कितना बदल गया इनसान...खुशदीप




देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान,
कितना बदल गया इनसान, कितना बदल गया इनसान...


 दशकों पहले कवि प्रदीप का लिखा ये गीत आज के माहौल में भी कितना फिट बैठता है...फिर कौन कहता है कि हमने तरक्की की है...जात-पात देश में खत्म हुई या और बढ़ गई है...अब तो हर जात, हर समूह अपने लिए रिज़र्वेशन मांगने लगा है...मज़हब के नाम पर पहले भी तलवारें खिंच जाती थीं, अब भी फ़साद हो जाते हैं...हां अगर कुछ बदली है तो वो है आदमी की पैसे और रिश्तों को लेकर सोच...कैसे भला...हास्य कवि सुरेंद्र शर्मा से सुनी एक कहानी के ज़रिए बताता हूं...

लेकिन पहले अपनी पिछली पोस्ट पर हिंदी ब्लॉगर के नाम से आई एक टिप्पणी का ज़िक्र करना चाहता हूं...ये पोस्ट मैंने भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हज़ारे की मुहिम और उससे जुड़े नुक्कड़ नाटक- भ्रष्टाचार पर लिखी थी...टिप्पणी में कहा गया था...इसकी सफलता से व्‍यंग्‍य लेखकों को तो इससे बहुत बड़ा नुकसान होने वाला है...शायद टिप्पणीकार भाई का आशय यही था कि भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम सफ़ल हो गई व्यंग्य लिखने वालों का क्या होगा...टिप्पणीकार जी अगर आप चार्ली चैपलिन के काम को बारीकी से देखें तो ये वो शख्स था जो खुद ट्रेजिडी बन कर लोगों को हंसाता था...सबको हंसाने वाले जोकर के अंदर कितना दर्द छुपा होता है, कितना अंर्तद्वन्द्व हर वक्त चलता रहता है, ये वो कभी बाहर नहीं आने देता...क्योंकि वो खुद तमाशा बनकर अपने हर दर्शक के चेहरे पर मुस्कान देखना चाहता है...

अरे ये रौ में मैं क्या लिखने लग गया...हां तो मुझे सुरेंद्र शर्मा जी से सुनी एक कहानी आप को बतानी थी...पैसों और रिश्तों को लेकर इनसान की बदली सोच पर...लीजिए पेश है-

पहला ज़माना-
एक शख्स अपने किशोर बेटे के साथ पहाड़ी पर चढ़ रहा था...पिता के हाथ में भारी-भरकम पोटली थी...और किशोर ने अपने छोटे भाई को गोद में उठा रखा था...आधे रास्ते में पहुंच कर पिता थक गया...पोटली एक तरफ़ रखकर सुस्ताने लगा...फिर किशोर बेटे से कहा...तू भी बोझ उठाए-उठाए थक गया होगा, छोटे भाई को ज़मीन पर छोड़ कर कुछ देर के लिए सुस्ता ले...इस पर किशोर ने जवाब दिया...ये बोझ नहीं है, ये मेरा छोटा भाई है...ढलान से फिसल गया तो...ये ख़तरा मैं कभी नहीं लूंगा...इसे गोद में ही उठाए रखूंगा...


आज का ज़माना-
एक शख्स और किशोर ने उसी तरह पहाड़ी पर चढ़ना शुरू किया...पिता के हाथ में भारी पोटली और किशोर की गोद में छोटा भाई...किशोर ने देखा कि भाई ऊंचाई तक जाने में बाधा बन रहा है, उसने भाई को वहीं पटका और रेस लगाकर पहाड़ी पर चढ़ गया...उसने पहाड़ी के ऊपर से ही पिता को आवाज़ दी...ये जो भारी पोटली उठा रखी है, उसे वहीं छोड़ कर तेज़ी से ऊपर आ जाओ...इस पर पिता ने कहा...इस पोटली को कैसे छोड़ दूं...इसमें ठूंस-ठूंस कर नोट जो भरे हैं...


मॉरल ऑफ द स्टोरी-
पुराने ज़माने में रिश्ते प्यार करने के लिए होते थे और चीज़ें इस्तेमाल करने के लिए...आज के ज़माने में ये बस उलटा हो गया है...

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21 टिप्पणियाँ
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  1. इंसान हे ही कहां जो बदलेगा, सब तरफ़ हेवान ही बचे हे, इंसान तो कही सहमा दुबका बेठा हे, ओर हेरान आंखो से देख रहा हे, सब को... यह भाई, यह बेटा, यह मां सब को क्या होगया.......

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  2. इस व्यवस्था ने इंसान को बदला है। उस की इंसानियत को कहीं छुपा दिया है। लेकिन बहुसंख्यक लोगों में इंसानियत हमेशा रहती है। यदि सब हैवान हो जाएँ तो वे किस के साथ हैवानियत बरतेंगे। हर हैवान के पीछे दस इंसान तो अवश्य ही होते हैं।
    अब ये 90 प्रतिशत इंसान हैवानों की हैवानियत सहन कर रहे हैं, यही सारी समस्या की जड़ है। ये 90 प्रतिशत इंसान जिस दिन ठान लेंगे हैवानियत हवा होते देर न होगी।

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  3. बचपन के बाद आज यह गाना पूरा सुना। अक्षरशः सत्य है।

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  4. मैं दिनेशराय जी की बात से सहमत हूँ। अभी रिश्‍तों में बहुत उष्‍मा शेष है। यह ऐसा प्रेम है जो कभी समाप्‍त नहीं होगा चाहे कितना ही आर्थिक युग आ जाए। हाँ प्रतिशत घटता बढ़ता रहेगा।

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  5. खुशदीप जी मैं तो आशावान हूँ और प्रयासरत भी हूँ लेकिन कभी-कभी दोहरे चरित्र वाले लोगों को देखकर प्रयास के प्रति मायूसी जरूर होती है लेकिन वहीँ कुछ सच्चे इंसान जो उच्च पदों पे बैठे होने के बाबजूद इंसानियत के लिए सबकुछ करने की भावना से ओत प्रोत ना सिर्फ सोच रखते हैं बल्कि सबकुछ करने व भरपूर सहायता को भी तत्पर रहतें हैं को देखकर मेरे प्रयास को नयी ताकत और उम्मीद मिल जाती है....समाज में हर तरह के इंसान हैं और ऐसे सार्थक प्रयासों की बदौलत अब तो कुछ बरे धनपशु भी इंसानियत को जिन्दा करने तथा समाज में फैले भयंकर असमानता को दूर करने के लिए सोचना प्रारंभ कर चुके हैं.....इन सबके बीच इतना जरूर है की ईमानदारी आज गंभीर संकट में है तथा छल और कपट मजे में है.....जिसे बदलने के लिए हमसब को मिलकर प्रयास करना होगा....आपका अपने लेख के माध्यम से इस दिशा में जागरूक प्रयास सराहनीय है....मेरा आग्रह और भी ब्लोगर मित्रों से है की वो भी अन्ना हजारे जी के इस दूसरी आजादी के मुहीम को अपना एक पोस्ट जरूर समर्पित करें.....

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  6. पुराने ज़माने में रिश्ते प्यार करने के लिए होते थे और चीज़ें इस्तेमाल करने के लिए...आज के ज़माने में ये बस उलटा हो गया है...

    बिलकुल सही कहा खुशदीप भाई.... यही तो रोना है, लेकिन हम शायद बस रोना ही रोते हैं, जिस दिन करने पर आ जाए, सब ठीक हो जाएगा...

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  7. हवा का रुख बदल गया है, समय ही कुछ ऐसा है।

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  8. सार बिल्कुल खरा उतरता है. प्रदीप जी के कई गाने मैंने बड़े सहेज कर रखे हैं...

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  9. haqiqut dinesh dadda ne kah di hai.......

    yse apki moral story galat nahi hai.......

    pranam.

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  10. सही लिखा है आपने।
    इंसान काफी बदल गया है।
    अब मतलब के रिश्‍ते रह गए हैं।
    सब अपने अपने स्‍वार्थ के पीछे भाग रहे हैं।

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  11. तेजी से बदल रहे सामाजिक परिवेश में इन्सानी सोच भी तेजी से बदल रही है किन्तु फिर भी जीवन तो रिश्तों के ईर्द-गिर्द ही चल रहा है और यही इसकी अनिवार्यता भी है ।

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  12. मै नहीं मानती की मानव सिर्फ अच्छा या बुरा या ये कहे की कला या सफ़ेद होता है | हर इन्सान में अच्छाई और बुराईया दोनों होती है यानि वो ग्रे कलर का होता है | ज्यादातर लोग एक दायरा बना कर रखते है की इसके साथ सिर्फ रिश्ते निभाना है और किसके साथ मतलब का रिश्ता रखना है | कोई भी किसी भी युग में पूरी तरह से अच्छा नहीं बन सकता है | परिस्थितियों और समय के साथ रिश्ते हर युग में बदलते है कैकेई माँ भी राम के लिए एक दिन सौतेली बन गई क्योकि तब उन्हें अपने और दुसरे के बच्चे की खुसी में से एक को चुनना था और उन्होंने अपने बच्चे की ख़ुशी को चुना | सब इतने बुरे बन जाये तो दुनिया एक दिन भी नहीं चल पायेगी |

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  13. ऐसा नहीं है...हर जमाने में अच्छे-बुरे लोग थे...हाँ उनकी प्रतिशत ज्यादा कम होती रहती है...

    जब मन दुखता है...तो जरूर ऐसा लगता है....कि दुनिया कितनी बदल गयी है...

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  14. riste banana aasan nahi ,

    risto ko nibhana aasan nahi,

    jai baba banaras........

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  15. आपकी पोस्ट पढ़ कर अपना एक शेर सुनाने का मन हो आया है...सुना दू...लो सुनो:

    तोल कर रिश्ते नफा नुक्सान में
    आज तन्हा किस कदर बंदा हुआ

    नीरज

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  16. वाकई , रिश्ते अब नोटों के आगे फीके हो गए हैं ।

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  17. आज भी 'प्रेम ही सत्य है' हाँ विकास के बोझ से आस्था और विश्वास के मूल्य दब गए हैं..मरे नहीं...

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  18. मेरी लड़ाई Corruption के खिलाफ है आपके साथ के बिना अधूरी है आप सभी मेरे ब्लॉग को follow करके और follow कराके मेरी मिम्मत बढ़ाये, और मेरा साथ दे ..

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