आज बहुत संभव है कि जनलोकपाल को लेकर चल रहा गतिरोध टूट जाए...टीम अन्ना ने पहले ही साफ़ कर दिया था कि अन्ना का अनशन आमरण अनशन नहीं है...जब तक उनका स्वास्थ्य अनुमति देगा, वो अनशन करेंगे...अनशन के छठे दिन अन्ना के खून और यूरिन में कीटोन मिलना संकेत है कि अन्ना के शरीर ने आवश्यक जैविक क्रियाओं की ऊर्जा के लिए चर्बी का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है...ऐसे में सरकार और टीम अन्ना दोनों को ही चाहिए कि अन्ना का अनशन समाप्त कराने के लिए प्रयास करे...हो सकता है संसद में सरकार आज कोई बड़ी घोषणा करे...
टीम अन्ना के सदस्य प्रशांत भूषण पहले ही कह चुके हैं कि अच्छे सुझाव आते हैं तो उन पर विचार किया जा सकता है...सभी परिस्थितियों पर विचार करने के बाद मुझे लग रहा है कि सरकार के लोकपाल और टीम अन्ना के जनलोकपाल से कहीं ज़्यादा लॉजिक नेशनल कैंपेन फॉर पीपुल्स राइट फॉर इन्फॉर्मेशन (एनसीपीआरआई) के मंच तले लाए अरुणा राय के बिल में है...जिसमें एक की जगह पांच लोकपाल का सुझाव दिया गया है...
1.राष्ट्रीय भ्रष्टाचार निवारण लोकपाल- इसके दायरे में प्रधानमंत्री को कुछ शर्तो के साथ लाया जाए...प्रधानमंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला चलाने का फैसला लोकपाल की पूर्ण पीठ करे और सुप्रीम कोर्ट की पूर्ण पीठ अनुमोदन करे. सांसद और वरिष्ठ मंत्री लोकपाल के दायरे में रहें...
3.केंद्रीय सतर्कता लोकपाल- दूसरी व तीसरी श्रेणी के अफसरों के भ्रष्टाचार के लिए सतर्कता आयोग को ही और अधिक ताकतवर बनाया जाए...
4.लोकरक्षक कानून लोकपाल- भ्रष्टाचार की शिकायत करने वाले लोगों की सुरक्षा मुहैया कराने के लिए...
5.शिकायत निवारण लोकपाल-जन शिकायतों के जल्द निपटारे के लिए...
मेरी राय में एक जनलोकपाल पर सारा लोड डालने की जगह कम से कम पांच लोकपाल ज़्यादा बेहतर ढंग से काम तो कर सकेंगे...
अरुणा राय की टीम ने जो लोकपाल बिल तैयार किया है इसमें प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाने की बात तो है लेकिन उनका मसौदा न्यायपालिका को इस दायरे में रखने के समर्थन नहीं करता है...जबकि अन्ना के जनलोकपाल बिल में प्रधानमंत्री और न्यायपालिका दोनों को दायरे में रखने की बात कही गयी है जबकि सरकारी बिल प्रधानमंत्री और न्यायपालिका दोनों का विरोध कर रहा है...टीम अन्ना चाहती है कि लोकपाल केंद्र सरकार के कर्मचारियों के मामले को देखे जबकि एनसीपीआरआई का मानना कि राज्य सरकार के कर्मचारियों के मामलों को लोकायुक्त देखे. इसी तरह टीम अन्ना का मानना है कि शिकायतों को सुनने के लिए लोकपाल के अधीन एक अधिकारी होना चाहिए जबकि एनसीपीआरआई एक अलग शिकायत निवारण तंत्र चाहता है.
इस वक्त ज़रूरत है अपनी जिद पर अड़े रहने के बजाए एक दूसरे की बातों को शांत मन से सुना जाए...जिसकी जो बात सबसे अच्छी है उसे ही फाइनल लोकपाल बिल में जगह दी जाए...मकसद भ्रष्टाचार को मिटाना होना चाहिए एक दूसरे को नहीं...गांधी का यही फर्क है कि वो अपने आचरण से विरोधियों को भी अपना मुरीद बनाने का हुनर रखते थे...मान लीजिए सरकार या संसद मन से नहीं दबाव में टीम अन्ना के बिल को ही पारित कर देती है...तो ये कसक आगे चलकर कहीं न कहीं निकलेगी ज़रूर...ज़रूरत भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ सबके साथ मिलकर चलने की है...
अब आता हूं अपने (कु) तार्किक प्रश्न पर...
अनशन के छठे दिन तो अन्ना कुछ नहीं बोले...लेकिन पहले पांच दिन वो वक्त वक्त पर स्टेज से लोगों को संबोधित करते रहे...बीच-बीच में टीम अन्ना के सदस्य और कवि कुमार विश्वास अपनी कविताओं से लोगों में जोश भरते रहे...विभिन्न कलाकार भी अपनी प्रस्तुतियां देते रहे...इस दौरान अन्ना-अन्ना-अन्ना का गुणगान भी मंच से होता रहा...विशेष तौर अन्ना के ऊपर बने गीत गाए जाते रहे...मेरा सवाल है कि क्या अन्ना के लिए अपना गुणगान सुनते रहना ठीक है...देशभूमि की शान में गाने और बात है लेकिन एक व्यक्ति का अपना ही महिमामंडन सुनना अलग बात है...क्या अन्ना को अपने सहयोगियों को ऐसा करने के लिए मना नहीं करना चाहिए था...या अन्ना को अपने प्रशंसा-गीत अच्छे लगते हैं...क्या गांधी भी ऐसा ही करते...
अण्णा किसी व्यक्ति का नाम नहीं है। व्यक्ति का नाम तो किसन बाबूराव हजारे है। अण्णा जनसहयोग से विकास और जनअधिकारों के लिए संघर्ष का नाम है। आंदोलन में अण्णा का गुणगान इसी भाव का गुणगान भी है। अण्णा गांधी नहीं है, बार बार उन की तुलना गांधी से करना ठीक नहीं है। गांधी भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की एक धारा का प्रतीक थे।
जवाब देंहटाएंपाँच तरह के लोकपाल और पाँच अलग अलग कानूनों का सुझाव सिरे से गलत है। लोकपाल कानून एक ही होना चाहिए उसी में अलग अलग स्तरों के लिए भ्रष्टाचार रोकने की अलग अलग व्यवस्थाएँ की जा सकती हैं। देश का संविधान एक ही है और पूरे देश की राजनैतिक व्यवस्था को नियंत्रित करता है। तब सभी स्तरों के लिए एक लोकपाल कानून उस से बहुत छोटी चीज है।
द्विवेदी सर,
जवाब देंहटाएंजब नारे लग रहे हैं, अन्ना नहीं आंधी है, देश का दूसरा गांधी है...तो गांधी के तराजू पर अन्ना को तौलना ज़रूरी हो जाता है...जी के खैरनार जैसा ईमानदार शख्स अन्ना पर संशय जता रहा है, तो इन संशयों का निवारण भी ज़रूरी है...आप कह रहे हैं कि अन्ना व्यक्ति का नाम नहीं विचार का नाम है...इसलिए प्रशस्तिगीत गाए जाने में कोई बुरी बात नहीं...गांधी भी तो विचार ही थे...फिर अन्ना की तुलना उनसे क्यों न हो...एक जनलोकपाल में सारी शक्तियां निहित कर देने से कहीं अच्छा है शक्तियों का विकेंद्रीकरण हो...
जय हिंद...
क्या आप बताने का कष्ट करेंगे ... गांधी ने उम्र भर और किया क्या ... सिवाए अपने गुणगान के लिए जिद्द पर अड़े रहने के ... आप मिडिया वाले गांधी और अन्ना की तुलना से बाज़ क्यों नहीं आ रहे ??? गांधी ने जो किया आज सब के सामने है ... यह गांधी और नेहरु की नीतियों का ही असर है कि देश का यह हाल है ... वैसे आप लोगो से हम जीत नहीं सकते ... आप लोग बे बात की बात में से अपने मतलब की बात खोजने के लिए तैयार किये गए है ... अन्ना बोले तो आपका फायेदा ... ना बोले तो आपका फायेदा ... कोई अन्ना की तारीफ करे तो आपकी न्यूज़ तैयार ... ना करे तो आपकी न्यूज़ तैयार ... हर चीज सिर्फ़ एक खबर है ... चाहे कैसी भी हो ... मिडिया को सिर्फ़ अपना ढोल बजाना है ...
जवाब देंहटाएंखैरनार अन्ना के खिलाफ बोल दिए वैसे ही पूरी मिडिया को मुद्दा मिल गया कम से कम १८ घंटे तक उसको अपने चैनल पर घिसते रहेंगे ... आज जो पूरा देश अन्ना के साथ आ रहा है ... वो सब तो चु***** है ... जनता में तो अक्ल है ही नहीं ... सिर्फ़ मिडिया और सरकार ही जानती है जनता की भलाई किस बात में है ...
जवाब देंहटाएंप्रिय शिवम,
जवाब देंहटाएंयही है फासीस्म या फासीवाद...विपरीत विचारों या आलोचना को सुनने का माद्दा जब न रहे और अभद्र भाषा पर उतर आया जाए तो यही स्थिति मुझे संशय उठाने का मौका देती है...और ये मीडिया की बदौलत ही है जो चौबीसों घंटे अन्ना के आंदोलन का प्रचार हो रहा है...गोरखपुर या पूर्वी उत्तर प्रदेश की बाढ़ जाए भाड़ में, छत्तीसगढ़ में दस जवानों को नक्सली भून दे तो वो मात्र दो लाइन की खबर बन कर रह जाए...
जय हिंद...
http://www.deshnama.com/2011/05/blog-post_21.html
जवाब देंहटाएंसतीश सक्सेना: ब्लॉगिंग के दिलीप कुमार...खुशदीप
http://www.deshnama.com/2010/11/blog-post_4722.html
महफूज़ के अंदर भी है रजनीकांत...खुशदीप
इन दोनों में ऐसा आप को क्या दिखा की सार्वजानिक ब्लॉग मंच पर आप ने इनकी तारीफ़ की
क्या इनदोनो ने आप को मना किया
आप करे तो ठीक
दूसरे करे तो गलत
क्या यही हैं आप के लिये नैतिकता
अब बंद भी कीजिये किसी के ऊपर व्यक्तिगत आक्षेप करना अपने को सुधारिये
दूसरो को मंच पर आप खडा कर दे और सब से कमेन्ट में सही कहा , वो हैं ही ऐसे ही इत्यादि ले कर अपने ब्लॉग को आम आदमी/ ब्लोगर की पसंद बताना जितना जायज़ हैं उस से ज्यादा जायज़ हैं के ७० वर्ष के बुज़ुर्ग का महिमा मंडन करना जो अपने दम / इच्छा शक्ति के बल पर अनशन कर रहा हैं
ये बिल आ जाने से उसको क्या मिलेगा ??
हम उसका साथ दे ना दे पर उसको आदर और सम्मान तो दे ही सकते हैं
आप ने तर्क माँगा मैने साक्ष्य और प्रमाण दोनों दिये
कहिये अब क्या कहेगे रचना जी ब्लॉग जगत से ना जोड़े ?? क्यूँ
जब आप लोगो को कुछ और समझ नहीं आता कि क्या बोले तो जो आपके खिलाफ जाए उसको फासीस्म या फासीवाद के दायरे में ले लो ... साला खुद बा खुद चुप हो जायेगा ... नहीं तो फासीस्म या फासीवाद जिंदाबाद ... हा हा हा ... ठीक है खुशदीप भाई आप खुश रहो ... मिडिया महान है ... आप महान हो ... आपके गांधी महान है ... सरकार महान है ... बस यह और बता देना जो यह जनता आज उग्र हो जाए तो क्या होगा ... सब्र का दायरा तंग होता जा रहा है ... शायद यह आप भी जानते हो ...
जवाब देंहटाएंइस से पहले आपकी लगभग हर पोस्ट पर मेरे कमेन्ट हुआ करता था ... पर जब से आपके अन्दर यह बदलाव देखा है ... मैं वैसे भी दूर हूँ ... अब और सही ... जय हिंद !
जहा तक बात न्यायधिशो के लिए अलग लोकपाल की बात है तो उस बारे में अन्ना टीम भी कुछ हद तक तैयार है हेगड़े ने पहले ही इस बारे में कहा है और अन्ना टीम बार बार बात कर मामले को सुलझाने की बात कही है | पर चार लोकपाल ये वैसा ही होगा की सड़क पर पड़ा घायल दम तोड़ता रहेगा और पुलिस सीमा विवाद में फसी रहेगी की ये तुम्हारी सीमा में होगा ये हमारी सीमा में होगा | आम आदमी शिकायत करेगा और उसकी खबर लेने जायेगा तो उसे बताया जायेगा की तुम्हारी फाइल फलाने लोकपाल के पास है तो फलाने के पास है ये हमारे सीमा में है तो ये हमारे में नहीं है आप ने शिकायत तो कर दी हमसे पर हम आप की रक्षा नहीं कर सकते आब आप को दूसरे लोकपाल के पास जाना होगा वहा गए तो वो कहेगा की मेरे पास तो आप की शिकायत ही नहीं आई है जब आएगी तब आप की रक्षा के लिए कुछ करेगे | चार लोकपाल होंगे तो सरकारे यही करवाएंगी | और आप ने जन लोकपाल को ठीक से नहीं पढ़ा है उसमे भी यही प्रावधान है की राज्यों के कर्मचारी की शिकायत लोकायुक्त करेगा लोकपाल नहीं अरुणा राय की तरह अन्ना टीम ने भी यही मांग की है और उनकी तरह ही ये मांग की है की लोकपाल के साथ ही लोकायुक्त बनने का कानून भी केंद्र सरकार बनाये ताकि सभी राज्यों में एक जैसा लोकायुक्त हो | लोकपाल या लोकायुक्त ऊपर से निचे तक सभी की एक ही व्यक्ति जाँच करे क्योकि ये कोई नहीं जानता की किस घोटाले में कौन कोऊ है कितने घोटाले सामने आये जहा चपरासी से लेकर मंत्री तक सब एक साथ मिल कर घोटाले कर रहे थे छोटे बड़े कर्मचारी या लोगो में लोकपाल या लोकायुक्त को बनता गया तो वही सीमा विवाद की बात सामने आएगी |
जवाब देंहटाएंजहा तक बात अन्ना पर की गई व्यक्तिगत हमले की है तो ये अब कही से भी आप की सकरात्मक आलोचना नहीं दिख रही है यदि आप की नजर में किसी पर व्यक्तिगत हमला करना सही है तो कइयो ने आप को इसका जवाब दे दिया है अब मै इसमे अपनी तरफ से आहुति डालती हूं | एक व्यक्ति जिसने एक समुदाय विशेष के खिलाफ चुटकुलों पर इतनी आपत्ति उठाई ही वो अपने ब्लॉग पर हिन्दू धर्म के देवी देवता को लेकर मजाक बनाने चुटकुले बनाने में जरा भी पीछे नहीं हटता है तब उसे किसी की भी भावना आहात होने की बात नहीं लगती है शुक्र है की आप के उस ब्लॉग पर आपत्ति उठाने वालो की नजर नहीं गई | आप भी वही गलती मत कीजिये तो कांग्रेस कर के पछता रही है यदि आप किसी के इतिहास को जबरजस्ती खंगालेंगे तो आप का भी इतिहास ऐसे ही खंगाला जायेगा अच्छा होगा इसे यही बंद कर दीजिये | जहा तक बात खैरनार के आरोपों की है तो वो ईमानदार थे इसमे कोई शक नहीं था किन्तु वो पावर को लेकर निजी दुश्मनी पर आ गये थे और उससे लड़ने के लिए वो हर किसी का साथ चाह रहे थे आप के निजी दुशमनी में साथ निभाने के लिए कौन साथ आयेगा |
और एक बात और अन्ना का अनशन आमरण का नहीं है का मतलब ये नहीं है की उनकी तबियत बिगड़ी तो वो अनशन छोड़ कर खाने पीने लगेंगे आमरण अनशन नहीं है का अर्थ है की जरुरत हुई तो उनको अस्पताल ले जा कर इलाज कराया जायेगा उन्हें ग्लूकोस दिया जायेगा अपने मुँह से वो तब भी कुछ नहीं खायेंगे क्योकि सरकार को भले उनकी चिंता ना हो पर जनता और उनका हित चाहने वालो को तो है ही | ७४ साल का एक बुजुर्ग ७ दिन से अन्न्शन पर है जनता सड़क पर है और सरकार ने बड़े आराम से कल ३.३० बजे सभी पार्टी की मीटिंग बुलाई है दिखिए सरकार को जनता का कितना ख्याल है | याद रखियेगा अन्ना को जेल भेज कर इस सरकार ने जान आन्दोलन में घी डालने का कम किया था कल को यदि अन्ना को अस्पताल ले जाना पड़ा तो यही जनता खासकर आज का उग्र युवा जो अभी तक शांत है उसे हिंसक बनने में देर नहीं लगेगी शायद सरकार ओए आप जैसे लोग उसी का इतजार कर रहे है की कुछ गलत हो आओ आप लोग चीखना शुरू कर दे की देखो देश में कैसी आराजकता फैली है |
जवाब देंहटाएंखुशदीप भाई,
जवाब देंहटाएंभ्रष्टाचार के विरुद्ध में मैं अन्ना के साथ हूँ, मैं ही क्या हर भारतवासी साथ है... लेकिन जन-लोकपाल के विषय में मैं उनकी टीम के साथ नहीं हूँ... हालाँकि यह भी मानता हूँ कि जो भी अच्छे नियम सिविल सोसायटी के द्वारा बनाए ड्राफ्ट में हैं उन्हें अवश्य लोकपाल बिल में शामिल होना चाहिए... उसके लिए अनशन, प्रदर्शन करके दबाव बनाना भी एकदम सही है.... लेकिन उसके लिए आमरण अनशन का तरीका सही नहीं है... मेरा मानना है कि चुने हुए प्रतिनिधि कुछ भी गलत करते हैं तो उनका गला पकड़ने का हक तो कम से कम हमारे पास है... जब चाहें बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है... लेकिन अपने आपको स्वयंभू जनता का प्रतिनिधि बनने की घोषणा करने वालो का कोई क्या करेगा???? क्या उनकी कोई जवाबदेही है???
कोई भी मांग करना, अनशन करना समझ में आता है... क्योंकि यही तरीका है सरकार पर जनता का दबाव बनाने का... लेकिन इस तरह हठ करना... हर एक को भ्रष्ट कहना कैसे सही है? अगर हर कोई भ्रष्ट है तो क्यों चुनते हो? इस तरह तो भ्रष्ट लोगों को सत्ता में पहुचाने के गुनाहगार सभी हुए? लेकिन यहाँ हर कोई चाहता है कि दूसरे सुधर जाएं और वह वैसे के वैसे ही रहे...
जनता को भ्रष्टाचार की समाप्ति का लोलीपोप दिया जा रहा है... ताकि सारे मुद्दों से जनता का ध्यान बटाया जा सके... जबकि हर एक जानता है कि ऐसे भ्रष्टाचार कभी भी समाप्त नहीं हो सकता...
आपने अभी एक-दो दिन पहले सिविल सोसायटी को चुनाव लड़ने की सलाह दी थी... मैं मालूम करना चाहता हूँ कि क्या कोई ऐसी सिविल सोसायटी को वोट देना चाहेगा जो जम्मू-कश्मीर की आजादी के समर्थक हो? जो यह इलज़ाम लगाते हैं कि हमारी सेनाएं वहां ज़ुल्म कर रही हैं??? स्वामी अग्निवेश जैसे लोग अमेरिका में आई.एस.आई द्वारा प्रायोजित पार्टियों में शरीक होते हैं...
जहाँ तक बात अन्ना के मंच पर रात-दिन हो रहे गुणगान की है तो फिर इस गुणगान और मायावती के द्वारा अपने ही पुतले बनाए जाने में क्या अंतर है? ऐसे नारे केवल राजनेताओं के मंचो पर ही नज़र आते हैं... अपने मंच पर ही अपनी तुलना गांधी जी जैसी महान शख्सियत से होते देखना अथवा उनके समकक्ष खड़ा होने के नारे लगते देखना कोई संत कैसे बर्दाश्त कर सकता है???
जवाब देंहटाएंवैसे बातचीत का माहौल बनाने के लिए आए देश के एक वरिष्ठ आई.ए.एस. अधिकारी को चपरासी की संज्ञा देने वालो के मानसिकता का सहज ही अंदाज़ा लगाया जा सकता है...
जवाब देंहटाएंशुक्र है की आप के उस ब्लॉग पर आपत्ति उठाने वालो की नजर नहीं गई |
जवाब देंहटाएंsahii haen anshumala maene inka wo blog daekhaa aur hamarivani par adult joke bhi aatey daekhae
ek baar itna behuda joke thaa ki hamarivani ko complain karnae kaa man banaa hi liyaa thaa par agle din space dae kar joke daale jaane lagae
kyuki yae hamarivani kae sanrakshak haen is liyae inkae liyae sab maaf hae
us blog ko mass ciruclation sae ban karna chahiyae lekin nahin kiyaa jayaegaa kyuki tark hoga hamarivani private haen aap ko nahin padhan wahaan mat jaao
aesae hi priyanka chopra par inki post kaa koi auchitya hi nahin samjha aayaa thaa
shah navaj ji
जवाब देंहटाएंवरिष्ठ आई.ए.एस. अधिकारी
arvind kejrivaal bhi ias hi haen aur incom tax dept sae khud alag huae haen
ham gaali aur abshabd tab daetey haen jab paani sar sae upar jaataa haen
अन्ना और भ्रष्टाचार हटाओ के नाम पे जो कुछ भी हो रहा है यह अब सही दिशा मैं जाता दिखाई नहीं दे रहा. अन्ना का लोकपाल ही सही हैं लेकिन इस बात पे अभी विचार कि आवश्यकता है कि क्या इसको अमली जामा भी पहनाया जा सकता है या नहीं? विचार विमर्श इस बात पे होना चाहिए कि अन्ना के लोकपाल को अमल मैं अकिसे लाया जाए और इसके लिए किसी संशोधन कि आवश्यकता है तो किया जाना चाहिए.
जवाब देंहटाएंयह काम हो भी रहा था लेकिन राजनितिक हितों के चलते इसको आगे बढ़ाना संभव ना हुआ सरकार के लिए और बात अनशन तक आ पहुंची. अब अनशन को विटामिन कि गोलियां दे रही हैं अपने राजनितिक हितों को साधने वाली पार्टियाँ जिनके दौर मैं भी लोकपाल ठन्डे बसते मैं ही पड़ा हुआ था. ऐसे मैं यह किस दिखा मैं जाएगा , यह तो समय ही बताएगा.
अन्ना को बदनाम करने वालों से सावधान रहें क्यों कि यह सच मैं भ्रष्ट लोगों का काम है. हाँ अन्ना कि लोकपाल पे विचार विमर्श और संशोधन के बारे मैं विचार करना सही राह दिखा सकता है.
भीड़ के फालोवर को भीड़ ही कहा जाता है और भीड़ में सिर्फ एक पक्ष होता है मारो ....और कुछ नहीं
जवाब देंहटाएंभीड़ के सदस्यों में बुद्धि नहीं पायी जाती ! वे सिर्फ जोश में काम करते हैं जिसे उनका नायक करवाता है !
आजकल हमारे देश में कट्टरता का जोर है ,
आजकल हमारे देश में कट्टरता का जोर है !
राजनैतिक पार्टियों की प्रतिबद्धता के होते, बेहतरीन लोग भी, व्यक्तिगत हद तक जाते देखे जा रहे हैं!
जहाँ बात देश के सम्मान की होनी चाहिए वहां निशाना राजनीति के शिकारों पर अधिक है !
मुझे लगता है आने वाले समय में देश कट्टर पंथियों से बहुत कुछ भुगतेगा !
मैं आपसे सहमत हूँ, मुद्दा महत्वपूर्ण है आंखे खुली रहें, यह आवश्यक है !
अन्ना, खुशदीप सहगल और देश के लिए शुभकामनायें !
Khushdeep ji aaj is tu-tu mai-mai me ek bada mudda :bhrashtachar: doyam ho gaya hai.Kya hum alochana aur hawa ke vipreet chalne ko hi budhijivi hona mante hai? Hum samaj mei faili hui buraiyo ke virudh khud to kuchh karte nahi aur aisa karne walo ke virudh hokar unki tang khinchne ka kam bkhubi karne lagte hain.Sabhi NETA bhrusht nahi hote prantu kya mujhe aaj koi dus imandar NETAO ka nam bata sakta hai.Khairnar sahab jis bhasa ko bol rahe the usse aisa kahi nahi lag raha tha ki ve us charcha main bhag le rahe hain bulki ve keval Anna ko desh ke liye ek khatra bata rahe the jaise Anna se unki koi ranjish ho .Anna aur Mahatma Gandhi ki tulana prasangik nahi hai kyonki dono ka deshkal aur samajik manostithi mai bahut anter hai. behtar hoga hum bhrashtachar aur kaledhun se nipatne ki sarkar ki neeyat aur anna ke janjagran ke paryas tak hi apni kalam ka prayog karen.Anna ke lokpalbill mai kuch ativadita ho sakti hai parantu sarkar ka bill to bhrashtachar ko poshit karne wala ek upkaran hi dikhai deta hai jisme shikayatkarta ke liy shikayti vyakti se adhik saja ka pravdhan rakha gaya hai.
जवाब देंहटाएंइतने सारे लोकपाल.... यह तो लोगों को पाल हो गया :)
जवाब देंहटाएंसॉरी खुशदीप भाई , यहाँ तो मुद्दा ही बदल गया ।
जवाब देंहटाएंअन्ना जी देश के लिए आवाज़ उठा रहे हैं । ऐसे में उनका गुणगान तो होगा ही ।
इसमें बुराई भी क्या है !
अन्ना की आवाज़ में सच्चाई है , तभी तो सारा देश और देश के बाहर भी लोगों का समर्थन मिल रहा है ।
लोकपाल बिल पर असहमति हो सकती है लेकिन मंशा पर तो शक नहीं किया जा सकता ।
खुशदीप जी, आपके द्वारा इस पूरे आलेख में उठाये गए प्रश्न बिलकुल सटीक हैं |
जवाब देंहटाएंअण्णा मुख्यतः व्यकिवाद परस्त व्यक्ति हैं जो अपनी कमजोरियों से बाहर आने की कोई क्षमता नहीं रखते और न ही इतने बड़े देश के मानस में उमड़ते -घुमड़ते सवालों का जवाब देने की काबिलियत ही अण्णा हजारे में है | यही बात इस आन्दोलन की सबसे कमज़ोर कड़ी है, जहाँ ध्यान देने वाली बात है कि महात्मा ( बापू ) न सिर्फ सुशिक्षित थे वरन किसी भी आन्दोलन से पूर्व अपने लेखों और वक्तव्यों से जनता को विश्वास में लेते थे जबकि हजारे इस मामले में अपनी टीम पर बुरी तरह निर्भर हैं |
महात्मा बनना हजारे के लिए दूर की बात है वो तो आन्दोलन को चलाने की क्षमता के मामले में विश्वनाथ प्रताप सिंह या अशोक सिंहल भी नहीं बन सकते | हजारे तो बस गुस्से में ताप रही जनता के लिए विरोध का प्रतीक मात्र रह गए हैं |
लोकपाल के विकेंद्रीकरण का सुझाव बिलकुल सही है |
आपका कुतार्किक के बदले में सुतार्किक ही चाहिए , ई कौन फ़िलासफ़ी है जी । देखिए मीडिया इस समय जितने पैनेपन और मेहनत से इन जनांदोलनों को चप्पे दर चप्पे दिखाने और पहुंचाने का काम कर रहा है , उसके लिए आप जैसे दोस्त पत्रकार लोग के एक आध उलटल पोस्ट को भी गले लगाते चलेंगे , जी बिल्कुल ठीक कह रहे हैं आप । विधि पक्ष में अग्रज द्विवेदी जी सब कह ही चुके हैं बकिया सामाजिक और आंदोलनिक पक्ष का सचित वर्णन आज हम अपनी पोस्ट में करेंगे , ..चलते हैं , ख्याल रखिएगा अपना
जवाब देंहटाएंअकेला ही भिड़ गया सरकार से
जवाब देंहटाएंऔर डरता नहीं तकरार से
मिज़ाज से झलकती पठानी है
बुढ़ापे में भी पाई जवानी है
अन्ना उसका नाम है
अनशन उसका काम है
सलामत रहे अन्ना हमारा
सलामत रहे गन्ना हमारा
हमारी दुआ अब यही है
बताओ क्या ख़ूब कही है
आदि आदि
कुल मिलाकर पूरे राष्ट्र की बोरियत सी दूर हो गई।
..........
आपकी पोस्ट और दो चार कमेंट पढ़े तो मज़े मज़े में ये पंक्तियां लिख डालीं लेकिन जब नीचे के ‘गहरे वाले कमेंट‘ पढ़े तो हाथों से तोते ही नहीं उड़े बल्कि अक्ल के पीपल से उल्लू तक उड़ गए।
:):)
भाई मुबारक हो, इतनी अच्छी टाइप की बहसबाज़ी वाली पोस्ट पढ़वाने के लिए।
कोई कमेंट देने से तौबा कर रहा है और फ़ोलोअरशिप कैंसिल कर रहा है।
आज लगा कि हां, ब्लॉगिंग अभी ज़िंदा है।
...........
ख़ैर असल बात यह है कि सरकार कोई भी हो, हराम की सब खाते हैं। जो यह बात नहीं जानता वह बेवक़ूफ़ है और उसे हिंदुस्तान में वोट देने का पूरा हक़ है।
चुने हुए जनप्रतिनिधियों को जनता ने बहुत बार बाहर का रास्ता दिखाया लेकिन जो भी अंदर आया, उसने माल अंदर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी,
इसीलिए किसी भी नेता ने यह लोकपाल बिल पास नहीं करवाया।
जनता त्रस्त है भ्रष्टाचार से इसीलिए वह ऐसे सख्त क़ानून की मांग कर रही है जिसे अमली जामा पहनाना इसलिए मुश्किल है क्योंकि सरकार की इच्छाशक्ति ही नहीं है उसे लागू करने की।
ऐसा लग रहा है जैसे कांग्रेस के साथ बलात्कार किया जा रहा हो !
भाई जब हमारे प्रधानमंत्री और जज भ्रष्टाचार करते ही नहीं तो क्यों ख़ुद को बाहर या इधर-उधर रखवाते फिर रहे हैं ?
हमारे शहर में एक संसद प्रतिनिधि ने सरकारी निधि के 25 लाख रूपये अपनी ज़मीन के सामने का नाला पटवाने में लगा दिये और उसके बाद उसकी ज़मीन की क़ीमत बढ़ गई। जबकि वह प्रतिनिधि एक मौलवी है।
जब मौलवी का यह हाल है तो फिर चोर, जार और माफ़िया टाइप जन प्रतिनिधि जनता के धन को कैसे ठिकाने लगाते हैं, इसे समझा जा सकता है।
अन्ना की समझ में जो आ रहा है, कर रहे हैं।
जो उनसे ज़्यादा अक्ल रखता हो, वह उनसे बेहतर काम करके दिखाए,
अन्ना जी ने मना तो किया नहीं है।
रही बात गांधी जी की तो अन्ना कुछ बातों में उनसे कम होंगे तो कुछ में उनसे बेहतर भी हो सकते हैं।
अपनी तारीफ़ क्यों करवाई आदि आदि बातें गौण हैं।
इन पर ऊर्जा लगाना देश और समाज के लिए लड़ने वालों का हौसला कमज़ोर करना है और फिर यही लोग कहते हैं कि हमें ईमानदार नेता नहीं मिलता।
अरे भाई जो मिलता भी है तो उसमें भी ऐब ढूंढने से बाज़ नहीं आते।
तुम्हारे लिए यही शराबी और माल डकारू नेता ठीक हैं।
यही देखकर अन्ना से ज़्यादा अक्ल रखने वाले फ़ालतू की टेंशन नहीं लेते।
कैसी जनता और कैसा देश ?
अपना अपना काम देखो, यार ।
ऐसा विचार बन जाता है।
बहरहाल उम्दा पोस्ट और लाजवाब खिच खिच्च ...
शुभकामनाएं ...
भारत जैसा लोकतांत्रिक देश...
जवाब देंहटाएंकांग्रेस जैसी सत्ताधारी पार्टी...
भाजपा जैसा विपक्ष .....
देश का अपरिपक्व मीडिया....
और अब बात आपकी पोस्ट की.... खुशदीप भाई आपके सवाल मेरे विचार से वाकई (कु)तार्किक हैं.... और आपके मीडिया से जुडे होनें के कारण यह अपनें आप में उलझी हुई बात लगी...
एक तरफ़ तो आप खुद ही "अन्ना और गांधी को क्यों ना तुलना करें" कहते हैं और एक तरफ़ आप खुद ही कहते हैं की गोरखपुर या पूर्वी उत्तर प्रदेश की बाढ़ जाए भाड़ में, छत्तीसगढ़ में दस जवानों को नक्सली भून दे तो वो मात्र दो लाइन की खबर बन कर रह जाए सो आप कहना क्या चाह रहे हैं.... आपके पोस्ट और आपके कमेण्ट किसी राजनीतिक दल के प्रवक्ता के बयान की तरह लग रहे हैं..... और पोस्ट का टाईटिल भी गजब है... हर कोई इसे पढ के एक बार रीडिंग मारनें तो आएगा ही..... :-) उसके लिए तो आप तारीफ़ के काबिल हैं ही.....
क्या आप इस बात को मानेंगे की आज कल का हिन्दुस्तानी मीडिया लकीर पीटनें में माहिर है, जो बिकता है वह बेचेंगे वाला फ़ंडा है.... अब अन्ना हज़ारे अगर सडक पर है और वह भी जनता से जुडे हुए मुद्दे को लेकर तो फ़िर इस बात के सकारात्मक पक्ष को देखना ही उचित होगा..... और पांच या छः लोकपालों की बात तो वाकई अजीब बात हो जाएगी....
वाकई "पर चार लोकपाल ये वैसा ही होगा की सड़क पर पड़ा घायल दम तोड़ता रहेगा और पुलिस सीमा विवाद में फसी रहेगी की ये तुम्हारी सीमा में होगा ये हमारी सीमा में होगा |" की बात सच हो जाएगी....
अब बात आज कल के मीडिया की करनी चाहिए.... हमारा मीडिया केवल लकीर पीटना जानता है, मुझे खुद एक वाक्या याद आता है जब शिवम मिश्राजी नें आपको आज़ाद पुलिस के बारे में बताया था.... मुझे नहीं याद की उस पर कभी कोई दो चार मिनट का भी कवरेज हुआ हो..... अब यदि मीडिया परिपक्व होता तो उसे गोरखपुर की बाढ भी दिखाई देती और अन्ना के अलावा बाकी का देश भी दिखता.... बन्दर की दुम की तरह खबर को बार बार रिपीट करनें की जगह मुद्दों पर होनें वाली कवरेज को परिपक्व मीडिया कहा जाता और उसे पत्रकारिता या जन्रलिस्म की कसौटी पर खरा कहते....
और रही बात शिवम मिश्रा के फ़ासीवादी होनें की तो भाई मुझे तो यही लगता है की आप अपनी बात को कहिए... लेकिन अगर आपका मीडिया इसी तरह लकीर का फ़कीर बना रहा तो फ़िर इस देश की जनता को जिस तरफ़ जाना है उसे जानें दीजिए.... आप उस पर अपनी सोच क्यों थोप रहे हैं.....
खैर अब तो कुछ भी कहते हुए डर लगता है मगर फ़िर भी आज यह कहनें की हिम्मत हमनें तो जुटा ली मगर आप कैसे मानेंगे की देश का मीडिया बिका हुआ है.....
मैं तो कम से कम सक्सेना जी और खुसदीप जी से ऐसी उम्मीद नहीं कर सकता. और एक बात गाँधी के ज़माने मैं नेहरु और जिन्ना जैसे लोग भी थे तो आज ब्लोगेर जगत में या राजनीती में हैं तो क्या फर्क पड़ता हैं.
जवाब देंहटाएं@रचना जी...
जवाब देंहटाएं@अंशुमाला जी...
आप मुझे जो मर्ज़ी कह सकती है...इसलिए मेरे ऊपर की गई आपकी टिप्पणियों को मैं यथावत रख रहा हूं...लेकिन मेरे ब्लॉग पर टिप्पणी करने वाले किसी दूसरे ब्लॉगर को कुछ कहा जाए, ये मुझे स्वीकार नहीं...इसलिए न चाहते हुए भी मुझे आपकी ऐसी कुछ टिप्पणियां हटानी पड़ रही हैं...
@रचना जी,
शुक्रिया जो आप मेरी हर पोस्ट, हर ब्लॉग को इतना ध्यान से पढ़ती हैं...मैं कभी कोई काम छुपा कर नहीं करता...न ही मैं hypocrite हूं...जिस ब्लॉग का आप ज़िक्र कर रही है, उसके नाम से ही स्पष्ट है कि उसका कंटेंट क्या है...हां, हमारीवाणी पर उसका दो-तीन बार आना गलती था...जिसे मैं कबूल करता हूं...और वहां से वो ब्लॉग हट गया है...
वैसे इस पोस्ट के मुद्दे से अलग जाकर इसे पर्सनली अटैक का रूप दे दिया गया...खैर जो है आपने जैसा ठीक समझा वैसा किया, मैंने फिर भी उन सभी टिप्पणियों को डिलीट नहीं किया....क्योंकि मैं लोकतंत्र की बात ही नहीं करता बल्कि उसका पालन करने की कोशिश भी करता हूं...मैं मॉडरेशन इसलिए लगा कर नहीं रखता...जिससे पहले ही टिप्पणी को पढ़ कर तय कर लूं कि क्या मुझे सूट करता है और क्या नहीं...
जय हिंद...
बढिया प्रश्न है .. आपके इस खास पोस्ट से हमारी वार्ता समृद्ध हुई है!!
जवाब देंहटाएंक्योंकि मैं लोकतंत्र की बात ही नहीं करता बल्कि उसका पालन करने की कोशिश भी करता हूं...मैं मॉडरेशन इसलिए लगा कर नहीं रखता...जिससे पहले ही टिप्पणी को पढ़ कर तय कर लूं कि क्या मुझे सूट करता है और क्या नहीं...
जवाब देंहटाएंjis samaaj me ham rehtey haen wahaan agar chhishore rehtey ho aur kament me stri kae shareer kaa varnan kartey ho blog par bhi
stri kaa naam lae kar raat me chatkaarey bhartey ho aur subhae post daaltey ho
us samaj me loktantr kae baavjud bhi khidki darvaaje band rakhnae padaetey haen ji
aap samaj ko sudhaar do ham modrashan hataa daegae
yae wahii baat hui ki agar stri samantaa chahtee haen to topless ghumae
hadd haen khushdeep
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
जवाब देंहटाएंयदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
अच्छा लिखा है. आप ने .........
जवाब देंहटाएंबहस और निष्कर्ष सही दिशा में बढ़ें।
जवाब देंहटाएंमैं पहले भी कहता रहा हूँ कि कोई भी कानून काम करवाने के लिए नहीं बना होता! जो भी कानून होते है वह केवल सही दिशा में जाने पर अडंगा लगाने के लिए है.
जवाब देंहटाएंअब बात चाहे एक लोकपाल की हो या पांच लोकपाल की, मेरी समझ से यह सब बेमानी है क्योंकि भ्रष्टाचार हटाने की कथित कोशिश तो मौजूदा कानूनों से भी परवान चढ़ सकती है अगर सही नीयत से उनका पालन करवाया जाए.
अब यह सब सु हो या कु लेकिन तार्किक यह बात है कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे? अन्ना या बेईमन्ना?
आपकी पोस्ट ब्लोगर्स मीट वीकली (६) के मंच पर प्रस्तुत की गई है /आप आयें और अपने विचारों से हमें अवगत कराएँ /आप हिंदी के सेवा इसी तरह करते रहें ,यही कामना हैं /आज सोमबार को आपब्लोगर्स मीट वीकली
जवाब देंहटाएंके मंच पर आप सादर आमंत्रित हैं /आभार /