कल ZEAL (डॉ दिव्या) ने पोस्ट लिखी, पुरुष फ्लर्ट होते हैं--बुरा ना मानो होली है...मैंने इस पोस्ट पर टिप्पणी लिखी थी कि पुरुष इस मामले में बड़े कोमल हृदयी और महिलाएं बड़ी कठोर होती हैं...ये वादा भी किया था कि रात को अपनी पोस्ट पर इसे साबित भी करूंगा...डॉ दिव्या ने पोस्ट में ये भी लिखा था-पुरुष के प्रेम में सच्चाई का प्रतिशत कुछ कम ही होता है...थोड़ी सी बनावट...थोड़ी सी मिलावट ....बोले तो --फ्लर्ट होते हैं !!!
अब पुरुषों की जमात में शामिल होने की वजह पुरुषों को डिफेंड करना मेरा फ़र्ज़ बनता है भाई...अब सिद्ध करना है तो करना है...नाम में मेरे दीप अवश्य हो लेकिन यहां मुझे लाइट दिखाई बड़े भ्राताश्री डॉ टी एस दराल ने...न वो मुझे बीते रविवार को अपना गेस्ट बनाकर दिल्ली के सिविल सर्विसेज़ आफिसर क्लब में मशहूर कवि सुरेंद्र शर्मा को सुनने का मौका देते और न ही मुझे आज इस पोस्ट में जवाब सूझता...
बकौल सुरेंद्र शर्मा, आप इमेज़िन करिए कि कोई पुरुष किसी बस में (अपनी अपनी जेब के अनुसार इसे ट्रेन, विमान कर सकते हैं) अकेला सफ़र कर रहा है...साथ वाली सीट पर कोई अनजान महिला बैठी है...पुरुष कई दिनों के टूर से थक-हार कर लौट रहा है...ठंडी हवा के चलते ही उसे नींद के झोंके आने लगते हैं...अब बेचारे का सिर गलती से ही महिला के कंधे को टच कर जाता है...वो महिला फौरन ऐसा 440 वोल्ट का झटका देगी कि सारी नींद 1 सेकंड में काफूर हो जाएगी...ऐ मिस्टर, ज़रा होश में बैठो, होश में...अब इसके बाद मज़ाल है कि वो पुरुष बाकी पूरे सफ़र में पलक भी झपक जाए...ऐसा तन कर बैठेगा कि कमान पर चढ़ा तीर भी मात खा जाए...तो देखी जनाब, महिला की कठोरता...
अब आप कहेंगे कि इसमें पुरुष कोमल-मना कैसे हो गए...बताता हूं...बताता हूं भाई...ऐसी जल्दी भी क्या है...तो जनाब ऊपर जो मैंने बस की सीट वाला किस्सा सुनाया है...इसे अब बस उलट कर देख लीजिए...अनजान महिला नींद के झोंके में पुरुष के कंधे पर सिर रख देती है...पुरुष वहीं मैडम तुसाद के म्यूजियम का पुतला न बन जाए तो मुझे कहिएगा...लानत दीजिएगा अगर वो ज़रा सा हिल-ढुल भी जाए...बेचारे को बस यही फ़िक्र लगा रहेगा कि कहीं महिला की नींद न टूट जाए...अब इस चक्कर में अपना उतरने का स्टेशन भूल कर 100-200 किलोमीटर और सफ़र भी तय कर ले तो कोई बड़ी बात नहीं...सफ़र का क्या है वो तो रोज़ ही होता रहता है...परन्तु महिला की नींद टूटने का गुनहगार होना...न बाबा न...किसी कीमत पर वो मंज़ूर नहीं...
तो अब बताओ ZEAL... कौन कोमल-मना है और कौन कठोर...
बुरा मानो या न मानो, पर होली तो होली है...
लड़के बिल्कुल बहुत अधिक इमोशनल होते हैं और लड़कियां कैलकुलेटिव. कारण जो भी हो.
जवाब देंहटाएंवाह खुशदीप जी।
जवाब देंहटाएंइसे कहते हैं नहले पे दहला।
वैसे आपकी बात वाजिब भी है।
मर्द दिल वाले होते हे जी, नारी हमेशा शक्की:) अभी पिछली बार जब मे भारत जा रहा था तो एक अमेरिकन ने जो मेरे संग बेठी थी उस ने आधे जहाज को शुली पर टांग रखा था, किसी का कपडा भी उसे टच हो जाये राम राम, ओर उस ने पहन रखा था (ऊपर) सिर्फ़ एक टाप जो आधा ही था, फ़िर ऊपर से कोई समान उतारने लगी तो दोनो वाजू ऊपर ....हम नीचे बेठे थे ओर साबधानी के तॊर पर ऊपर देख रहे थे कही समान हमारे ऊपर ना गिर जाये...... राम राम बस हम तो उस समय हनुमान चलीसा ही पढने लगे, ओर अपनी सीट पर दुबक कर बेठ गये,बिलकुल रामलुभाऎ जी की तरह से
जवाब देंहटाएंबढ़िया उदहारण के साथ आपने साबित कर दिया जी कि पुरुष वाकई कोमल हृदय होते है :)
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही कहा अपने, हम आदमी ओ हमेशा ही महिलावो कि मदद के लिए तैयार रहते हैं. आप का उदहारण बिलकुल सही हैं,
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
बहुत फर्क होता है ...
जवाब देंहटाएंकठोर हृदय महिला को जब सचमुच नींद आ रही हो , तब ही अपना सिर टिकाती है ...
जबकि कोमल ह्रदय पुरुष सिर टिकाने के लिए नींद लेते हैं :)
हा हा हा हा हा हा
जवाब देंहटाएंये मन कहाँ होता है जी?
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंप्रिय खुशदीप जी ,
सबसे पहले तो इस रोचक आलेख के लिए बधाई । पुरूष भी कोमल-मना होते हैं , इसमें कोई दो राय नहीं है। हर समुदाय में दो तरह के लोग होते हैं। और बात अक्सर बहुतायत की ही होती है । majority में जो होता है , निर्णय उसी आधार पर लिया जाता है।
जब एक नैसर्गिक नींद आती है , तो पुरूष हो अथवा स्त्री , सभ्रांत लोग भरपूर ध्यान रखते हैं इस बात का की उनका सर लुढ़ककर , पर-स्त्री अथवा पर-पुरूष के कंधे पर न टिके।
स्त्रियाँ क्यूँ react करती हैं जोर से यदि पर-पुरूष स्पर्श हो जाए तो ? ....
कारण है समाज में फैला हुआ विद्रूप परिदृश्य । जिस तरह स्त्रियाँ पग-पग पर अपमान का शिकार होती हैं , बलात्कार का शिकार होती हैं , और अपमानित होती हैं , उसके कारण हर स्त्री के मन में एक भय है पुरूष से । उसके अन्दर का भय ही उसे निर्देश देता है की सावधान रहो। हर पुरूष बुरा नहीं है और पाषाण-हृदय भी नहीं है , लेकिन हर स्त्री भयभीत है ।
ब्लौगजगत के कुछ सम्मानित ब्लॉगर्स ने जिस तरह मुझे अपमानित किया है , उससे मैं भी बहुत भय में जीती हूँ। जब भी अपमान हुआ है , मैंने किसी भी कोमल-मना पुरूष को वहां आकर उस अभद्रता का विरोध करते नहीं देखा। इसलिए कंधे पर सुलाना एक बात है और वास्तव में अपने ह्रदय में किसी स्त्री के लिए सम्मान रखना एक अलग ही बात है।
दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंक कर पीता है। सदियों से घर-बाहर दोनों ही जगह , हिंसा और अपमान का शिकार एक स्त्री आसानी से किसी भी पुरूष पर विश्वास नहीं कर सकती ।
आपने प्रत्युत्तर में ये पोस्ट लगाई , मुझे बहुत पसंद आई , लेकिन यदि मेरे लेख पर चल रहे विमर्श पर ही आपने ये विचार रखे होते तो मुझे ज्यादा ख़ुशी होती ।
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चलने दें यह फगुनई अंताक्षरी.
जवाब देंहटाएंमौनं श्रेयस्करम्।
जवाब देंहटाएंदिव्या जी,
जवाब देंहटाएंपहली बात इस पोस्ट को होली के फलेवर में ही लीजिए...इसलिए यहां विमर्श जैसी कोई गुंजाइश नहीं...
दूसरी बात, महिला के साथ पुरुष का व्यवहार कैसा होना चाहिए, ये एक दिन में कोई नहीं सिखा सकता...ये संस्कारजनित स्वभाव है...ये शब्दों में ढालने की नहीं जीवन में उतारने की विषयवस्तु है...कहीं-कहीं पर वाद बढ़ाने को भी मैं अपने इस स्वभाव के विपरीत मानता हूं...हां, जिन महिलाओं से मैं असल जीवन में मिल चुका हूं, वहीं मेरे इस स्वभाव का अच्छी तरह मूल्यांकन कर सकती हैं...
खैर होली पर ये फिलासफाना अंदाज़ छोड़ा जाए और मेरी इस पोस्ट के जवाब में ऐसी ही कोई चुटकी लेती हुई पोस्ट हो जाए ZEAL की तरफ से भी...
जय हिंद...
प्रवीण पाण्डेय के पीछे हूँ ....जय हिंद !
जवाब देंहटाएंमैं सतीश सक्सेना जी के पीछे हूँ ....जय हिंद !
जवाब देंहटाएंleo bare bhaijee haum apke piche hain
जवाब देंहटाएं................
i think dono 'post' holi ke sandarbh
me samichin hai..........
pranam.
pranaam
जवाब देंहटाएंkisi kae bhi peechae yaa aagae nahin hun
जवाब देंहटाएंsaath saath chal rahee hun
kankad patthar beentae huae
taaki peechae aanae waalo ko chubhan kam ho
phir
pranaam
मेरा कोमल सा मन भी कर रहा कि अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी के पीछे रहूँ :-)
जवाब देंहटाएंहोली की मस्ती में
जवाब देंहटाएंयही कहना है
कि जो बोयोगे वही काटोगे
के बदले
जो बिखेरोगे वही बिनोगे
सामयिक लगता है :-)
sab holi ki masti hai-----
जवाब देंहटाएंsab apne apne man ki keh le-----
jai baba banras......
पाबला जी,
जवाब देंहटाएंये एक के पीछे एक करके ट्रेन तो बन गई...लेकिन सबसे आगे कूउउउउउउउउउउउउ....कौन करेगा...
जय हिंद...
खुशदीप जी! पहले शंटिंग शुटिंग हो जाए फिर देखते हैं :-)
जवाब देंहटाएंdo bade logo ke bich sach me chup rahna behtar hai....waise andar se gudgudi to hame bhi ho rahi hai:P:D
जवाब देंहटाएं:):)
जवाब देंहटाएंलीजिए एक 100 प्रतिशत सच्ची घटना बताती हूँ, हमारे शहर के एक बहुत बडे और सच में आदर्शवादी नेता एक दिन बस में सफर कर रहे थे। एक ग्रामीण महिला उनके कंधे पर सर रखकर सो गयी। उन्होंने उसे सर हटाने को कहा तो उस महिला का जवाब था - मेरे माथे से तेरा कंधा टूट जाएगा क्या?
जवाब देंहटाएंअब निकाल लिजिए कोमलमना।
हम जैसे शर्मिलों के शब्दकोष से यह " फ़्लर्ट " शब्द गायब है. नींद में भी अनुभव प्राप्त करने की कभी हिम्मत नहीं हुई .............. इसलिए मौनब्रत.
जवाब देंहटाएंहा हा हा चित कर दिया सब को होली पर सब चलता है। होली की हार्दिक शुभकामनायें, आशीर्वाद।
जवाब देंहटाएंखुशदीप भाई आप का सफरनामा मज्र्दार है ...आप तो मेरठ उतरही गए होंगे या साथी महिला कि नींद कानपूर मैं खुली. भाई होली है
जवाब देंहटाएंसुने थे कि जो सोवत है वो खोवत है
जवाब देंहटाएंमगर पहली बार जाने कि जो सोवत है वो भी पावत है ।
अब ये ना पूछियेगा क्या ??
होली है , होली का मजा लिया जाय ......
सवल जवाब का सिलसिला तो चलता ही रहेगा ।
"काश दुनिया के सारे लोग ऐसे ही सबकी नींद का खयाल रखे , ऐसा कोई काम ना करे कि किसी की नींद उडे"
मस्त रहो , और मस्त रहने दो ।
सुश्री अजीतजी के उदाहरण बी जोडलें- सभी दिलचस्प.
जवाब देंहटाएंआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (17-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
हा हा हा ! खुशदीप भाई , हम तो कभी बस में सफ़र करते हैं तो पूरे चौकन्ने रहते हैं ताकि नींद न आये ।
जवाब देंहटाएंफिर भी आज तक ऐसा शुभ अवसर नहीं आया वर्ना हम तो पूरे ब्रहामंड का चक्कर लगाने को तैयार हैं ।
मुझे पता नहीं क्यूँ सब पैदाइशी फ्लर्ट समझते हैं....... लडकियां ख़ुद ही फ्लर्ट होने को तैयार रहती हैं तो हुण मैं की करां....... एक बार मैंने अपने डैड से कहा भी था.......गुस्से में........... कि क्या ज़रूरत थी इतना हैंडसम लड़का पैदा करने की... अब भुगतो... ही ही ही ही ......
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट के बहाने दिव्या की भी पोस्ट पढने को मिल गई...
जय हिंद
मुझे पता नहीं क्यूँ सब पैदाइशी फ्लर्ट समझते हैं....... लडकियां ख़ुद ही फ्लर्ट होने को तैयार रहती हैं तो हुण मैं की करां....... एक बार मैंने अपने डैड से कहा भी था.......गुस्से में........... कि क्या ज़रूरत थी इतना हैंडसम लड़का पैदा करने की... अब भुगतो... ही ही ही ही ......
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट के बहाने दिव्या की भी पोस्ट पढने को मिल गई...
जय हिंद
हाय!!!!!!!! ये खुशदीप है या मोमदीप :)
जवाब देंहटाएंखुशदीप जी, होली पर जरूरत थी पुरूषों और स्त्रियों के स्वभाव पर इस तरह की चुटकियां लेना ...होली आने का अहसास हुआ । बाकी रंग जमा दिया रोचकता से परिपूर्ण प्रतिक्रियाओं ने । जरूरी है साल-भर गंभीर चिंताओं से भरे चिंतन से थोड़ा हट कर हास-परिहास को खोज निकालना । साधुवाद इसमे शामिल सबको ... अरे भई कोई मुझे भी धन्यवाद दे दो ... इतनी देर से तारीफ जो कर रहा हं ।
जवाब देंहटाएंहक से मांग रहा हूं .. होली है ।
शुभकामनाएं । सी पी बुद्धिराजा
मौनं सर्वदा श्रेयस्करम्।।
जवाब देंहटाएंये आ गये....कूउउउउउउउउउउउउ....करने. :)
hahahaha ...paldaa barabar ka kar diya
जवाब देंहटाएंखुशदीप जी, मैं तो इसे झेल चुका हुॅ और एक करारा हाथ भी मेरे गाल पर लगा था। ये और बात है कि उपर वाले ने हमें भी ये मौका लगभग घंटे भर में ही प्रदान कर दिया था। आपको पढ़ा तो अचानक दस साल पहले की कहानी याद आ गई। होली की शुभकामनाएॅ।
जवाब देंहटाएंरोचक घटना. भई, देखा तो अक्सर ऐसा ही जाता है.बात में दम है.
जवाब देंहटाएंमहफ़ूज़ जबरन अपनी फ़्लर्ट गिरी का प्रमाण पत्र ले आये और दिखा रहे है.
जवाब देंहटाएंअब खुश दीप भैया मज़ा आ गया
जवाब देंहटाएंburaa na mano holi hai.
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