष्टाचार जन लोकपाल से नहीं, जागे हुए लोगों से समाप्त होगा। जनलोकपाल तो उस बदलाव की प्रक्रिया का आरंभ मात्र है जो भारत की जरूरत बन चुका है।
    भारत को जनता का जनतंत्र चाहिए। यह सैलाब उसी ओर बढ़े तब बात बनेगी। अभी तो भीड़ एकत्र हो रही है। संगठित समूहों की कमी है। अभी नगरीय और ग्रामीण श्रमजीवी इसे सिर्फ छू रहे हैं। इस में सम्मिलित नहीं हुए हैं।

    जनता का यह जागरण अभियान को बढ़ना चाहिए। उस हद तक कि वह जनता के जनतंत्र की मांग करे और उसे स्थापित करे।

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  2. लोकपाल बने या जन लोकपाल पर इस आंदोलन ने सेकुलर गिरोह की चूलें तो हिला ही दी|

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  3. द्विवेदी जी के विचारों से पूर्णतया सहमत हूँ.
    संशय तो हर बात में हो सकता है.
    यदि सड़क पर चलने मे दुर्घटना का
    संशय हो,तो भी सड़क पर चला ही जाता है.
    हाँ,सावधानी की जरुरत अवश्य है.

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  4. मुझे तो मख्खन का ध्यान पसंद आया ......
    वाह मख्खने वाह ...तूने कर दिया कमाल

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  5. बधाई,खुशदीपजी,

    ऐसे संशय जाग्रती और विवेक का परिणाम होते है।
    अंधभक्ति लोगों में अभिमान जगा देती है। संशय ईमानदार लोगो को भी सावधान और सतर्क रहने की प्रेरणा देते है।

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  6. भाई ख़ुशदीप जी ! आप कह रहे हैं कि ईमानदारी से मौजूदा क़ानूनों को लागू करा दिया जाए तो कोई समस्या ही नहीं आएगी लेकिन आपने यह नहीं बताया कि यह ईमानदारी लोगों में आएगी कैसे और कोई ईमानदार बनकर अपना भविष्य आखि़र बर्बाद क्यों करेगा ?
    लोकपाल बिल बनने से कुछ हो या न हो लेकिन लोगों को कुछ पा लेने का अहसास तो हो ही जाएगा।
    हम तो शुरू से ही कह रहे हैं कि सच्चे रब से डरो, जैसी उसकी ढील है वैसी ही सख्त उसकी पकड़ है।
    अभी इंटेलेक्चुअल बने घूम रहे हैं लेकिन अगर भूकंप, बाढ़ और युद्धों ने घेर लिया तो कोई भी फ़िलॉस्फ़र बचा न पाएगा।
    ईमानदारी के लिए ईमान चाहिए और वह रब को माने बिना और रब की माने बिना मिलने वाला नहीं है।
    लोग उससे हटकर ही अपने मसले हल कर लेना चाहते हैं,
    यही सारी समस्या है।
    ख़ैर ,
    आज सोमवार है और ब्लॉगर्स मीट वीकली 5 में आ जाइये वहां भी आपकी यही पोस्ट लगी हुई है और वहां शेर भी हैं।

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  7. जिस तरह से जन जन में भ्रष्टाचार व्याप्त है , इसे देखकर तो यही लगता है कि लोकपाल का हाल भी वही होने वाला है जो आज न्यायालयों का है ।
    क्यों न भ्रष्टाचार को ख़त्म करने के लिए एक मंत्रालय का ही गठन कर दिया जाये ।
    शुभ जन्माष्टमी ।

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  8. आज कुशल कूटनीतिज्ञ योगेश्वर श्री किसन जी का जन्मदिवस जन्माष्टमी है, किसन जी ने धर्म का साथ देकर कौरवों के कुशासन का अंत किया था। इतिहास गवाह है कि जब-जब कुशासन के प्रजा त्राहि त्राहि करती है तब कोई एक नेतृत्व उभरता है और अत्याचार से मुक्ति दिलाता है। आज इतिहास अपने को फ़िर दोहरा रहा है। एक और किसन (बाबु राव हजारे) भ्रष्ट्राचार के खात्मे के लिए कौरवों के विरुद्ध उठ खड़ा हुआ है। आम आदमी लोकपाल को नहीं जानता पर, भ्रष्ट्राचार शब्द से अच्छी तरह परिचित है, उसे भ्रष्ट्राचार से मुक्ति चाहिए।

    आपको जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं एवं हार्दिक बधाई।

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  9. ऐसा तो नहीं कि आम मानस में...वर्तमान के हालात को देखते हुए...लोकतंत्र और संविधान की अपर्याप्तता...इनसे परे निकलने की... अधिक उचित विकल्प तलाशने की आवश्यकता महसूस की जाने लगी है...

    बेहतर...

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  10. जब सरकार अपना बिल लाएगी तो थामस जैसे लोग ही लोकपाल बनेगे इसलिए तो जन लोकपाल की बात हो रही है | जब सांसद की जगह पूर्व न्यायाधीश लोग चुनेगे तो अच्छे लोग चुने आयेंगे | बाकि बाते आप जान सकते है बस जरा से कष्ट करना होगा और अपने ब्लॉग का मोह त्याग कर जरा जन लोकपाल के बारे में पूरी जानकारी देने और आप के सवालो के जवाब देने वाले सईटो पर जाना होगा | बाकि और क्या कहे आप ने तो कह ही दिया की ये कुतर्क है अब कुतर्को का जवाब तो नहीं दिया जा सकता है | और दिनेश जी ने काफी कुछ कह दिया है समझना ना समझना तो आप के ऊपर है |

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  11. दिनेश राय जी की बात से पूर्णतः सहमत..

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  12. हम तो कुत्तों का बैलेंस देख ही खुश हो लिए
    बड़े प्यारे कुत्ते हैं .....

    :))

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  14. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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  15. aap keh rahe hai ki jo jan lokpal bill banega usme bhi agar log bhrast hue to kya karenge, to sir isme 2 cheeze ho sakti hai ya to wo bhrast honge ya nahi parantu abhi jo haal hai sarkar ka(congress ya bjp) wo to bhrast hi hai , isliye hum jan lokpal bill ka samarthan kar rahe hai sayad situation sudhar jaye , so be positive

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  16. भ्रष्‍ट होने के डर से तो देश में कोई भी संस्‍था बन ही नहीं सकती। सुप्रीम कोर्ट के लिए भी यही कहा जा सकता है और चुनाव आयोग के लिए भी। इस तर्क और कुतर्क से कोई कानून नहीं बनते।

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