एक पिता ने अपने शहीद बेटे के साथ कुछ और शहीदों के गुनहगारों को सज़ा दिलाने के लिए मुहिम छेड़ी है...ये पिता जानते हैं कि रास्ता बहुत मुश्किल है...लेकिन उन्होंने इस मुहिम को ही अपना जीवन समर्पित कर दिया है...
लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया अपने माता-पिता के साथ
यहां मैं बात कर रहा हूं शहीद लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया की...4 जाट रेजीमेंट का वो जियाला ऑफिसर जिसने करगिल में पाकिस्तानी घुसपैठ का सबसे पहले पता लगाया था...15 मई 1999 को एलओसी के अंदर भारतीय सीमा में पेट्रोलिंग करते 22 साल के लेफ्टिनेंट कालिया और उनके साथी पांच रणबांकुरों को पाकिस्तानी सेना के घुसपैठियों ने बंधक बना लिया...इन छह जांबाज़ों के शहीद होने से पहले पाकिस्तानी कायरों ने तीन हफ्ते तक उन्हें बंधक बना कर रखा...देश के इन सपूतों के साथ किस तरह की दरिंदगी के साथ पेश आया गया ये 9 जून 1999 को पाकिस्तानी सेना की ओर से सौंपे गए शवों से ही पता चल सका...
शवों पर जगह-जगह सिगरेट से द़ागे जाने के निशान, कानों में जलती सलाखों से छेद, आंख़े फोड़ कर शरीर से निकाल दी गईं, ज़्यादातर हड़डियों और दांतों को तोड़ दिया गया, उंगलियां काट ली गई और भी न जाने क्या क्या...इस तरह का शारिरिक और मानसिक अत्याचार कि शैतान भी शरमा जाए...22 दिन के पाशविक जुल्म के बाद सभी छह जवानों को गोली मार दी गई...भारतीय सेना के पास सभी छह शहीदों की विस्तृत पोस्टमार्टम रिपोर्ट है...पाकिस्तानी सेना ने सारे अंतरराष्ट्रीय नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए ये अमानवीय अत्याचार किया...जुल्म की इंतेहा के बावजूद हमारे रणबांकुरों ने दुश्मन के सामने घुटने नहीं टेके...सब कुछ सहने के बावजूद देशभक्ति और बहादुरी की मिसाल कायम की...लेफ्टिनेंट कालिया के साथ शहीद होने वाले पांच सिपाहियों के नाम हैं-
1. सिपाही अर्जुन राम पुत्र श्री चोक्का राम
गांव और पीओ....गुडी
तहसील और जिला नागौर (राजस्थान)
2. सिपाही भंवर लाल बगारिया पति श्रीमती भवरी देवी
गांव...सिवेलारा
तहसील और ज़िला सीकर
राजस्थान
3. सिपाही भीकाराम पति भावरी देवी
गांव पटासार, तहसील पचपत्वा
ज़िला बाड़मेर, राजस्थान
4. सिपाही मूला राम पति श्रीमती रामेश्वरी देवी
गांव कटोरी, तहसील जयाल
ज़िला नागौर, राजस्थान
5. सिपाही नरेश सिंह पति श्रीमति कल्पना देवी
गांव छोटी तल्लाम
जिला अलीगढ़, उत्तर प्रदेश
देश के लिए सर्वोच्च बलिदान हर जवान के लिए फख्र की बात होती है, लेकिन कोई अभिभावक, कोई सेना, कोई देश उस जालिम बर्ताव को बर्दाश्त नहीं कर सकता जो भारत माता के सच्चे सपूतों के साथ किया गया...अगर हमने युद्धबंदियों के साथ किए जाने वाले व्यवहार और उनके हक और हकूक के लिए आवाज नहीं उठाई तो हर मां-बाप अपने कलेजे के टुकड़ों को सेना में भेजने से पहले सौ बार सोचने लगेंगे...जो लेफ्टिनेंट कालिया और उनके पांच बहादुर साथियों के साथ हुआ, बुरे से बुरे सपने में भी और किसी के लाल के साथ न हो...
ताज्जुब की बात है ज़रा ज़रा सी बात पर आसमान एक कर देने वाले देश के मानवाधिकार संगठन भी इस मुद्दे पर कानों में तेल डालकर सोए हुए हैं...मैं इस पोस्ट के ज़रिए पूरी ब्लॉगर बिरादरी और देश के नागरिकों से अपील करता हूं कि इस मुद्दे पर लेफ्टिनेंट कालिया के पिता का कंधे से कंधा मिलाकर साथ दें...अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन पर इतना दबाव डाला जाए कि वो पाकिस्तान को ये पता लगाने के लिए मजबूर कर दे कि वो कौन से वर्दीधारी शैतान थे जिन्होंने दरिंदगी की सारी हदें पार कर डालीं...बेनकाब हो जाने के बाद इंसानियत के इन दुश्मनों को ऐसी कड़ी से कड़ी सज़ा दी जाए कि दुनिया में फिर कोई युद्धबंदियों के साथ ऐसा बर्ताव करने की ज़ुर्रत न कर सके...लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया के पिता डॉ एन के कालिया का पता और फोन नंबर हैं...
डॉ एन के कालिया
सौरभ नगर
पालमपुर- 176061 (हिमाचल प्रदेश)
फोन नंबर +91(01894) 232065
E-mail- nkkalia@bsnl.in
लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया के पिता डॉ एन के कालिया ने ई-मेल के ज़रिए भी इस आवाज़ को बुलंद करने की मुहिम छेड़ रखी है...मेरे पास भी एक ई-मेल आया है...कल मैं भी जितने लोगों के ई-मेल एड्रैस जानता हूं सब को वो अपने नाम को लिखने के बाद फॉरवर्ड करूंगा...आपको भी बस यही करना है....ज़्यादा से ज़्यादा अपने जानने वालों को वो ईृ-मेल भेजें....
लेफ्टिनेंट सौरभ समेत इन छह रणबांकुरों ने मोर्चे पर अपने प्राणों का बलिदान इसलिए दिया कि हम अपने घरों में चैन से सो सकें...क्या हमारा उनके लिए कोई फ़र्ज नहीं बनता है...आप चाहें तो डॉ एनके कालिया का फोन के ज़रिेए भी इस मुहिम के लिए हौसला बढ़ा सकते हैं....
जय हिंद....
स्लॉग गीत
ए मेरे वतन के लोगों, ज़रा आंख में भर लो पानी,
जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो कुरबानी...
वाकई, खून खौल उठा..हम इस मुहिम में साथ है.
जवाब देंहटाएंयह मेल मैंने भी अपने दोस्तों को भेजा था..
जवाब देंहटाएंखून खौल उठा वहशी दरिंदों की कायराना कृत्य पढ़कर
जवाब देंहटाएं-
-
अपील करने की जरूरत नहीं !
हर हिन्दुस्तानी का यह फर्ज है !
हम दिलोजान से इस मुहिम में साथ हैं !
Whole society is a CULPRIT in this case. Most of the people have forgotten these martyrs. I thank you for raising the issue again and it needs to be raised again and again .
जवाब देंहटाएंआश्चर्य है इन मुद्दों पर मानवाधिकार आयोग और इस तरह की संस्थाएं मौन क्यों हो जाती हैं ... दिल्ली के बाटला हाउस में हुए एनकाउंटर में एक शहीद की शहादत पर ही सवाल उठा दिए गए और आतंक वादियों को निर्दोष साबित करने की कोशिश की गयी ... लानत है इस तरह की मानसिकता पर जिनके खून में देश के लिए उबाल नहीं है
जवाब देंहटाएंहम इस मुहीम में साथ है तहे दिल से
बेहद तकलीफ देह पोस्ट , इससे इंसानियत भी थर्रा उठे ...
जवाब देंहटाएंधन्य हैं वे वीर शहीद जो दरिंदगी का ताण्डव झेल कर भी मातृभूमि की रक्षा के लिये अडिग रहे।
जवाब देंहटाएंअवश्य ही ये यातनाएँ हमारी सेना के भेद जानने के लिये दी गई होंगी। श्री 'मोहनलाल भास्कर' जी ने भी अपनी पुस्तक "मैं पाकिस्तान में भारत का जासूस था" में पाकिस्तानी सेना की क्रूर यातनाओं की झलक दिखाया है।
इस ई मेल सन्देश को फॉरवर्ड किए मुझे महीनों हो गए। राज्यसत्ता यदि खुद कुकर्म करे तो आंतरिक स्तर पर भी रोकना, दंडित कराना कठिन हो जाता है। यहाँ तो अंतरराष्ट्रीय मामला है। भारत इजरायल या अमेरिका तो है नहीं जो ऐसे कुकर्मों पर दंडित कराने के लिए जमीन आसमान एक कर देगा..नागरिक प्रयास जारी रहने चाहिए।
जवाब देंहटाएंमानसिकता का प्रमाण तो ब्लॉग प्लेटफॉर्म पर ही उपलब्ध है। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट को लेकर बटाला हाउस घटना की पोस्टमॉर्टम जारी आहे..
आपका प्रयास स्तुतनीय है, बूंद बूंद से ही घड़ा भरता है। शायद कानों में सीसा भरी बैठी हमारी सरकार को भी जन सैलाब की आवाज सुनायी दे जाए? हम ही क्या पूरा देश इस मुहिम के साथ खड़ा है।
जवाब देंहटाएंअंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों चाहिए की वो पकिस्तान की बर्बरता को पहचाने, उसे बेनकाब करें और उसपर दबाव डालें
जवाब देंहटाएंअगर ऐसा नहीं किया गया तो ऐसे अपराधों को बढ़ावा ही दिया जाएगा और भविष्य में क्या हो सकता है इसकी सिर्फ़ कल्पना ही की जा सकती है...
इस आलेख को अच्छा कह कर मैं इसकी महत्ता को आंकना नहीं चाहती...यह एक ऐसा प्रयास है जो वन्दनीय है...
आपका आभार...
ब्लॉग पर भी मुहिम को चलाना प्रशसनीय प्रयास है....ये मेल मैंने भी बहुत लोगों को भेजा है...एक एक भारतीय का इस मुहिम से जुडना परम कर्तव्य है....
जवाब देंहटाएंजय हिंद
बहुत कष्ट्दायक.
जवाब देंहटाएंरामराम.
शर्मनाक है। भंड़ैती चाहे जितनी करा लीजिए....
जवाब देंहटाएंवाकई, खून खौल उठा..हम इस मुहिम में साथ है.
जवाब देंहटाएं"khoon khol uthta h mera
जवाब देंहटाएंjab dekhta hu aise Atyachaaro ko
par kya karu bebas ho jata hu mein jab
dekhta hu apne rajniti ke Gaddarro ko
sansad me karte h hangama kutto ki tarah
aur bhool jaate h apne deshpremi Bechaaro ko
mon h par nhi h kayar mere desh ki janta
chalo bata de ye sabhi DESH ke Sipesahlaro ko
ya to karwao sammaan saheedo ka ya
ab tum chhod do rajniti ke Galiyaaro ko"
JAB APNE NETA PAHLE HI GHUTNE TEK DETE H TO BOLIYE HUM AUR AAP TO SIRF GUSSA HI KAR SAKTE H NA.
sach me gussa bada aata h
khoon khol khol jata h
.
जवाब देंहटाएं.
.
खुशदीप जी,
शहीद लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया और उनके साथियों को नमन एक कृतज्ञ हिन्दुस्तानी का... उन लोगों के साथ जो कुछ भी किया गया उसकी जितनी निंदा की जाये वह कम है ।
थोड़ा बहुत फौज को जानता हूँ... अगर यह सब किसी शत्रु फौजी ने किया... तो यही कहूँगा कि जो भी वो लोग थे... वर्दी पहनने का हक नहीं था उन्हें... पाकिस्तान में अगर ऐसे लोगों को वर्दी और कमीशन मिल जाता है... तो खुद ऊपर वाला भी इस देश को बचा नहीं सकता ।
आपके जज्बे को सलाम!!! मुल्क के लिए जांफिशानी कर रहे रणबांकुरे को नमन!
जवाब देंहटाएंपाकिस्तानी हुक्मरानों के लिए जहन्नुम का पैगाम मेरी तरफ से!
आपकी मुहिम के साथ!
शहरोज़
मैं साथ नहीं हूँ. मैं "अमन की आशा" के साथ हूँ. हमारे सैनिक ऐसे ही मरेंगे और हम भी कुत्ते की मौत मरते रहेंगे. जय हिन्द!
जवाब देंहटाएंगिरजेश राव से सहमत, यह बहुत पुराना ई-मेल है और कम से कम तीन बार मैं 100-100 लोगों को फ़ारवर्ड कर चुका हूं…।
जवाब देंहटाएंऐसे मेल फ़ारवर्ड करने या फ़ोन करने भर से भारत में सरकारें जागने लगीं तो बात ही क्या है। ये भारत है, न्यूजीलैण्ड या कनाडा नहीं है खुशदीप जी… यहाँ तो मणिपुर की ईरोम शर्मिला 10 साल से अन्न त्यागे बैठी है, किसी ने नहीं सुना अब तक…
(खुशदीप भाई, आजकल ईमेल का अनुवाद कर-करके पोस्टें दे रहे हैं, क्या बात है, व्यस्तता कुछ बढ़ गई है क्या?)
क्या कहूं खुशदीप भाई,शब्द ही नही मिल रहे हैं,लिखना है इस लिये लिख पा रहा हूं अगर बोलना होता तो शायद शब्द गलें मे ही फ़ंसे रह जाते।सच मे खून भी खौल रहा है और आंख मे आंसू भी भर आये हैं।नमन करता हूं देश के उन सपूतों को जिन्होने हमारे लिये नर्क़ भोग कर भी अपनी जान दे दी।रहा सवाल उन लोगों का जिनपर दबाव बनाने की बात कहते हैं तो उन्हे गुज़रात के अलावा भी कुछ नज़र आता है क्या?कश्मीर तो शायद उन्के नक्शे मे होगा ही नही तो वंहा की बात उन्हे कंहा से पता चलेगी।अफ़सोस है उन अधिकारवादियों पर जो जात देख कर पात देख कर और रसूख देखकर काम करते हैं।
जवाब देंहटाएंबड़ी मुश्किल से मैं डॉ एन के कालिया का सही फोन नंबर और ईमेल एड्रैस ट्रेस कर पाया हूं....पोस्ट में भी दे दिया है, यहां भी दे रहा हूं...
जवाब देंहटाएंफोन नंबर +91(01894) 232065
E-mail- nkkalia@bsnl.in
जय हिंद...
इस लडा़ई में मैं सब के साथ हूँ। पाकिस्तान वह मुल्क है जिस ने शासकीय स्तर पर दरींदगी की सभी सीमाएँ तोड़ दी हैं। धार्मिक उन्माद के आधार पर निर्मित देश में यह सब होना अचंभा नहीं है।
जवाब देंहटाएं@सुरेश चिपलूनकर जी,
जवाब देंहटाएंआप विद्वान हैं...नहीं जानता मेरी किस बात से नाराज़ होकर आपने मुझ पर इतना तीखा निशाना साधा है...मैं अगर ई-मेल का अनुवाद करता हूं तो उसका पोस्ट में स्पष्ट उल्लेख भी करता हूं...
विडंबना ये है कि आपने इरोम शर्मिला का लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया वाली पोस्ट पर ज़िक्र किया है....इरोम शर्मिला का आंदोलन उसी भारतीय फौज के खिलाफ है जिसका सौरभ हिस्सा थे....इरोम शर्मिला का कहना है कि आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर एक्ट यानि AFSPA को हटाया जाए...
मैं ये नहीं कह रहा कि इरोम शर्मिला का आंदोलन गलत है...अगर भारतीय फौजी भी कहीं अति करते हैं तो उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए...मेरा सवाल है कि जब आतंकवादी और उग्रवादी सैनिकों के साथ पिशाचों की तरह पेश आते हैं तो उनसे निपटने का क्या तरीका होना चाहिए...मेरी ये पोस्ट नितांत दूसरे संदर्भ में है...यहां युद्धबंदियों के साथ हुए बर्बर अत्याचार को लेकर विश्व मानवाधिकार संगठन के ज़रिए पाकिस्तान पर दबाव डालने का मामला है...सुरेश जी, माफ कीजिएगा आप सिर्फ १०० पोस्ट फारवर्ड करके ही थक गए, मुझे ज़िंदगी भर भी ये काम करना पड़ा तो हार नहीं मानूंगा....एक बात और...हर मुददे को सिर्फ पोस्ट के लिए पोस्ट डालने की तुच्छ मानसिकता से जोड़ कर देखना गलत है...
जय हिंद...
ओ.के.- ओ.के. ... मैं संजय बेंगाणी जी के साथ हूँ...
जवाब देंहटाएंयह अमानवीय कार्य पढ़कर मुझे भारतीय सेना में ही बहुत पहले एक मामले की याद आ गयी ... सहारा समय में खोजी पत्रकार प्रभात रंजन दीं ने यह आलेख छापा था.
हाँ एक घटना बंगलादेश के साथ भी हुआ था... छह जवान सीमा पर मार कर उल्टा लटका दिया गया था.
जवाब देंहटाएंखुश दीप जी खून खौल उठा हर भारतीय का फ़र्ज़ है की सैनिक परिवार केसाथ खड़ा हो
जवाब देंहटाएंसादर
प्रवीण पथिक
997196908
kis kayr jnta se khoon kholne ki kh rhe hai ye to desh lutva kr bhi kuchh nhi bolti hai gali dene valon ko phoolon ke har phnati hai dushmno ko aankho pr baithati tabhi to kuldeep naiyr jaise logon ka pakistani rag khtm hi nhi hota hai
जवाब देंहटाएंkash jnta km se km shahidon ka apman to nkrvaye aur aise netaon ko kuchh to sbk sikhye
dr. ved vyathit
अमानवीय
जवाब देंहटाएंशहीद लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया और उनके साथियों को शत शत नमन और अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि. इस मुहीम में डा. कालिया का साथ देश के प्रत्येक नागरिक को अपना कर्त्तव्य समझ कर देना चाहिए. बेहतर होगा अगर इस या अन्य किसी भी प्रकार की मुहीम के द्वारा कुछ सार्थक परिणाम आये.
जवाब देंहटाएंक्या कहूँ खुशदीप....व्यथित हूँ ओर फ्रास टेटेड भी.मुझे ये मेल तकरीबन ७ महीने पहले राखी नाम की की मेरी मित्र ने भेजा था ....हिन्दू ,रविवार ओर टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने इन खबरों को छापा था .मेरे कजिन जो सेना में कर्नल है बाते है भारतीय सेना .इन वाक्यों से वाकिफ है ....पाकिस्तानी सेना ओर ओर कुछ आतंकवादियों की ऐसी हरकतों से भी सेना वाकिफ है .यहाँ तक की नागालेंड ओर असम में आतंकवादी भारतीय भी जवानो के साथ यही करते है ...
जवाब देंहटाएंपर क्या आपको मालूम है कश्मीर में भी जिन हिन्दुओ को मारा गया उन्हें भी घिनोने अत्याचार ओर निर्ममता से मारा गया....उन्हें पढेगे या सुनेगे तो .....
ye mail fwd kia hai hamne bhi ..ham saath hain is muhim main har hindustani ka farz hai ...
जवाब देंहटाएंशहीद लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया और उनके साथियों को शत शत नमन और अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि. इस मुहीम में डा. कालिया का साथ देश के प्रत्येक नागरिक को अपना कर्त्तव्य समझ कर देना चाहिए. बेहतर होगा अगर इस या अन्य किसी भी प्रकार की मुहीम के द्वारा कुछ सार्थक परिणाम आये.मेरा सवाल है कि जब आतंकवादी और उग्रवादी सैनिकों के साथ पिशाचों की तरह पेश आते हैं तो उनसे निपटने का क्या तरीका होना चाहिए. हर भारतीय का फ़र्ज़ है की सैनिक परिवार केसाथ खड़ा हो. पाकिस्तान वह मुल्क है जिस ने शासकीय स्तर पर दरींदगी की सभी सीमाएँ तोड़ दी हैंपाकिस्तानी हुक्मरानों के लिए जहन्नुम का पैगाम मेरी तरफ से!LALIT GUPTA
जवाब देंहटाएंशत शत नमन....
जवाब देंहटाएंलड्डू बोलता है....
......
विश्व गौरैया दिवस-- गौरैया...तुम मत आना...
http://laddoospeaks.blogspot.com
खुशदीप भाई,जब ये मेल मिला था....ना तब वे डीटेल्स पढ़ पायी थी...ना अब पढ़ पा रही हूँ...इतनी हिम्मत नहीं, हम में...और वे मनुष्य का चोला धारण किये हुए कैसे बर्बर लोग हैं,जो ऐसे अमानवीय कृत्य कर पाते हैं....
जवाब देंहटाएंकुछ सार्थक कदम उठाने चाहिए.... तहे दिल से तमन्ना है कि इस मुहिम का कुछ फल निकल सके.
क्या देश के राष्ट्र्पति या परधान मंत्री को यह बाते नही पता ? जो बात आम आदमी को पता हो...वो तो गले मिलने ओर वोट बेंक बनाने पर तुले है, खुश दीप जी इस देश मै मै आप ओर अन्य लोग कितने ही चीखे कोई सुनने वाला नही, सब नेताओ को अपनी अपनी पडी है, यह पाकिस्तान कितना बडा देश है, बस एक बार हिम्मत कर के देश के नोजवानो को ( फ़ोजियो को) खुली छुट दे दी जाये कि जाओ शेरो अपने बुर्वजो का बदल ले लो ओर बता दो इन भिखारी देश को कि भारत मां पर आंख ऊठाने वाले का क्या हाल होता है फ़िर देखे.
जवाब देंहटाएंलानत है उन नेताओ पर जो आज भी इन कमीनो से गले मिलना चाहते है, होना तो चाहिये कि इन्हे सवक दो इन हरामियो को कि तुम एक मारो... हम १०० मारेगे. अगर दुध पिया है मां का तो आओ.... लेकिन इस बात के लिये तो लाल बाहदुर शास्त्री जेसे शेर चाहिये, नेता जी सुभाष चंद्र जेसे जिन्दा दिल चाहिये
सही कहा खून तो खौलना ही चाहिए ...मगर क्या सिर्फ पडोसी देश द्वारा किये गए पाशविक कृत्यों से ही ...??
जवाब देंहटाएंअनुराग जी की टिप्पणी पर भी गौर करें ....देश के भीतर होने वाली विभिन्न हिंसाओं में अपने ही लोगों के हाथों शहीद सैनिकों या नागरिकों पर भी कोई आंसू बहायेगा ...??
ये जानने के बाद हर भारतीय उनके साथ होगा……………।इतनी क्रूरता कोई भी भारतीय सहन नही कर पायेगा।हमारा सहयोग उनके साथ है।
जवाब देंहटाएंसबसे पहले अमर शहीदों को नमन। वाकई खून खौल उठा। इस मामले में भारत को अंतराष्ट्रीय मंच पर विरोध दर्ज कराना चाहिए।
जवाब देंहटाएंखुशदीप भाई, लगता है काफ़ी सारी गलतफ़हमियाँ पैदा हो गईं मेरी टिप्पणी से आपके मन में…
जवाब देंहटाएं1) मैं विद्वान कतई नहीं हूं, न होना चाहता हूं, न दिखना चाहता हूं…
2) मैं आपसे नाराज़ क्यों होने लगा, क्या आपने मेरे बगीचे से आम तोड़े हैं?
3) मैं कभी किसी पर व्यक्तिगत निशाना नहीं साधता… जब तक बिलकुल "मजबूर" न कर दिया जाऊं (सन्दर्भ - ब्लॉग जगत के पिछले धार्मिक विवाद), इसलिये आप पर निशाना साधने का सवाल ही नहीं है।
अब आते हैं मुद्दे पर, मेरी टिप्पणी आक्रोश तो है लेकिन आपके खिलाफ़ नहीं, सरकार के खिलाफ़…। ईरोम शर्मिला का उदाहरण इसलिये दिया क्योंकि वह सबसे सटीक उदाहरण है हमारी सरकार और नौकरशाही के "ठस" और "अड़ियलपन" का। भारत की सरकारों में रीढ़ की हड्डी का अभाव है यह कई बार सिद्ध हो चुका है (भाजपा के राज में भी), वहीं दूसरी ओर अपनी ही जनता के खिलाफ़ असंवेदनशीलता का भाव भी…। क्योंकि जैसे "हम" हैं, वैसी ही हमारी "सरकारें" हैं…। जब मीडिया अपने कर्तव्य भुलाकर सिर्फ़ सरकारों और परिवार विशेष के गुणगान में लगा रहेगा तो आम आदमी क्या उखाड़ लेगा… (सन्दर्भ - बढ़ती महंगाई)।
आपकी पोस्ट की भावना अच्छी है, और इस पर पिछले कई महीनों से काफ़ी लोग काम कर रहे हैं (सन्दर्भ अनुराग जी और गिरजेश जी की टिप्पणी), लेकिन अब हो सकता है कि आप जैसे स्टार पत्रकार इस दिशा में आगे बढ़े हैं तो शायद कुछ चमत्कार हो जाये…
अनुराग जी की टिप्पणी की अन्तिम लाइनें भी महत्वपूर्ण हैं, जिनकी तरफ़ (यानी कश्मीर से हिन्दुओं का सफ़ाया) कभी भी मीडिया ने ध्यान नहीं दिया है, और जब भाजपा या संघ वाले इस मुद्दे पर लिखते हैं तो तड़ से साम्प्रदायिक घोषित हो जाते हैं।
मैं भले ही थक चुका हूं, लेकिन आप न थकें, न रुकें, शहीद सौरभ कालिया का यह संदेश फ़ारवर्ड करते रहें…
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अन्त में :- "विश्व मानवाधिकार संगठन के द्वारा पाकिस्तान पर दबाव…???" हा हा हा हा हा हा, अच्छा मजाक कर लेते हैं आप भी… जिस लसूड़े से पूरा विश्व परेशान है, उसे कोई दबाव नहीं सुधार सकता, कम से कम "मानवाधिकार संगठन" जैसे बिजूके तो कतई नहीं।
आशा है कि मेरी टिप्पणी से जो गलतफ़हमियाँ पैदा हुई थीं, दूर हुई होंगी…
एक (अ)विद्वान और "दुर्बुद्धिजीवी" टिप्पणीकार - सुरेश चिपलूनकर
सुरेश चिपलूनकर जी...
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा आपने मेरी शंका का जवाब दिया...मैं आपके विचारों का दिल की गहराइयों से सम्मान करता हूं...इसलिए गलतफहमी का कहीं सवाल ही नहीं...हां...किसी पोस्ट विशेष या मुद्दे को लेकर मतभेद हो सकते हैं लेकिन मनभेद नहीं...इसलिए मेरे मन में आपके लिए जो इज्ज़त है वो हमेशा बनी रहेगी...
गुस्सा मेरे मन में भी यही है कि पाकिस्तान से निपटना है तो हम क्यों अमेरिका की तरफ मुंह उठा के देखते रहे हैं...अमेरिका भला किसी का सगा हुआ है...डेविड कोलमेन हेडली के मामले में आपने देखा...किस तरह अमेरिका ने मुंबई हमले में पाकिस्तान से सब का ध्यान हटा दिया और अब हेडली को भी हमारी पहुंच से हमेशा के लिए बाहर कर दिया...इस तरह लुंजपुंज सरकारों (चाहे एनडीए हो या यूपीए) से ऐसे मसले हल नहीं किए जा सकते...इसके लिए इंदिरा गांधी जैसा ही चट्टान सरीखा कोई नेता होना चाहिए...बांग्लादेश के तौर पर पाकिस्तान को वो सबक सिखाया कि ज़़िंदगी भर नहीं भूल सकता...
एक बात और, अकेले के आवाज़ उठाने से कुछ नहीं होता...लेकिन एक और एक मिल कर आवाज़ उठाते चलें तो दिल्ली में बैठे बहरे कानों तक गूंज ज़रूर पहुंच सकती है....मैं भी जानता हूं कि ई-मेल से कोई नतीजा नहीं निकलने वाला...लेकिन इस मुद्दे को दुनिया में हम जहां कहीं भी भारतीय हैं, इतनी ज़ोर से उठाया जाए कि हर जगह पाकिस्तान को जवाब देना भारी पड़ जाए...ताज्जुब ये है कि हमारी सरकार इस मुद्दे को क्यों नहीं विश्व मंचों पर उठाती...
आखिर में, सुरेश जी अगर मेरी कोई बात बुरी लगी हो तो छोटा भाई समझ कर माफ कर दीजिएगा...
जय हिंद...
हर भारतीय का खून खौल उठेगा आप की यह पोस्ट पढ कर । आपके इस प्रयास का जरुर अच्छा फल निकलेगा।
जवाब देंहटाएंमेरी एक सहेली के भाई सेना में सेकेंड लेफ़्टिनेंट थे, कारगिल युद्ध के समय. जब इन बहादुर जवानों के शव भारत आये थे, तो मेरी सहेले के भाई ने उसे यह सब बताया था. सेना का हर नौजवान यह बात जानता था. पर अफ़सोस है कि सामने दिखते हुये अत्याचार के लिये भी पोस्ट्मार्टम रिपोर्ट की ज़रूरत पड़ती है. हमें जब यह खबर सहेली ने सुनाई थे, तो पूरे हॉस्टल में सन्नाटा छा गया था. हमलोगों के मुँह से लगभग एक हफ़्ते निवाला अन्दर नहीं गया. गले में रुलाई के साथ-साथ कौर भी अटक जाता था. आपने जो मुद्दा उठाया है, उसके लिये निश्चित ही सबको आवाज़ उठानी चाहिये. आप वो मेल मुझे भी फ़ॉरवर्ड कर दीजियेगा. ई-मेल दे रही हूँ--
जवाब देंहटाएंguddubhargava@gmail.com
हद तो यही है कि जिनका खून खौलना चाहिये उनका खून नही खौलता ..खौलेगा भी कैसे वह तो पानी है ।
जवाब देंहटाएंदरिन्दगी कैसी भी हो उसका विरोध जायज है ।
इस पोस्ट ने कई बातें याद करा दी हैं......एक नया विचार है जिस पर काम किया जा सकता है....मैं अगले कुछ दिन में पोस्ट करुंगा, क्योंकी इस वक्त मन क्षोभ से भरा हुआ है ऐसे में पोस्ट में जो लिखना चाहता हुं उस पर ही केंद्रित रहे....
जवाब देंहटाएं