कॉमनवेल्थ गेम्स 2010 का शुभंकर शेरा
ये ठीक है 2003 में जमैका में दिल्ली को कॉमनवेल्थ गेम्स अलॉट हुए तो आप नहीं अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे...एनडीए की सरकार थी...लेकिन मई 2004 से तो आप प्रधानमंत्री हैं...करीब छह साल तक सुरेश कलमाडी से कॉमनवेल्थ की तैयारियों को लेकर क्यों सवाल नहीं किए गए...सरकार की तंद्रा इस साल अगस्त में तब ही टूटी जब मीडिया ने भ्रष्टाचार को लेकर सवाल उठाने शुरू किए...लेकिन तब तक कॉमनवेल्थ गेम्स को बामुश्किल 50 दिन ही बचे थे...प्रधानमंत्री ने कैबिनेट सेक्रेटरी के एम चंद्रशेखर को कॉमनवेल्थ गेम्स की निगरानी का ज़िम्मा सौंपा और सब फैसले लेने की ज़िम्मेदारी शहरी विकास मंत्री जयपाल रेड्डी की अगुआई वाले उच्चाधिकार प्राप्त ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स को दी...जयपाल रेड्डी संसद को आश्वासन देते रहे कि कॉमनवेल्थ गेम्स पूरी तरह वर्ल्ड क्लास होंगे...खेल मंत्री मनोहर सिंह गिल कहते रहे कि उन्होंने हर खेल खेला हुआ है, इसलिए कॉमनवेल्थ गेम्स को लेकर निश्चिंत रहे...जो थोड़ी बहुत खामियां हैं, सब तय वक्त से पहले ही दूर हो जाएंगी...
लेकिन अब पानी सिर के ऊपर से निकल गया तो प्रधानमंत्री को खुद ही कमान संभालनी पड़ी...लेकिन अब काफ़ी देर हो चुकी है...मैं भी देश के साथ यही दुआ कर रहा हूं कि कॉमनवेल्थ गेम्स सही तरीके से निपट जाए और देश की लाज बच जाए...लेकिन ये जवाब तो सरकार को आज नहीं तो कल देना ही पड़ेगा कि जिस कॉमनवेल्थ गेम्स का बजट शुरू में 1890 करोड़ रुपये आंका गया था वो 70,000 करोड़ का आंकड़ा कैसे पार कर गया...कह सकते हैं कि नब्बे फीसदी पैसा तो दिल्ली के फेसलिफ्ट पर लगा है...लेकिन इसमें से कितना पैसा भ्रष्टाचार निगल गया, जवाब देने वाला कोई नहीं है...आखिर ये पैसा हम और आप जैसे टैक्स देने वालों का ही तो था...किस हैसियत से कलमाडी एंड कंपनी माले मुफ्त दिले बेरहम की तर्ज पर खर्च करती रही...क्यों अंतराष्ट्रीय साख वाले इस मुद्दे पर सिर्फ एक आदमी कलमाडी को ही सारे अधिकार सौंपे रखे गए...जैसे आज प्रधानमंत्री के दखल देने पर पूरा अमला सक्रिय हुआ है, ऐसा ही पिछले साढ़े छह साल में क्यों वक्त-वक्त पर नहीं किया जाता रहा...क्यों नहीं ऑर्गनाइजिंग कमेटी, दिल्ली सरकार, पीडब्लूडी के नुमाइंदों को वक्त-वक्त पर बुला कर निर्माण कार्य की प्रगति की रिपोर्ट ली जाती रही...
राष्ट्रीय साख के आयोजनों की तैयारी राम भरोसे रह कर नहीं की जाती...देश के सामने ये मिसाल इंदिरा गांधी ने 1982 में एशियाई खेलों का सफल आयोजन करा कर दी थी...वो भी तब जब सरकार को गेम्स की तैयारी के लिए सिर्फ दो साल का वक्त मिला था...अप्रैल 1980 में दिल्ली में एशियाई खेल कराने का फैसला किया गया तो इंदिरा गांधी को दोबारा सत्ता में आए तीन महीने ही हुए थे...इससे पहले चरण सिंह देश के प्रधानमंत्री थे...चरण सिंह ने खर्च का हवाला देते हुए एशियाई खेल कराने से इनकार कर दिया था...लेकिन इंदिरा ने एशियाई खेल कराने का फैसला लिया तो उसे देश के साथ अपनी प्रतिष्ठा से भी जोड़ लिया...इसी दौर में 23 जून 1980 को दिल्ली में संजय गांधी की विमान हादसे में मौत हुई...लेकिन ज़िम्मेदारियों से इंदिरा विचलित नहीं हुईं...
एशियाई खेलों की कामयाबी इंदिरा गांधी के लिए कितनी अहम थी, इसका सबूत यही है कि उन्होंने एशियाई गेम्स की स्पेशल ऑर्गनाइजिंग कमेटी (एसओसी) का हेड और किसी को नहीं बड़े बेटे राजीव गांधी को बनाया...राजीव खुद निर्माणाधीन स्टेडियमों में जाकर मुआयना किया करते थे...
एशियाई खेल 82 का शुभंकर अप्पू
कल अगली किश्त में बताऊंगा कि एशियाई गेम्स से पहले दो साल में दिल्ली में क्या-क्या निर्माण हुए थे...और उसकी तुलना में पिछले साढ़े छह साल में कॉमनवेल्थ गेम्स की तैयारियों में पानी की तरह पैसा बहा कर क्या हासिल हुआ...
क्रमश:
बेचारे राजीव गांधी ६७ करोड के आरोप मे बदनाम हो गये यहा तो ६७००० करोड का हेर फ़ेर है . जय हो
जवाब देंहटाएंkya javab mil payega? ye javabdeh kab banenge?
जवाब देंहटाएंबस एक ही ईलाज है कि कलमाडी एण्ड कम्पनी की सारी सम्पत्ति जब्त कर लेनी चाहिए। लेकिन इनके खाते तो स्विस बैंक में होंगे? जनता कुछ दिन चीख-पुकार कर चुप हो जाएगी जी। पोल खोल जारी रखिए।
जवाब देंहटाएंगंभीर चिंतन है, लेकिन मेरी राय थोड़ी अलग है. आज भ्रष्टाचार पुरे देश का अभिन्न अंग बन गया है. मैं यह नहीं कह रहा हूँ की हम सब भ्रष्ट हैं, लेकिन हम से अधिकतर या यह कहें की 99 प्रतिशत लोग भ्रष्ट हैं. तो फिर हम यह क्यों उम्मीद रखते हैं कि बाकी लोग भ्रष्ट नहीं होंगे? क्या हमें भ्रष्टाचार के इन पहाड़ो से सीख नहीं लेनी चाहिए? क्या अब भ्रष्टाचार को समाप्त करने की कवायद हमारे आस-पास से ही शुरू नहीं होनी चाहिए? आखिर कब तक इस ज़िम्मेदारी से भागते रहेंगे हम खुद.
जवाब देंहटाएंरही बात कॉमनवेल्थ खेलों की, तो मेरे विचार से जनता को भी अब आगे आना चाहिए, हालाँकि पहले ही आना चाहिए था. अगर शासक वर्ग निकम्मा है तो देश के इज्ज़त केवल उनके ऊपर ही छोड़ना कायरता है. हमें खुद क्यों ना आगे बढ़कर अपनी ज़िम्मेदारी निभानी चाहिए. अपने-अपने घरों के आस-पास, अपनी कॉलोनियों की साफ़-सफाई जैसे छोटे-मोटे कार्यों की देखभाल तो हम कर ही सकते हैं.
@धीरू जी-हमें तो आज भी करोड़ की बात सुनकर गश आ जाता है...और फिर भ्रष्टाचार तो भ्रष्टाचार है...
जवाब देंहटाएं@अजित गुप्ता जी-एक की सम्पत्ति जब्त करने से क्या होगा. न जाने कितने लोग हैं, लाखों-करोड़ों की संख्या में हैं. नौकरशाह, व्यापारी, उद्योगपति, नेता. बहुत बड़ा मकड़जाल है...जिसे ध्वस्त करने के लिये जो हिम्मत चाहिये, वह किसी में है ही नहीं.
उम्मीद है तो सिर्फ अब रामदेव जी के भारत स्वाभिमान से....
एक काल्पनिक सवाल : यदि CWG आयोजन समिति के अध्यक्ष राहुल गाँधी होते, क्या तब भी मीडिया इतना हल्ला मचाता? सारी गलती हमारी ही है, समय रहते राहुल गाँधी को सारी जिम्मेदारियाँ सौंप देना थी… न कोई समस्या होती, न भ्रष्टाचार होता, न बवेला मचता…।
जवाब देंहटाएंअब देखो ना राजकुमार बाबा कैसे चुपचाप बैठे हैं… देश की "तथाकथित इज्जत" लुटी जा रही है और न तो "मम्मी" बोल रही हैं, न "बबुआ"… :) :)
bhaijee i appreciate your post........but see the
जवाब देंहटाएंbelow between the lines...
अब देखो ना राजकुमार बाबा कैसे चुपचाप बैठे हैं… देश की "तथाकथित इज्जत" लुटी जा रही है और न तो "मम्मी" बोल रही हैं, न "बबुआ"… :) :)
pranam
Adarniya khusdeep ji
जवाब देंहटाएंtruly brilliant..
keep writing.........all the best
एशियाड और कॉमनवेल्थ के कार्यों, तैयारियां, समय सीमा की तुलनात्मक विवेचना बढिया लगी। अगली पोस्ट का इंतजार है।
जवाब देंहटाएंलेकिन इन्दिरा से मनमोहन की तुलना कैसे हो सकती है जी।
कांग्रेस के विरोधी भी कहते हैं कि इन्दिरा जैसा नेता इस देश में दूसरा हो ही नहीं सकता।
प्रणाम स्वीकार करें
सुरेश जी कि टिपण्णी से अक्षरत सहमत हूँ..
जवाब देंहटाएंखुशदीप जी, मैंने १ माह पूर्व लिखा था - चोर उच्चके चौधरी ते लुच्ची रन प्रधान.
बहुत अच्छी विवेचना की है आपने. ये बात तो मेरे भी समझ के परे है कि जब प्रधानमंत्री इन खेलो को राष्ट्रीय सम्मान से जोड़ कर देख रहे है तो उनकी नींद खेल शुरू होने से १० दिन पहले ही क्यों खुली. समय समय पर स्थिति का जायजा नहीं लेना चाहिये था. ये सरकार का कैसा मैनेजमेंट है ?
जवाब देंहटाएंअब देश की इज्जत बची है क्या एक एक कर सारे बड़े खिलाडी नाम वापस ले रहे है कोई सुरक्षा के नाम पर कोई सफाई के नाम पर कोई बीमारी के नाम पर और तो और सुबह टीवी पर एक खिलाडी के लिए कहा गया की वो भ्रष्टाचार और अनियमितता के कारण नहीं आ रहे है , अन्तराष्ट्रीय मीडिया स्टिंग आपरेशन कर पोल खोल रही है या कहे की इज्जत डुबो चुकी है हालत ये है की न्यूजीलैंड के खेलो से हटने की संभावना बन चुकी है जो एक बार पहले भी खेल रद्द करने की बात कह चूका है .पूरा विश्व अब सब कुछ जान चूका है तो इज्जत अब बची क्या है जो बची नहीं है उसे हम कैसे बचाये | एक चीज हो सकती है जिसके पक्ष में अभी तक तो मै नहीं थी पर अब लगता है की ये देश की इज्जत बचा सकता है वास्तव में खेलो का हमें बहिष्कार करना चाहिए भ्रष्टाचार लापरवाही अव्यवस्था के खिलाफ इससे दो फायदे हो सकते है एक तो पूरे विश्व में ये सन्देश जायेगा की इस आयोजन में हो रही अव्यवस्था का कारण भारत का अक्षम होना नहीं है बल्कि यहा के अधिकारियो और आयोजन से जुड़े लोगों का निकम्मापन है तभी तो देखो की खुद वहा के लोगों ने इनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया है इससे इज्जत देश की नहीं सिर्फ इस आयोजन से जुड़े लोगों की जाएगी | दूसरा जो सबसे बड़ा फायदा होगा की सभी भ्रष्टाचारियो के खिलाफ कारवाही होगी सरकार पर फिर दबाव होगा और भविष्य में भी लोग इस तरह के कम करने से पहले डरेंगे नहीं तो इससे जुड़े लोग ये मान कर बैठे है कि बड़े खिलाडी तो आ नहीं रहे है अब तो सारे मैडल अपनेआप भारत के पास आ जायेंगे और हम सभी को उनकी संख्या दिखा कर खुश कर देंगे और लोग हमारे सारे काम भूल जायेंगे |
जवाब देंहटाएंसाँप तो निकल ही गया अब लकीर पीटने से क्या फ़ायदा………………किस पर असर होना है?
जवाब देंहटाएंएशियाड के समय तय्यारियां होती हुई दीखती थीं साफ़ तौर पर ..यहाँ तो अप्रैल में जब हम भारत आये तो लग ही नहीं रहा था कि कुछ हुआ भी है.
जवाब देंहटाएंदेश की कितनी इज्जत हो रही है विदेशो मै, यह कोन समझ सकता है,वेसे भारत के इन नेताओ की वजह से हम ने एक सोने का मेडल जीत लिया है, ओर एक रिकार्ड बना दिया है जिसे शायद कभी भी कोई ना तोड पाये ओर वो है भर्ष्टाचार का पुरे विश्व मै कोई बताये इस से बडा घटोला हुआ हो?जनता के दिलो दिमाग से खेले है यह कमीने नेता, इन नेताओ का सारा धन जब्त कर के इन के खान दान को देश से बाहर ना जाने दिया जाये, ओर जो भिखारी दिल्ली से बाहर निकाले है उन की जगह इन्हे बिठाया जाये.
जवाब देंहटाएंखुशदीप जी आपकी चिंता वाजिब है. लेकिन १९८२ में हुए खेलों में बोया गया भष्टाचार का बीज ही है जो अब इन राष्ट्रमंडल खेलों में एक विशाल वृक्ष बन चुका है. १९८२ के वक्त भी समय कि कमी का वास्ता देकर बहुत ही ऊँची दरों से सभी खेल परिसरों का निर्माण कराया गया था. उस वक्त जागरूकता इतनी नहीं थी कि ये छिपी बातें सामने आतीं. इस बार भी खेलों के आयोजन से जुडी सुविधाओं कि तैयारी में देरी जानबूझ कर कि गयी ताकि बाद में कम समय कि कमी का बहाना दिखा कर सरकारी पैसा लुटा जा रके. १९८२ में तो वास्तव में समय कि कमी थी अतः बात सामने नहीं आ पाये पर इस बार ऐसा बहाना नहीं चल पाया.
जवाब देंहटाएंमैं यहाँ एक बात और कहूँगा कि ये भ्रष्टाचार का हो हल्ला सिर्फ तभी तक है जब तक ये खेल ख़त्म नहीं होते. एक बार जब ये राष्ट्रमंडल खेल किसी ना किसी तरह से संपन्न करा लिए जायेंगे तब उसके बाद कोई भी सुरेश कलमाड़ी या उसके गुर्गों को सजा देने कि बात नहीं करेगा. बाद में सभी को आम माफ़ी दे दी जाएगी क्योंकि इस खेलों के आयोजन से कमाया गया पैसा सभी नेताओं में बटा है. हम और आप भी इन बातों को भूल दुबारा से भ्रष्ट कांग्रेसी सरकार के हाथों देश कि बागडोर सौंप देंगे.
70000 हज़ार करोड़ .. इसमे कितनी रोटियाँ आ जायेंगी भाई ?
जवाब देंहटाएंमैं भी देश के साथ यही दुआ कर रहा हूं कि कॉमनवेल्थ गेम्स सही तरीके से निपट जाए और देश की लाज बच जाए..
जवाब देंहटाएंबस अब दुआ के सिवा कुछ और नहीं बचा...इसी दुआ में हम सब शामिल हैं
मेरे ख्याल से होना तो ये चाहिए था खुशदीप भाई कि ऐसे किसी बडे अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजन से पहले सरकार को जनता का मत जानना चाहिए था ..और मुझे पूरा यकीन है कि जनता का फ़ैसला क्या होता और शायद इसीलिए सरकार की भी ये हिम्मत नहीं हुई कि वो ये कर सके ......बहरहाल अब तो ये खेल शांतिपूर्वक निपट ही जाएं तो भलाई है
जवाब देंहटाएंजय हो प्रधानमंत्री की !
जवाब देंहटाएंजय हो खेल मन्त्री की
और जय हो प्रबन्धन कमेटी की !
जै हो भारत के सारे भ्रष्टाचारियों की, उन सबकी आरती उतारनी चाहिये, और हम केवल ऐसे ही चिल्लाते रहेंगे पर होगा कुछ नहीं, क्या जनता कुछ ठोस कदम नहीं उठा सकती, कि ये भ्रष्टाचारी जनता से डरने लगें ?
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें :-)
जवाब देंहटाएंखेल है देखते चलिए. :)
जवाब देंहटाएंकुम्भकरण की नींद सोने का कुछ तो खामियाजा भुगतना पड़ेगा अपने प्रधानमंत्री जी को...वो भी क्या भुगतेंगे?...भुगतना तो आम जनता को पड़ रहा है
जवाब देंहटाएंपहले 'राम नाम' की लूट को कहते थे कि 'लूट सके तो लूट' अब कॉमन वैल्थ गेम्ज़ के जरिये कहते हैं कि 'जनता धन की लूट है तो लूट सके तो लूट' ...
भ्रष्टाचार हमारी नस-नस में समा चुका है...जिसका(सत्ता पक्ष+कॉमन वैल्थ गेम्ज़ से जुड़े हुए लोग) दाव लगता है वो बक्श्ता नहीं है...और जिसको कुछ नहीं मिलता है(विपक्ष व् अन्य) वो कूँ..कूँ करने से बाज़ नहीं आता है...
जनता बेचारी इसके अलावा और कर भी क्या सकती है सिवाय टुकुर-टुकुर ताकने के? :-(
अब तो बस दुआ है कि सब शांति से और अच्छे से हो जाये ...पोल खुलने पर भी उसका कोई असर नहीं होने वाला .
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