आज प्रवीण पांडेय ने बड़ी शानदार पोस्ट लिखी...बोसॉन या फर्मिऑन...भौतिकी जैसे जटिल और गूढ़ विषय को भी आधार बना कर मानव व्यवहार की रोचक व्याख्या प्रवीण की अद्भुत लेखनी का कमाल है...
लेकिन दुनिया सिर्फ पढ़े लिखे लोगों के लिए ही नहीं है भाई...हम जैसे ढपोरशंख भी यहां बसते हैं...हम न बोसॉन है न फर्मिऑन...हम तो हैं बस छिछोरिऑन...अब इसे ज़्यादा अच्छी तरह समझाने के लिए मुझे अपनी एक पिछली पोस्ट रीठेल करनी पड़ रही है....
छिछोरेपन का 'न्यूटन' लॉ...
आप अगर साइंस या फिजिक्स के छात्र रहे हैं तो न्यूटन द ग्रेट के बारे में ज़रूर जानते होंगे...वहीं जनाब जिन्होंने गति (मोशन) के नियम बनाए थे...लेकिन ये बात फिजिक्स पढ़ने वाले छात्रों की है...कुछ हमारे जैसे छात्र भी होते थे जो क्लास में बैठना शान के खिलाफ समझते थे...गलती से कभी-कभार खुद ही पढ़ लेते थे तो पता चलता था कि प्रोटॉन हो या न्यूट्रान या फिर इलैक्ट्रॉन सब का एटम (परमाणु) में स्थान निर्धारित होता है...प्रोटॉन और न्यूट्रान तो न्यूक्लियस में ही विराजते हैं...इलैक्ट्रॉन बाहर कक्षाओं में स्पाईडरमैन की तरह टंगे रहते हैं...लेकिन कुछ हमारे जैसे फ्री इलैक्ट्रॉन भी होते हैं जो न तो न्यूक्लियस में बंधे रहना पसंद करते थे और न ही किसी कक्षा में लटकना...सौंदर्यबोध को प्राप्त करने के लिए कॉलेज के बाहर ही सदैव चलायमान रहते थे...
इलेक्ट्रोन का चुम्बकीय क्षेत्र बहुत गतिशील फोटोन को अपनी ओर आकर्षित करता है, प्रेम करता है... जब भी कोई विद्युत आवेश गतिशील होता है तो एक चुम्बकीय क्षेत्र बनता है...गतिशील फोटोन का भी चुम्बकीय क्षेत्र होता है... जब इलेक्ट्रान और फोटोन दोनों के चुम्बकीय क्षेत्र समान आवृत्ति पर गुंजन करते हैं तो तो गूटर-गूं, गूटर-गूं होना निश्चित है...
अब पास ही गर्ल्स डिग्री कॉलेज में इतराते-बल खाते फोटोनों (या फोटोनियों) का गुरुत्वाकर्षण चुंबक की तरह हमें खींचे रखता तो हम क्या करते...ये तो उन बुजुर्गों का कसूर था जिन्होंने दोनों डिग्री कालेजों को साथ ही बसा दिया था...बस बीच में लक्ष्मण रेखा की तरह एक दीवार बना दी...अब आग और घी इतना साथ रहेंगे तो कयामत तो आएगी ही...अरे ये क्या मैं तो पिछले जन्म के क्या इसी जन्म के राज़ खोलने लगा...भाई पत्नीश्री भी कभी-कभार हमारे ब्लॉग को पढ़ लेती है... मुझे घर में रहने देना है या नहीं...
खैर छोडि़ए इसे अब आता हूं न्यूटन जी का नाम लेकर कॉलेज में बनाए हुए हमारे छिछोरेपन के नियम से...
"हर छिछोरा तब तक छिछोरापन करता रहता है...जब तक कि सुंदर बाला की तरफ़ से 9.8 मीटर प्रति सेकंड की रफ्तार से नुकीली हील वाला सैंडल उसकी तरफ नहीं आता...ये फोर्स (बल) बेइज्ज़ती कहलाता है...और ये बल शर्मिंदगी के समानुपाती (डायरेक्टली प्रपोशनल) होता है...अगर छिछोरापन फिर भी कायम (कॉन्स्टेंट) रहता है तो बेइज्ज़ती की ये प्रक्रिया अनंत ( इंफिंटी) को प्राप्त होते हुए अजर-अमर हो जाती है..."
और इस तरह हम भी अमरत्व को प्राप्त हुए...
छिछोरिऑन तो सर्वव्यापक है। पदार्थ के कान्स्टीट्यूएंट (त्रिगुण) में से एक है। रजोगुण कहते हैं शायद उसे। पदार्थ के प्रत्येक कण में वह विराजमान है। बस कभी उस की अभिव्यक्ति होती है कभी नहीं होती।
जवाब देंहटाएंएस्केप वेलोसिटी भी तो बड़ा हिस्सा है. जब पीछे पड़ा हो बाप तो एस्केप वेलोसिटी वाले वेग से तुरत भागिये आप...
जवाब देंहटाएंबढ़िया है यह छिछोरियान भी. प्रवीण जी के शब्दकोष में इजाफा हुआ :-)
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनायें आपको !
हां जी.. हम भी कभी इलैक्ट्रान थे ... इस जन्म में अमरत्व नहीं मिल पाया .. और अब इसका करेंगें भी क्या ..सी पी बुद्घिराजा
जवाब देंहटाएंजय हो महाराज ...!!
जवाब देंहटाएंप्रवीणजी की पोस्ट अभी पढी नहीं है लेकिन पत्रकार कैसे बना जाता है यह राज जान लिया है। लगे रहो मुन्ना भाई।
जवाब देंहटाएंहोली के बिदा हो रहे मूड में बोसान व फर्मिआन के मध्य छिछोरिआन की बढिया घालमपेल.
जवाब देंहटाएंअजी अभी चार महीने पहले ही इस छिछोरिऑन पर बात बहुत बिगड गई थी :) आज फ़िर... आप की पोस्ट पढते पढते मजा आने लगा तो सेंडिल दिखा दिया.... बाप रे. अजी इस सेडिंल वाली को साथ मे दिखाते तो डर कुछ कम लगता... कम से कम उस के चेहरे से दिख तो जाता कि पारा कितना चढा हे...तोबा हे जी इस छिछोरिऑन से
जवाब देंहटाएंहा हा!! प्रवीण जी को पढ़ते यह ख्याल न आ पाया...अब मलाल हो रहा है. :)
जवाब देंहटाएंप्रवीण जी की पोस्ट यहाँ लेकर आई...वहाँ लिखा--मैं क्या हूँ.....सोच रही हूँ....उत्तम पोस्ट...
जवाब देंहटाएंयहाँ ---- मैं....सोच रही हूँ.....उत्तम.....हा हा हा
खुशदीप भाई आपने सही कहा की बोसॉन और फर्मिऑन के बीच छिछोरिऑन भी होता है ,लेकिन हर किसी को छिछोरिऑन नहीं कहा जा सकता.....सार्थक चिंतन और सार्थक सोच के समूह में शामिल होते ही छिछोरिऑन भी बोसॉन के गुणों को अपनाने लगता है...इसलिए बोसॉन बनने और बनाने का प्रयास जारी रखना चाहिए....आज कुछ स्वार्थी धनपशुओं द्वारा अपने निहित गंदे स्वार्थ की वजह से छिछोरिऑन को हर जगह सम्मान या प्रोत्साहन दिलाने तथा बोसॉन के महत्व को खत्म करने की साजिश की जा रही है जिसे हमसब मिलकर रोकने का काम कर सकते है और हर जगह बोसॉन को सम्मानित व प्रोत्साहित कर समाज को बरबाद करने की साजिश की नाकाम कर सकते हैं...
जवाब देंहटाएंबताईये, बीच में कितना बड़ी रिक्तता आ गयी थी, आपने पूरी कर दी, न जाने कितने लोग निश्चय नहीं कर पा रहे हैं। आभार।
जवाब देंहटाएंमहान है आप :)
जवाब देंहटाएंयदि ९.८ की रफ़्तार से सैंडल आये तो पलायन वेग से भागना ही श्रेयस्कर है । मस्त पोस्ट है Smiles..
जवाब देंहटाएंअमर भैया की जय हो ॥
जवाब देंहटाएंखुद को इलेक्ट्रौन कह रहे हो ! मियां इलेक्ट्रौन तो नेगेटिवली चार्ज्ड होते हैं । और फोटोन तो पार्टिकल ही नहीं होते । और चार्ज सिर्फ पार्टिकल में होता है ।
हा हा हा ! कुछ ज्यादा ही गड़बड़ घोटाला हो गया ।
छिनार(या )न भी कुछ है :)
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जवाब देंहटाएंयह पोस्ट पढ़ने के बाद
हर आम-ओ-ख़ास को इत्तिल्ला दी जाती है
कि आज से खुशदीप मेरा उस्ताद और मैं उसका शागिर्द ।
उनको हमारे अस्थायी ज़मूरे के पद से कार्यमुक्त किया जाता है ।
बड़ी अच्छी उड़ान लगायी थी, किन्तु बड़ी जल्दी मुँडेर पर आ गिरे !
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जवाब देंहटाएंडॉ अमर कुमार जी,
जवाब देंहटाएंलाख जन्म ले लूं फिर भी आप जैसा नहीं बन सकता...
शागिर्द हमेशा शागिर्द रहेगा, उस्ताद हमेशा उस्ताद...
जय हिंद...
उस्ताद क्यों उस्ताद रहता है, ये आपको यहां डॉ अमर कुमार जी की दूसरी टिप्पणी से पता चल जाएगा...
जवाब देंहटाएंक्या कहा, कुछ पढ़ा ही नहीं जा रहा है...
इसे पढ़ने के लिए मेरे जैसे शागिर्द की नज़र चाहिए...
डॉ अमर कुमार जी ने मुझे इनविज़िबल राइटिंग में समझाया है-
ओ छोटे मियां दीवाने, ऐसे न बनो,
हसीना क्या चाहे, हमसे सुनो...
जय हिंद...
छिछोरिऑन तो सर्वव्यापक है। lagata hai kahi kuch coldwar chal raha hai......
जवाब देंहटाएंjai baba banaras.........
अब समझ में आया कि क्लासिकल फिजिक्स क्या होता है।
जवाब देंहटाएंमजे हैं न्यूटनजी के फ़ालोवर के। :)
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