सुप्रभात...
अगर लोग आपकी टांग खिंचाई करते हैं, आपको आहत करते हैं, या आप पर चिल्लाते हैं, परेशान मत होइए...
बस इतना याद रखिए...हर खेल में शोर दर्शक मचाते हैं, खिलाड़ी नहीं...
आपका दिन शुभ हो...
Khushdeep Sehgal
मंगलवार, अप्रैल 13, 2010
जी
जवाब देंहटाएंसही कहा
खिलाडी का खेल
दर्शको की कतरर्ब्यौं पर आधारित नही होता
vaah!
जवाब देंहटाएंkya baat kahi hai.
javab nahi aapaka.
खिलाड़ी शोर मचाये तो कैसे खिलाड़ी ?
जवाब देंहटाएंलोग खिंचाई तो नहीं कर पाते, टांग मैं उनकी तोड़ चुका हूं..फिर मेरी क्या हुआ..खिलाड़ी और दर्शक मिक्स..
जवाब देंहटाएंबेईमान खिलाड़ी ही शोर मचाएगा।
जवाब देंहटाएंवैसे शतरंज के अलावा बाकी खेलों में शोर मचाया जा सकता है....दोनो ओर से :)
खिलाड़ी शोर तो नहीं मचा रहे..लेकिन खेलते खलते धीरे से टंगड़ी मार देते हैं सर, इसीलिये दर्शक हल्ला मचा रहे हैं. :)
जवाब देंहटाएंअनाड़ी का खेलना खेल का सत्यानाश
जवाब देंहटाएंपटरी हो अजीब तो रेल का सत्यानाश
हाँ नहीं तो...!!
खिलाड़ी भी शोर मचाता है जब अपील करना होता है
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंvaah!
जवाब देंहटाएंkya baat kahi hai.
शोर भी कुछ ही दर्शक मचाते हैं, सब नहीं। और बिना शोर के मैच का आनंद कहाँ।
जवाब देंहटाएंवाह !!
जवाब देंहटाएंशोर मचा लो लेकिन टेंशन नहीं लेना का।
जवाब देंहटाएंभाई खिलाडी फ़ाऊल खेल खेले तो दर्शक अपनी टीम के पक्ष मे जरुर चिल्लायेंगे. और हद तो तब होती है जब रेफ़री टंगडी मारने वाले को पीला/ लाल कार्ड नही दिखाता.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत ही बढ़िया जनाब!
जवाब देंहटाएंक्या यार ...खुशदीप भाई !
जवाब देंहटाएंइत्ती सी बात लोग नहीं समझ सके ....एक लाइन में पूरा लेख लिख दिया शायद भावुक दिलों को कुछ सहारा मिले
आपकी बात सही है लेकिन खिलाड़ी बेचारा भी आखिर एक इंसान ही है ...वो कब तक व्यक्तिगत आक्षेप झेल पाता है?...ये उसके स्टेमिना पर निर्भर करता है ...दर्शकों को भी चाहिए कि वो उसके खेल पर ...खेलने के तरीके पर प्रतिक्रिया व्यक्त करें ..ना कि उस पर व्यक्तिगत आक्षेप...लाँछन लगा कर उसके बढते हौंसले को ध्वस्त करने का इंतजाम करें
जवाब देंहटाएंखुशदीप भाई , अभी अभी लौटा हूँ तो बात की गहराई समझने में थोड़ी देर लगनी लाजमी है !
जवाब देंहटाएंपर फिर भी कहुगा कि आप ने सही कहा,"हर खेल में शोर दर्शक मचाते हैं, खिलाड़ी नहीं"
@राजीव तनेजा भाई,
जवाब देंहटाएंसचिन तेंदुलकर भी खिलाड़ी है न, जब वो बेचारा आलोचनाओं से नहीं बच सका तो बाकी की तो बिसात ही क्या...लेकिन सचिन की गाथा जारी है...बिना विचलित हुए...बिना डिगे...हां, ये ज़रूर है कि
हज़ारों साल नर्गिस अपनी बेनूरी पे रोती है,
तब जाकर होता है दीदावरे-चमन पैदा...
(शेर पता नहीं ठीक से लिखा है या नहीं)
जय हिंद...
छोटी पर सार्थक पोस्ट ...
जवाब देंहटाएंgahri baat hai pareshaan n hona kisi aisi baat par bahut mushkil hai
जवाब देंहटाएंachchi baat kahi hai
जिस खेल में दर्शकों का शोर न हो , वो खेल भी क्या ।
जवाब देंहटाएंअभी तो खेल का आनंद लीजिये ।
अच्छी पोस्ट...
जवाब देंहटाएंसही कह रहे हैं खुशदीप भाई.
जवाब देंहटाएंटंकी खुशी का प्रतीक।
जवाब देंहटाएंछोटी है पर घाव गंभीर करने का दम रखती है।
जवाब देंहटाएंलाख टके की बात ..बस समझने वाले समझ लें इसे तो ही
जवाब देंहटाएंअजय कुमार झा
खतरों के खिलाड़ी!
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