पति, पत्नी और वो...खुशदीप

क्या लिखूं आज...मुद्दों की तो इस देश में कोई कमी नहीं...लेकिन आज किसी भी मुद्दे पर लिखने का मूड नहीं है...होता है जनाब कभी कुछ नहीं लिखने का मूड भी होता है...लेकिन फिर भी लिखना है...चलो आज ऐसा ही करके देखता हूं, बिना मुद्दे, बिना सब्जेक्ट ही कुछ आएं, बाएं, शाएं करता हूं...अभी चिट्ठा जगत पर पोस्ट की फेहरिस्त पर नज़र डाल रहा था कि एक टाइटल पर नज़र अपने-आप ही रुक गई...टाइटल था व्यंग्य : धर्मपत्नी की महिमा...पोस्ट थी प्रेमरस बरसाने वाले शाहनवाज़ सिद्दीकी की...भईया शाहनवाज़...जब धर्मपत्नी की महिमा लिख दिया तो फिर व्यंग्य साथ लगाने की क्या ज़रूरत...क्या इससे बड़ा व्यंग्य भी ज़िंदगी कोई और कर सकती है...

शाहनवाज़ ने एक झटके में जितनी भी दुखती रग हो सकती है, सब का ज़िक्र इस छोटी सी पोस्ट पर कर डाला...ऑफिस में पत्नी का फोन आना, पति का वो जी से आंख मट्टका करना, पत्नी का शापिंग पर जाना, चाय की प्याली के इंतज़ार में सूखते रहना...तो लगता तो यही है भैये पति नाम के जीवों की ये कॉमन समस्या  हैं...



मैं एक-एक कर सब पर आता हूं...पहली बात पत्नी का बेवक्त फोन आना...और छप्परफाड़ लॉटरी की तरह वो यानि उनजी का फोन आना, दोनों में क्या फर्क होता है...ये मैंने शाहनवाज़ की पोस्ट पर कमेंट के ज़रिए भी स्पष्ट किया था...यहां फिर कर देता हूं...

अब एक हक़ीकत शौहरों की भी सुन लो...पत्नी का फोन आता है तो जवाब होता है...क्या बात है...पता नहीं है बिज़ी हूं...जल्दी बोलो क्या लाना है...अच्छा ले आऊंगा...अब फोन रखो...अब खुदा न खास्ता किन्ही वो का फोन आ जाता है तो पहले तो मधुर आवाज़ में हैलो जी ही इतनी लंबी और दुनिया की मिठास लिए होती है कि सुनने वाली के कानों में मिश्री घुल जाए...अब जनाब ठंडी सांस लेकर जहां बैठे हैं, वहीं अधलेटे हो जाते हैं...फिर कहते हैं...बोलिए जी बोलिए...आज इस नाचीज़ की याद कैसे आ गई...अज़ी बंदा फुर्सत ही फुर्सत में है...कहिए क्या हुक्म है हुज़ूर का....


अब दूसरा मसला शॉपिंग का...जनाब हफ्ते में एक-दो बार पत्नी के साथ शापिंग पर चले जाइए, कसम से कहता हूं एक्सरसाइज़ करने जिम जाने की कोई ज़रूरत नहीं...इस शॉपिंग में ही आपकी इतनी परेड हो जाती है कि आप चुस्त-दुरूस्त हो जाते हैं...आपका वॉलेट भी आपकी तरह ही सूख जाता है...और डेबिट-क्रेडिट कार्ड इस्तेमाल करते हैं तो और मुसीबत...जब खर्च का कोई बजट ही लेकर नहीं चलते तो पत्नीश्री ऑफ़र स्कीम का फायदा क्यों नहीं उठाएं...और गज़ब देखिए ऑफर देने वाले खुल्लमखुल्ला सेल को लूट का नाम देकर हमें लूटते हैं...चलिए खैर छोड़िए...मेरी समझ में आज तक नहीं आया कि पत्नीश्रीओं के ज़ेहन में शॉपिंग से पहले क्या दिमाग़ में आता है...ड्रेस का खास डिज़ाइन, खास एड़ी की सेंडल, स्टाइलिश जूलरी...अब तलाश होती है पत्नीश्री के तसव्वुर में जो तस्वीर है, उसके मुताबिक चीज़े ढूंढने की,...ज़ाहिर है जिसे ढूंढना है वो कहीं हैं ही नहीं तो फिर उन दुकानों या शोरूम का नज़ारा सुनामी जैसा तो होगा ही, जहां पत्नीश्री ने अलट-पलट कर सारे डिज़ाइन देखे हों...फिर भी मनपसंद चीज़ नहीं मिलती...ऐसे में क्या शॉपिंग नहीं होती...पति प्यारों ये सोच कर खुश मत हो जाओ कि शॉपिंग नहीं होगी और आप बार-बार बजट बनाने की मशक्कत से बच जाओगे...दरअसल ऐसी स्थिति में पत्नीश्री बड़ा ऐहसान जताते हुए समझौता करती हैं...पसंद की चीज़ तो मिली नहीं...लेकिन उससे मिलतीजुलती दो चीज़ें ज़रूर खरीद लीं...और उस मनपसंद चीज़ की तलाश फिर भी जारी रहेगी..और ये भी तय मान लो पत्नीश्री ने जो खरीदा है, उसमें कुछ न कुछ तो एक्सचेंज के लिए वापस जाएगा ही...इसलिए हर पर्चेस का बिल संभाल कर रखें तो आप ही का फायदा है...क्योंकि एक्सचेंज कराने भी तो आपको ही जाना है....

चाय की प्याली...ये भी जनाब बड़ा दर्द देने वाली है...आप वक्त बेवक्त कभी भी उठकर नेट खोल कर ब्लॉगिंग जैसे पुनीत कार्य में अपना दिमाग़ खपा कर खुद को धन्य समझ रहे होते हैं...सोच रहे होते हैं कि ब्लॉगजगत हमें पढ़़-पढ़ कर निहाल हो रहा होगा...अब जनाब वहम तो किसी को भी हो सकता है न...अब गालिब़, इसी तरह खुद को खुश कर लिया जाए तो हर्ज़ ही क्या है...ऐसे में आपको एक और वहम होता है...सिरदर्द का...अब आप ये ज़ोर से बोलकर सुनिश्चित भी कर लें कि पत्नीश्री ने सुन ही लिया है..तो फिर भी गारंटी नहीं कि चाय की प्याली फौरन आ ही जाएगी...आएगी उसी वक्त जब पत्नीश्री की कृपा होगी...

अब पतिदेवों, हाथ उठा कर कहिए, किस-किस को ऐसे ही हालात से गुज़रना पड़ता है...आखिर दुखियारों की बात दुखियारे ही समझेंगे...



स्लॉग ओवर

मक्खन सब्ज़ी के चार-चार थैले उठाकर तेज़ी से घर की ओर दौड़ा जा रहा था...

रास्ते में ढक्कन मिल गया...बोला...क्यों आज भाभीजी का हाथ बंटाया जा रहा है...

मक्खन फौरन तमक कर बोला...

...

...


क्यों वो मेरी मदद नहीं करती बर्तन और कपड़े धोने में...

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24 टिप्पणियाँ
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  1. लंबी और ठंडी सांसे तो हम जैसे कुवांरों ने भी ली है हेलो सुनकर। जहां बैठे होते हैं वहां अधलेटे से हो जाते हैं..वगैरह वगैरह.....
    खैर बाकी दुखियारे (आपकी तरह वाले) आते ही होंगे टिप्पणी करने। आज तो हमने बाजी मार ली इस मामले में टिप्पणी करने में।

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  2. पत्‍नी पुराण पर हम क्‍या कहें? हमें तो लगता है कि हमारा जनम ही बेकार गया। क्‍योंकि हम तो ऐसी पत्‍नी बने ही नहीं। इसका भी कोई उपाय है आप लोगों के पास कि अब कैसे बना जाए ऐसा? हो तो बता दो भैया, जरा जनम ही सुधार लें।

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  3. पत्नी की महिमा बड़ी, बहुत बहुत उपकार!
    पत्नी आते ही हुए, अलग-अलग घरबार!!

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  4. क्यों वो मेरी मदद नहीं करती बर्तन और कपड़े धोने में...
    मै चश्मदीद हूँ:)
    अच्छी पोस्ट

    आपके ब्लाग की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर

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  5. और ललिता सॉरी ललित भाई,
    आपने बुज़ुर्ग और सुघड़ गृहणिये के नाते चौका-चूल्हा, साफ़-सफ़ाई और बच्चों के पालन-पोषण के जो अमूल्य टिप्स मुझे दिए थे, उनके लिए सदैव आपका ऋणी रहूंगा...सच में घर चलाने के बारे में कितना कुछ आपने सीख रखा है...ये नई पीढ़ी के पति तो अपने पिताओं से कुछ नहीं सीख कर आते...

    जय हिंद...

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  6. @खुशदीप सहगल

    जय हो,
    गृहस्थी के दोनो पहिए बराबर चलाने के लिए कुछ तो करना पड़ेगा।
    जब जागो तब सबेरा समझो:)

    जय हिंद

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  7. हा हा हा ! बढ़िया व्यंग है ।
    स्लोग ओवर तो एकदम मस्त ।
    सबके राज़ खोल दिए ।

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  8. हा हा हा हा "क्या वो मेरी मदद नही करती बरतन और कपड़े धोने मे"? क्या बात है। खुशदीप भाई की रचनायें, व्यंग, खुश कर देती है।

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  9. क्या बात है खुशदीप जी! आपने पत्नी पुराण का आपरेशन करके कमाल का व्यंग्य तैयार कर दिया है. :-)

    साथ में घर को सुचारू रूप से चलने की टिप्स भी दे डाली, ऊपर से ललित जी की टिप तो ज़बरदस्त हैं. ;-)

    जय हो!

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  10. किस दुनिया की बात कर रहे हैं आपलोग .. वहीं जाकर बस लेते हम महिलाएं !!

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  11. उफ़!...क्या जिक्र छेड़ दिया आपने खुशदीप भाई?

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  12. Jai ho Khushdeep bhaiya.........aapka vyangya!! kya kahne...:)

    ek dum andar tak jaata hai, kahin kahin lagta hai, arre aisa hi to ghat ta hai........jeewan me:P

    upar se slog over.......ye to Miyadad ka chhakka tha chetan sharma ke last ball pe.......:)

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  13. सच्चा लेखन...मज़ा आया पढ़ कर लगा जैसे हमारी आप बीती लिख रहे हैं...
    नीरज

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  14. अब समझ आई यह साले गोरे इसी लिये शादी नही करते... सिर्फ़ वो से ही काम चला लेते है....भारतीय बेचारे पति हर दम हर जगह पिसते ही है.... बेचारे, खुश दीप जी एक पति युनियन बनाओ जल्दी से जी... ओर फ़िर इस घुटन से छुटकारा दिलवाओ बेचारे नरिह पतियो को....

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  15. अब जनाब ठंडी सांस लेकर जहां बैठे हैं, वहीं अधलेटे हो जाते हैं... फिर कहते हैं...बोलिए जी बोलिए...आज इस नाचीज़ की याद कैसे आ गई...अज़ी बंदा फुर्सत ही फुर्सत में है...कहिए क्या हुक्म है हुज़ूर का....

    हा हा हा

    दिल की बात सुने दिलवाला
    सीधी सी बात न मिर्च मसाला
    कहके रहेगा कहने वाला
    दिल की बात सुने दिल वाला


    खुशदीप भाई एक दम सुच्ची बात कह दी।
    उनके तो फ़ो्न का ही इंतजार रहता है कि
    कब आफ़िस पहुंचे और उनकी घंटी बजे।

    आज तो आपकी पोस्ट ने हिलाकर रख दिया।
    तीसरी बार आना पड़ा

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  16. जब धर्मपत्नी की महिमा लिख दिया तो फिर व्यंग्य साथ लगाने की क्या ज़रूरत...क्या इससे बड़ा व्यंग्य भी ज़िंदगी कोई और कर सकती है...
    हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा । आशीर्वाद्

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  17. kyaa aisi bhi patniyan hoti hain aur aise pati bhi.........hamne to dekhe nahi.......hahahaha.

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  18. एक एक वाकये का रोचक वर्णन ..खुशदीप भैया मैं तो अभी इस मामले में अनुभव हीन हूँ..पर पढ़ कर कुछ नई बात पता चली...बढ़िया पोस्ट...और स्लॉग ओवर भी कमाल का..धन्यवाद भैया

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  19. क्यों वो मेरी मदद नहीं करती बर्तन और कपड़े धोने में....

    हाय मर जावा....हा हा हा हा,,,

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