मैं आज ब्लॉगिंग के फील गुड पर पोस्ट लिख रहा था...बस फाइनल टच दे रहा था कि ब्रॉडबैंड ने धोखा दे दिया और जो लिखा था वो सेव न होने की वजह से सब उड़ गया...बड़ी कोफ्त हुई...फिलहाल वो सब कुछ दोबारा लिख सकने की मनोस्थिति में नहीं हूं...कल फिर से लिखने की कोशिश करूंगा...
फिलहाल बात करता हूं इंसान के सर्प धर्म की...एक दिन पहले मैंने आपको ट्रक के पीछे लिखा वाक्य बताया था...
इंसान इंसान को डस रहा है,
सांप साइड में खड़ा हंस रहा है...
अब पता नहीं ये कौन सी शक्ति है जो मुझे कह रही है इन पक्तियों को थोड़ा विस्तार दूं...जहां तक कविता से मेरा वास्ता है तो ये कुछ वैसा ही होगा जैसे कि किसी नेता से ईमानदारी की बात की जाए......मैं नहीं जानता कि इन दो पक्तियों को जो विस्तार मैं देने जा रहा हूं वो क्या है...कविता है, तुकबंदी है या कुछ और...लेकिन ये ज़रूर जानता हूं कि ऐसा प्रयोग मैंने अपने लेखन में पहले कभी नहीं किया...इसलिए आपसे अनुरोध है कि इसे एक नौसिखिए की कोशिश के तौर पर ही लीजिएगा, अन्यथा नहीं..हो सकता है कि ट्रक की पक्तियों के लिए मेरे विस्तार को देखने के बाद आपको मुझे ही ट्रक के नीचे नहीं बल्कि बुलडोजर के नीचे देने का मन करे....लेकिन कलेजे पर पत्थर रख कर बर्दाश्त कर लीजिएगा...
इंसान का सर्प धर्म
इंसान इंसान को डस रहा है
सांप साइड में खड़ा हंस रहा है...
सांप को अब एहसास है,
ज़हर में इंसान मात दे गया है
सांप गर पहले किसी को नहीं डसता था
अपराध-बोध में दिन-रात तड़पता था-
सर्प धर्म निभाने में चूक हो गई
सांप को अब दिल से तसल्ली है
इंसान की केंचुली में सांप बस गया है
अपनों को काटना इंसान का धर्म हो गया है...
इंसान इंसान को डस रहा है
सांप साइड में खड़ा हंस रहा है...
स्लॉग ओवर
मक्खन,मक्खनी और गुल्ली जिम कार्बेट पार्क में पिकनिक मनाने गए...रात को थक कर कैंप में सो रहे थे कि गुल्ली की अचानक आंख खुल गई...गुल्ली ने देखा कि एक सांप मां मक्खनी को डसने ही वाला था...गुल्ली के उठने से खटका हुआ और सांप कैंप से बाहर भाग गया...गुल्ली ने घबरा कर मक्खन को उठा दिया और सांप के आने की बात बताई...मक्खन ने कहा...ओ सो जा पुतर...कोई बात नहीं...वो सांप के ज़हर का स्टॉक खत्म हो गया होगा...तेरी मां से रीफिल कराने के लिए आया होगा...
इंसान की केंचुली में सांप बस गया है
जवाब देंहटाएंअपनों को काटना इंसान का धर्म हो गया है...
शायद आज यह बहुत हद्द तक ठीक है....फिर भी अच्छाई की उम्मीद रहती ही है और मिलती भी है.....
स्लोग ओवर...
पहले ज़माने में विष कन्याएं हुआ करतीं थीं .....मक्खनी भी वही तो नहीं....!!!
और अगर यह सच है तो मक्खन से भी बच कर रहने में ही भलाई है बाबा.....हा हा हा हा
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जवाब देंहटाएंक्या बेहतरीन बढ़ाया है ट्रक की लाईन को...वाह..इसे देख कर अज्ञेय की कविता याद आती है:
जवाब देंहटाएंसांप तुम कभी सभ्य नही हुए और न होगे ,
शहरों मे भी तुम्हे बसना नही आया ,
एक बात पून्छू उत्तर दोगे ?
कहाँ से सीखा डसना
कहाँ से विष दंत पाया ?
स्लॉग ओवर:
बेचारे सांप को रीफिल के पहले ही भगा दिया. अब कैसे काटेगा किसी को??
सांप को अचरज भी है कि मै तो गैरों को काटता था यहां तो माजरा कुछ और है अपनो को ही........................
जवाब देंहटाएंइंसान इंसान को डस रहा है,
जवाब देंहटाएंसांप साइड में खड़ा हंस रहा है...
क्या बात है। मजा़ आ गया। समीर भाई, अज्ञेय की सही पंक्तियां कुछ इस तरह हैं-
साँप!
तुम सभ्य तो हुए नहीं
नगर में बसना भी
तुम्हे नहीं आया।
एक बात पूछूँ - उत्तर दोगे?
तब कैसे सीखा डसना,
विष कहाँ पाया?
क्या पकड़ा है उड़न तश्तरी ने साप को ! वही काम तो कर लेना था पर वो पहले आये और साप को पकड़ लिए !
जवाब देंहटाएं@और हाँ ,वडनेकर जी मूल अज्ञेय को प्रस्तुत किया जाय क्योकि समीर जी मुझे सही लग रहे हैं !
जवाब देंहटाएंसही को गलत ?
बेहतरीन। बधाई।
जवाब देंहटाएंहमने तो वो पेश किया जो याददाश्त में था..याददाश्त इस उम्र में छलना हो जाती है और अक्सर पिटने की नौबत आ जाती है.
जवाब देंहटाएंअजित भाई, आप युवा हैं, हम इम्प्रस्ड शुरु से हैं आपसे ..निश्चित ही आपकी बेहतर याददाश्त होगी..मगर शायद नेट की मदद मुझ पर ही कहर ढा गई..एक बार और चैक किया जाये.
यहाँ तो च्यवनप्राश भी नहीं मिलता..अगली बार भारत से कपड़ों के बीच छिपा कर लाऊँगा, फिर टक्कर लूँगा. :)
चिन्ता न करें, कपड़ों के बीच वो कस्टम वाले पकड़ नहीं पाते..वैसे ही शिलाजीत तक लोग ले आते हैं, मैं जानता हूँ ऐसे लोगों को.
महिलायें इस तकनिक का इस्तेमाल अचार लाने मं करती हैं :) हा हा
कृप्या हमेशा की तरह ही इस बार भी अन्यथा न लें.
कोई बात नहीं ,और कहीं से रीफ़िलिंग हो जाएगी साँप की -:)
जवाब देंहटाएंबी एस पाबला
सांप को अब एहसास है,
जवाब देंहटाएंज़हर में इंसान मात दे गया है
चलो ठीक हुआ "रिफ़िलिंग सेंटर का भी पता चल गया", नही तो मक्खन कभी बताता नही है।
सर्प अपने भोजन के अलावे गल्ती से ही किसी को डंसता है .. पर मनुष्य कभी आवश्यक आवश्यकताओं के लिए नहीं .. विलासितापूर्ण जीवन के लिए औरों को डंसता है .. आपका स्लोग ओवर तो हमेशा की तरह ही मजेदार है !!
जवाब देंहटाएंपाबला जी, दूसरा 'रिफिलिंग सेंटर' का पता दे दीजिये न सांप को ...बेचारा परेशान होगा...:):)
जवाब देंहटाएंसच तो यह है कि मनुष्य अपने स्वार्थ के लिये कहाँ तक गिर सकता है इसका आकलन ही नहीं किया जा सकता, ऐसे मनुष्य की पशु-पक्षी-सर्प आदि से तुलना करना उन पशु-पक्षी-सर्प आदि का अपमान करना है। इसीलिये श्री मैथिलीशरण गुप्त जी ने कहा हैः
जवाब देंहटाएंमैं मनुष्यता को सुरत्व की जननी भी कह सकता हूँ
किन्तु मनुष्य को पशु कहना भी कभी नहीं सह सकता हूँ
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मक्खनी के पास से भाग जाने के बाद वह साँप विष की रीफिलिंग के लिये जरूर किसी बड़े राजनीतिबाज के पास गया होगा!
Khushdeep sir kal aap se mulakat hue the shyad aap ko yaad na ho, aaj subah sab se phale yeh blog padne ka he kaam kiya.
जवाब देंहटाएंसांप को अब एहसास है,
ज़हर में इंसान मात दे गया है
इन्सान के रूप में सांप तो बहुत है इस संसार में लकिन उन में से आस्तीन के सांप सब से ज़ादा खतरनाक क्यू की सांप का तो आप को पता है के डस सकता है लकिन आस्तीन के सांप का नहीं पता के कब डस लेगा
खुशदीप जी, जहर से बचना और खुद उस से मुक्त होने की प्रेरणा के लिए आभार!
जवाब देंहटाएंशुक्र है कि साँपों में इतनी शर्म तो बची है कि वो सामने नहीं साईड में जा कर हँसते हैँ..वर्ना इनसान तो...
जवाब देंहटाएंस्लॉग ओवर में शायद आपका साँप कुछ पुराने ख्यालात का था इसीलिए रीफिल कराने के लिए खुद चला आया...अगर उसने मक्खनी के डाईरैक्ट दर्शन करने के बजाए रेडियो वेव तरंगों के जरिए उस की अमृत वाणी को सुनने की आप्शन चुनी होती तो काम भी बन जाता और सफर से थके-मांदे बच्चे की नींद भी ना टूटती...
भई ये सब कवि बेचारे साँप को अपनी कविता में क्यों घसीट लेते हैं .. बिना ज़हर वाले साँप भी तो होते हैं दुनिया में ..ललित शर्मा ठीक ही कह रहे हैं ज़हर में इंसान मात दे गया है .. वैसे ज़हर के चीफ स्टॉकिस्ट मक्खन ने अपनी बला अच्छी टाल दी .. बेचारी मखनी ..।-शरद कोकास
जवाब देंहटाएंगजब लिखा भाई, बहुत शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत बढ़िया रचना लिख दी है ..रचना के भाव बहुत सही लगे....
जवाब देंहटाएंसांप की रिफ़िलिंग न हो पाने का घना दुख हुआ ...अभी अभी पता चला है कि एक संसद नाम का फ़िलिंग स्टेशन है जहां बथेरे जहरीले रहते हैं ...सांप को अविलंब भेजा जाए । ताकि जब आदमी आदमी को डसे तो सांप खुल के तो हंसे ....॥
जवाब देंहटाएंAdbhut...
जवाब देंहटाएंbadiya prastuti...
आप बुलडोज़र के नीचे देने की बात कर रहें हैं...आपके पहले प्रयास ने तो आपको ट्रक के ऊपर बिठाकर जयजयकार दिलवा दी....
जवाब देंहटाएंकविता के माध्यम से बहुत ही सटीक व्यंग ...
और आपका स्लोग ओवर तो हमेशा ही मुस्कान ले आता है,सबके चेहरे पर
एक कवि के पहले जन्मदिन की बधाई।
जवाब देंहटाएंये रिफिलिंग वाला किस्सा तो बड़ा मजेदार रहा।
इंसान इंसान को डस रहा है
जवाब देंहटाएंसांप साइड में खड़ा हंस रहा है...
ऊँची बात !
सांप को अब एहसास है,
जवाब देंहटाएंज़हर में इंसान मात दे गया है
शायद इसीलिये सांपो की प्रजातियां लुप्त हो रही हैं
शायद उनका ज़हर चोरी हो गया है
"..तेरी मां से रीफिल कराने के लिए आया होगा.."
जवाब देंहटाएंहां जी, किसी ज़माने में विष कन्यायें हुआ करती थी, अब विष माताएं हैं :)
यह पोस्ट पढ़न्रे के बाद इतना ही कह सकते हैं कि आप छुपे रुस्तम हैं-:)
जवाब देंहटाएंजय हिंद.........
आपकी पुरानी नयी यादें यहाँ भी हैं .......ज़रा गौर फरमाइए
जवाब देंहटाएंhttp://nayi-purani-halchal.blogspot.com/