मैं खुशवंत सिंह का बहूत बड़ा फैन हूं...उनके जैसा ज़िंदादिल लेखक मैंने और कोई नहीं देखा...बेबाक अंदाज़ में अपनी कमज़ोरियों का बखान करना...पॉलिटिकली करेक्ट दिखाते रहने जैसा कोई आडम्बर नहीं...शराब और सुंदर मुखड़ों के प्रशंसक रहे हैं तो खुल कर इसे कबूल भी करते हैं...95 साल उम्र ज़रूर हो गई है लेकिन आज भी हम जैसे तमाम जवानों ( ) को मात देते हैं...
खुशवंत सिंह के मुताबिक उन्होंने जितनी भी ज़िंदगी अब तक जी है, बड़े अच्छे ढंग से जी है...उन्हें संतोष है कि अपनी खुशी के लिए जैसे चाहा वैसे ही खुद को जिया...आपबीती के आधार पर ही खुशी के लिए खुशवंत सिंह ने कुछ मंत्र ढूंढे...जिसे उन्होंने अपने पाठकों के साथ बांटा भी है...
खुश रहने के आठ मंत्र
पहला मंत्र
अच्छा स्वास्थ्य...इसके बिना आप खुश नहीं रह सकते...कोई भी बीमारी, चाहे कितनी भी छोटी क्यों न हो, आपकी खुशी को कम कर देगी...
दूसरा मंत्र
अच्छा बैंक बैलैंस...ज़रूरी नहीं कि बैंक में आपके करोड़ों जमा हों.. लेकिन इतना ज़रूर हो जिससे जिंदगी की ज़रूरतों के साथ कभी-कभार सैर-सपाटे और कलात्मक रुचियों को पूरा करने में कोई दिक्कत न आए...पैसे की कमी या उधार लेने की नौबत आदमी को अपनी ही नज़रों में छोटा कर देती है...
तीसरा मंत्र
खुद का घर...क्योंकि
परिंदे भी नहीं रहते पराये आशियानों में,
फिर क्यों उम्र गुज़रे किराये के मकानों में...
चौथा मंत्र
आपको अच्छी तरह समझने वाला जीवनसाथी...
लेकिन अगर दोनों के बीच बहुत सारी गलतफहमियां हों तो मन की शांति छिन सकती है...हर वक्त कुढ़ते रहने से अच्छा है अपना अलग रास्ता चुन लेना...
पांचवां मंत्र
संतोष...अगर हमेशा ऐसे लोगों पर नज़र रखेंगे जो आपसे ज़्यादा कामयाब हैं, धनवान हैं, तो आप ईर्ष्या के चलते अपने दिल को जलाते रहेंगे...इसलिए अपने से निचली पायदान पर खड़े लोगों को देखो...और संतोष करो कि ईश्वर ने आप पर कितनी मेहरबानी की है...
छठा मंत्र
दूसरे लोगों को गपशप के ज़रिए अपने पर हावी मत होने दो...जब तक आप उनसे छुटकारा पाएंगे, आप थक चुके होगे और दूसरों की चुगली-निंदा से आपके दिमाग में कहीं न कहीं ज़हर ने घर कर लिया होगा...
सातवां मत्र
फुर्सत के वक्त का सदुपयोग...बागबानी, रीडिंग, पेंटिंग, संगीत, गेम जैसे किसी शौक में खुद को व्यस्त रखिए...क्लब-पार्टियों में जाना वक्त का आपराधिक दुरुपयोग है
आठवां मंत्र
सुबह शाम 15-15मिनट अंतर्ध्यान के लिए निकालिए...सुबह दस मिनट दिमाग को बिल्कुल शून्य में ले जाने की कोशिश कीजिए...फिर 5 मिनट याद कीजिए कि आज क्या-क्या करना है...इसी तरह शाम को पांच मिनट दिमाग को शून्य में ले जाइए...फिर दस मिनट सोचिए कि आपने दिन में क्या-क्या किया...
(डिस्क्लेमर...ये खुशवंत सिंह जैसे धनी, प्रसिद्ध और कामयाब इनसान का अपना नज़रिया है...ज़रूरी नहीं हर इनसान को ईश्वर ने वैसा ही खुशकिस्मत बनाया जैसा कि खुशवंत सिंह को...लेकिन फिर भी इस नज़रिए से हर इनसान कुछ न कुछ सीख ज़रूर सकता है...)
स्लॉग ओवर
गुल्ली की लड़ाई अपने बाप मक्खन से हो गई...
गुल्ली ने मक्खन का फोटो श्मशानघाट जाकर एक पेड़ पर लटका दिया...
नीचे लिखा था... जल्द आ रहा है...
खुश रहने के आठ मंत्र...खुशदीप
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बुधवार, मार्च 03, 2010
बहुत अच्छी पोस्ट .. पर पहले चार मंत्र तो किसी के वश में नहीं .. खुश रहने के लिए बाकी चार पर अवश्य ध्यान दिया जाना चाहिए!!
जवाब देंहटाएंआठों मंत्र गाँठ बांध कर रखने योग्य हैं...
जवाब देंहटाएंऔर ये गुल्ली अपने बाप से झगड़ता बहुत है भई..:)
स्लोग ओवर मजेदार रहा... मेरे क्षेत्र में एक सूत्र में या कहें के एक सांस में सातों सुख गिनाये जाते हैं.. खुशवंत जी की खुशियाँ बहुत कुछ उससे मेल खाती हैं..--
जवाब देंहटाएंपहला सुख निरोगी काया, दूजा सुख घर में हो माया, तीजा सुख सुन्दर आवास, चौथा सुख कुलवंती नारी, पंचम सुख सुत(पुत्र) आज्ञाकारी, षष्ठं सुख हों मित्र घनेरे(गप्पबाज़ी के लिए), सप्तम सुख हो हय की सवारी(आजकल बाइक या कार)..
जय हिंद... जय बुन्देलखण्ड...
kushwant !
जवाब देंहटाएंखुशवंत सिंह के लेखन का मैं भी मुरीद हूँ। उन के आठों तत्व बहुत किस्मत वाले को ही मिल सकते हैं।
जवाब देंहटाएंखुशवंत जी ने यह आठों सुनहले नियम जीवन के ९५ शरद बसंत देखने के बाद लिपिबद्ध किये हैं -सहज है सरलता से अपनाने योग्य हैं -आपका भी आभार !
जवाब देंहटाएंआज सुबह उठते ही आपका ब्लाग पढ़ा मैं खुशवंत सिंह उनका फैन हूँ , ऐसे जीवट के जीवंत इंसान बहुत कम मिलते है, ! असाधारण प्रतिभा और बेवाकी के धनी ये मस्त मौला नए रास्ते बना कर चलना सिखाते हैं हाँ इन्हें समझ पाना हर एक के बस की बात नहीं
जवाब देंहटाएंखुशवंत जी का कॉलम पढ़ती रही हूँ ...सहजता और स्वाभाविकता है उनके लेखन में ...
जवाब देंहटाएंऔर आप खुश रहने के तरीके बता कर अपना नाम सार्थक कर ही रहे हैं ....
बेचारा मक्खन ....गुल्ली जैसी संतान गले पड़ी ....!!
बढ़िया मनन करने योग्य बात जिससे जीवन खुशहाल हो जाती है....
जवाब देंहटाएंप्रेरक प्रविष्टि!
जवाब देंहटाएंखुशवंत सिंह जी के विचार प्रस्तुत कर के आपने बहुत ही अच्छा काम किया है!
खुशदीप जी , पहले चार मन्त्र तो अपने हाथ में नहीं हैं। वो तो किस्मत से ही मिलते हैं । ये अलग बात है की किस्मत भी कर्मों से ही बनती है।
जवाब देंहटाएंतो भाई , अच्छे कर्म करते रहो , तो शायद भला हो जाये ।
आप हमेशा अच्छी पोस्ट लिखते हैं आज की बहुत अच्छी लगी.
जवाब देंहटाएंप्रेरक बातें....काफी कुछ सीखने को मिला...
जवाब देंहटाएंबहुत काम के ८ सूत्र है पर सभी के लिये सब सम्भव नही होता ना.
जवाब देंहटाएंऔर गुल्ली को बता देना कि हर गुल्ली की एक दिन मक्खन बनना पडता है.
खुशदीप भाई आठ मे से पांच पर तो अपन भी चल रहे हैं।आठवां,सातवां और चौथा छूटा हुआ है,जिसमे से आठवें पर अमल करने का बहुत दिनों से विचार चल रहा है।सातवां अपने बस का नही है क्योंकि रोज़ पार्टी-शार्टी रहती ही है और रहा सवाल चौथे का तो उस पर तो किसी का भी बस नही है,हा हा हा हा हा हा हा हा।
जवाब देंहटाएंमस्त पोस्ट,मज़ा आ गया।आ खुशवंत जी और खुशदीप जी दोनो का जवाब नही।
मैने तो सभी मन्त्र गाँठ से बान्ध रखे हैं बहुत पहले से मगर एक मन्त्र --चार न. मन्त्र पर उनसे सहमत नही हूँ। जीवन की लडाई अलग हो कर नही बल्कि सम्झौता कर एक दूसरे को बदलने से लडी जा सकती है और इसका अन्त हमेशा अच्छा निकलता है। जीवन से हारना नही बल्कि उससे जूझना चाहिये फिर देखिये उसका फल कितना मीठा होता है। बहुत अच्छी लगी ये पोस्ट आशीर्वाद
जवाब देंहटाएंजानकर अच्छा लगा खुशदीप भाई
जवाब देंहटाएंएयरकंडीशनर के इस दौर में भी
फैन (पंखे) कायम हैं
रहने भी चाहिएं
और सांतवें मंत्र में
जोड़ना चाहता हूं मैं भी
हिन्दी ब्लॉगिंग अवश्य जुड़वा दें प्लीज
बहुतों को प्रेरणा मिलेगी इससे
दुआ निकलेगी हिन्दी के दिल से।
sarthk post........
जवाब देंहटाएंभैया..बहत अच्छे मन्त्र बताये आपने..... खुशवंत जी के जीने के तरीके का तो मैं भी कायल हूँ.... और यह गुल्ली... कुछ ज्यादा ही सयाना हो गया है...
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
खुशी पाने के लिए सबसे बड़ा मन्त्र संतोष का है....यदि मन में संतोष है तो सारी बातें उसी में समां जाती हैं....प्रेरक प्रसंग....
जवाब देंहटाएंखुशवंत जी के बारे में और भी बहुत कुछ जानने को मिला , इसके लिए आभार आपका ।
जवाब देंहटाएंsantosh se bada koi dhan nhi hai aur agar jise ye mil gaya baki apne aap aa jayenge.
जवाब देंहटाएंखुशवंत जी के तो हम भी कायल हैं..बिंदास लिखते हैं एकदम ...हाँ शुरू के ४ मन्त्रों पर तो किसी का जोर नहीं पर बाकी ४ प्रेरक हैं.
जवाब देंहटाएंऔर ये गुल्ली जब मख्खन बनेगा न तब समझ में आएगा इसे...
वाकई खुशवंत सिंह जी ने अपने सिद्धांतो और तय पैमाने पर जीवन जीया और उनके मंत्र ही स्वयम सिद्ध है. जो भी चलेगा आनंद और चैन मे रहेगा. बहुत ही सुंदर.
जवाब देंहटाएंऔर इस गुल्ली को तो पहली फ़ुरसत में ताऊ के पास भिजवाईये.
रामराम.
खुशदीप जी आप और खुशवन्त जी का क्या… "जी" आपके तो नाम से ही खुशी झलकती है!!!
जवाब देंहटाएं@दूसरी खुशी पर मन्मोहन सरकार ने ग्रहण लगा दिय है ,पर चलो ठीक है यारा एड्जेस्ट कर लेन्गे!!!
लेकिन ये आठवाँ वाला खुशी टिप बहौत डिफ़िकल्ट है, वो क्या है पब्लिक के पास टाईम नही है!!!
४,५,६,७ रुल तो हमारे पास हैं, ८ नंबर वाला रुल फ़ालो कर सकते हैं, ३ नंबर तो जन्म से ही है तो इस रुल को फ़ालो करने की जरुरत नहीं है, हाँ जरुरत है तो पहले २ रुल फ़ालो करने की तो पहले को तो मजबूरी में अब करना ही पड़ेगा और २ नंबर रुल पर अपना बस नहीं है। २ नंबर हो गया तो बस अपना बोरिया बिस्तर उठाकर चल देंगे वापिस अपने गांव...
जवाब देंहटाएंखुशदीप जी और खुशवंत जी की फिलॉसफी में ज्यादा फर्क नहीं है... जिस संज़ीदा तरीके से खुशदीप जी नियमित और स्तरीय पोस्ट पेश कर रहे हैं वो काबिले तारीफ है..आम तौर पर ब्लॉगर्स खुद की दुनिया से बाहर नहीं निकल पाते, या फिर इसे किसी के बारे में अपनी भड़ास निकालने का ज़रिया भर बना देते हैं... लेकिन खुशदीप जी के ब्लॉग की खासियत है कि वो अपने नाम को हकीकत में बदलने की कोशिश में लगे हैं... खुशी का दीप जलाने की उनकी ये मुहिम कामयाब हो... शुभकामनाएं...
जवाब देंहटाएं-- अतुल सिन्हा
खुश कीता ...खुशदीप भा जी ...उत्तम.. व्यवहारिक रचना ...बधाई
जवाब देंहटाएंबचपन से ही ना काहु से दोस्ती ना काहु से बैर पढता हू . खुशवन्त सिंह जो ९५ साल के चिर युवा है उनके अनुभवो का लाभ तो उठाना ही चाहिये .
जवाब देंहटाएंखुशवंत जी की जीवन की यह फिलॉसफी कई अन्य लोगो की फिलॉसफी भी है । इसमे ऐसा नया कुछ नही है । जीवन जीने के लिये लोग अपने सिद्धांत खुद गढ़ते है । कुछ सिद्धांत कॉमन होते है यह उनमे से ही कुछ हैं ।जीने की परिस्थितियाँ भी देखना ज़रूरी है । खुशवंत जी का लेखन मुझे अच्छा लगता है सरल व रोचक ।
जवाब देंहटाएंखुशियाँ ही खुशियाँ हों जीवन में जिसके...क्यूँ न वो जीवन परफेक्ट हो जाए
जवाब देंहटाएंखुशदीप और खुशवंत संग हों जब तो क्यूँ न वो पोस्ट हिट हो जाए..
स्लोग ओवर ...
गुल्ली ने आने की डेट नहीं बताई...:):)
वाह खुशदीप भाई सारे नोट कर लिए हैं ...बराबर कोर्स पूरा करने का प्रयास किया जाएगा ....और गुल्ली ने बडी तगडी जुगत लगाई है
जवाब देंहटाएंअजय कुमार झा
खुशदीप सर, जैसे आपके और अदा जी के ब्लॉग की हर पोस्ट का इंतजार करते हैं, वैसे ही बचपन से ही शनिवार को अखबार में छ्पने वाले कालम ’न काहू से दोस्ती न काहू से बैर’ का इंतजार रहता था। खुशवंत सिंह जी चीज़ बड़ी है मस्त-मस्त टाईप। टैबू टाईप विषय पर भी इतनी सहजता से लिखना, वाकई कमाल।
जवाब देंहटाएंsabhi mantra agar sikh liye to life jine ka andaz accha ho jayega.....स्लॉग ओवर hamesha ki tarah mast......
जवाब देंहटाएंएक नजर यहाँ भी डाल लें
जवाब देंहटाएंBahut bhadiya laga yah aalekha aapka ....sare mantra yaad rakh liye hai !
जवाब देंहटाएंis post ke liye aapko dhanywaad!!
Hamesha ki tarha bariya
जवाब देंहटाएंअतुल सिन्हा सर,
जवाब देंहटाएंआपका कमेंट अपने ब्लॉग पर पाकर जो खुशी हुई, उसे मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकता...आपने कब ये पहली पोस्ट डाली, पता ही नहीं चला...ब्लॉगवुड में आपका स्वागत है...मैं दावे के साथ कह सकता हूं आपके अनुभव और ईमानदार लेखन से हम सभी ब्लॉगर्स को बहुत कुछ मिलेगा...
जय हिंद...
सफल लोगों से ऐसे ही प्रेरणा मिलती है.
जवाब देंहटाएंnice i will try to fulfill all of these in my life , thanks u a lot
जवाब देंहटाएंकाफी कुछ सीखने को मिला...
जवाब देंहटाएंab se me bhi inhi manto ki sahayta se kam karunga.
kush dipdeep singh ne kafi acche mantra likhe he. me inki sahayta se hemesa kushhal jindgi bitaunga.
जवाब देंहटाएंkaffi accha he.
जवाब देंहटाएंबहुत प्रेरक |
जवाब देंहटाएंआह खुशवंत! अभी तो बहुत कुछ सुनना समझना बाकी था, तुम्हारे लफ्जों में। मैंने इतना बिंदास और खुला हुआ, खासकर सैक्स के मामले में तुम्हारे समकक्ष किसी दूसरे को न पाया। उन्हें कई मशहूर लोगों की कई अजीब-अजीब बातें पता थी, जिसको वे सार्वजनिक करने से कभी ना हिचकिचाए। औरतों के बारे में इतने खुलेपन से राय जाहिर कर देने की वजह से वे आलोचनाओं का शिकार हमेशा ही रहे, फिर भी सिक्ख धर्म का इतिहास जैसी सीरीज लिखना वाकई कमाल था उनका। अखबारों में उनके काॅलम की जगह शायद ही कोई दूसरा ले सके। हमारे पास दूसरा कोई खुशवंत सिंह नहीं है।
जवाब देंहटाएंआह खुशवंत! अभी तो बहुत कुछ सुनना समझना बाकी था, तुम्हारे लफ्जों में। मैंने इतना बिंदास और खुला हुआ, खासकर सैक्स के मामले में तुम्हारे समकक्ष किसी दूसरे को न पाया। उन्हें कई मशहूर लोगों की कई अजीब-अजीब बातें पता थी, जिसको वे सार्वजनिक करने से कभी ना हिचकिचाए। औरतों के बारे में इतने खुलेपन से राय जाहिर कर देने की वजह से वे आलोचनाओं का शिकार हमेशा ही रहे, फिर भी सिक्ख धर्म का इतिहास जैसी सीरीज लिखना वाकई कमाल था उनका। अखबारों में उनके काॅलम की जगह शायद ही कोई दूसरा ले सके। हमारे पास दूसरा कोई खुशवंत सिंह नहीं है।
जवाब देंहटाएंखुशवंत जी की फिलोस्फी ........
जवाब देंहटाएंउनकी ज़िंदादिली बराबर याद आएगी
नमन व श्रद्धांजलि
खुशवंत जी की फिलोस्फी ........
जवाब देंहटाएंउनकी ज़िंदादिली बराबर याद आएगी
नमन व श्रद्धांजलि