ई-मेल से एक फोटो मुझे मिली...देखी तो मैं हैरान रह गया...ई-मेल में दी गई जानकारी के मुताबिक ये फोटो 1918 में खींची गई थी...इस अद्भुत फोटो को हाल ही में किसी ने लाइन पर डाला है...ये फोटो अमेरिका के आयोवा प्रांत के कैम्प डॉज में खिंची गई थी...उस वक्त वहां युद्ध के लिए ट्रेनिंग दी जा रही थी...स्टैच्यू आफ लिबर्टी की आकृति को उभारने के लिए 18,000 लोगों का एक-साथ फोटो में इस्तेमाल किया गया...अगर ये फोटो कम्प्यूटर से छेड़छाड़ कर नहीं गढ़ी गई है तो वाकई 93 साल पहले जिसने भी इसकी कल्पना की, और जिसने ये फोटो खींची, वो वाकई कमाल के लोग होंगे...अब कोई फोटोग्राफी का जानकार ही बता सकता है कि ये फोटो असली है या नहीं...फोटो पर दो बार क्लिक कर बड़ा करके देखने से ही इसकी खासियत पता चलेगी...
93 साल पहले खींची गई बेजोड़ फोटो...खुशदीप
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बुधवार, मार्च 23, 2011
ई-मेल से एक फोटो मुझे मिली...देखी तो मैं हैरान रह गया...ई-मेल में दी गई जानकारी के मुताबिक ये फोटो 1918 में खींची गई थी...इस अद्भुत फोटो को हाल ही में किसी ने लाइन पर डाला है...ये फोटो अमेरिका के आयोवा प्रांत के कैम्प डॉज में खिंची गई थी...उस वक्त वहां युद्ध के लिए ट्रेनिंग दी जा रही थी...स्टैच्यू आफ लिबर्टी की आकृति को उभारने के लिए 18,000 लोगों का एक-साथ फोटो में इस्तेमाल किया गया...अगर ये फोटो कम्प्यूटर से छेड़छाड़ कर नहीं गढ़ी गई है तो वाकई 93 साल पहले जिसने भी इसकी कल्पना की, और जिसने ये फोटो खींची, वो वाकई कमाल के लोग होंगे...अब कोई फोटोग्राफी का जानकार ही बता सकता है कि ये फोटो असली है या नहीं...फोटो पर दो बार क्लिक कर बड़ा करके देखने से ही इसकी खासियत पता चलेगी...
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खुशदीप भैया गज़ब है
जवाब देंहटाएंखुश दीप जी, यह फ़ोटो असली ही हे, ओर यह फ़ोटो आसमान से खींची गई हे,यानि गुबारे मे बेठ कर या हवाई जहाज से, ऎसी फ़ोटो आप को नेट पर बहुत मिल जायेगी, धन्यवाद
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंफोटो तो असली ही है, किन्तु सम्पूर्ण रूप से नहीं... इसे बाद में टॅच-अप किया गया है ।
प्राकृतिक रोशनी में ही यह चित्र लिया गया होगा, और गुब्बारा भी उपयोग में लाया गया है, किन्तु कहीं पर परछाँई ( शैडो ) का लेश मात्र भी नहीं है । साथ ही तब तक इतने शक्तिशाली ज़ूम का प्रादुर्भाव भी सँभवतः नहीं हुआ था ।
चौदवहीं के चाँद में यह फोटो न ली गयी होगी, आफ़ताब के सहारे सही, जो भी हो यह ख़ुदा की कसम लाज़वाब है ।
P.S.
खुशदीप तेरे ब्लॉग पर टिप्पणी फ़ौरन दिख जाती है, अच्छा लगता है । अब देख न... राज भाटिया जी ने सोचने को एक दिशा दी, तत्काल कुछ सँदर्भों के सहारे मैंने उसका तोड़ निकाल लिया इसे कहते हैं त्वरित सँवाद... वैसे तो आप बहुत अच्छा लिखते ही हैं, आपसी भाई-चारा निभाने में भी आपका कोई ज़वाब नहीं । पर...
असलियत जो भी हो...है अद्भुत.
जवाब देंहटाएंफोटोग्राफी का आविष्कार 1839 में हो चुका था। उस के अस्सी वर्ष बाद ये चित्र लेना बहुत मुश्किल काम न था। लेकिन इस तरह के विशाल मानवीय संयोजन का तैयार करना अवश्य ही अद्भुत है।
जवाब देंहटाएंडॉ अमर कुमार जी,
जवाब देंहटाएंवैसे तो आप बहुत अच्छा लिखते ही हैं, आपसी भाई-चारा निभाने में भी आपका कोई ज़वाब नहीं । पर...
आपकी इस पर शालीमार फिल्म का गाना याद आ गया...
हम बेवफ़ा हर्गिज़ न थे,
पर हम वफ़ा कर न सके,
हमको मिली इसकी सज़ा,
पर हम गिला कर न सके...
जय हिंद...
तस्वीर कमाल कि है.
जवाब देंहटाएंइसमें कुछ तो छेड़छाड़ की गई लगती है... अभी तो रास्ते में हैं, वसंत कुञ्ज पहुंचे हैं... ऑफिस में जाकर चेक करेंगे...
जवाब देंहटाएंबढ़िया नयी जानकारी ...अमर कुमार साहब से सहमत हूँ ! शुभकामनायें !!
जवाब देंहटाएंडॉ अमर कुमार जी,
जवाब देंहटाएंसतीश सक्सेना भाई जी की इस मासूम सहमति पर अपनी राय अवश्य दीजिए...
जय हिंद...
बढ़िया नयी जानकारी
जवाब देंहटाएंखुशदीप जी, फोटोग्राफी की तकनीक अब भले ही विकसित हो चुकी है लेकिन उस दौर में कल्पनाशक्ति ही अपना कमाल दिखाती थी । अब स्थिति उलट है, अब कल्पनाशक्ति खो चुकी है और कैमरे ऐसे आ गए हैं कि छोटा सा बच्चा भी अच्छी तस्वीर उतार सकता है । बहरहाल पुरानी फोटो का देखना अच्छा लगा । दिन मंगलमय हो ।
जवाब देंहटाएंसी पी बुद्धिराजा
इस तस्वीर की असलियत के बारे में जानकार लोग ही बता सकते हैं.लेकिन लगता है आप भी उड़ते ही रहतें है खुशदीप भाई ,इस बार टाइम मशीन में बैठ
जवाब देंहटाएंसन १९१८ में पहुँच गए.जादू का जादू अभी उतरा नहीं है शायद.
चित्र अद्भुत है पर असली होने पर थोडा शक है--कम्प्यूटर युग में और ग्राफिक में ऐसे अनोखे चित्र भरे पड़े है --
जवाब देंहटाएंवाह... अद्भुत.
जवाब देंहटाएं@ सतीश सक्सेना भाई जी की इस मासूम सहमति पर अपनी राय अवश्य दीजिए...
जवाब देंहटाएंबच्चा, इस पर राय देने के लिये मुझे अनारकली से मिलना पड़ेगा, उनका पता मरहूम शहज़ादे सलीम से पूछना पड़ेगा !
बात ख़त्म करो, वरना बगावत की बू आ जायेगी ।
अद्भुत ..गज़ब...विस्मयकारी
जवाब देंहटाएंअरे कमाल है...आँखों को विशवास ही नहीं होता...अद्भुत फोटो...
जवाब देंहटाएंनीरज
amazing and it lead me to search for more and found them on this link
जवाब देंहटाएंhttp://www.google.co.in/images?hl=en&rlz=1T4GGLL_enIN331IN331&q=human+statue+of+liberty&um=1&ie=UTF-8&source=univ&sa=X&ei=-oKJTZrpIoS6ugOLjs3BDg&ved=0CD8QsAQ
hats off for this post
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जवाब देंहटाएंthis is very intresting very difficult to belive if these are real photos !!!
SUNDAR HAI
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात है ...
जवाब देंहटाएंकभी समय मिले तो http://shiva12877.blogspot.com ब्लॉग पर भी अपने एक नज़र डालें .फोलोवर बनकर उत्सावर्धन करें .. धन्यवाद .
सचमुच कमाल की फोटो।
जवाब देंहटाएंहोली के पर्व की अशेष मंगल कामनाएं।
जानिए धर्म की क्रान्तिकारी व्याiख्याo।
bade khoji ho pata nahi kiya kiya khoj lete ho ......
जवाब देंहटाएंjai baba banaras.....
बहुत बेहतरीन चित्र, तकनीकी पक्ष में हमारा कोई अनुभव नही है. पर गुरूदेव डाँ. अमर कुमार जी की बात में दम है.
जवाब देंहटाएंरामराम.
गज़ब की फोटो है यह तो।
जवाब देंहटाएंखुशदीप जी,
जवाब देंहटाएंतश्वीर वास्तव में कमाल की है!
किन्तु अमर जी की बात से सहमत।
1-किसी भी मानव की परछाई नजर नहीं आती।
2- पृष्ठ्भूमि में इमारतों के अनुपात में मैदान इतना बडा नहीं कि 18000 मानव आ पाएं। और अधिकांश मैदान फिर भी शेष रहे।
3- प्रतिमा के वस्त्रों की सलवटें दर्शित करने के लिये दिया गया सफेद रंग स्पष्ठ नजर आता है।
4-मैदान में इतने मानवों को इकत्रित करने में होने वाले मानव पदचिंन्ह मैदान से नदारद है।
कुल मिलाकर शानदार चित्र निर्माण है।
अच्छी कल्पना है ये तस्वीर ।
जवाब देंहटाएंजो भी है पर चित्र बड़ा शानदार है
जवाब देंहटाएंखुशदीप जी, आपकी मेल आईडी बहुत खोजी, नहीं मिली :( बहुत मन था आपकी बेवकूफ़ियां पढने और
जवाब देंहटाएंपढवाने का. :(