एक बटा दो, दो बटे चार,
छोटी छोटी बातों में बंट गया संसार...
नहीं नहीं, मैं बीमारी का झटका सह कर इतना भी मक्खन नहीं हुआ कि बाबाओं की तरह आपको उपदेश देने लगूं...इस काम के लिए तो पहले से ही बहुत सारे महानुभाव सक्रिय हैं...दरअसल,मुझे फिल्में भी हल्की-फुल्की ही पंसद आती हैं, जिन्हें देखकर दिमाग में कोई टेंशन न हो...इसी तरह की पोस्ट मैं लिखने और पढ़ने की कोशिश करता हूं...जिसे पढ़कर आपके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ जाए, मेरी नज़र में वही लेखन सबसे ज्यादा कामयाब है...इससे पहले कि मैं रौ में बहने लगूं और सारी कसर इसी पोस्ट में निकालने लगूं, सीधे मुद्दे की बात पर आता हूं...
मुझसे अक्सर आफ़िस में नए सहयोगी (अपनी पारी की शुरुआत करने वाले लड़के-लड़कियां) पूछते रहते हैं कि अड़सठ को इंग्लिश में क्या कहते हैं...सेवेंटी नाइन या एटी नाइन को हिंदी में क्या कहा जाएगा...फोर्टी नाइन हिंदी में कैसे लिखा जाएगा या उच्चारण कैसे किया जाएगा...ये समस्या सिर्फ आफिस की ही नहीं, मेरे घर की भी है...मेरा बेटा सृजन और बिटिया पूजन भी अक्सर ऐसे ही सवाल मुझसे करते रहते हैं...
ये बच्चे विदेश से पढ़ कर नहीं आ रहे हैं...ये हमारे भारत के स्कूलों से ही पढ़े हैं या पढ़ रहे हैं...अगर हमारे बच्चों को हिंदी की गिनती का ठीक से पता नहीं है तो कसूर किसका है...हमारे एजुकेशन सिस्टम का, स्कूलों का या फिर खुद हमारा...लेकिन आप खुद ही सोचिए आज आप हिंदी के अंक मसलन १,२,३,४,५,६,७,८,९ कितनी जगह लिखा देखते हैं...यहां तक कि हिंदी अख़बारों में भी रोमन अंक ही इस्तेमाल किए जाते हैं जैसे कि 1,2,3,4,5,6,7,8,9...जब हिंदी के अंक खुद ही प्रचलन से विलुप्त होते जा रहे हैं तो फिर हम अपने बच्चों को क्यों दोष दें...
यहां तक तो ठीक है, लेकिन मेरा सवाल दूसरा है...हिंदी लिखते हुए रोमन अंकों का इस्तेमाल कितना जायज़ है...इस विषय में एक ही तरह का मानदंड क्यों नहीं अपना लिया जाता...जिस तरह हमारे बच्चे पढ़ रहे हैं, मुझे नहीं लगता कि भविष्य में हिंदी के अंकों का कोई महत्व रह जाएगा...आप इस बात को पसंद करें या न करें, हिंदी को बढ़ावा देने का कितना भी दम भरें, लेकिन मुझे तो यही लग रहा है कि हिंदी अंकों का कोई नामलेवा भी नहीं रह जाएगा...हिंदी के ये अंक बस संदर्भ ग्रंथों या संग्रहालयों की ही शोभा बन कर रह जाएंगे...जैसे कि आज गांधी जी के चरखे का हाल है...
आप सब ब्लॉगरजन इस विषय में क्या सोचते हैं...क्या हिंदी लिखते वक्त भी हिंदी अंकों की जगह अंग्रेज़ी के अंकों को अपना लिया जाना चाहिए...मुझे खुद ऐसा करने में ही सुविधा महसूस होती है...या फिर मैं गलत हूं...और हिंदी लिखते वक्त सिर्फ हिंदी के अंकों का ही इस्तेमाल करना चाहिए....
स्लॉग ओवर
मक्खन हिसाब किताब में खुद को बड़ा तेज़ समझता है...बाज़ार से सारी खरीददारी भी खुद ही करता है...मज़ाल है कि कोई दुकानदार मक्खन को बेवकूफ़ बना ले...(बने बनाए को कौन बना सकता है)...एक बार मैं घर के पास डिपार्टमेंटल स्टोर में खरीददारी करने गया तो देखा मक्खन आस्तीने चढ़ा कर बिलिंग काउंटर पर सेल्समैन से भिड़ा हुआ था...अबे तू देगा कैसे नहीं...हराम का माल समझ रखा है...खून पसीने की कमाई है...ऐसे कैसे छोड़ दूं फ्री की चीज़...
मेरी समझ में माज़रा नहीं आया...मैंने जाकर पूछा...क्या हुआ मक्खन भाई, कैसे पारा चढ़ा रखा है...मक्खन कहने लगा...देखो भाई साहब, मैंने स्टोर से जूस के दो बड़े पैक खरीदे हैं...और उन पर दो-दो चीज़ें फ्री लिखी हुई हैं और ये मुझे जूस के साथ वो दे नहीं रहा...मैंने कहा...दिखाओ मक्खन भाई, जूस के पैक के साथ क्या फ्री दे रहे हैं...मक्खन ने जूस के पैक मेरी तरफ बढ़ा दिए... उन पर लिखा था- शुगर फ्री, कोलेस्ट्रॉल फ्री...
आप वाकई मजा ला देते हैं अपने पोस्ट में... और सन्देश भी देते हैं...
जवाब देंहटाएं०१२३४५६७८९ :)
जवाब देंहटाएंमुझे नहीं लगता कि हिन्दी या किसी भी प्रादेशिक भाषा के भी अंक बचेंगे। भाषाएँ स्वयं लुप्त होती जा रही हैं। अधिकतर एक दो पीढ़ी में गायब हो जाएँगी। मेरे हिन्दी में अंक लिखने या न लिखने से क्या होगा यदि कोई उन्हें पढ़ने वाला ही नहीं होगा?
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
एक बार हिंदी अंकों में लिखकर बैंक में चेक जमा करें जहाँ लिखा होता है अपने कार्य हिंदी में करें..!
जवाब देंहटाएंव्यवहार में हिंदी अंक प्रचलन से बाहर हो गया है।
-अच्छी पोस्ट. स्लागओवर हमेंशा की तरह मजेदार।
मुझे उस मकखन जी की फ़िक है... क्या उसे शुगर ओर कोलेस्ट्रॉल फ्री... ले कर दी या नही.
जवाब देंहटाएंयह हाल भारत का ही नही सभी उन देशो का है जो पहले गुलाम रह चुके है अफ़्रिका के बहुत से देश है जहां उन की मात्र भाषा ही खत्म हो गई, वो सिर्फ़ अग्रेजी ही बोलते है, ओर भारत मै कुछ ओर समय बाद यही होगा.... गुलामी इतनी जल्दी खुन से नही निकलती, ओर फ़िर हम तो है ही वफ़ा दार,मेकाले के सपने हम इतनी जल्द केसे तोड दे
भैया... मैं तो आज भी संडसठ और अडसठ में कन्फ्यूज़ हूँ ... लेकिन गिनती पूरी आती है.... हिंदी में..... अब रोमन यूज़ करने में कोई दिक्कत नहीं है..... हिंदी कि लिपि कठिन भी है... और कई बार समझने में भी दिक्कत होती है. ६ और ९ में तो बहुत ही कन्फ्यूज़न होता है.... और हिंदी में रोमन का इस्तेनाल इसलिए होता है प्रिंटिंग में .... क्यूंकि उसकी डाई .... आसानी से मिल जाती है.... और बन जाती है.... वैसे.... हिंदी में लिखना चाहिए.... लेकिन एजूकेशन सिस्टम में ही कमी है.... कहीं ना कहीं....
जवाब देंहटाएंभैया.... मक्खन को समझाइए.... बहुत बिगड़ गया है..... झगडा करने लग गया है....
ऍम बैक टू न्ख्लौउ....
जय हिंद.....
बात तो सही है अगर हिंदी अंक प्रचलन से निकल जाएंगे तो
जवाब देंहटाएं......छत्तीस के आकंड़े का क्या होगा.....जाहिर है कि छत्तीस का आकंड़ा हिंदी और अंग्रेजी में बनाया जाता रहेगा....दरअसल दोनो ही अंक यूज में रह सकते हैं. ये हम पर है कि हम अपने बच्चों को कितना ज्ञान दे पाते हैं..सिर्फ सिस्टम को दोष देने से काम नहीं चलेगा....आखिर दिल्ली में रहने वाले दक्षिण भारतीय हिंदी बोलते बोलते अपनी भाषा नहीं भूल जाते तो फिर हम हिंदी भाषी ऐसा क्यों करते हैं.....पूरी हिंदी बेल्ट की सोच में बदलाव की जरुरत है....बिहार में सब देशज भाषा बोलते हैं पर लिखते वक्त शुद्ध हिंदी लिखते हैं....मगर बोलते वक्त ध्यान नहीं देते...ये हालत पूरे हिंदी बेल्ट की है.....बदलाव घर से ही लाना होगा....जुडे़ परिवार में बच्चों को कहानी सुनाते सुनाते दादा-दादी पूरी भारतीय सभ्यता का ज्ञान दे देते थे....आज ये गायब होता जा रहा है....सो सोचने की बात यह है कि हम कहां पर गलती कर रहे हैं....रोजमर्रा की ज़िदगी में सुविधा के लिए रोमन अंक को अपनाने में कोई बूराई नहीं है....न अपनाना सिर्फ दुराग्रह है....और कुछ नहीं...
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जवाब देंहटाएंजहां तक लिखने की बात है....घूम कर हर पीढ़ी अपने पुराने दिनो को ढुंढती है..सो आने वाली पीढ़ी अगर भूल गई तो उसे ढूंढेगी जरूर....इसलिए लिखते रहना जरुरी है
जवाब देंहटाएंभारतीय संविधान के अनुसार हिन्दी में अंकों का अंतर्राष्ट्रीय स्वरुप मान्य है इसलिए १, २, ३, ४... के स्थान पर 1, 2, 3, 4.... का प्रयोग गलत नहीं है - बल्कि संवैधानिक है. वैसे भी यह अंक भारत से ही आरम्भ होकर सारे विश्व में फैले हैं वरना तो यूरोपीय भाषाओं में रोमन अंकों का प्रयोग होता था. हाँ, जहां तक 68 को हिन्दी में न कह पाने का प्रश्न है, हमें अपनी भाषा पर ध्यान देने की आवश्यकता है.
जवाब देंहटाएंहिन्दी के मानकीकरण की प्रक्रिया में अंको के रोमन स्वरूप को मानकी कृत कर दिया गया है, और वह भी हिन्दी के लिए; अर्थात् हिन्दी में अंकों का मानक रूप 123456789 निर्धारित कर दिया गया है देवनागरी के मानकीकरण की प्रक्रिया में।
जवाब देंहटाएंइसे क्या कहिएगा?
यों मेरा मानना है कि बच्चे वह सीखते हैं जो वे आचरण में देखते हैं, न कि वह जो उन्हें दिखाया जाता है, या उपदेश में कहा जाता है। यदि वे अपने परिवार व परिवेश में हिन्दी के अंको व शब्दरूपों का प्रयोग होता देखेंगे तो बिना किसी यत्न अथवा जबरदस्ती के उसे ही सीख जाएँगे।
वैसे आपको जानकर हर्ष होगा कि महाराष्ट्र में बसों के नं. तक १ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ वाले देवनागरी स्वरूप में लिखे जाते हैं। भारत के दक्षिण भारतीय राज्यों से उत्तरी राज्यों को समाज सांस्कृतिक अनेकविध सकारात्मक चीजें सीखने को मिल सकती हैं। उन राज्यों में अपनी भाषा, समाज, संस्कृति और मूल्यों के प्रति उत्तर भारत की तुलना में कहीं बहुत अधिक आदर, स्नेह व अपनाए रखने की जिद व यत्न किसी को भी स्पष्ट दिखाई देगा। मराठी, तेलुगु आदि परिवारों में सम्बोधन के सारे शब्द अभी भी मातृभाषा के हैं, वहाँ उत्तर की भाँति मम्मी- पापा आदि का प्रचलन नहीं, यहाँ तक कि विदेशों में बसे उन प्रान्तवासियों तक के घरों में भी नहीं।
तो कुल बात, बचाकर रखने वालों पर निर्भर है और निर्भर है उन की उन तत्वों के प्रति आस्था पर।
kuchh sandesh deti ek sarthak post dikhi aaj bhaia.. lekin ye kya aap apni kasam tod baithe??? wednesday aur sunday wali..
जवाब देंहटाएंकविता जी की बात से 2000 फीसद सहमत हूं और यही मेरी भी टिप्पणी समझी जाए।
जवाब देंहटाएं@कविता वाचक्नवी
जवाब देंहटाएंहिन्दी के मानकीकरण की प्रक्रिया में अंको के रोमन स्वरूप को मानकी कृत कर दिया गया है
1, 2, 3, 4, 5 आदि अंकों का रोमन स्वरुप न होकर भारतीय (दशमलव) अंकों का अंतर्राष्ट्रीय स्वरुप हैं.
रोमन अंक ऐसे लिखे जाते थे - i, ii, iii, iv आदि.
@अजित वडनेरकर
रोमन अंकों में शून्य की परिकल्पना ही नहीं थी. कभी हिन्दू-अरेबिक अंकों और "हिन्दसे" शब्द पर भी लिखिए शब्दों का सफ़र में.
@दीपक मशाल प्यारे...
जवाब देंहटाएंपहली बात मैंने कसम नहीं खाई थी...कसम मैं वैसे भी कभी नहीं खाता...रेगुलर पोस्ट की बात पर मैं अब भी टिका हूं कि सिर्फ बुधवार और रविवार को ही लिखूंगा...हां बीच में संभव हो सका तो मंगलवार और शुक्रवार को सिर्फ चित्रों, कार्टून्स या स्लॉग ओवर के साथ सिर्फ माइक्रोपोस्ट ही डालूंगा...जिसमें लिखी सिर्फ तीन चार लाइनें ही होंगी...ये सब अपनी सुविधा के लिए है...जहां तक ज़ोर न पड़े वहीं तक ब्लॉगिंग करूंगा, असल में ये मेरा प्रण है...
जय हिंद...
हिंदी लिखते वक्त सिर्फ हिंदी के अंकों का ही इस्तेमाल करना चाहिए....
जवाब देंहटाएंअंग्रेजी की गिनती लिखने में कोई बुराई तो नहीं मगर जो देवनागरी पढ़ ले रहा है वो गिनती भी पढ़ सकता है, ऐसा मेरा मानना है और जब तक बन पाता है, अंक भी हिन्दी में लिखता हूँ.
सबकी अपनी अपनी पसंद..कोई रोक टोक होना नहीं चाहिये.
मख्खन से तो भर पाये भाई!!
हिंदी गिनती के अक्षर आते तो हैं ...बहुत अच्छा लगता है जब बच्चों को बताने का अवसर मिलता है ...कुछ तो है जो बच्चे हमसे पूछते हैं और हम जानते भी हैं ...!!
जवाब देंहटाएंजब तक आप और हम जैसे सोचने वाले हैं तब तक बचे रहेंगे। यह प्रतिक्रिया जैसे-जैसे ती्व्र होती जाएगी, हिन्दी का अस्तित्व बढ़ता जाएगा।
जवाब देंहटाएंअजी... बात... दरअसल... ये है.. कि ..जी... हम भी... अंकों को... रोमन ...में ही ...लिखते हैं। जी... पढने में... थोडी सी ...सहूलियत हो जाती है।
जवाब देंहटाएंवैसे हमें हिन्दी के सभी अंक आते हैं। शून्य से लेकर दस, सौ, हजार. लाख, करोड; और उससे भी आगे। 99 लिखा हो तो मैं नाइन्टी नाइन नहीं बोलता, बल्कि शान से निन्याणमें बोलता हूं।
एक बार मैं दो तीन पहली क्लास के बच्चों को गणित का ट्यूशन पढाया करता था। उनके घर पर स्कूल से शिकायत आयी कि बच्चे गिनती को हिन्दी में बोलते हैं जैसे पच्चीस। घरवालों ने मुझसे बताया कि बच्चों को पच्चीस की जगह ट्वेंटी फाइव बोलना सिखाओ। इधर अगला खुद ही नहीं बोल पाता। उसी दिन मैने उनके घरवालों से कह दिया कि जी ये लो किताबें, या तो बच्चों को खुद ही पढा लो, या फिर कोई अंग्रेज रख लो।
"अड़सठ को इंग्लिश में क्या कहते हैं...सेवेंटी नाइन या एटी नाइन को हिंदी में क्या कहा जाएगा...फोर्टी नाइन हिंदी में कैसे लिखा जाएगा या उच्चारण कैसे किया जाएगा...ये समस्या सिर्फ आफिस की ही नहीं, मेरे घर की भी है...मेरा बेटा सृजन और बिटिया पूजन भी अक्सर ऐसे ही सवाल मुझसे करते रहते हैं..."
जवाब देंहटाएंबड़ी ग्लानि होती है इन बातों से।
"हिंदी लिखते हुए रोमन अंकों का इस्तेमाल कितना जायज़ है..."
खुशदीप जी, अज्ञानवश हम 1,2,3,4,5,6,7,8,9... अंकों को रोमन अंक कहते हैं जबकि ये अंक भारतीय ही हैं और समस्त संसार में इन्हें "भारतीय अंकों का अन्तरराष्ट्रीय रूप" (International form of Indian Digits) के नाम से जाना जाता है। वास्तविकता यह है कि देवनागरी अंक भारत से खैबर दर्रे के रास्ते अनेक देशों में जाती गई और अन्त में स्वरूप बदल कर वापस भारत आ गई। इस तथ्य को विश्व के समस्त गणितज्ञ जानते और मानते हैं। कितनी बड़ी विडम्बना है कि हम अपने ही अंकों को रोमन अर्थात् दूसरों का बताते हैं।
राजभाषा अधिनियम अनुच्छेद 343 (1) भी देखें जिसके अनुसार "संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी, संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा।"
wah khoob
जवाब देंहटाएंहा हा खुशदीप भाई सबसे पहले तो स्लॉग ओवर पर मक्खन के क़िस्से पर हँसने दीजिए और फिर अपनी अँग्रेज़परस्त बिरादरी पर। मगर इसे अड़सठ की जगह उन्तीस, उन्तालीस, उनन्चास, उनसठ, उन्हत्तर, उन्यासी या नवासी से बतलाते तो मज़ा और आता हा हा।
जवाब देंहटाएंख़ैर। आपने वाजिब बात बतलाई। वाक़ई क़ाबिले-ग़ौर।
ठेठ गांव मे भी अब लोग १२३४५६७८९ की जगह 123456789 लिखते है . रही सही कसर मोबाईल फोन नम्बरो ने पूरी कर दी है . बोलते हिन्दी मे है लिखते अंग्रेजी मे है .
जवाब देंहटाएं.
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.इस हफ़्ते की दूसरी पोस्ट
ये क्या हो रहा है?
जवाब देंहटाएंलोग तो आपकी पोस्टों की गिनती करने बैठ गये जी
इस हफ्ते में एक आध और लिख दी तो लगता है ये पिल पडेंगें आप पर :-) हा-हा-हा
प्रणाम
एक भाषा होती थी मुंडी हिन्दी
जवाब देंहटाएंजिसे केवल व्यापारी अपने बही-खातों में और मुनीम इस्तेमाल करते थे, उसमें ही यह अंक प्रचलन में थे। बाकि जगह बहुत कम थे। हां ऊर्दू के अखबारों में भी ऐसे ही अंक दिखते थे। अब मुंडी हिन्दी तो लगभग समाप्त ही हो गयी है। शुरू की कक्षा से ही बच्चे को 1,2,3 लिखना और वन, टू, थ्री पढना सिखाया जाता है।
समस्या अड्सठ, उन्चास, उन्यासी, नवासी में नहीं बल्कि तब आती है जब बच्चा पूछ लेता है कि पन्द्रह या बियालिस कितना होता है?
प्रणाम
nice post !
जवाब देंहटाएंसही मुद्दा उठाया है, भाई जी !
जवाब देंहटाएंबात तो आपकी सही है बस इसका अमल अब कम हो गया है जो चिन्ता का विषय है और इसके लिये सभी को सामूहिक रूप से कदम उठाने होंगे।
जवाब देंहटाएंअब फ़्री माल मक्खन को जरूर दिलवा देना।
खुशदीप भाई ,
जवाब देंहटाएंसमस्या सिर्फ़ ये है कि आज बच्चों को ये अंक मालूम ही नहीं है जो कि निश्चित रूप से होनी चाहिए । मगर कसूर उनका भी नहीं है सब कुछ परिवेश के अनुरूप ही तो होगा । यदि सचमुच इन्हें भविष्य के बचाए रखना है तो इसके लिए कुछ कोशिश तो करनी ही होगी । वैसे बांकी बात तो सब कह ही चुकी हैं
बहुत अच्छी पोस्ट
जवाब देंहटाएंइस मामले में मेरा शहर पटना और दिल्ली के आम आदमी निपुण हैं... यहाँ बसों के नंबर हिंदी में ही बोले जाते हैं (मसलन आठ सौ तिरपन नंबर की बस फलने जगह जाएगी, चार सौ पांच बदरपुर जाएगी टाइप)... यह समस्या सब बड़े स्कूलों में (अंग्रेजी माध्यम) पढ़े बच्चों के साथ होता है... जो उनचास नहीं जानते....
बच्चों का क्या कसूर...वे जब प्रयोग में हिंदी के अंक देखते ही नहीं...तो कैसे सीखेंगे...बस इम्तहान में पास होने के लिए तीसरी चौथी तक रटते हैं...फिर भूल जाते हैं.
जवाब देंहटाएंहिंदी लिखते वक़्त, हिंदी अंकों का प्रयोग क्यूँ नहीं...यह एक सही सवाल है...मैं भी अक्सर रोमन अंक ही इस्तेमाल करती हूँ...पर वो इसलिए की उनका प्रिंट बोल्ड है...पर अब शुरू कर देती हूँ हिंदी अंकों का इस्तेमाल...हम हिंदी लिखने वाले भी नहीं करेंगे तो फिर किसी और से क्या उम्मीद रखें
KHUSHDEEP MAKHAN KO KUCHH DIN KE LIYE MERE PAAS BHEJ DO MERA DIL LAGA RAHEGA . AAJ APANE VATAN KEE YAAD AA RAHEE HAI TO SOCH AAJ MAKHAN SE MIL KAR AATI HOON MAKHAN KO USEE FORM ME DEKH KAR MAN KHUSH HO GAYAA. BAHUT BAHUT AASHEERVAAD AUR SHUBHAKAAMANAAYEN
जवाब देंहटाएंआपने मुद्दा सही उठाया है...मैं अवधिया जी की बात से सहमत हूँ...जहाँ तक अंकों का सवाल है वो 12345 ....हिंदी के रूप में ही मान लिए गए हैं....पर गिनती हिंदी और अंग्रेजी में अलग अलग बोली और लिखी जाती है....
जवाब देंहटाएंमक्खन की बात बढ़िया लगी..
makhan bhaiya jindabaad!
जवाब देंहटाएंसिंधु सभ्यता के अंक और अक्षर कैसे थे? वे हैं लेकिन हम समझ नहीं सकते। बहुत सी चीजें जो भूतकाल में थी भविष्य में नहीं रहेंगी। अंक का कोई रूप हो। मनुष्य ने ही बनाया है। रूप परिवर्तन शील है। वे केवल संग्रहालय में ही रह जाएंगे और शोधार्थी ही उन्हें पहचानेंगे। अभी तो पहाड़े याद करने की जो मजेदार और आसान पद्धति थी उस का लोप हो रहा है। उसे बचाने की जरूरत है।
जवाब देंहटाएंसही कहा । आजकल बच्चों का हिंदी ज्ञान ऐसा ही रह गया है ।
जवाब देंहटाएंजैसा मक्खन का खरीदारी का ज्ञान।
३९ उनतालीस , ४९ उनचास ५९ उन्सठ ६९ उनहत्तर ७९ उन्यासी
जवाब देंहटाएं४० चालीस ५० पचास ६० साठ ७० सत्तर ८० अस्सी
बहुत आसन है जी बस जरा से ध्यान की जरुरत है
सच कह रहे हैं आप,,,लेकिन इसका कारण हिंदी के अंको का चलन कम हो जाना लगता है...हिंदी ब्लोगिग में रोमन लिखने से लोगों को आसानी से समझ आ जाता है ....अच्छी पोस्ट
जवाब देंहटाएंविकास पाण्डेय
www.vichrokadarpan.blogspot.com
सुन्दर पोस्ट!
जवाब देंहटाएंबहुत सही, ये समस्या हमने भी झेली अब भतीजे-भतीजियां झेल रही हैं।कमाल का लिखते हैं आप और फ़िर भी नापसंद के दो नम्बर,छा गये आप या वे महानुभव जिन्हे इस पोस्ट मे भी नापसंद करने के कारण नज़र आ गये।आजकल हम पर भी कुछ् लोग मेहरबान हैं।
जवाब देंहटाएंbahut saarthak post, yah vichaar karne yogy mudda to hai hi...hindi mein ank to vilupt hote hue dikh rahe hain...unaasi aur nawaasi mein fark karne mein mujhe bhi dikkat hone lagi hai yaha...
जवाब देंहटाएंab to jisse bhi phone nember pooche fir chahe wo sabji waali hi kyun na ho angreji mein hi batayegi...isliye ye mudda to nikal hi samajhiye haath se...shayad der bhi ho gayi ab..
hamesha ki tarah zabardast post...
aabhaar..
आपकी चिंता जायज है।
जवाब देंहटाएं--------
गुफा में रहते हैं आज भी इंसान।
ए0एम0यू0 तक पहुंची ब्लॉगिंग की धमक।
मैने भी जब बैंक मे अपनी पारी की शुरुआत की थी तो पहले ही दिन नोट गिनते हुए यह सवाल मैने वरिष्ठ लोगों से पूछा था कि नोट पर हिन्दी के अंक क्यों नहीं है और यह सत्रह भाषाओं में दस रुपये क्यों लिखा है ? मुझे यही जवाब मिला था कि अगर चीनी आदमी भी नोट देखे तो उसे पता चल जाये कि यह 10 से सम्बन्धित कोई मुद्रा है ,रुपया है या पौंड है या डॉलर है वह तो किसी से भी पूछ लेगा । सो यह अंतरृराष्ट्रीय मानक है ।
जवाब देंहटाएंरही सड़्सठ अड़ सठ की बात तो अभी पूरे देश मे ही हिन्दी मे इनके अलग अलग उच्चारण किये जाते है जैसे बैसठ , बासठ । चौवालिस चौरालीस ,अठरा,अठारह.एकवीस ईक्कीस.सैतीस सड़तीस ,चव्वालीस चौरालीस ,चौवन चौपन ,तिरसठ त्रेसठ। उनासी अन्यासी और नवासी मे तो अभी तक लोग कंफ्यूस होते है । हाँ मगर बच्चों को बताना ज़रूर चाहिये ... आखिर बड़े होकर उन्हे हिन्दी बोलकर ही सब्ज़ी खरीदना है ।
ऐसा ही है... वैसे एक ज़माना और था, स्कूल में मास्टर मार मार कर के डेढ और ढाई के पहाडे याद कराते थे । अभी तो ससुरा उनासी और नवासी के आधी जनता फ़ेल.
जवाब देंहटाएंEk do teen chaar..
जवाब देंहटाएंonna rind anji...
ek, be, tran, chaar, paanch, chh, saat, aanth [very slight nasal inflection], nav, das
une deux trois quart cinq six sept oqt neuf dix
suun,nang, song, saam, see,ham,hon chet pait, kaav, sip..
alpha beeta charley delta...
prathama, dwiteeya, triteeya, chaturthee...
on, dos, trays, quatro, cinko, sais, outro, novo
...
one two thre four....
Hindi, tamil, Gujrati, French, Thai, Coded, sanskrit , spanish and english respectively....
We traveled a lot from Satyug to Kaliyug......What's the harm moving from adsath to sixty eight?
Its time to take a Giant leap.
Smiles..