क्या हम आज एक-दूसरे को बधाई देने के हक़दार है...खुशदीप

हम आज़ाद हैं...63 साल से हम यही तो कहते आ रहे हैं...लेकिन क्या हम मुकअम्मल आज़ाद हो पा्ए...क्या आज़ादी के दिन हम एक दूसरे को वाकई बधाई देने के हक़दार हैं...देश के सत्ता के गलियारों में बैठे भाग्यविधाता नेताओं या देश के संसाधनों पर कब्ज़ा जमाए बैठे रंगे सियारों को छोड़ दें तो कहां है आज़ादी...देश को अब असल आज़ादी की ज़रूरत है...आज़ादी के मतवालों ने यही सोचा होगा कि भारत गुलामी की बेड़ियों को तोड़कर खुली हवा में सांस लेगा तो देश में सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव होगा...लेकिन ऐसा नहीं हुआ...हमने उन तमाम अवमूल्यों को मान्यता दे दी जिनसे हम आज़ादी से पहले जूझ रहे थे...अगर ऐसा नहीं होता तो आज एक ही देश में दो देश बंटे नज़र नहीं आते...एक तरफ बीस करोड़ लोग जिन्होंने तमाम संसाधनों पर कब्ज़ा कर रखा है...शेष हिस्से में बाकी आबादी...कहीं कोई संतुलन नहीं और न ही इंडिया और भारत के बीच खाई को पाटने की कोशिश...बल्कि ये विषमता दिन-ब-दिन और बढ़ती जा रही है...

हिंदू पौराणिक कथा के मुताबिक सूर्य देवता के रथ को सात घोड़े खींचते हैं...इनमें छह घोड़े हट्टे-कट्टे हैं...लेकिन सातवां घोड़ा कमज़ोर और नौसिखिया है...वो हमेशा सबसे पीछे रहता है...लेकिन पूरे रथ के आगे बढ़ने की गति इस सातवें घोड़े की चाल पर ही निर्भर करती है...एक दिन ऐसा भी आता है कि जब बाकी के छह घोड़े उम्र ढलने की वजह से अशक्त हो जाते हैं...तब सूर्य देवता के रथ को आगे ले जाने का सारा दारोमदार इस सातवें घोड़े पर ही आ टिकता है...तो भारत के रथ को दुनिया में आगे बढ़ाने के लिए उसके सातवें घोड़े को ताकत कैसे मिले, क्या ये सवाल हमें आंदोलित कर सकता है...

जब तक देश में आखिरी पायदान पर खड़ा व्यक्ति भूखा है...जिसके सिर पर छत नहीं है...तन पर पूरे कपड़े नहीं है...हम महानगरों में बड़े बड़े म़ॉल्स, फ्लाईओवर्स, आर्ट ऑफ द स्टेट एयरपोर्टस देखकर बेशक कितने ही खुश हो लें लेकिन देश सही मायने में तब तक आगे नहीं बढ़ सकता जब तक इस देश में आखिरी पायदान पर खड़े शख्स के पैरों में भूख, बेरोज़गारी और बीमारी की बेड़ियां हैं...

आज़ादी को लेकर कुछ महीने पहले मैंने लघु कथा पिंजरा लिखी थी, स्वतंत्रता दिवस पर इसका मुझे बहुत महत्व लगा, इसलिए दोबारा यहां पेश कर रहा हूं...


पिंजरा...




मल्लिका और बादशाह बाग़-ए-बहारा में टहल रहे थे...मौसम भी बड़ा दिलकश था...टहलते-टहलते मल्लिका की नज़र एक पेड़ की शाख पर बैठे बेहद खूबसूरत तोते पर पड़ी...इंद्रधनुषी रंगों से सज़ा ये तोता बड़ी मीठी बोली बोल रहा था...तोते पर मल्लिका का दिल आ गया...यहां तक कि मल्लिका बादशाह से बात करना भी भूल गई...तोते को एक टक देख रही मल्लिका के दिल की बात बादशाह समझ गए...बादशाह ने फौरन सिपहसालारों को हुक्म दिया- शाम तक ये तोता बेगम की आरामगाह के बाहर लगे झूले के पास होना चाहिए...और इस तोते के लिए बड़ा सा सोने का पिंजरा बनवाने का फौरन इंतज़ाम किया जाए...


एक बहेलिये की मदद से सिपहसालारों ने थोड़ी देर में ही तोते पर कब्ज़ा पा लिया...तोते को महल ला कर बेगम की आरामगाह में पहुंचा दिया गया...शाम तक सोने का पिंजरा भी लग गया...तीन-चार कारिंदों को ये देखने का हुक्म दिया गया, तोते को खाने में जो जो चीज़ें पसंद होती है, थोड़ी थोड़ी देर बाद उसके पिंजरे में पहुंचाई जाती रहें...तोते को पास देखकर मल्लिका की खुशी का तो ठिकाना नहीं रह गया...लेकिन तोते के दिल पर क्या गुज़र रही थी, इसकी सुध लेने की भला किसे फुरसत...कहां खुले आसमान में परवाज़, एक शाख से दूसरी शाख पर फुदकना...मीठी तान छेड़ना...और अब हर वक्त की कैद...आखिर इस मल्लिका और बादशाह का क्या बिगाड़ा था, जो ये आज़ादी के दुश्मन बन बैठे...मानता हूं, खाने के लिए सब कुछ है...लेकिन ऐसे खाने का क्या फायदा...मनचाही ज़िंदगी जीने की आज़ादी ही नहीं रही तो क्या मरना और क्या जीना...


तोते का गुस्सा बढ़ जाता तो पिंजरे की सलाखों से टक्करें मारना शुरू कर देता...शायद कोई सलाख टूट जाए और उसे वही आज़ादी मिल जाए. जिसके आगे दुनिया की कोई भी नेमत उसके लिए अच्छी नहीं...सलाखें तो क्या ही टूटने थीं, तोते के पर ज़रूर टूटने लगे थे...दिन बीतते गए तोता उदास-दर-उदास होता चला गया...तोते पर किसी को तरस नहीं आया...दिन-महीने-साल बीत गए...लेकिन तोते का पिंजरे से बाहर निकालने के लिए टक्करें मारना बंद नहीं हुआ...


एक बार मल्लिका बीमार पड़ गई...बादशाह आरामगाह में ही मल्लिका को देखने आए...मल्लिका को निहारते-निहारते ही बादशाह की नज़र अचानक तोते पर पड़ी...तोते को गुमसुम उदास देख बादशाह को अच्छा नहीं लगा...लेकिन उसने मल्लिका से कुछ कहा नहीं...मल्लिका को एक सयाने को दिखाया गया तो उसने बादशाह को सलाह दी कि किसी बेज़ुबान परिंदे को सताने की सज़ा मल्लिका को मिल रही है...इसलिए बादशाह हुज़ूर अच्छा यही है कि पिंजरे में कैद इस तोते को आज़ाद कर दिया जाए...


मल्लिका से जान से भी ज़्यादा मुहब्बत करने वाले बादशाह ने हुक्म दिया कि तोते को फौरन आज़ाद कर दिया जाए...हुक्म पर तामील हुई...तोते के पिंजरे का दरवाज़ा खोल दिया गया...ये देख तोते को आंखों पर भरोसा ही नहीं हुआ...भरोसा हुआ तो तोते ने पूरी ताकत लगाकर पिंजरे से बाहर उड़ान भरी...लेकिन ये क्या तोता फड़फड़ा कर थोड़ी दूर पर ही गिर गया...या तो वो उड़ना ही भूल गया था या फिर टूट टूट कर उसके परों में इतनी ताकत ही नहीं रही थी कि लंबी उड़ान भर सकें...

तोते की ये हालत देख उसे फिर पिंजरे में पहुंचा दिया गया...अब तोता शान्त था...फिर किसी ने उसे पिंज़रे से बाहर आने के लिए ज़ोर लगाते नहीं देखा...शायद इसी ज़िंदगी को तोते ने भी अपना मुस्तकबिल (नियति) मान लिया...





एक टिप्पणी भेजें

15 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.
  1. 63 वर्षों से सभी योजनाएं आखरी पायदान पर खड़े व्यक्ति के लिए ही बनती हैं, लेकिन उस तक पहुंचती कहां है?

    स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  2. स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!
    पीने को पानी नही, बिजली नही, खाना पीना सब से मंहगा, सर पर छत नही इस लिये हम आजाद है, क्योकि हमे कोई बंधन ही नही

    जवाब देंहटाएं
  3. सोचने की बात है ..क्या हम तोते हैं.....? क्या हम परवाज करना भूल जाएंगे.पर कब तक?

    स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई...

    जवाब देंहटाएं
  4. सफ़र अभी लम्बा है । कितनी ही जंजीरें हैं , जिन्हें तोडना है , उनसे मुक्त होना है ।
    लेकिन आज दिन है उन शहीदों को नमन करने का , जिन्होंने हमें ग़ुलामी की एक ज़ंजीर से तो मुक्ति दिलाई । जय हिंद ।

    जवाब देंहटाएं
  5. विचारोत्तेजक कथा व मनन

    इस ब्लॉग जगत में आपके ब्लॉग को एक वर्ष पूर्ण होने पर बधाई, शुभकामनाएं
    यूं हूँ खुश रहे, खुश रखें

    जय-हिंद

    जवाब देंहटाएं
  6. ".तो भारत के रथ को दुनिया में आगे बढ़ाने के लिए उसके सातवें घोड़े को ताकत कैसे मिले, "
    सातवें घोडे मनमोहन सिंह को ताकत देने के लिए है ना सोनिया गांधी :)

    जवाब देंहटाएं
  7. स्वतंत्रता दिवस के शुभ अवसर पर हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ.

    रामराम.

    जवाब देंहटाएं
  8. स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं .
    अपनी पोस्ट के प्रति मेरे भावों का समन्वय
    कल (16/8/2010) के चर्चा मंच पर देखियेगा
    और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा।
    http://charchamanch.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  9. स्वतंत्रता दिवस के शुभ अवसर पर हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ...!

    जवाब देंहटाएं
  10. इस कहानी के दर्द को झेलकर हस आजाद हो चुके हैं. बात अब आगे की होनी चाहिए..कब तक पिंजरे के दर्द में भटकते रहेंगे..!
    ..हैं कैद वे परिंदे जिनके पर सुनहरे.

    जवाब देंहटाएं
  11. बिलकुल सही कहा। आज माइक्रोपोस्ट की कमी पूरी कर दी। वैसे बैचैन आत्मा की बात भी सही है। अगर और कुछ नही कर सकते तो कम से कम हम इस दिन की बधाई दे कर आने वाली नस्लों को बता तो सकते हैं कि कभी हम आज़ाद हुये थे और वो देखेंगे कि क्या आज़ादी ऐसी होती है/ तभी वो जागेंगे इस लिये प्रतीकात्मक ही सही। आज़ादी दिवस की बहुत बहुत बधाई। जय हिन्द।

    जवाब देंहटाएं
  12. बन्दी है आजादी अपनी, छल के कारागारों में।
    मैला-पंक समाया है, निर्मल नदियों की धारों में।।
    --
    मेरी ओर से स्वतन्त्रता-दिवस की
    हार्दिक शुभकामनाएँ स्वीकार करें!
    --
    वन्दे मातरम्!

    जवाब देंहटाएं
  13. एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
    आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं !
    स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!

    जवाब देंहटाएं