कल की मेरी पोस्ट पर वंदना अवस्थी दुबे जी का कमेंट मिला-खुशदीप जी, आपकी मेल आईडी बहुत खोजी, नहीं मिली (बहुत मन था आपकी बेवकूफ़ियां पढ़ने और पढ़वाने का)...
वंदना अवस्थी दुबे |
दरअसल हम औरों की तरह अपना दिमाग हर वक्त इस्तेमाल नहीं करते रहते...अब बताओ ये खर्च करते करते खत्म हो गया तो फिर किसके दर पर जाएंगे इसे मांगने...कोई आसान किस्तों पर भी नहीं देगा...इसलिए वंदना जी को मुझसे पूछना चाहिए था कि मेरी एक समझदारी कौन सी है...चलिए इस पोस्ट के आखिर में बताऊंगा अपनी समझदारी...
प्रवीण पाँडेय |
लेकिन उससे पहले अपने आदर्श मक्खन के जीनियस दिमाग के बारे में बताना ज़रूरी समझता हूं...आज सुबह प्रवीण पांडेय की पोस्ट पर उन्होंने ज़िक्र किया था आफिस जाते वक्त उन्हे दो किलोमीटर का सफ़र तय करना पड़ता है और शाम को वापसी पर लौटते हुए ये सफ़र एक किलोमीटर का ही रह जाता है...पढ़ कर चकराया, ये कैसा चमत्कार है, जो घर लौटने की खुशी फ़ासले को ही आधा पाट देती है...प्रवीण पाँडेय ने वन-वे जैसा कोई फंडा इसकी वजह बताया...
ये पढ़ते ही मुझे मक्खन की याद आ गई...मक्खन एक बार अपनी नई गाड़ी से मेरठ से दिल्ली के लिए चला तो 70 किलोमीटर का सफ़र उसने महज़ दो घंटे में ही पूरा कर लिया...लेकिन वापसी में उसे 18 घंटे लग गए...अब वापस आया तो पूरी तरह कुढ़ा हुआ...आते ही बोला, मैं मारूति वालों पर केस करने जा रहा हूं...मैंने पूछा...मक्खन भाई, ऐसा क्या बुरा कर दिया मारूति वालों ने...मक्खन तपाक से बोला...बताओ, ये भी कोई बात हुई, जाने के लिए तो चार-चार गियर दे रखे हैं और वापसी के लिए एक ही रिवर्स गियर...शीशे से बाहर निकाल कर पीछे देखते रहने से मुंडी भी हथौड़े की तरह सूज गई है...वाकई मक्खन की बात में लॉजिक है...गाड़ियां बनाने वालों पर जरुर मुकदमा ठोंक देना चाहिए...वापसी के लिए भी चार गियर होने चाहिए...
अब तक वंदना जी आपको थोड़ा आइडिया तो हो ही गया होगा मेरी समझदारी का...लेकिन आपका आदेश है तो बता ही देता हूं...
डेढ़ दशक पुराना किस्सा है मेरी समझदारी का...मेरे किसी परिचित का दिल्ली के एम्स अस्पताल में आपरेशन हुआ था...वो आईसीयू में भर्ती थे...मैं उन्हें देखने पहुंचा तो किसी बड़े अस्पताल के आईसीयू में जाने का ये मेरा पहला अनुभव था...वहां हरे रंग के मास्क टाइप के कपड़े पड़े थे...मैं उनमें से एक उठा कर नाक मुंह पर बांधने लगा...फिल्मों में देख रखा था कि इन्फेक्शन से बचने-बचाने के लिए डॉक्टर और नर्स मुंह पर कपड़ा बांधे रखते हैं...लेकिन ये क्या वो कपड़ा किसी तरह मेरे मुंह पर फिट ही नहीं हो रहा था...वहां लॉबी में खड़ा-खड़ा मैं कपड़े से जूझ रहा था कि तभी एक नर्स वहां आई और मुझे देखकर मुस्कुराने लगी...मैंने सोचा अजीब नर्स है...आईसीयू में भी हंस रही है...लेकिन उस नर्स ने कुछ कहा नहीं...उसने रैक से एक और हरा कपड़ा उठाया और इशारा करके दिखाया कि इसे पैर में पहना जाता है...अब उसके बाद मेरे ऊपर क्या बीती होगी, इसका आप अंदाज़ लगा सकते हैं...यही सोच रहा था कि कहां मुंह छिपाऊं...अब ये मेरी समझदारी नहीं तो और क्या थी कि फुट-कवर को ही मास्क समझ बैठा था...
बेवकूफियों की चर्चा बहुत लोकप्रिय रहीं!
जवाब देंहटाएंमजेदार है!
जवाब देंहटाएंहा हा!! गनीमत कि फुटकवर था. :)
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जवाब देंहटाएंहम भी यही कहेंगे कि, " मजेदार है !"
हम तो मक्खन के फालोवर हैं ...
जवाब देंहटाएंशुभकामनाये !
मजेदार :)
जवाब देंहटाएंमजेदार है!
जवाब देंहटाएंबहुत समझदारी से काम लिया आपने..........हा हा हा..जो वन्दना जी को ही यहाँ ले आए...और हाँ ये मक्खन से कम नही है--जिनीयस दिमाग की बात कर रही हूँ प्रवीण जी के
जवाब देंहटाएंहा हा हा: )
जवाब देंहटाएंज़िन्दगी में बेवकूफियां न हों तो खिलखिलाने के अवसर बहुत कम हो जायेंगे। आपकी पोस्ट पढ़कर एक निर्दोष मुस्कराहट आ गयी । --आभार हंसाने के लिए, ऐसे अवसर कम मिलते हैं ।
जवाब देंहटाएंबेवकूफियाँ न रहें तो जीवन नीरस हो जायेगा।
जवाब देंहटाएंjai ho makkhan ki..:)
जवाब देंहटाएं------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
जवाब देंहटाएंआप जो ना करो कम ही है !
जवाब देंहटाएंजय हिंद !
पूरबिया जी,
जवाब देंहटाएंये कौन सी नई भाषा है...शायद एक अप्रैल को ही पढ़ी जा सकेगी...
जय हिंद...
शिवम् मिश्रा has left a new comment
जवाब देंहटाएंआप जो ना करो कम ही है !
जय हिंद !
आप की मजेदार समझदारी और उस पर समीर जी की मजेदार टिप्पणी :))))
जवाब देंहटाएंहा हा हा……………बहुत ही मज़ेदार्।
जवाब देंहटाएं:)
जवाब देंहटाएं::))
:::)))
होली के पर्व की अशेष मंगल कामनाएं।
धर्म की क्रान्तिकारी व्यागख्याै।
समाज के विकास के लिए स्त्रियों में जागरूकता जरूरी।
जय हो मक्खन भैया की.
जवाब देंहटाएंरामारम.
बहुत ही मजेदार :)
जवाब देंहटाएंखुशदीप जी, आज के जमाने में समझदार होना और दिखना दोनों ही दुख के कारण हैं . . हमारे पड़ौस में एक सज्जन अक्सर कहते हैं . . अगर सुख चाहिए तो मूर्ख बन कर रहिए । सी पी बुद्धिराजा
जवाब देंहटाएंअरे भैया , इतना भी नहीं समझे । नर्स बेवक़ूफ़ बना गई आपको ।
जवाब देंहटाएंअरे भैया , इतना भी नहीं समझे । नर्स बेवक़ूफ़ बना गई आपको ।
जवाब देंहटाएंमक्खन और आपके दोनों केसों में
जवाब देंहटाएं'नाच न आये आँगन टेडा'
मक्खन को तो मारुतिवालो से इंजिन पीछे भी लगवाने को कहना था और आपको उल्टा होकर फिर ट्राई करना था फुट मास्क को.
जो ऐसे कारनामे करते हैं
जवाब देंहटाएंवे ही तो सच्चे हिन्दी के
अच्छे ब्लॉगर बनते हैं
खुश करते हैं सबको और
जलाते हैं मन में दीप
सबके खुशियां जीते हैं
खुशियां बांटते हैं।
मक्खन और मक्खन दोनो BADAUT के हैं :)
जवाब देंहटाएंराम राम
आज तो मखन ओर ढक्कन दोनो ने खुब हंसाया जी.
जवाब देंहटाएं:) देखा? हमें मालूम था कोई न कोई बड़ी समझदारी ज़रूर की होगी आपने. बस इसीलिये तो बहुत मन था आपकी मार्केदार समझदारी पढवाने का. चलिये, कसर यहां पूरी हुई, शुक्रिया. वैसे आईडी अभी भी नहीं है मेरे पास, अगली होली पर कोई और खुराफ़ात सूझी तब?
जवाब देंहटाएंबहुत मज़ेदार पोस्ट है खुशदीप जी
जवाब देंहटाएंऐसी समझदारियां न हों तो ज़िंदगी का मज़ा ही कहाँ रहेगा